ओम् नमः शिवाय!
एक वर्ग है जो काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण समारोह को लेकर छींटाकशी कर रहा है. इसके औचित्य पर सवाल उठा रहा है. फिजूलखर्ची बता रहा है. हिंदू धर्म की आक्रामकता की बात रहा है. सबसे पहले तो ये कि जब कहीं भी मस्जिद की मीनारें ऊंची की जा रही होती हैं, या नई मस्जिद बन रही होती है तब क्यों नहीं स्कूल, हॉस्पिटल या रोड बनाने का ख़्याल आता है? ये ख़्याल तब भी क्यों नहीं आता जब इतिहास से पता चलता है कि कैसे हिंदुओं की आस्था वाले मंदिरों को तोड़ा गया? फिर तो इतिहास के साथ छेड़छाड़ करके औरंगज़ेब की काली करतूत पर पर्दा डालने की कोशिश की जाती है. अयोध्या में फिर से मस्जिद बनाने की वकालत भी करते हैं और ये करने वाले किसी ख़ास वर्ग से नहीं बल्कि बौद्धिकता दिखाने वाले हिंदू भी इसमें शामिल होते हैं. जिनको भगवा वस्त्र, रुद्राक्ष, पूजा-पाठ में अविकसित समाज का चिन्ह नज़र आता है. इन हिंदुओं के लिए हिंदू धर्म और उससे जुड़ी हर मान्यता को सिरे से ख़ारिज करना ही कूल होना है.
जबकि हिंदू धर्म इकलौता ऐसा धर्म है जहां किसी भी धर्म, किसी भी तरह से पूजा-पाठ और किसी भी ईश्वर को मानने की आज़ादी है. ख़ैर, आज उस सब में नहीं जाएंगे. आज दिन ख़ुशी का है. आज बाबा विश्वनाथ का दरबार सजा है. आज काशी-विश्वनाथ मंदिर का लगभग 244 साल बाद रेनोवेशन हुआ है और इसके लिए मोदी जी और योगी जी को दिल से बधाई.
ये तो कब से हो जाना चाहिए था लेकिन वही बात है न बहुसंख्यकों की आस्था की बात इस देश में हुई ही कब है. अब जब हो रहा है तो नैरेटिव सेट किया जा रहा है कि देश में डर का माहौल है, बदहाली का आलम है, लोग भूख से मर रहे हैं और प्रधानमंत्री मंदिर बनवा रहे हैं. चलिए, एक बात बताइए...
ओम् नमः शिवाय!
एक वर्ग है जो काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण समारोह को लेकर छींटाकशी कर रहा है. इसके औचित्य पर सवाल उठा रहा है. फिजूलखर्ची बता रहा है. हिंदू धर्म की आक्रामकता की बात रहा है. सबसे पहले तो ये कि जब कहीं भी मस्जिद की मीनारें ऊंची की जा रही होती हैं, या नई मस्जिद बन रही होती है तब क्यों नहीं स्कूल, हॉस्पिटल या रोड बनाने का ख़्याल आता है? ये ख़्याल तब भी क्यों नहीं आता जब इतिहास से पता चलता है कि कैसे हिंदुओं की आस्था वाले मंदिरों को तोड़ा गया? फिर तो इतिहास के साथ छेड़छाड़ करके औरंगज़ेब की काली करतूत पर पर्दा डालने की कोशिश की जाती है. अयोध्या में फिर से मस्जिद बनाने की वकालत भी करते हैं और ये करने वाले किसी ख़ास वर्ग से नहीं बल्कि बौद्धिकता दिखाने वाले हिंदू भी इसमें शामिल होते हैं. जिनको भगवा वस्त्र, रुद्राक्ष, पूजा-पाठ में अविकसित समाज का चिन्ह नज़र आता है. इन हिंदुओं के लिए हिंदू धर्म और उससे जुड़ी हर मान्यता को सिरे से ख़ारिज करना ही कूल होना है.
जबकि हिंदू धर्म इकलौता ऐसा धर्म है जहां किसी भी धर्म, किसी भी तरह से पूजा-पाठ और किसी भी ईश्वर को मानने की आज़ादी है. ख़ैर, आज उस सब में नहीं जाएंगे. आज दिन ख़ुशी का है. आज बाबा विश्वनाथ का दरबार सजा है. आज काशी-विश्वनाथ मंदिर का लगभग 244 साल बाद रेनोवेशन हुआ है और इसके लिए मोदी जी और योगी जी को दिल से बधाई.
ये तो कब से हो जाना चाहिए था लेकिन वही बात है न बहुसंख्यकों की आस्था की बात इस देश में हुई ही कब है. अब जब हो रहा है तो नैरेटिव सेट किया जा रहा है कि देश में डर का माहौल है, बदहाली का आलम है, लोग भूख से मर रहे हैं और प्रधानमंत्री मंदिर बनवा रहे हैं. चलिए, एक बात बताइए पिछले सारे प्रधानमंत्री तो मंदिर नहीं बनवाने में जुटे थे तो क्या ग़रीबी, भुखमरी, शिक्षा सब एकदम टिप-टॉप था?
क्या मोदी जी के आने के बाद ही देश बदहाल हुआ है? सोचिएगा ज़रा. वैसे अभी पिछले सप्ताह ही काशी से लौटी हूं और ग्राउंड-रिपोर्ट की बात करूं तो काशी के लोग ख़ुश हैं. बनारस वाले कह रहे थे कि काशी विश्वनाथ कारीडोर बन जाने से उनका शहर और भी ख़ूबसूरत हो जाएगा. मंदिर में जो बाबा के दर्शन के लिए घंटों लाइन में लगना पड़ता था वो अब नहीं होगा. इस सुविधा को देखते हुए पर्यटकों और श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ेगी, जिससे शहर की अर्थव्यवस्था को लाभ होगा.
एक दिन में लगभग दो लाख से अधिक भक्त बाबा का दर्शन कर पाएंगे. मुझे सच में समझ नहीं आ रहा कि इसमें बुराई क्या है? विपक्ष जो सालों तक सत्ता में रहा उसने ऐसा कुछ क्यों न किया? और अगर ये न किया तो देश को विकसित देशों की श्रेणी में ला कर क्यों नहीं खड़ा करवा दिया, काहे से कि मोदी जी तो देश में मंदिर-मंदिर खेल रहे हैं न.
चलिए, जो लोग दुखी हो रहे हैं, ज़रा ठीक से दुखी हो लें, क्योंकि हम तो ख़ुश हैं. शिव प्रिय हैं. उनका घर सज रहा है. इससे ज़्यादा ख़ुशी की बात क्या होगी. देखिए काशी की तस्वीरों को खो जाइए डिवाईन-ख़ूबसूरती में, प्रेम में, काशी में, बनारस में और शिव में.
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