काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) का मसला अभी विश्व हिंदू परिषद के ठंडे बस्ते में ही रहने वाला है - और मथुरा के साथ भी ऐसा ही बना रहेगा. ये इसलिए भी क्योंकि VHP अभी अयोध्या मसले की गर्माहट को जब तक संभव हो बनाये रखना चाहता है.
काशी विश्वनाथ मंदिर का मुद्दा अभी चर्चा में इसलिए आया है क्योंकि वाराणसी के फास्ट ट्रैक कोर्ट ने हाल ही में ASI यानी भारतीय पुरातत्व विभाग को मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के विवादित स्थल पर सर्वेक्षण कराने की मंजूरी दे दी है. सर्वेक्षण के जरिये ऐतिहासिक तथ्यों का पता लगाया जाना है ताकि जमीन के नीचे हिंदू पक्ष के स्वयंभू ज्योतिर्लिंग की मौजूदगी के दावे की पैमाइश हो सके. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर आये फैसले में भी ASI के सर्वे की महत्वपूर्ण भूमिका रही.
ऐसे में जबकि जल्द ही यूपी में पंचायतों के चुनाव होने जा रहे हैं और अगले ही साल विधानसभा के चुनाव होने हैं, फास्ट ट्रैक कोर्ट के आदेश के साये में राजनीतिक उद्देश्यों की संभावित कवायद को लेकर कयास लगाये जाने शुरू हो गये. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की प्रक्रिया जारी रहने के चलते विश्व हिंदू परिषद ने वैसा कोई नया आंदोलन फिलहाल न शुरू करने के फैसले पर कायम रखने के संकेत दिये हैं. 2019 में भी विश्व हिंदू परिषद ने आम चुनावों तक अयोध्या मसला होल्ड करने का फैसला लिया था और उसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी वैसा ही फैसला रहा.
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) की अयोध्या के साथ साथ काशी और मथुरा तक सक्रियता देखने को मिली है - और यही वजह रही कि काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर अदालत के आदेश के बाद राजनीतिक संभावनाओं पर चर्चा शुरू हो गयी थी, लेकिन वीएचपी के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार (Alok Kumar) के बयान के बाद ऐसी संभावनाओं विराम लग जाना तय है.
आलोक कुमार ने संकेत दिया है कि 2024 तक ऐसी कोई नयी संभावना नहीं है - फिर तो मान कर चलना होगा कि वीएचपी और संघ काशी और मथुरा को अगले आम चुनाव तक होल्ड ही...
काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) का मसला अभी विश्व हिंदू परिषद के ठंडे बस्ते में ही रहने वाला है - और मथुरा के साथ भी ऐसा ही बना रहेगा. ये इसलिए भी क्योंकि VHP अभी अयोध्या मसले की गर्माहट को जब तक संभव हो बनाये रखना चाहता है.
काशी विश्वनाथ मंदिर का मुद्दा अभी चर्चा में इसलिए आया है क्योंकि वाराणसी के फास्ट ट्रैक कोर्ट ने हाल ही में ASI यानी भारतीय पुरातत्व विभाग को मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के विवादित स्थल पर सर्वेक्षण कराने की मंजूरी दे दी है. सर्वेक्षण के जरिये ऐतिहासिक तथ्यों का पता लगाया जाना है ताकि जमीन के नीचे हिंदू पक्ष के स्वयंभू ज्योतिर्लिंग की मौजूदगी के दावे की पैमाइश हो सके. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर आये फैसले में भी ASI के सर्वे की महत्वपूर्ण भूमिका रही.
ऐसे में जबकि जल्द ही यूपी में पंचायतों के चुनाव होने जा रहे हैं और अगले ही साल विधानसभा के चुनाव होने हैं, फास्ट ट्रैक कोर्ट के आदेश के साये में राजनीतिक उद्देश्यों की संभावित कवायद को लेकर कयास लगाये जाने शुरू हो गये. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की प्रक्रिया जारी रहने के चलते विश्व हिंदू परिषद ने वैसा कोई नया आंदोलन फिलहाल न शुरू करने के फैसले पर कायम रखने के संकेत दिये हैं. 2019 में भी विश्व हिंदू परिषद ने आम चुनावों तक अयोध्या मसला होल्ड करने का फैसला लिया था और उसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी वैसा ही फैसला रहा.
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) की अयोध्या के साथ साथ काशी और मथुरा तक सक्रियता देखने को मिली है - और यही वजह रही कि काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर अदालत के आदेश के बाद राजनीतिक संभावनाओं पर चर्चा शुरू हो गयी थी, लेकिन वीएचपी के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार (Alok Kumar) के बयान के बाद ऐसी संभावनाओं विराम लग जाना तय है.
आलोक कुमार ने संकेत दिया है कि 2024 तक ऐसी कोई नयी संभावना नहीं है - फिर तो मान कर चलना होगा कि वीएचपी और संघ काशी और मथुरा को अगले आम चुनाव तक होल्ड ही रखने वाले हैं.
अयोध्या की तरह काशी भी होल्ड है!
अभी 9 अप्रैल को ही हरिद्वार में विश्व हिंदू परिषद के मार्गदर्शक मंडल की बैठक हुई, लेकिन हैरानी की बात ये रही कि काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर अदालत के फैसले की चर्चा तक न हुई.
जब राम मंदिर आंदोलन उफान पर रहा तब भी विश्व हिंदू परिषद की तरफ से अक्सर एक नारा खास तौर पर लगाया जाता रहा - 'अयोध्या तो बस झांकी है, काशी-मथुरा बाकी हैं.' लिहाजा काशी और मथुरा जैसे मुद्दों को लेकर वीएचपी की रणनीतियों को लेकर दिलचस्पी तो होनी ही थी.
दिल्ली के विज्ञान भवन में वीएचपी ने 1984 में धर्म संसद का आयोजन कराया था - और उसी दौरान अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के साथ-साथ काशी और मथुरा का भी संकल्प लिया गया था. 2019 के आम चुनावों के बाद राम मंदिर निर्माण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया और साल भर बाद 5 अगस्त, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन का कार्यक्रम हुआ - और फिलहाल मंदिर निर्माण की प्रक्रिया जारी है.
आम चुनाव से पहले दिल्ली के विज्ञान भवन के कार्यक्रम से ही आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अयोध्या मसले को लेकर सवाल उठाया था - 'अभी नहीं तो आखिर कब?' दरअसल, ये संत समाज के ही मन की बात रही कि जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं और योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री और तब भी मंदिर निर्माण नहीं हो सका तो भला कब होगा. कुछ ही दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक न्यूज एजेंसी को दिये इंटरव्यू में साफ कर दिया कि सबसे बड़ी अदालत का फैसला आने से पहले सरकार अयोध्या मसले पर कोई भी विचार विमर्श नहीं करने वाली है. मोहन भागवत के बयान के बाद अयोध्या मुद्दे पर जोशीले भाषण देने वाले सारे नेता मोदी के बयान सुन कर खामोश हो गये थे.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला जब आया तो मोहन भागवत से काशी और मथुरा को लेकर भी सवाल पूछे गये. तभी मोहन भागवत ने साफ तौर पर संकेत दिया था कि काशी और मथुरा संघ के एजेंडे में नहीं है. आरएसएस का स्टैंड साफ करते हुए मोहन भागवत ने बताया कि संघ आंदोलन से नहीं जुड़ता, बल्कि चरित्र निर्माण का काम करता है. भागवत का कहना रहा, गुजरे दौर में हालात ऐसे जरूर बने कि संघ अयोध्या आंदोलन से जुड़ गया - और आगे से फिर से वो अपने मूल कार्यक्षेत्र चरित्र निर्माण की राह पर चलेगा.
सितंबर, 2020 में वीएचपी की केंद्रीय समिति की भोपाल में बैठक हुई थी जिसमें मोहन भागवत के साथ साथ संघ के तत्कालीन सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी भी शामिल थे - और फैसला हुआ कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण तक परिषद कोई दूसरा काम नहीं करेगा. तभी मंदिर निर्माण पूरा होने तक काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान का मामला होल्ड रखने का फैसला किया गया था.
वीएचपी के आलोक कुमार ने पहले भी कहा था कि परिषद समाज में समरसता कायम करने पर फोकस रहेगी जिस मकसद से उसकी स्थापना हुई है. हाल ही में योगी सरकार के मंत्री मोहसिन रजा ने बड़े जोर शोर से दावा किया था कि मौजूदा बीजेपी सरकार ने यूपी में मुस्लिमों के लिए जितना काम किया है, उतना दूसरी किसी भी सरकार ने नहीं किया. अब ये बातें तो समरसता की दिशा में ही जाती हैं.
वीएचपी के मार्गदर्शक मंडल की हरिद्वार में हुई बैठक के बाद आलोक कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस के साथ इंटरव्यू में आधिकारिक पक्ष कुछ ऐसे रखा है - '2024 तक मंदिर बन जाएगा और रामलला गर्भगृह में विराजमान हो जाएंगे - उसके बाद ही हम किसी और काम पर अपना ध्यान लगाएंगे.'
भला सस्ते में क्यों जाने दें?
वैसे कुछ दिनों पहले अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने प्रयागराज में 13 अखाड़ा प्रमुखों की बैठक में प्रस्ताव जरूर पास किया था. अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि के मुताबिक, 'वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि मंदिर को आजाद कराने का प्रस्ताव पास किया गया...' साफ है वीएचपी और संघ ने जहां काशी और मथुरा का मुद्दा जहां होल्ड कर रखा है, अखाड़ा परिषद अलख जगाये रखने में जुटा रहेगा - और फिर भविष्य में तत्कालीन परिस्थितियों के हिसाब से वीएचपी और संघ उस पर नये सिरे से फैसला लेंगे.
अब अगर अखाड़ा परिषद की तरफ से भी वीएचपी की ही तरह अपने स्टैंड का नये सिरे से कोई बयान नहीं आता है तो मान कर चलना चाहिये कि काशी और मथुरा को लेकर अखाड़ा परिषद ही सक्रिय रहेगा. पहले भी अखाड़ा परिषद काशी और मथुरा को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ने का संकेत दे चुका है.
बनारस की अदालत ने भारतीय पुरातत्व विभाग को आदेश देते हुए ये भी कहा है कि सर्वे का पूरा खर्च सरकार उठाएगी. सर्वेक्षण के लिए कोर्ट के आदेश के अनुसार पांच सदस्यों वाली एक टीम बनायी जानी है. टीम में पुरातत्व के क्षेत्र में पारंगत विद्वानों और विशेषज्ञों को रखा जाना है. साथ ही, एएसआई को ये भी सुनिश्चित करना होगा कि विवादित स्थल की खुदाई के दौरान मुस्लिम समुदाय के लोगों को नमाज अदा करने से न रोका जाये.
जिस याचिका पर सर्वे का ये आदेश जारी हुआ है, उसमें मांग की गयी थी कि जमीन का पुरातात्विक सर्वेक्षण रडार तकनीक से करके ये पता लगाया जाये कि जो जमीन है वो मंदिर का अवशेष है या नहीं? ये भी मालूम किया जाये कि 100 फीट ऊंचा ज्योतिर्लिंग स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ वहां मौजूद हैं या नहीं?
हालांकि, वीएचपी नेता आलोक कुमार जिस तरह 2024 तक राम मंदिर निर्माण के अलावा कोई और नया काम न शुरू करने की बात कर रहे हैं, समझ में तो यही आता है कि संगठन न तो राम मंदिर के मुद्दे को सस्ते में जाने देना चाहता है और न ही काशी-मथुरा जैसा महत्वपूर्ण मुद्दा यूं ही जाया होने देने के बारे में सोच रहा है.
2024 तक काशी-मथुरा जैसे मुद्दे होल्ड करने का मतलब तो यही हुआ कि अगले आम चुनाव तक इंतजार करने की रणनीति पर काम चल रहा है. अगले आम चुनाव तक बीजेपी की स्थिति क्या रहती है, उसे देखते हुए ही काशी-मथुरा को लेकर एक्शन प्लान बनाये जाने की संभावना लगती है.
मान कर चलना होगा, 2024 तक बाकी राज्यों के विधानसभा चुनावों को अलग रखें तो, अभी कम से कम दो बड़े चुनाव तो बीत ही जाएंगे - यूपी का पंचायत चुनाव और 2022 में होने जा रहा यूपी विधानसभा चुनाव. आखिर आगे भी तो बीजेपी को चुनाव लड़ना ही है, भला सस्ते में ऐसे बिकाऊ और टिकाऊ राजनीतिक मुद्दे को क्यों जाने दें - ये कोई समझदारी वाली बात तो है नहीं.
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