होना तो ये चाहिये था कि 9 दिसंबर को कर्नाटक विधानसभा उपचुनाव (Karnataka Assembly Bypolls) के नतीजे आने के बाद मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा (Chief Minister BS Yeddyurappa) की चुनौतियां खत्म हो जानी चाहिये थीं - लेकिन ऐसा नहीं हुआ है.
तमाम टोने टोटके, काला जादू और ज्योतिषियों की सलाह पर अमल करते हुए अपने नाम की स्पेलिंग भी बदल ली - और अपने सलाहकारों के साथ साथ वो खुद भी मान कर चल रहे होंगे कि फायदा ही फायदा है. वैसे भी कहां उपचुनावों के नतीजों पर येदियुरप्पा की सरकार के भविष्य को लेकर आशंका जतायी जा रही थी - और कहां नतीजों ने सारे समीकरण ही येदियुरप्पा के पक्ष में बदल डाले. फिर भी कांग्रेस और जेडीएस के बागी (Congress-JDS Rebels) हैं कि 'दिल मांगे मोर' के साथ आगे ही बढ़ते जा रहे हैं.
लेकिन मुश्किल ये है कि सारी कवायद के बावजूद येदियुरप्पा की चुनौतियां कम होने की जगह बढ़ती ही जा रही हैं. मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने सारे इंतजाम अपने मन मुताबिक कर लिया है - लेकिन क्या ये सब टिकाऊ भी है?
कोई विधायक यूं ही बागी नहीं बनता
हाथ से फिसली मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल करने में बीएस येदियुरप्पा को सवा साल लगे - और उसके लिए शुरू से जिस ऑपरेशन कमल पर काम कर रहे थे वो मिशन पूरा होने में 20 महीने लग गये.
9 दिसंबर को विधानसभा उपचुनावों के आने के साथ ही येदियुरप्पा सरकार के बहुमत हासिल करने को लेकर जो आशंका जतायी जा रही थी, वो खत्म हो गयी. अब येदियुरप्पा कर्नाटक में पूर्ण बहुमत वाली बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री बन चुके हैं.
अच्छा तो यही होता कि उपुचनावों में जीत और पूर्ण बहुमत मिलने के साथ ही येदियुरप्पा की चुनौतियां भी खत्म हो जातीं, लेकिन हुआ इसका उलटा है. जिन विधायकों को बूते येदियुरप्पा ये सब हासिल किये हैं वे ही उनकी नयी मुसीबत बनने लगे हैं.
एचडी कुमारस्वामी को सत्ता से बेदखल करने के बाद येदियुरप्पा ने अपनी सरकार बनायी तो उन सभी विधायकों के लिए मंत्रिमंडल में जगह छोड़े रखा जिनकी बदौलत मुख्यमंत्री की...
होना तो ये चाहिये था कि 9 दिसंबर को कर्नाटक विधानसभा उपचुनाव (Karnataka Assembly Bypolls) के नतीजे आने के बाद मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा (Chief Minister BS Yeddyurappa) की चुनौतियां खत्म हो जानी चाहिये थीं - लेकिन ऐसा नहीं हुआ है.
तमाम टोने टोटके, काला जादू और ज्योतिषियों की सलाह पर अमल करते हुए अपने नाम की स्पेलिंग भी बदल ली - और अपने सलाहकारों के साथ साथ वो खुद भी मान कर चल रहे होंगे कि फायदा ही फायदा है. वैसे भी कहां उपचुनावों के नतीजों पर येदियुरप्पा की सरकार के भविष्य को लेकर आशंका जतायी जा रही थी - और कहां नतीजों ने सारे समीकरण ही येदियुरप्पा के पक्ष में बदल डाले. फिर भी कांग्रेस और जेडीएस के बागी (Congress-JDS Rebels) हैं कि 'दिल मांगे मोर' के साथ आगे ही बढ़ते जा रहे हैं.
लेकिन मुश्किल ये है कि सारी कवायद के बावजूद येदियुरप्पा की चुनौतियां कम होने की जगह बढ़ती ही जा रही हैं. मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने सारे इंतजाम अपने मन मुताबिक कर लिया है - लेकिन क्या ये सब टिकाऊ भी है?
कोई विधायक यूं ही बागी नहीं बनता
हाथ से फिसली मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल करने में बीएस येदियुरप्पा को सवा साल लगे - और उसके लिए शुरू से जिस ऑपरेशन कमल पर काम कर रहे थे वो मिशन पूरा होने में 20 महीने लग गये.
9 दिसंबर को विधानसभा उपचुनावों के आने के साथ ही येदियुरप्पा सरकार के बहुमत हासिल करने को लेकर जो आशंका जतायी जा रही थी, वो खत्म हो गयी. अब येदियुरप्पा कर्नाटक में पूर्ण बहुमत वाली बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री बन चुके हैं.
अच्छा तो यही होता कि उपुचनावों में जीत और पूर्ण बहुमत मिलने के साथ ही येदियुरप्पा की चुनौतियां भी खत्म हो जातीं, लेकिन हुआ इसका उलटा है. जिन विधायकों को बूते येदियुरप्पा ये सब हासिल किये हैं वे ही उनकी नयी मुसीबत बनने लगे हैं.
एचडी कुमारस्वामी को सत्ता से बेदखल करने के बाद येदियुरप्पा ने अपनी सरकार बनायी तो उन सभी विधायकों के लिए मंत्रिमंडल में जगह छोड़े रखा जिनकी बदौलत मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल हुई. येदियुरप्पा अपनी सरकार में 34 मंत्री बना सकते हैं. तब उन्होंने सिर्फ 17 मंत्री ही बनाये और 17 सीटें सुरक्षित रख दी. दरअसल, 14 कांग्रेस के और तीन जेडीएस के विधायकों की बगावत ने ही कुमारस्वामी सरकार का तख्ता पलट दिया था.
उपचुनाव के नतीजे आते ही, बगैर वक्त गंवाये येदियुरप्पा ने चुनाव जीतने वाले 12 में से 11 विधायकों को मंत्री बनाने का ऐलान भी कर दिया. विधायकों ने तो कुछ ज्यादा ही सोच रखा था, लिहाजा येदियुरप्पा का ये ऐलान भी उन्हें कम लग रहा है.
17 में से दो सीटों का मामला अदालत में होने के कारण 15 सीटों पर ही उपचुनाव हुए. 15 में 12 बागी विधायक तो फिर से चुनाव जीत गये, लेकिन तीन पूर्व विधायक - MTB नागराज, विश्वनाथ और रोशन बेग चुनाव हार गये. चुनाव जीतने वाले विधायकों चाहते हैं कि सिर्फ 11 नहीं बल्की हारे हुए तीन विधायकों को भी नजरअंदाज न किया जाये.
जिन विधायकों को मंत्री बनाने का वादा किया गया है उनकी भी डिमांड बड़ी ऊंची है. वे चाहते हैं कि मंत्री के तौर पर उन्हें समायोजित करने की जगह गृह, PWD, सिंचाई और ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय उन्हें दिये जायें.
मौजूदा कैबिनेट में ऊर्जा मंत्रालय येदियुरप्पा ने अपने पास ही रखा है. PWD मंत्रालय पहले से ही गोविंद एम. करजोला के पास है. जेसी मधुस्वामी सिंचाई मंत्री हैं और गृह मंत्रालय बासवराज बोम्मई के पास है. विधायकों की मांग मानने का मतलब हुआ कि कैबिनेट में नये सिरे से फेरबदल हो. अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी में भी वैसा ही असंतोष का माहौल बनेगा जैसा कुमारस्वामी सरकार में हुआ था. फिर क्या होगा अगर बीजेपी के सीनियर विधायक ही बागी हो गये - वैसे भी कोई विधायक यूं ही बागी नहीं होता.
कार्यकाल पूरा कर पाएंगे क्या?
येदियुरप्पा अभी तक एक बार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये हैं. येदियुरप्पा इसी साल 26 जुलाई को चौथी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने और अभी विधानसभा का 40 महीने की अवधि बाकी है. इससे पहले मई, 2018 में येदियुरप्पा दो दिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रह पाये थे. नवंबर, 2007 में भी येदियुरप्पा को 7 दिन में ही कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. 2008 में येदियुरप्पा तीन साल से ज्यादा मुख्यमंत्री रहे लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था.
विधानसभा की अवधि के सवा साल बीत जाने के बाद मुख्यमंत्री बने येदियुरप्पा अब पांच साल तो मुख्यमंत्री रह नहीं सकते. येदियुरप्पा की चुनौतियों को देखते हुए एक बार फिर उनके सामने वही सवाल खड़ा हो गया है - क्या येदियुरप्पा कर्नाटक विधानसभा की अवधि 2023 तक कुर्सी पर बने रह सकेंगे?
76 साल के हो चुके बीएस येदियुरप्पा की उम्र बीजेपी के हिसाब से भले ही मार्गदर्शक मंडल की योग्यता पूरी करती होगी, लेकिन वो देश के सबसे उम्रदराज मुख्यमंत्री नहीं हैं. येदियुरप्पा से एक साल बड़े हैं पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह जो 77 साल के हो चुके हैं. वैसे सबसे कम उम्र के सीएम अरुणाचल प्रदेश के पेमा खांडू हैं जो अभी 40 साल के हैं.
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