दक्षिण कन्नड़ जिले (Dakshina Kannada District) के बेल्लारे में भाजपा युवा मोर्चा के नेता प्रवीण नेत्तारू (Praveen Nettaru) की हत्या के बाद कर्नाटक (Karnataka) में एक बार फिर से तनावपूर्ण माहौल बन गया है. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, प्रवीण नेत्तारू की हत्या के पीछे उनकी एक सोशल मीडिया पोस्ट को वजह बताया जा रहा है. जिसमें उन्होंने राजस्थान के उदयपुर में कन्हैयालाल की निर्मम हत्या का विरोध किया था. हालांकि, पुलिस प्रवीण नेत्तारू की हत्या को बेल्लारे में हुई एक अन्य हत्या के प्रतिशोध से भी जोड़कर देख रही है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो 'सिर तन से जुदा' के नारे की आड़ में अब निजी दुश्मनी भी निकाली जाने लगी है. लेकिन, इससे माहौल 'सिर तन से जुदा' (Sar Tan Se Juda) वाला ही बन रहा है.
शक्ति प्रदर्शन की जरिया बना 'सिर तन से जुदा'
उदयपुर, अमरावती जैसे घटनाओं में मुस्लिम कट्टरपंथियों ने अपनी क्रूरता को शक्ति प्रदर्शन का हिस्सा बना दिया है. जिस तरह से कश्मीर में 'रालिव, गालिव, सालिव' के नारे लगे थे. उसी तरह फिलहाल पूरे देश में 'सिर तन से जुदा' का नारा गूंज रहा है. बीते कुछ दिनों में बड़ी संख्या में हिंदुओं को धमकी मिली है. जिन्होंने पैगंबर मोहम्मद पर कथित टिप्पणी करने वाली नुपुर शर्मा का समर्थन किया था. या फिर उदयपुर हत्यकांड के खिलाफ आवाज उठाई थी. 'सिर तन से जुदा' के नारे की आड़ लेकर मुस्लिम कट्टरपंथी हिंदुओं के जेहन में दहशत का बीज बो रहे हैं. जिससे ऐसी घटनाओं पर प्रतिक्रिया देने से पहले भी कोई साधारण सा शख्स भी 1000 बार सोचे. क्योंकि, अगर ऐसा किया, तो संभव है कि अगला नंबर आपका ही लग जाए. और, उदयपुर हत्याकांड में बिना किसी डर के खंजर चमकाते इन कट्टरपंथियों के आगे आने की हिम्मत कौन ही करेगा?
दक्षिण कन्नड़ जिले (Dakshina Kannada District) के बेल्लारे में भाजपा युवा मोर्चा के नेता प्रवीण नेत्तारू (Praveen Nettaru) की हत्या के बाद कर्नाटक (Karnataka) में एक बार फिर से तनावपूर्ण माहौल बन गया है. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, प्रवीण नेत्तारू की हत्या के पीछे उनकी एक सोशल मीडिया पोस्ट को वजह बताया जा रहा है. जिसमें उन्होंने राजस्थान के उदयपुर में कन्हैयालाल की निर्मम हत्या का विरोध किया था. हालांकि, पुलिस प्रवीण नेत्तारू की हत्या को बेल्लारे में हुई एक अन्य हत्या के प्रतिशोध से भी जोड़कर देख रही है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो 'सिर तन से जुदा' के नारे की आड़ में अब निजी दुश्मनी भी निकाली जाने लगी है. लेकिन, इससे माहौल 'सिर तन से जुदा' (Sar Tan Se Juda) वाला ही बन रहा है.
शक्ति प्रदर्शन की जरिया बना 'सिर तन से जुदा'
उदयपुर, अमरावती जैसे घटनाओं में मुस्लिम कट्टरपंथियों ने अपनी क्रूरता को शक्ति प्रदर्शन का हिस्सा बना दिया है. जिस तरह से कश्मीर में 'रालिव, गालिव, सालिव' के नारे लगे थे. उसी तरह फिलहाल पूरे देश में 'सिर तन से जुदा' का नारा गूंज रहा है. बीते कुछ दिनों में बड़ी संख्या में हिंदुओं को धमकी मिली है. जिन्होंने पैगंबर मोहम्मद पर कथित टिप्पणी करने वाली नुपुर शर्मा का समर्थन किया था. या फिर उदयपुर हत्यकांड के खिलाफ आवाज उठाई थी. 'सिर तन से जुदा' के नारे की आड़ लेकर मुस्लिम कट्टरपंथी हिंदुओं के जेहन में दहशत का बीज बो रहे हैं. जिससे ऐसी घटनाओं पर प्रतिक्रिया देने से पहले भी कोई साधारण सा शख्स भी 1000 बार सोचे. क्योंकि, अगर ऐसा किया, तो संभव है कि अगला नंबर आपका ही लग जाए. और, उदयपुर हत्याकांड में बिना किसी डर के खंजर चमकाते इन कट्टरपंथियों के आगे आने की हिम्मत कौन ही करेगा?
हिंदू समाज में अंदर तक बैठ गया है मौत का खौफ
'सिर तन से जुदा' के नारे के साथ तालिबानी तरीके से हत्याओं को अंजाम दिया जा रहा है. और, नुपुर शर्मा के समर्थन पर बहुसंख्यक हिंदुओं पर जानलेवा हमले किये जा रहे हैं. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इन घटनाओं ने बहुसंख्यक हिंदू आबादी को मानसिक तौर पर कमजोर कर दिया है. 'अभिव्यक्ति की आजादी' वाले इस देश में अब अभिव्यक्ति ही लोगों के लिए मौत का खौफ बन गई है. हिंदुओं में इस बात की चिंता बढ़ चली है कि पता नहीं किस चीज को लेकर अल्पसंख्यक मुस्लिम कट्टरपंथियों की भावनाएं आहत हो जाएं. और, उनके लिए भी 'सिर तन से जुदा' वाली सजा मुकर्रर कर दी जाए.
क्योंकि, जिस सत्ताधारी दल भाजपा को विपक्षी राजनीतिक पार्टियां हिंदुत्ववादी कहती हैं. वो भाजपा भी इन मामलों में बस लीपापोती करती ही नजर आ रही है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो 'सिर तन से जुदा' के नारे के साथ हो रही हत्याओं और हमलों पर धर्मनिरपेक्षता ज्यादा भारी पड़ रही है. वरना पहलू खान जैसे मामलों को इस्लामोफोबिया के नाम पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने में कितना समय लगता है, ये सभी जानते हैं. धर्मनिरपेक्षता का ये चोंचला इस्लाम में नहीं अपनाया जाता है. क्योंकि, इस्लाम में गुस्ताख-ए-रसूल की सजा पहले से ही तय है.
सरकारों को लेने होंगे कड़े फैसले
पैगंबर टिप्पणी विवाद के बाद इस्लामिक देशों ने भारत पर नुपुर शर्मा के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बनाया. इतना ही नहीं, मिडिल ईस्ट के कुछ देशों ने तो इसे जानबूझकर भाजपा की ओर से फैलाई गई वैमनस्यता तक बता डाला. भारतीय सामानों के बहिष्कार से लेकर भारतीय प्रवासियों को वापस भारत डिपोर्ट करने तक की घुड़कियां दी जाने लगीं. जिसके जवाब में भारत सरकार ने इस्लामिक देशों के सामने नतमस्तक होने में ही अपनी भलाई समझी. जबकि, भारत सरकार को इस पर सवाल खड़े करने चाहिए थे.
'सिर तन से जुदा' के नाम पर दी जा रही बेइंतहा धमकियों को रोकने के लिए सरकारों को चाहिए था कि पैगंबर मोहम्मद पर नुपुर शर्मा की कथित विवादित टिप्पणी की जांच करें. और, जल्द से जल्द ये सामने लाया जाए कि नुपुर शर्मा की कही बातें क्या सचमुच में ईशनिंदा के तहत आती हैं. क्योंकि, हदीसों में ऐसी बातें पहले से ही लिखी हुई हैं. सरकारों को उस तालिबानी सोच पर बहस करनी चाहिए थी, जो किसी के बयान पर उसके कत्ल को जायज ठहराती हैं. लेकिन, इन तालिबानी तरीकों पर बहस की जगह सरकारें कट्टरपंथियों को पुचकारने में लग गईं.
जिसका फायदा उठाते हुए इन बेरहम हत्यारों ने 'सिर तन से जुदा' को इस्लाम के प्रचार का एक और तरीका ही बना डाला. इन तमाम चीजों को देखते हुए कहना गलत नही होगा कि सरकारों को 'सिर तन से जुदा' से जुड़े मामलों को रोकने के लिए एक राय होकर तत्काल फांसी जैसा कठोर दंड सुनिश्चित करना चाहिए. या फिर इन आतंकियों का पकड़ने के दौरान ही इनकाउंटर कर देना चाहिए. क्योंकि, जब तक इन इस्लामिक कट्टरपंथियों के मन में मौत का डर नहीं बैठेगा. सिर तन से जुदा के नाम पर होने वाली हत्याएं और हमले रुकने वाले नही हैं.
इतना ही नहीं, सरकारों को उन लोगों के ऊपर भी कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए. जो गला काटने वाले इन इस्लामिक कट्टरपंथियों को बचाने के लिए प्रोपेगेंडा चला रहे हैं. नैरेटिव सेट किया जा रहा है कि इन हत्याओं के पीछे पैगंबर मोहम्मद पर की गई नुपुर शर्मा की कथित विवादित टिप्पणी है. जबकि, नुपुर शर्मा की कही गई बातें किन हदीसों में कही गई हैं, इस पर चर्चा ही नही की जा रही है. दरअसल, इस पर चर्चा का सीधा सा मतलब है कि मुस्लिम कट्टरपंथियों की सारी कट्टरता धरी की धरी रह जाएगी. जिसके चलते धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के नाम पर खुलेआम 'सिर तन से जुदा' किया जा रहा है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.