जम्मू-कश्मीर पर बात (Jammu Kashmir Talks) खत्म होने के बाद बतंगड़ चालू हो गया है - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से मीटिंग के बाद दिल्ली से लौटते ही, कश्मीरी नेताओं ने पहले की ही तरह बयानबाजी शुरू कर दी है.
उमर अब्दुल्ला से लेकर महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) तक की बातों से तो ऐसा लग रहा है जैसे उन्हें अपनी किसी गलती का एहसास हो रहा हो - और भूल सुधार के तहत बयान जारी कर रहे हों. अगर ऐसा ही था तो वे बातचीत के लिए तैयार हुए ही क्यों?
क्या कश्मीरी नेताओं को किसी बात का डर था, इसलिए वे बातचीत के लिए तैयार हो गये? या अब किसी चीज का डर लग रहा है - जो जैसे तैसे अपना स्टैंड साफ करने की कोशिश कर रहे हैं?
हो सकता है पीडीपी नेता मुफ्ती और नेशनल कांफ्रेंस नेता अब्दुल्ला को अब लगने लगा हो कि जिनके खिलाफ वो लड़ाई लड़ते रहने की बातें करते रहे उनसे मीटिंग कर लेने के बाद उनके समर्थक उनसे मुंह मोड़ सकते हैं. ये भी हो सकता है कि बातचीत के लिए वे इस डर से तैयार हुए होंगे कि कहीं फिर से उनको नजरबंद न कर लिया जाये?
लेकिन सरकार की तरफ से ऐसे कोई संकेत तो दिये नहीं गये हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने तो बोल ही दिया है कि वो चाहते हैं कि दिल्ली के साथ साथ दिल की भी दूरी कम हो. फिर क्या दिक्कत हो सकती है? ऐसी बातों के बाद फिर से पुलिस का पहरा बिठाये जाने की आशंका तो नहीं लगती.
कश्मीरी नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मीटिंग के बाद लगता तो ऐसा ही है जैसे केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी ने कश्मीर पॉलिटिक्स में फिर से बाजी जीत ली हो - और अगर ऐसा वास्तव में हुआ है तो बाकी सब तो लूजर ही समझे जाएंगे!
तो क्या बीजेपी को सपोर्ट करने आये थे?
ऐसा क्यों लगता है जैसे सारे कश्मीरी नेता दिल्ली घूमने आये थे - ताकि, थोड़ी ही सही आबो-हवा तो...
जम्मू-कश्मीर पर बात (Jammu Kashmir Talks) खत्म होने के बाद बतंगड़ चालू हो गया है - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से मीटिंग के बाद दिल्ली से लौटते ही, कश्मीरी नेताओं ने पहले की ही तरह बयानबाजी शुरू कर दी है.
उमर अब्दुल्ला से लेकर महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) तक की बातों से तो ऐसा लग रहा है जैसे उन्हें अपनी किसी गलती का एहसास हो रहा हो - और भूल सुधार के तहत बयान जारी कर रहे हों. अगर ऐसा ही था तो वे बातचीत के लिए तैयार हुए ही क्यों?
क्या कश्मीरी नेताओं को किसी बात का डर था, इसलिए वे बातचीत के लिए तैयार हो गये? या अब किसी चीज का डर लग रहा है - जो जैसे तैसे अपना स्टैंड साफ करने की कोशिश कर रहे हैं?
हो सकता है पीडीपी नेता मुफ्ती और नेशनल कांफ्रेंस नेता अब्दुल्ला को अब लगने लगा हो कि जिनके खिलाफ वो लड़ाई लड़ते रहने की बातें करते रहे उनसे मीटिंग कर लेने के बाद उनके समर्थक उनसे मुंह मोड़ सकते हैं. ये भी हो सकता है कि बातचीत के लिए वे इस डर से तैयार हुए होंगे कि कहीं फिर से उनको नजरबंद न कर लिया जाये?
लेकिन सरकार की तरफ से ऐसे कोई संकेत तो दिये नहीं गये हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने तो बोल ही दिया है कि वो चाहते हैं कि दिल्ली के साथ साथ दिल की भी दूरी कम हो. फिर क्या दिक्कत हो सकती है? ऐसी बातों के बाद फिर से पुलिस का पहरा बिठाये जाने की आशंका तो नहीं लगती.
कश्मीरी नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मीटिंग के बाद लगता तो ऐसा ही है जैसे केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी ने कश्मीर पॉलिटिक्स में फिर से बाजी जीत ली हो - और अगर ऐसा वास्तव में हुआ है तो बाकी सब तो लूजर ही समझे जाएंगे!
तो क्या बीजेपी को सपोर्ट करने आये थे?
ऐसा क्यों लगता है जैसे सारे कश्मीरी नेता दिल्ली घूमने आये थे - ताकि, थोड़ी ही सही आबो-हवा तो बदल जाये. अरसे से घाटी में पड़े रहने के बाद थोड़ी तफरीह हो भी गयी, राजनीति के नाम पर ही सही.
बैठक से निकले तो बड़े हंसते मुस्कुराते नजर आये थे. करीब करीब वैसे ही जैसे पुलिस कस्टडी में भी सुशील कुमार के चेहरे पर खुशी की चमक दिखायी दे रही थी. सुशील कुमार तो सलाखों के पीछे हैं, लेकिन कश्मीरी नेताओं के साथ अब तो कुछ ऐसा वैसा नहीं ही है.
कहते हैं कि जो रोगी चाहे, वैद्य वही फरमाये - कश्मीर के केस में तो बीजेपी नेतृत्व की राजनीति ऐसी ही लगती है. जो बीजेपी को पसंद है कश्मीरी नेता वो करके चले गये और बदले में ढेर सारा क्रेडिट प्रधानमंत्री तो तोहफे में दे गये - और बीजेपी को आने वाले चुनावों में पेश करने के लिए मिसालें.
बीजेपी के पास तो आगे से बताने के लिए पूरा माल इकट्ठा हो चुका है. बीजेपी तो अब अपनी सरकार की विदेश नीति का भी चाहे तो ढिंढोरा पीट सकती है. अब कौन कहेगा कि बीजेपी मुस्लिम विरोधी. कम से कम कश्मीर के मामले में तो बीजेपी प्रवक्ता बोलती बंद कर ही देंगे. अब कौन कहने की जुर्रत करेगा कि कश्मीर के लोगों की आवाज दबायी जा रही है - दिल्ली में तो किसी भी कश्मीरी नेता ने ऐसी शिकायत नहीं की.
अगर कश्मीरी नेता बातचीत के लिए दिल्ली नहीं आये होते तो, कोई भी मान लेता कि वे जो बोल रहे हैं, कर भी वैसा ही रहे हैं - लेकिन अब क्या संदेश जा रहा है? अब तो ऐसा ही लग रहा है कि कश्मीरी नेता बस बयानबाजी के भरोसे अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाये रखना चाहते हैं.
पहले ऐसा जरूर लगा था कि महबूबा मुफ्ती बातचीत का बहिष्कार भी कर सकती हैं. महबूबा मुफ्ती शुरू से ही बातचीत में पाकिस्तान को शामिल करने की पैरवी करती रही हैं - महबूबा मुफ्ती ने वो बात तो दोहरायी लेकिन स्वर वैसे बुलंद नहीं सुनायी पड़े जैसे घाटी में सुनायी देते रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी के साथ मीटिंग के बाद महबूबा मुफ्ती ये जरूर कहा - 'संविधान की धारा 370 और 35-A हमें पाकिस्तान से नहीं मिला था. ये हमें भारत से मिला था... ये हमें जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल ने दिया था... विधानसभा से पूछे बिना 5 अगस्त, 2019 को इसे हटा दिया गया.'
जम्मू कश्मीर में जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में बनाया गया डीलिमिटेशन कमीशन काम कर रहा है - और परिसीमन का काम पूरा होने के बाद जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराये जाने की बात हो रही है.
प्रधानमंत्री की तरफ से कहा भी गया है कि पहले जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने की कोशिश है और फिर केंद्र शासित क्षेत्र से राज्य का दर्जा बहाल करने पर भी विचार होगा. ये बातें प्रधानमंत्री ने कश्मीरी नेताओं के साथ मीटिंग में ही कही जिसमें जम्मू कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद थे.
हालांकि, नेशनल कांफ्रेंस नेता के अनुसार, सीनियर कांग्रेस नेता 'गुलाम नबी आजाद ने हम सबकी तरफ से वहां बात की और कहा कि हम ये टाइमलाइन नहीं मानते हैं... डीलिमिटेशेन, चुनाव और राज्य का दर्जा नहीं - पहले डिलिमिटेशन फिर राज्य का दर्जा, फिर चुनाव - चुनाव कराना ही है तो पहले राज्य का दर्जा लौटा दीजिये, उसके बाद हम चुनाव पर बात करेंगे.'
कश्मीरी नेताओं ने तो बीजेपी के लिए कमाल का ऐसा काम कर दिया है कमल खिलखिलाने लगा है - जो काम कोई बड़ी रकम खर्च करने के बाद भी पीआर एजेंसियां नहीं कर पातीं, कश्मीरी नेताओं ने प्रधानमंत्री और उनकी टीम के साथ बातचीत के लिए राजी होकर ही कर दी थी. दिल्ली पहुंच कर तो वे बीजेपी को डबल बेनिफिट दिलाने में भी सफल रहे.
चुनाव नहीं, राजनीतिक स्पेस की लड़ाई
दिल्ली से खुशी खुशी लौटने के बाद जम्मू-कश्मीर पहुंच कर महबूबा मुफ्ती कह रही हैं कि वो विधानसभा का चुनाव मौजूदा स्थिति में नहीं लड़ेंगी - ऐसा ही पहले उमर अब्दुल्ला ने भी कहा था, 'मैं बहुत स्पष्ट हूं कि जब तक जम्मू-कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश बना रहेगा तब तक मैं कोई भी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ूंगा - मैं उस सदन का सदस्य नहीं बन सकता.'
नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला सफाई देने की भी कोशिश कर रहे हैं, 'वहां किसी ने प्रधानमंत्री से नहीं कहा कि हमें 5 अगस्त कबूल हैं... हमने कहा कि हम इससे नाराज हैं... प्रधानमंत्री से महबूबा मुफ्ती और फारुख अब्दुल्ला ने साफ कहा कि बीजेपी को 370 हटाने का एजेंडा कामयाब कराने में 70 साल लगे - हमें 70 महीने लगेंगे तो भी हम अपने मिशन से पीछे नहीं हटेंगे.'
उमर अब्दुल्ला कह रहे हैं कि वे इसे कानूनी प्रक्रिया के तहत हासिल करेंगे. उमर अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कांफ्रेंस ने केंद्र सरकार के जम्मू कश्मीर से धारा 370 खत्म करने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है - और उमर अब्दुल्ला वही दोहरा रहे हैं.
उमर अब्दुल्ला ने खुद चुनाव न लड़ने का तो ऐलान किया है, लेकिन ये नहीं साफ है कि नेशनल कांफ्रेंस का स्टैंड क्या होगा. वैसे पिछले साल हुए डीडीसी चुनाव में कश्मीर के राजनीतिक दलों के गुपकार गठबंधन ने मिल कर चुनाव लड़ा था और नेशनल कांफ्रेंस को सबसे ज्यादा कामयाबी मिली थी.
लेकिन पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने चुनाव को लेकर अपना स्टैंड पूरी तरह साफ कर दिया है. महबूबा मुफ्ती समझा रही हैं कि जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित होने की स्थिति में वो चुनाव नहीं लड़ेंगी, लेकिन वो चुनावों का राजनीतिक बहिष्कार नहीं करने जा रही हैं. महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी भी गुपकार गठबंधन का हिस्सा है और उसने में डीडीसी चुनाव में हिस्सा लिया था - महबूबा मुफ्ती जोर देकर ये बात बार बार दोहरा भी रही हैं.
जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराये जाने की स्थिति पीडीपी का क्या रुख होगा, महबूबा मुफ्ती ये भी साफ कर चुकी हैं - महबूबा मुफ्ती के मुताबिक, मेरी पार्टी को ये बात मालूम है कि हम किसी को भी राजनीतिक स्पेस नहीं लेने देंगे. कहती हैं, अगर विधानसभा चुनाव की घोषणा होती है तो पार्टी बैठकर चर्चा करेगी.
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...तो कांग्रेस के भीतर जम्मू-कश्मीर में धारा 370 दोबारा लागू कराने वाला धड़ा मौजूद है!
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