बीते साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकर्पण के कुछ महीनों बाद काशी विश्वनाथ मंदिर एक बार फिर चर्चाओं में आ गया है. दरअसल, काशी विश्वनाथ मंदिर से लगी हुई ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर वाराणसी जिला कोर्ट में एक केस दायर किया गया था. जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर को हिंदुओं को सौंपने और वहां पूजा-अर्चना की इजाजत देने की मांग की गई है. बीते साल अप्रैल में ही काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद केस की सुनवाई के दौरान पुरातात्विक (ASI) सर्वेक्षण का फैसला सुनाया था. जिस पर रोक लगा दी गई थी. आज तक की एक रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर 2020 में दाखिल एक याचिका पर वाराणसी जिला कोर्ट ने एक कमिश्नर नियुक्त करने का फैसला किया है. नियुक्त कमिश्नर 19 अप्रैल को मंदिर-मस्जिद परिसर का दौरा और वीडियोग्राफी करेगा. वहीं, इस दौरान किसी भी तरह की अव्यवस्था और अप्रिय घटना से बचने के लिए कोर्ट ने सुरक्षाबलों को भी तैनात करने का आदेश दिया है. आइए जानते हैं काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद मामले के बार में कुछ अहम जानकारियां...
आखिर क्या है मामला?
1991 में वाराणसी की जिला कोर्ट में एक मुकदमा दायर किया गया था. इस याचिका में दावा किया गया था कि जिस जगह ज्ञानवापी मस्जिद बनी हुई है, वहां स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर का ज्योतिर्लिंग और मंदिर था. ज्ञानवापी मस्जिद की जगह पर श्रृंगार गौरी की पूजा होती थी. मुगल शासक औरंगजेब के आदेश पर इस मंदिर को तोड़कर इसके अवशेषों से ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया. याचिका में मांग की गई थी कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर से मुस्लिम पक्ष को बेदखल कर इसे हिंदुओं को सौंपा जाना चाहिए. जिससे वहां पर श्रृंगार गौरी की पूजा को फिर से शुरू किया जा सके. याचिकाकर्ताओं के अनुसार, ज्ञानवापी मस्जिद के ढांचे की दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र भी साफ नजर आते हैं. स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की ओर से याचिका लगाने...
बीते साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकर्पण के कुछ महीनों बाद काशी विश्वनाथ मंदिर एक बार फिर चर्चाओं में आ गया है. दरअसल, काशी विश्वनाथ मंदिर से लगी हुई ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर वाराणसी जिला कोर्ट में एक केस दायर किया गया था. जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर को हिंदुओं को सौंपने और वहां पूजा-अर्चना की इजाजत देने की मांग की गई है. बीते साल अप्रैल में ही काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद केस की सुनवाई के दौरान पुरातात्विक (ASI) सर्वेक्षण का फैसला सुनाया था. जिस पर रोक लगा दी गई थी. आज तक की एक रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर 2020 में दाखिल एक याचिका पर वाराणसी जिला कोर्ट ने एक कमिश्नर नियुक्त करने का फैसला किया है. नियुक्त कमिश्नर 19 अप्रैल को मंदिर-मस्जिद परिसर का दौरा और वीडियोग्राफी करेगा. वहीं, इस दौरान किसी भी तरह की अव्यवस्था और अप्रिय घटना से बचने के लिए कोर्ट ने सुरक्षाबलों को भी तैनात करने का आदेश दिया है. आइए जानते हैं काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद मामले के बार में कुछ अहम जानकारियां...
आखिर क्या है मामला?
1991 में वाराणसी की जिला कोर्ट में एक मुकदमा दायर किया गया था. इस याचिका में दावा किया गया था कि जिस जगह ज्ञानवापी मस्जिद बनी हुई है, वहां स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर का ज्योतिर्लिंग और मंदिर था. ज्ञानवापी मस्जिद की जगह पर श्रृंगार गौरी की पूजा होती थी. मुगल शासक औरंगजेब के आदेश पर इस मंदिर को तोड़कर इसके अवशेषों से ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया. याचिका में मांग की गई थी कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर से मुस्लिम पक्ष को बेदखल कर इसे हिंदुओं को सौंपा जाना चाहिए. जिससे वहां पर श्रृंगार गौरी की पूजा को फिर से शुरू किया जा सके. याचिकाकर्ताओं के अनुसार, ज्ञानवापी मस्जिद के ढांचे की दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र भी साफ नजर आते हैं. स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की ओर से याचिका लगाने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक हरिहर पांडेय ज्ञानवापी परिसर के बारे में दावा करते हैं कि किसी मस्जिद का नाम ज्ञानवापी कैसे हो सकता है?
इसके खिलाफ ज्ञानवापी मस्जिद का देखरेख करने वाली अंजुमन ए इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 का हवाला देकर इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. जिस पर सुनवाई के बाद 1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्टे लगाकर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था. हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट के स्टे ऑर्डर की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई हुई. 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद वाराणसी जिला कोर्ट ने काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद मामले की फिर से सुनवाई शुरू कर दी गई. इस मामले में मस्जिद कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से पांच याचिकाएं दाखिल की गई हैं. जिन पर अलग-अलग सुनवाई की जा रही है. यहां बताना जरूरी है कि इस मामले में काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट पक्षकार नहीं है.
किसके दावे मजबूत?
- ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष दावा करता है कि इस विवादित ढांचे को काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर बनाया गया था. इतिहासकारों और उस दौरान के कई दस्तावेजों में इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि औरंगजेब ने 1664 में काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया था. इस बात के भी ऐतिहासिक दस्तावेज मौजूद हैं कि 1769 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर के काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनरूद्धार कराया था. दावा किया जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के अवशेषों से ही ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया.
- ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन ए इंतजामिया मस्जिद कमेटी और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में काशी विश्वनाथ मंदिर नहीं था. मस्जिद कमेटी की ओर से दाखिल किए गए हलफनामे में दावा किया गया है कि 1669 से ज्ञानवापी मस्जिद का ढांचा कायम है. हालांकि, ऐतिहासिक दस्तावेजों में पहली बार ज्ञानवापी मस्जिद का नाम 1883-84 में आना बताया जाता है. और, इसके बनने के बारे में कोई भी ऐतिहासिक साक्ष्य नही हैं.
क्या हैं कोर्ट के आदेश?
काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मामले में अयोध्या के रामजन्मभूमि मामले की तरह ही मुस्लिम पक्ष की ओर से कई याचिकाएं लगाई गई हैं. इनमें से एक याचिका जो 1991 में स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की ओर से दाखिल की गई थी. इसी मुकदमे की सुनवाई के दौरान बीते साल वाराणसी जिला कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण का आदेश दिया था. हालांकि, इस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से रोक लगा दी गई थी. लेकिन, इस पर हिंदू पक्ष के याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट की बड़ी बेंच में अपील करने की बात की थी. ऐसी ही एक अन्य याचिका में वाराणसी जिला कोर्ट ने फिर से ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को पुरातात्विक सर्वेक्षण करने के आदेश दिए हैं. हालांकि, हर बार ज्ञानवापी मस्जिद पक्ष पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के फैसले पर हाईकोर्ट से स्टे ले आता है. जबकि, पुरातात्विक सर्वेक्षण के बाद स्थिति स्पष्ट हो जाएगी कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के नीचे क्या है, इसके ढांचे में काशी विश्वनाथ मंदिर के अवशेष हैं या नहीं?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.