पिछले साल बिहार की राजनीति में एक बड़ी उठा-पटक देखने को मिली थी. भाजपा से अलग होकर महागठबंधन में शामिल हुई जेडीयू ने दोबारा भाजपा का ही दामन थाम लिया था. महागठबंधन से अलग होने के पीछे नीतीश कुमार ने तर्क दिया था कि अन्य पार्टियों के साथ सरकार चलाना मुश्किल हो रहा है. तो क्या अब कर्नाटक की राजनीति में भी ऐसी ही कोई उठा-पटक की स्थिति आ सकती है? बिहार की तरह ही गठबंधन के फॉर्मूले से बनी कर्नाटक की सरकार पर भी खतरा मंडरा रहा है. वहां जो परिस्थितियां बन रही हैं, उन्हें देखकर तो यही लग रहा है कि कर्नाटक में भी जेडीएस के कुमारस्वामी को कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चलाने में दिक्कत हो रही है. दिक्कत नहीं होती है तो वह मुख्यमंत्री का पद छोड़ने की बात क्यों करते?
कर्नाटक की राजनीति में मची उठापटक से एक बात तो साफ है कि वहां कांग्रेस और जेडीएस के बीच सब कुछ सही नहीं है. एक ओर कांग्रेस के कुछ विधायक कुमारस्वामी को अपना नेता ही नहीं मानते हैं, वहीं दूसरी ओर कुमारस्वामी ने भी खुलकर इन कांग्रेसी विधायकों का विरोध किया है. कुमारस्वामी ने तो यहां तक कह दिया है कि कांग्रेस नेता आपने विधायकों को कंट्रोल में रखें, वो अपनी हद पार कर रहे हैं. उन्होंने तो ये भी कहा कि अगर कांग्रेस ये सब जारी रखना चाहती है तो वह अपना पद तक छोड़ने को तैयार हैं.
क्या बोले कांग्रेस के विधायक?
कांग्रेस विधायक एसटी सोमशेखर ने कहा था कि कर्नाटक में गठबंधन वाली सरकार पिछले 7 महीनों में विकास के नाम पर कुछ नहीं कर सकी है. अगर सिद्धारमैया मुख्यमंत्री होते तो राज्य में विकास देखने को जरूर मिलता. कांग्रेस विधायक की इस बात से कुमारस्वामी बेहद खफा हैं. और खफा होना बनता भी है, आखिर...
पिछले साल बिहार की राजनीति में एक बड़ी उठा-पटक देखने को मिली थी. भाजपा से अलग होकर महागठबंधन में शामिल हुई जेडीयू ने दोबारा भाजपा का ही दामन थाम लिया था. महागठबंधन से अलग होने के पीछे नीतीश कुमार ने तर्क दिया था कि अन्य पार्टियों के साथ सरकार चलाना मुश्किल हो रहा है. तो क्या अब कर्नाटक की राजनीति में भी ऐसी ही कोई उठा-पटक की स्थिति आ सकती है? बिहार की तरह ही गठबंधन के फॉर्मूले से बनी कर्नाटक की सरकार पर भी खतरा मंडरा रहा है. वहां जो परिस्थितियां बन रही हैं, उन्हें देखकर तो यही लग रहा है कि कर्नाटक में भी जेडीएस के कुमारस्वामी को कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चलाने में दिक्कत हो रही है. दिक्कत नहीं होती है तो वह मुख्यमंत्री का पद छोड़ने की बात क्यों करते?
कर्नाटक की राजनीति में मची उठापटक से एक बात तो साफ है कि वहां कांग्रेस और जेडीएस के बीच सब कुछ सही नहीं है. एक ओर कांग्रेस के कुछ विधायक कुमारस्वामी को अपना नेता ही नहीं मानते हैं, वहीं दूसरी ओर कुमारस्वामी ने भी खुलकर इन कांग्रेसी विधायकों का विरोध किया है. कुमारस्वामी ने तो यहां तक कह दिया है कि कांग्रेस नेता आपने विधायकों को कंट्रोल में रखें, वो अपनी हद पार कर रहे हैं. उन्होंने तो ये भी कहा कि अगर कांग्रेस ये सब जारी रखना चाहती है तो वह अपना पद तक छोड़ने को तैयार हैं.
क्या बोले कांग्रेस के विधायक?
कांग्रेस विधायक एसटी सोमशेखर ने कहा था कि कर्नाटक में गठबंधन वाली सरकार पिछले 7 महीनों में विकास के नाम पर कुछ नहीं कर सकी है. अगर सिद्धारमैया मुख्यमंत्री होते तो राज्य में विकास देखने को जरूर मिलता. कांग्रेस विधायक की इस बात से कुमारस्वामी बेहद खफा हैं. और खफा होना बनता भी है, आखिर कांग्रेस के विधायक को इस तरह की बात सार्वजनिक रूप से कहने की क्या जरूरत थी. कुछ तो है जो कुमारस्वामी की सरकार में सही नहीं है.
कुमारस्वामी की दबाव की राजनीति
जिस तरह बिहार में नीतीश कुमार ने महागठबंधन में रहते हुए कांग्रेस और आरजेडी का खुलकर विरोध किया था और इस्तीफा दे दिया था, कुछ वैसी ही धमकी कुमारस्वामी भी दे रहे हैं. कहते हैं ना कि दूध का जला छाछ भी फूक-फूक कर पीता है. कुमारस्वामी को उम्मीद है कि कर्नाटक में इस समय कांग्रेस कुछ ऐसा ही करेगी. बिहार में नीतीश कुमार की तरफ से महागठंबधन का हाथ छोड़ते ही उन्हें भाजपा का साथ मिल गया था और अगर कुमारस्वामी भी कांग्रेस का हाथ छोड़ते हैं तो ये तय समझिए कि भाजपा दोस्ती का हाथ बढ़ाने से नहीं चूकेगी. इस बात को कुमारस्वामी बखूबी समझते हैं, इसीलिए तो वह पद छोड़ने जैसी बात कह रहे हैं ताकि कांग्रेस पर दबाव बना रहे और वह अपने मन मुताबिक सरकार चला सकें.
कर्नाटक में जेडीएस की सिर्फ 37 सीटें हैं, जबकि 80 सीटें कांग्रेस के पास हैं. ऐसे में कांग्रेस के विधायकों को लगता है कि उन्हें अधिक से अधिक फायदे मिलने चाहिए. जबकि ये मौका जेडीएस के लिए फायदेमंद है. कम सीटें होने के बावजूद उन्हीं का नेता मुख्यमंत्री है. और कुमारस्वामी भी अधिक से अधिक अपने लोगों को कैबिनेट में रखना चाहते हैं. वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस ये रिस्क नहीं लेना चाहती है कि कर्नाटक में भी भाजपा की सरकार बन जाए, इसलिए वह कुमारस्वामी की हर शर्त मानने को तैयार है. कांग्रेस की इस कमजोरी का ही फायदा उठा रहे हैं कुमारस्वामी और समय-समय पर अपनी दावेदारी को मजबूत बनाए रखने के लिए कांग्रेस की इस दुखती रग को छेड़ देते हैं. अब इसे दबाव की राजनीति नहीं तो फिर और क्या कहेंगे.
कर्नाटक पर मंडरा रहा सियासी संकट
जहां एक ओर कुमारस्वामी ने मुख्यमंत्री पद छोड़ने की धमकी दे डाली है, वहीं कुछ दिन पहले ही दो निर्दलीय विधायकों ने कुमारस्वामी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था. इससे पहले ये भी बात सामने आ रही थी कि कांग्रेस के कुछ विधायक नाराज चल रहे हैं और वह भाजपा के संपर्क में हैं. कर्नाटक में भाजपा के पास 104 सीटें हैं और बहुमत का आंकड़ा है 113. यानी अगर 9 विधायक जेडीएस और कांग्रेस से टूटकर भाजपा में मिल जाएं तो देखते ही देखते कुमारस्वामी की सरकार गिर जाएगी और भाजपा सरकार बना लेगी. ये डर भी कुमारस्वामी को सता रहा है. ऐसे में हो सकता है कि वह भी नीतीश कुमार की तरह कांग्रेस के साथ बनाए गठबंधन से निकलकर भाजपा के साथ हो जाएं, क्योंकि सरकार गिर जाने से अच्छा है एक मजबूत पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया जाए, ताकि कुर्सी भी सलामत रहे.
कांग्रेस और जेडीएस ने गठबंधन कर के सरकार तो बना ली है, लेकिन दोनों के बीच सब कुछ ठीक नहीं है. अगर ऐसा नहीं होता तो कुमारस्वामी पद छोड़ने की धमकी क्यों देते? कांग्रेस के विधायक खुलकर ऐसा क्यों कहते कि उनके नेता कुमारस्वामी नहीं, बल्कि सिद्धारमैया हैं? वहीं दूसरी ओर, ये भी कहा जा रहा है कि भाजपा का 'ऑपरेशन लोटस' अभी भी चल ही रहा है. ऐसे में कुमारस्वामी को ये भी डर सता रहा है कि कहीं भाजपा उनके या कांग्रेस के विधायकों को ना तोड़ दे, इसलिए भी वह कांग्रेस पर दबाव बना रहे हैं. ऐसे में अगर कर्नाटक में अगले विधानसभा चुनाव से पहले ही कुमारस्वामी कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम लें तो हैरानी नहीं होनी चाहिए. क्योंकि कर्नाटक में इस समय एंटी-इनकमबैंसी काफी है, जिससे लोकसभा चुनाव में भाजपा को फायदा मिल सकता है. ऐसे में हो सकता है कि कुमारस्वामी भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने के एंगल से भी सोच रहे हों.
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