राजनीतिक दवाब और प्रशासनिक अधिकारियों का पुराना नाता रहा है और अब इसकी शिकार कर्नाटक की एक महिला पुलिस ऑफिसर हुई हैं. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो राज्य के एक मंत्री से विवाद एक महिला पुलिस अधिकारी के लिए भारी पड़ गया है. लेकिन जब इस अधिकारी ने अपने इस्तीफे की खबर सोशल मीडिया पर दी तो तूफान खड़ा हो गया.
कर्नाटक की महिला पुलिस ऑफिसर अनुपमा शिनॉय ने अपनी फेसबुक पोस्ट पर सिर्फ मुस्कुराने वाली स्माइली के साथ तीन शब्द लिखे तो हंगामा मच गया. ये तीन शब्द थे, ‘रिजाइंड ऐंड जॉबलेस J ‘ यानी कि ‘इस्तीफा देने के बाद बेरोजगार.’
कर्नाटक की पुलिस ऑफिसर अनुपमा शिनॉय की इस फेसबुक पोस्ट ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है. अनुपमा का जनवरी में कर्नाटक के एक मंत्री की कॉल होल्ड पर रखने के लिए ट्रांसफर कर दिया गया था. हालांकि इस फेसबुक पोस्ट पर अनुपमा का स्पष्टीकरण नहीं मिल सका है लेकिन राज्य की विपक्षी पार्टी बीजेपी ने इसके लिए कांग्रेस सरकार पर हमला बोला है. आइए जानें क्या है ये पूरा विवाद.
पुलिस ऑफिसर, नेता और इस्तीफाः
इस पूरे विवाद की शुरुआत इस साल जनवरी में तब हुई थी जब पुलिस ऑफिसर अनुपमा शिनॉय ने कर्नाटक के एक मंत्री का कॉल होल्ड पर रख दिया और इससे मंत्री नाराज हो गए थे.
बेल्लारी जिले के कुडलिगी में डीएसपी के पद पर तैनात अनुपमा शिनॉय से जनवरी में राज्य के एक मंत्री पीटी परमेश्वर नायक उनका कॉल होल्ड पर रखने पर नाराज हो गए थे. इसके बाद नायक को अनुपमा का ट्रांसफर करवाने की बात करते हुए कैमरे में कैद किया गया था. जिसके बाद काफी हंगामा मचा और इसके बाद फरवरी में अनुपमा को फिर से बहाल कर दिया गया.
हालांकि राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि उन्होंने इस्तीफे के बारे में सुना है लेकिन उन्हें मामले की विस्तृत जानकारी नहीं है. सीएम ने कहा कि अधिकारी इस मामले को देख रहे हैं. मैं इसके बारे में नहीं जानता हूं. उनका इस्तीफा डीजी के पास आया...
राजनीतिक दवाब और प्रशासनिक अधिकारियों का पुराना नाता रहा है और अब इसकी शिकार कर्नाटक की एक महिला पुलिस ऑफिसर हुई हैं. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो राज्य के एक मंत्री से विवाद एक महिला पुलिस अधिकारी के लिए भारी पड़ गया है. लेकिन जब इस अधिकारी ने अपने इस्तीफे की खबर सोशल मीडिया पर दी तो तूफान खड़ा हो गया.
कर्नाटक की महिला पुलिस ऑफिसर अनुपमा शिनॉय ने अपनी फेसबुक पोस्ट पर सिर्फ मुस्कुराने वाली स्माइली के साथ तीन शब्द लिखे तो हंगामा मच गया. ये तीन शब्द थे, ‘रिजाइंड ऐंड जॉबलेस J ‘ यानी कि ‘इस्तीफा देने के बाद बेरोजगार.’
कर्नाटक की पुलिस ऑफिसर अनुपमा शिनॉय की इस फेसबुक पोस्ट ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है. अनुपमा का जनवरी में कर्नाटक के एक मंत्री की कॉल होल्ड पर रखने के लिए ट्रांसफर कर दिया गया था. हालांकि इस फेसबुक पोस्ट पर अनुपमा का स्पष्टीकरण नहीं मिल सका है लेकिन राज्य की विपक्षी पार्टी बीजेपी ने इसके लिए कांग्रेस सरकार पर हमला बोला है. आइए जानें क्या है ये पूरा विवाद.
पुलिस ऑफिसर, नेता और इस्तीफाः
इस पूरे विवाद की शुरुआत इस साल जनवरी में तब हुई थी जब पुलिस ऑफिसर अनुपमा शिनॉय ने कर्नाटक के एक मंत्री का कॉल होल्ड पर रख दिया और इससे मंत्री नाराज हो गए थे.
बेल्लारी जिले के कुडलिगी में डीएसपी के पद पर तैनात अनुपमा शिनॉय से जनवरी में राज्य के एक मंत्री पीटी परमेश्वर नायक उनका कॉल होल्ड पर रखने पर नाराज हो गए थे. इसके बाद नायक को अनुपमा का ट्रांसफर करवाने की बात करते हुए कैमरे में कैद किया गया था. जिसके बाद काफी हंगामा मचा और इसके बाद फरवरी में अनुपमा को फिर से बहाल कर दिया गया.
हालांकि राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि उन्होंने इस्तीफे के बारे में सुना है लेकिन उन्हें मामले की विस्तृत जानकारी नहीं है. सीएम ने कहा कि अधिकारी इस मामले को देख रहे हैं. मैं इसके बारे में नहीं जानता हूं. उनका इस्तीफा डीजी के पास आया है, वे इसे देखेंगे.
कर्नाटक की महिला पुलिस ऑफिसर अनुपमा शिनॉय |
लेकिन बीजेपी का कहना है कि अनुपमा जैसी काबिल ऑफिसर राजनीति का शिकार हुई हैं. बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुरेश कुमार ने कहा कि अनुपमा को उसकी काबिलियत और समर्पण के लिए जाना जाता है. मुझे लगता है कि अनुपमा की काबिलियत और समर्पण मंत्री पीटी परमेश्वर नायक के रास्ते का रोड़ा बन गई.
उन्होंने कहा कि दो महीने पहले मंत्री ने अनुपमा के लिए समस्या खड़ी की थी और अब अचानक उन्होंने इस्तीफा दे दिया है और वह फेसबुक पर ये लिख रही हैं, जोकि इस बात की ओर इशारा करता है कि उन्हें राजनीतिकक दबाव के कारण इस्तीफा देना पड़ा है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को एक समर्पित और ईमानदार पुलिस ऑफिसर का साथ देना चाहिए था.
भले ही बीजेपी अनुपमा के इस्तीफे के पीछे राजनीतिक दबाव को जिम्मेदार बता रही हो लेकिन उनके इस कदम को लेकर खुद कुछ पुलिस अधिकारियों ने भी हैरानी जताई है और उनका कहना है कि अगर राजनीतिक दबाव था तो अनुपमा को उसके खिलाफ खड़ा होना चाहिए था, न कि इस्तीफा देना चाहिए था.
राजनीतिक दवाब के मामले में भी ये एक पुलिस ऑफिसर का कर्तव्य है कि वह इसके खिलाफ खड़ा हो. यह हमेशा किया जा सकता है...अगर सीनियर ऑफिसर्स ने सहयोग नहीं किया तो वे खुद ही कानून लागू कर सकती थीं.
दुर्गा शक्ति नागपाल से लेकर अनुपमा शिनॉय तक हर मामले में प्रशासनिक अधिकारियों के लिए राजनीतिक दबाव झेलना कोई नई बात नहीं है. इस देश का संविधान जनप्रतिनिधियों को इतने असीमित अधिकार देता है कि उनके लिए प्रशासनिक अधिकारियों की लिए दिक्कतें पैदा करना आसान हो जाता है. लेकिन बावजूद भी इसके ये अधिकारी अपने कर्तव्य के पथ पर डटे रहते हैं और इन समस्याओँ का डटककर मुकाबला करते हैं. ऐसे में किसी नेता से मामूली विवाद होने पर एक महिला पुलिस ऑफिसर का इस्तीफा कोई छोटी बात नहीं है.
लेकिन जब राज्य में उसी पार्टी की सरकार हो जिसके नेता पर इस महिला पुलिस ऑफिसर को परेशान करने का आरोप है तो शायद ही मामले का पूरा सच सामने आ पाए और इस महिला पुलिस अधिकारी को सरकार से कोई समर्थन मिले.
जिनसे देश और समाज के लिए लड़ने की उम्मीद की जाती है, अगर उनके लिए ही लड़ने वाला कोई न हो तो इस देश का भला कैसे होगा?
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