सिद्धारमैया शायद येदियुरप्पा के साथ ज़्यादा सहज महसूस करते. कर्नाटक में वह कांग्रेस को वापस नहीं ला पाए और इसीलिए उनको एचडी कुमारस्वामी को साथ लेकर चलना पड़ रहा है. हाईकमान कर्नाटक में स्थाई सरकार चाहती है तो सिद्धू को भी काफी परेशानी झेलनी पढ़ रही है. उनके कई साथियों को मंत्रि-पद नहीं मिला है.
मुद्दा यह है कि मोदी जी, अमित शाह और येदियुरप्पा के खिलाफ इतनी जोर-शोर से प्रचार करने के बाद वह भाजपा के सत्ता में लौटने की वजह नहीं बनना चाहते हैं. दूसरी तरफ गौड़ा और जेडीएस के साथ उनका ठीक-ठीक समीकरण नहीं बैठ रहा है. कांग्रेसी हाईकमान ने शायद इस चीज़ को भांप लिया था. उन्होंने सिद्धारमैया को कोआर्डिनेशन समिति और संसदीय दल दोनों का अध्यक्ष बना दिया था.
तो सिद्धारमैया नेचुरोपैथी करवाने गए हैं, हालांकि वहां भी पॉलिटिक्स और पॉलिटीशियन उनका पीछा नहीं छोड़ रहे हैं. एचडी कुमारस्वामी का राहुल गांधी से सीधा संपर्क शायद सिद्धारमैया को रास नहीं आ रहा है. वह कर्नाटक मंत्री परिषद में और प्रदेश कांग्रेस में अपने लोगों को पद पर देखना चाहते हैं. कांग्रेस शायद इसके लिए मान जाए क्योंकि कांग्रेस के पास ज़्यादा विकल्प नहीं हैं. यह गठबंधन चलता रहे यह शायद कुमारस्वामी से ज़्यादा राहुल गांधी के लिए ज़रूरी है. कम से कम 2019 तक इस स्थिति में कोई बदलाव कांग्रेस के लिए बिलकुल लाभदायक नहीं होगा. एक तो कर्नाटक हाथ से जाएगा, और शायद कुमारस्वामी भी. सिद्धारमैया का एक गलत कदम जेडीएस को एनडीए की तरफ धकेल देगा.
मुख्यमंत्री कुमारस्वामी का प्रधानमंत्री मोदी जी के साथ ट्वीट का आदान प्रदान राहुल गांधी की नज़रों से छूटा नहीं होगा. मुख्यमंत्री जी फिलहाल राजनीतिक उदार नीति के पोषक हैं. पर राहुल भी बहुत कुछ इनवेस्ट कर चुके हैं कर्नाटक में. जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव पास आता जायेगा, इस कहानी में...
सिद्धारमैया शायद येदियुरप्पा के साथ ज़्यादा सहज महसूस करते. कर्नाटक में वह कांग्रेस को वापस नहीं ला पाए और इसीलिए उनको एचडी कुमारस्वामी को साथ लेकर चलना पड़ रहा है. हाईकमान कर्नाटक में स्थाई सरकार चाहती है तो सिद्धू को भी काफी परेशानी झेलनी पढ़ रही है. उनके कई साथियों को मंत्रि-पद नहीं मिला है.
मुद्दा यह है कि मोदी जी, अमित शाह और येदियुरप्पा के खिलाफ इतनी जोर-शोर से प्रचार करने के बाद वह भाजपा के सत्ता में लौटने की वजह नहीं बनना चाहते हैं. दूसरी तरफ गौड़ा और जेडीएस के साथ उनका ठीक-ठीक समीकरण नहीं बैठ रहा है. कांग्रेसी हाईकमान ने शायद इस चीज़ को भांप लिया था. उन्होंने सिद्धारमैया को कोआर्डिनेशन समिति और संसदीय दल दोनों का अध्यक्ष बना दिया था.
तो सिद्धारमैया नेचुरोपैथी करवाने गए हैं, हालांकि वहां भी पॉलिटिक्स और पॉलिटीशियन उनका पीछा नहीं छोड़ रहे हैं. एचडी कुमारस्वामी का राहुल गांधी से सीधा संपर्क शायद सिद्धारमैया को रास नहीं आ रहा है. वह कर्नाटक मंत्री परिषद में और प्रदेश कांग्रेस में अपने लोगों को पद पर देखना चाहते हैं. कांग्रेस शायद इसके लिए मान जाए क्योंकि कांग्रेस के पास ज़्यादा विकल्प नहीं हैं. यह गठबंधन चलता रहे यह शायद कुमारस्वामी से ज़्यादा राहुल गांधी के लिए ज़रूरी है. कम से कम 2019 तक इस स्थिति में कोई बदलाव कांग्रेस के लिए बिलकुल लाभदायक नहीं होगा. एक तो कर्नाटक हाथ से जाएगा, और शायद कुमारस्वामी भी. सिद्धारमैया का एक गलत कदम जेडीएस को एनडीए की तरफ धकेल देगा.
मुख्यमंत्री कुमारस्वामी का प्रधानमंत्री मोदी जी के साथ ट्वीट का आदान प्रदान राहुल गांधी की नज़रों से छूटा नहीं होगा. मुख्यमंत्री जी फिलहाल राजनीतिक उदार नीति के पोषक हैं. पर राहुल भी बहुत कुछ इनवेस्ट कर चुके हैं कर्नाटक में. जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव पास आता जायेगा, इस कहानी में और कई मोड़ आएंगें. देखते जाइये कर्नाटक की सियासत में क्या-क्या नए गुल खिलते हैं.
ये भी पढ़ें-
खतरा इतना है कि मोदी के मंत्री भी भरोसेमंद नहीं !
उन्नाव रेप केस जैसा होता जा रहा है दाती महाराज का मामला!
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.