जांच एजेंसियों के कामकाज पर समय समय पर अलग अलग टिप्पणियां सुनने को मिल रही हैं. नोटिस मिलने पर शिवसेना नेता संजय राउत के प्रवर्तन निदेशालय के बारे में अलग विचार थे - और पहली बार पेशी पर जाने से पहले ही वो ईडी को प्रतिष्ठित जांच एजेंसी बताने लगे थे. ईडी के गिरफ्तार कर लेने के बाद संजय राउत फिलहाल जेल में हैं.
जब सीबीआई ने कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम को गिरफ्तार किया तो जांच एजेंसी का दुरुपयोग बताया जा रहा था - और जब सीबीआई के अफसर मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) के घर पर रेड डालने पहुचे तो कांग्रेस प्रवक्ता जांच एजेंसी के एक्शन को सही ठहराने लगे. बल्कि, बीजेपी (BJP) को भी ताने सुनने पड़े की लगातार दुरुपयोग से जांच एजेंसियों के बारे में गलत धारणा बन जाती है - और उसकी आड़ में गलत लोग भी अपने बचाव में राजनीतिक दुरुपयोग जैसी बातें कर गुमराह करने की कोशिश करते हैं.
कांग्रेस के बयान को समझें तो ऐसा लगता है जैसे वो ये कहना चाहती है कि मोदी सरकार में पहली बार सीबीआई अपना काम ठीक से कर रही है - और मनीष सिसोदिया के घर घंटों चली रेड के मामले में सीबीआई के राजनीतिक दुरुपयोग की बात नहीं होनी चाहिये.
मतलब, कांग्रेस को लगता है कि सीबीआई फिलहाल वैसे ही अपना काम कर रही है जैसे वो केंद्र में कांग्रेस की सरकार में किया करती थी. आपको ध्यान होगा, 2013 में सीबीआई को लेकर सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी काफी चर्चित रही और अब भी उसे जब तब दोहराया जाता है, जब देश की सबसे बड़ी अदालत ने सीबीआई को 'पिंजरे का तोता' करार दिया था.
कांग्रेस सीबीआई की कार्रवाई के बाद मनीष सिसोदिया का इस्तीफा मांग रही है और बीजेपी नेता दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार को सबसे भ्रष्ट सरकार साबित करने में जुटे हुए हैं. आम आदमी पार्टी...
जांच एजेंसियों के कामकाज पर समय समय पर अलग अलग टिप्पणियां सुनने को मिल रही हैं. नोटिस मिलने पर शिवसेना नेता संजय राउत के प्रवर्तन निदेशालय के बारे में अलग विचार थे - और पहली बार पेशी पर जाने से पहले ही वो ईडी को प्रतिष्ठित जांच एजेंसी बताने लगे थे. ईडी के गिरफ्तार कर लेने के बाद संजय राउत फिलहाल जेल में हैं.
जब सीबीआई ने कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम को गिरफ्तार किया तो जांच एजेंसी का दुरुपयोग बताया जा रहा था - और जब सीबीआई के अफसर मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) के घर पर रेड डालने पहुचे तो कांग्रेस प्रवक्ता जांच एजेंसी के एक्शन को सही ठहराने लगे. बल्कि, बीजेपी (BJP) को भी ताने सुनने पड़े की लगातार दुरुपयोग से जांच एजेंसियों के बारे में गलत धारणा बन जाती है - और उसकी आड़ में गलत लोग भी अपने बचाव में राजनीतिक दुरुपयोग जैसी बातें कर गुमराह करने की कोशिश करते हैं.
कांग्रेस के बयान को समझें तो ऐसा लगता है जैसे वो ये कहना चाहती है कि मोदी सरकार में पहली बार सीबीआई अपना काम ठीक से कर रही है - और मनीष सिसोदिया के घर घंटों चली रेड के मामले में सीबीआई के राजनीतिक दुरुपयोग की बात नहीं होनी चाहिये.
मतलब, कांग्रेस को लगता है कि सीबीआई फिलहाल वैसे ही अपना काम कर रही है जैसे वो केंद्र में कांग्रेस की सरकार में किया करती थी. आपको ध्यान होगा, 2013 में सीबीआई को लेकर सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी काफी चर्चित रही और अब भी उसे जब तब दोहराया जाता है, जब देश की सबसे बड़ी अदालत ने सीबीआई को 'पिंजरे का तोता' करार दिया था.
कांग्रेस सीबीआई की कार्रवाई के बाद मनीष सिसोदिया का इस्तीफा मांग रही है और बीजेपी नेता दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार को सबसे भ्रष्ट सरकार साबित करने में जुटे हुए हैं. आम आदमी पार्टी की तरफ से अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में काउंटर करने के लिए मनीष सिसोदिया को देश और दुनिया का बेस्ट शिक्षा मंत्री होने का दावा किया जा रहा है.
अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के भारत को नंबर 1 बनाने वाली मुहिम के बाद AAP प्रवक्ता संजय सिंह कह रहे हैं, ‘जिस तरह से अरविंद केजरीवाल को भाजपा के नेता निशाना बना रहे हैं, आम आदमी पार्टी ने देशभर में कहीं न कहीं ये संदेश दिया है कि 2024 का लोकसभा चुनाव आप बनाम भाजपा होगा.'
सत्येंद्र जैन की गिरफ्तारी के बाद अरविंद केजरीवाल कई बार मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी की आशंका जताते रहे हैं - और अब तो मनीष सिसोदिया को भी कुछ कुछ वैसी ही आशंका सताये जा रही है. कहते हैं, 'नई एक्साइज पॉलिसी में कोई घोटाला नहीं हुआ है... घोटाले को लेकर सारी बातें बकवास हैं... दो-चार दिन में मुझे भी गिरफ्तार कर लेंगे.'
जो भी हो, लेकिन समझने वाली बात ये है कि किसी नेता के फंस जाने की स्थिति में राजनीतिक विरोधी फायदे में रहते हैं. मनीष सिसोदिया के फंसने की सूरत में सबसे ज्यादा प्रभावित तो अरविंद केजरीवाल ही होंगे. सीधे सीधे फायदे में बीजेपी और कांग्रेस रहेगी. कांग्रेस को तो मामूली ही फायदा होगा, लेकिन बीजेपी को ज्यादा फायदा हो सकता है - यही वो बड़ी बाद है जिसे समझना जरूरी है कि बीजेपी को कितना फायदा होगा?
सिसोदिया के फंसने का केजरीवाल पर असर
जिस तरीके से दिल्ली के शराब घोटाले की एफआईआर में डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया का नाम सबसे ऊपर रखा गया है, जिस तरीके से केस को मजबूत बनाने की कोशिश की गयी है - एकबारगी तो यही लगता है कि मनीष सिसोदिया बुरी तरह घिर चुके हैं.
जब कपिल मिश्रा ने अरविंद केजरीवाल पर अपनी आंखों के सामने दो करोड़ रिश्वत लेने जैसा गंभीर इल्जाम लगाया तो यकीन न करने वालों में दो नाम प्रमुख तौर पर सामने आये - एक योगेंद्र यादव और दूसरे कुमार विश्वास. अपने सियासी मतभेदों के दुश्मनी में बदल जाने के बावजूद दोनों में से किसी ने कपिल मिश्रा की बातों पर यकीन नहीं किया था.
सीबीआई ने घंटों मनीष सिसोदिया के घर छानबीन और पूछताछ की है. दिल्ली के डिप्टी सीएम का मोबाइल और लैपटॉप जब्त कर लिया है, जिसके बाद मनीष सिसोदिया को अपनी गिरफ्तारी की आशंका स्वाभाविक लगती है.
अब ये सब महज राजनीतिक वजहों से हो रहा है या वास्तव में गड़बड़ी हुई है जैसा कि एजेंसी की तरफ, बल्कि ये कहना बेहतर होगा कि बीजेपी की तरफ से दावे किये जा रहे हैं - सच्चाई तो स्पेशल कोर्ट में ट्रायल पूरी होने के बाद ही सामने आ सकेगी.
ऐसे राजनीतिक मामलों में फायदा नुकसान का आधार ये नहीं होता कि जिस पर आरोप लगा है उसे दोषी करार दिया जाता है या नहीं? वो सजा पाकर जेल में पूरी जिंदगी बिताने को मजबूर होता है या नहीं? उसका कॅरियर खत्म हो जाता है या नहीं?
असल में राजनीतिक मकसद तो तात्कालिक तौर पर पूरा हो ही जाता है. केस की वजह से कानूनी पचड़ों में उलझ जाने के कारण कोई भी हो काम करना मुश्किल तो हो ही जाता है - और पहला बड़ा नुकसान तो यही होता है.
सजा के हिसाब से देखा जाये तो गिनती के नाम ही नजर आते हैं - जैसे बंगारू लक्ष्मण, सुखराम और लालू यादव, लेकिन राजनीति के हिसाब से कीमती वक्त तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी की ही तरह मनीष सिसोदिया का भी बर्बाद हो रहा है.
और मनीष सिसोदिया पर आयी थोड़ी सी आंच की तपिश सीधे अरविंद केजरीवाल को महसूस होगी - और ये ज्यादा हुई तो वो झुलस भी सकते हैं. ऐसा वाकई हुआ तो उनके सारे राजनीतिक विरोधियों को निश्चित तौर पर फायदा ही होगा.
दिल्ली की सरकार को पूरी तरह मनीष सिसोदिया के हवाले करके अरविंद केजरीवाल निश्चिंत होकर घूमते फिरते रहते हैं. अभी तो गुजरात और हिमाचल प्रदेश के साथ साथ कर्नाटक चुनाव की तैयारियों में भी शिद्दत से लगे हुए हैं.
मनीष सिसोदिया के साथ कुछ ऐसा वैसा हुआ तो दिल्ली में ही 'खूंटा गाड़ कर' बैठना पड़ेगा. तब तो हालत ये होगी कि पंजाब के अधिकारियों के साथ बैठक के लिए मौका शायद ही मिल सकेगा - क्योंकि दिल्ली सरकार के कामकाज से ही फुरसत नहीं मिलने वाली है. देखा जाये तो मनीष सिसोदिया दिल्ली छोड़ कर कितना निकल पाते थे?
जैसे सत्येंद्र जैन के जेल चले जाने के बाद उनकी भी जिम्मेदारी मनीष सिसोदिया पर आ गयी. अब अगर मनीष सिसोदिया का भी सत्येंद्र जैन जैसा ही हाल हुआ तो सारा दारोमदार तो अरविंद केजरीवाल पर ही आ जाएगा. अब तक अरविंद केजरीवाल ने मनीष सिसोदिया का विकल्प भी नहीं तैयार किया है, जो वैकल्पिक तौर पर मोर्चा संभाल सकते थे, पहले ही किनारे लगाये जा चुके हैं.
फिर तो अरविंद केजरीवाल दिल्ली के खूंटे से बंध कर रह जाएंगे. आने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी करना भी मुश्किल होगा. ये कुछ कुछ वैसे ही है जैसे राहुल गांधी को प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ और फिर सोनिया गांधी की पेशी के चलते सारी चीजें अचानक समेट लेनी पड़ी. उदयपुर चिंतन शिविर में तो बहुत सारी बातें तय हुई थीं. उन पर काम तो चल रहा है लेकिन गति तो कम हो ही गयी. जब यूपी और पंजाब में चुनाव हो रहे थे तभी राहुल गांधी गुजरात में तैयारियों का जायजा लेने पहुंचे थे. कांग्रेस कार्यकर्ताओं की हौसलाअफजाई भी कर चुके थे, लेकिन बात उससे ज्यादा आगे नहीं बढ़ सकी.
जो वस्तुस्थिति है, अरविंद केजरीवाल को होने वाले हर नुकसान का फायदा सीधे तौर पर बीजेपी और कांग्रेस को मिलना पक्का है. बीजेपी और कांग्रेस की बराबर सक्रियता भी तो यही बताती है. अब जिसकी जैसी आबादी है, हिस्सेदारी भी तो वैसी ही होगी.
बीजेपी को कहां कहां फायदा होगा?
अरविंद केजरीवाल ने भले ही भारत को नंबर 1 बनाने की मुहिम अभी से शुरू कर दी हो, लेकिन 2024 अभी बहुत दूर है. आम आदमी पार्टी के हिसाब से भले न हो, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस के हिसाब से तो आम चुनाव में अभी काफी वक्त है - क्योंकि उससे पहले गुजरात और हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक विधानसभा के चुनाव हैं.
दिल्ली के हिसाब से देखें तो बीजेपी के लिए एमसीडी चुनाव भी काफी महत्वपूर्ण है. ध्यान रहे, दिल्ली में आम आदमी पार्टी लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज हुई है. क्योंकि सरकार तो आप की ही बनी है और मुख्यमंत्री भी अरविंद केजरीवाल ही बने हैं. 2013 में कांग्रेस के सत्ता से बेदखल होने के बाद बीजेपी जरूर सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी, लेकिन उसने बाहर से सपोर्ट देकर आप की सरकार बनवा दी - और बाद में आप की सुनामी ही आ गयी. 2020 की जीत भी तो तूफानी ही रही.
दिल्ली में आपको रोकने की बीजेपी की हर तरकीब बेकार साबित हुई है. सीनियर बीजेपी नेता अमित शाह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मोर्चे पर उतार कर पूरी ताकत झोंक दी थी. अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा तो अलग ही अलख जगाये हुए थे, 'देश के गद्दारों को...' फिर भी बीजेपी बुरी तरह बीट हुई.
लेकिन लगता है दिल्ली से ज्यादा बीजेपी को अरविंद केजरीवाल की पंजाब की कामयाबी से डर लग रहा होगा. पंजाब में भी अरविंद केजरीवाल को आतंकवादी मिजाज वाला साबित करने की दिल्ली से कम कोशिशें नहीं हुईं. कुमार विश्वास तो गोला बारूद भरपूर मात्रा में मुहैया करा ही रहे थे, राहुल गांधी भी प्रधानमंत्री मोदी से कम आक्रामक नहीं नजर आ रहे थे.
नतीजे आये तो अरविंद केजरीवाल की पार्टी को 92 विधायक मिले और मोदी-शाह की बीजेपी को महज 2. भला किसी को भी ये सब कैसे हजम होगा. और आगे के लिए ये डरावना सपना नहीं तो और क्या होगा?
पंजाब जैसी न सही, लेकिन गुजरात में भी कुछ सीटें झटक लेने की आशंका तो बीजेपी को भी हो ही रही होगी. जरूरी नहीं कि कांग्रेस 2017 जैसा प्रदर्शन दोहरा सके, लेकिन आम आदमी पार्टी के मैदान में कूद पड़ने से फिर से पेंच फंस गया तो?
गुजरात सहित जिन तीन राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं, बीजेपी की ही सरकारें हैं. फिर तो सत्ता विरोधी लहर भी स्वाभाविक ही है. अगर अरविंद केजरीवाल ने खुद को विकल्प के तौर पर पेश कर दिया तो - और लोग मान भी गये तो क्या होगा? पंजाब में तो यही हुआ है. और 2022 ही क्यों? 2017 में भी तो बीजेपी और अकाली दल गठबंधन को कांग्रेस के हाथों सत्ता गंवानी ही पड़ी थी - और मेजर फैक्टर अरविंद केजरीवाल ही तो थे. तब आप को केजरीवाल ने पंजाब में सबसे बड़ा विपक्षी दल बनाया था, पांच साल बाद सत्ता पर काबिज हो गये.
हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का मोह छोड़ दें तो डबल इंजिन की सरकारों के बाकी कामकाज से तो लोगों का मन भरने ही लगा है. ये किसी भी कोने में लोगों से थोड़ी ही देर की बात में महसूस किया जा सकता है. हां, बाद जब हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की शुरू होती है तो वे भी 'नून रोटी खाएंगे...' वाले अंदाज में शुरू हो जाते हैं.
लेकिन कब तक मोहपाश में बंधे रहेंगे? थक हार कर पूछ ही लेते हैं - विकल्प कहां हैं? और जब अरविंद केजरीवाल विकल्प बन कर सामने खड़े हो जाते हैं. मुफ्त की बिजली पानी और अस्पताल के सपने दिखाने लगते हैं तो लोग यकीन कर लेते हैं. पंजाब में तो ऐसा ही हुआ है.
बेरोजगारी को तो एक बार मिलजुल कर झेला भी जा सकता है, लेकिन महंगाई की मार बहुत भारी पड़ रही है - और बीजेपी को भी मालूम है कि वो दिन भी आएगा ही जब उसके साथ खड़े लोग ही बोल देंगे, 'भूखे भजन न होंहि गोपाला!'
बीजेपी को अरविंद केजरीवाल को लेकर फिलहाल यही डर सता रहा है. गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी. और कर्नाटक को लेकर भी. और तीनों ही राज्यों में सत्ता में वापसी 2024 के आम चुनाव के हिसाब से वैसे ही जरूरी है जैसे बीते विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश को लेकर रही.
चाहे जिस बहाने अगर अरविंद केजरीवाल दिल्ली तक सिमट कर रह जाते हैं तो विधानसभा चुनावों को लेकर बीजेपी की आशंका कम हो जाएगी - और मनीष सिसोदिया के खिलाफ सीबीआई के एक्शन का बीजेपी को सबसे बड़ा फायदा भी यही होगा.
इन्हें भी पढ़ें :
सिसोदिया के घर सीबीआई छापे से साफ है कि केजरीवाल तीसरी ताकत बन चुके हैं
मनीष सिसोदिया पर CBI छापे ने आप और केजरीवाल को चौतरफा उलझा दिया
2024 के लिए केजरीवाल ने दिखाया 2014 के मोदी वाला तेवर, निशाने पर तो कांग्रेस है
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.