अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) उत्तर प्रदेश में चुनावी गठबंधन के एक और नये प्रयोग की कोशिश में हैं. हालांकि, ये भी वैसा ही प्रयास है जैसा पहले दिल्ली और हरियाणा को लेकर हो चुका है - और आखिरकार गठबंधन तो दूर, कोशिशें भी फेल ही रही हैं.
अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की तरफ से भी एक बार फिर यूपी में चुनावी गठबंधन का प्रयोग आजमाने की कोशिश हो रही है. अपने स्तर पर एक बार राहुल गांधी और फिर मायावती के साथ अखिलेश यादव का चुनावी गठबंधन फेल रहा है, लिहाजा नया प्रयोग छोटे दलों के साथ अलग अलग लेवल पर करने की कवायद चल रही है.
अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी अब अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन वाली कतार में शामिल हो चुकी है. ये सही है कि आप सांसद संजय सिंह अखिलेश यादव से एक शिष्टाचार मुलाकात के बाद दोबारा भी मिल चुके हैं - और मुलाकात को दोनों तरफ से प्रचारित भी किया गया है. निश्चित तौर पर ये मुलाकात प्रियंका गांधी वाड्रा और अखिलेश यादव की हवाई मुलाकात से काफी अलग समझ में आती है.
अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव दोनों ही में चुनावी गठबंधन को लेकर हमेशा ही खासा उत्साह देखने को मिला है और वो करीब करीब एक जैसा ही होता है. दोनों नेताओं में गठबंधन की इच्छा लगती तो कॉमन है, लेकिन अरविंद केजरीवाल जहां गठबंधन के प्रयास फेल होते ही 'अंगूर खट्टे हैं' वाला भाव दिखाने लगते हैं - अखिलेश यादव चखने के बाद ऐसा बताते हैं. कांग्रेस के साथ दोनों को गठबंधन की एक जैसी ख्वाहिशें देखी गयी हैं और आखिरी रिएक्शन भी करीब करीब मिलता जुलता ही रहा है.
ताजा मामला अलग है जो यूपी चुनाव (P Election 2022) को लेकर है. अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव दोनों ही ने कांग्रेस से बराबर दूरी बनाते हुए आपस में चुनावी गठबंधन पर बातचीत शुरू किया है - और डील के पक्का होने जैसी कोई जानकारी नहीं दी गयी है.
अरविंद केजरीवाल के हालिया राजनीतिक तेवर के हिसाब से देखें तो समाजवादी पार्टी के साथ चुनावी समझौता भी उत्तर और दक्षिण ध्रुव के मिलने...
अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) उत्तर प्रदेश में चुनावी गठबंधन के एक और नये प्रयोग की कोशिश में हैं. हालांकि, ये भी वैसा ही प्रयास है जैसा पहले दिल्ली और हरियाणा को लेकर हो चुका है - और आखिरकार गठबंधन तो दूर, कोशिशें भी फेल ही रही हैं.
अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की तरफ से भी एक बार फिर यूपी में चुनावी गठबंधन का प्रयोग आजमाने की कोशिश हो रही है. अपने स्तर पर एक बार राहुल गांधी और फिर मायावती के साथ अखिलेश यादव का चुनावी गठबंधन फेल रहा है, लिहाजा नया प्रयोग छोटे दलों के साथ अलग अलग लेवल पर करने की कवायद चल रही है.
अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी अब अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन वाली कतार में शामिल हो चुकी है. ये सही है कि आप सांसद संजय सिंह अखिलेश यादव से एक शिष्टाचार मुलाकात के बाद दोबारा भी मिल चुके हैं - और मुलाकात को दोनों तरफ से प्रचारित भी किया गया है. निश्चित तौर पर ये मुलाकात प्रियंका गांधी वाड्रा और अखिलेश यादव की हवाई मुलाकात से काफी अलग समझ में आती है.
अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव दोनों ही में चुनावी गठबंधन को लेकर हमेशा ही खासा उत्साह देखने को मिला है और वो करीब करीब एक जैसा ही होता है. दोनों नेताओं में गठबंधन की इच्छा लगती तो कॉमन है, लेकिन अरविंद केजरीवाल जहां गठबंधन के प्रयास फेल होते ही 'अंगूर खट्टे हैं' वाला भाव दिखाने लगते हैं - अखिलेश यादव चखने के बाद ऐसा बताते हैं. कांग्रेस के साथ दोनों को गठबंधन की एक जैसी ख्वाहिशें देखी गयी हैं और आखिरी रिएक्शन भी करीब करीब मिलता जुलता ही रहा है.
ताजा मामला अलग है जो यूपी चुनाव (P Election 2022) को लेकर है. अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव दोनों ही ने कांग्रेस से बराबर दूरी बनाते हुए आपस में चुनावी गठबंधन पर बातचीत शुरू किया है - और डील के पक्का होने जैसी कोई जानकारी नहीं दी गयी है.
अरविंद केजरीवाल के हालिया राजनीतिक तेवर के हिसाब से देखें तो समाजवादी पार्टी के साथ चुनावी समझौता भी उत्तर और दक्षिण ध्रुव के मिलने जैसा ही है - अयोध्या, जिन्ना और भ्रष्टाचार जैसे चुनावी मुद्दों पर सवाल उठाये ही जाएंगे.
जिन्ना पर अखिलेश यादव के सवाल पर आप नेता संजय सिंह सफाई दे चुके हैं, लेकिन उतने भर से काम नहीं चलने वाला. लोगों के मन में भी ये सवाल होंगे कि केजरीवाल वास्तव में जय श्रीराम के नारे में भरोसा रखते हैं या राम भक्तो पर गोली चलवाने वालों का साथ निभाने में - और भ्रष्टाचार खत्म करने के मकसद से राजनीति में आये केजरीवाल के उसी मुलायम सिंह यादव की पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन को कैसे हजम किया जाये जिन्हें वो देश के 'भ्रष्टाचारी नेताओं' में शुमार कर चुके हों - चुनावों में ऐसे सवाल केजरीवाल के आम आदमी को ही कन्फ्यूज करने वाले हैं.
सपा और 'आप' का साथ किसे पंसद है?
पांच साल पहले जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पंजाब और गोवा में 2017 के विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा किये तो एक सवाल ये भी पूछा गया था - आम आदमी पार्टी यूपी चुनाव में क्यों नहीं उतर रही है?
अरविंद केजरीवाल ने बड़ा ही छोटा सा जवाब दिया था - यूपी में आम आदमी पार्टी के पास बैंडविथ नहीं है. उससे पहले योगेंद्र यादव के रहते हरियाणा में हाथ आजमाये थे - और खुद अरविंद केजरीवाल दिल्ली में शीला दीक्षित को हराने के बाद वाराणसी संसदीय सीट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज किये और हार कर दिल्ली लौट गये थे. 2017 में केजरीवाल की पार्टी की गोवा में तो दाल नहीं गली, लेकिन 2014 के आम चुनाव में चार सांसद देने वाले पंजाब के लोगों ने विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल जरूर बना दिया.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में तीसरी जीत के बाद अरविंद केजरीवाल की यूपी में दिलचस्पी देखी जाने लगी थी. यूपी से आने वाले दिल्ली के कई विधायकों को उनके पुश्तैनी इलाके में जाकर सम्मानित करने का लंबा चौड़ा कार्यक्रम भी बना था, लेकिन कुछ तो दिल्ली दंगों की वजह से और कुछ लॉकडाउन के कारण सब धरा का धरा रह गया - अब जाकर अरविंद केजरीवाल को यूपी में बैंडविथ मिली भी है तो समाजवादी पार्टी के सहारे.
सवाल ये है कि क्या मुलायम सिंह यादव को लेकर भी अरविंद केजरीवाल वैसे ही कोई सफाई देंगे जैसे लालू यादव से गले मिलने के बाद दिया था? 2015 में नीतीश कुमार के शपथग्रहण के मौके पर पटना में लालू यादव और अरविंद केजरीवाल के गले मिलने की तस्वीर वायरल हुई तो दिल्ली के मुख्यमंत्री सवालों के घेरे में फंस गये. बाद में अरविंद केजरीवाल ने सफाई दी कि वो ऐसा नहीं किये बल्कि लालू यादव उनको अपनी तरफ खींच कर गले पड़ गये थे.
1. क्या केजरीवाल अब मुलायम से भी माफी मांगेंगे
अखिलेश यादव ने 2019 के आम चुनाव में अपने पिता मुलायम सिंह यादव ओर बीएसपी नेता मायावती को मैनपुरी में बने चुनावी मंच पर साथ खड़ा कर पुराने सारे गिले-शिकवे खत्म करा दिये थे. ऐसा मौका यूपी में फिर से आ सकता है जब अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव के बीच चुनावी गठबंधन हो जाता है.
लगता है केजरीवाल भी मुलायम सिंह यादव अपनी शिकायतें ममता बनर्जी की तरह मन ही मन दूर कर ली है. मुलायम सिंह से राष्ट्रपति चुनाव के दौरान एक बार धोखा खाने के बाद ममता बनर्जी समाजवादी पार्टी से दूरी बना कर चलती रहीं, लेकिन अखिलेश यादव के कमान संभालने के बाद सब कुछ भुला भी दिया - और अब तो ममता बनर्जी कह रही हैं कि अखिलेश यादव कहेंगे तो वो यूपी में उनके लिए चुनाव प्रचार भी कर सकती हैं और बाकी जरूरी मदद भी.
केजरीवाल का मामला थोड़ा अलग है. वो मुलायम सिंह यादव को देश के भ्रष्ट नेताओं की सूची में शामिल कर चुके हैं. मजेदार बात ये रही कि मुलायम सिंह के साथ उस सूची में केजरीवाल ने राहुल गांधी को भी रखा था, लेकिन राजनीतिक जीवन का पहला गठबंधन भी वो कांग्रेस के साथ ही कर चुके हैं. जिस कांग्रेस की केंद्र सरकार में भ्रष्टाचार को लेकर अन्ना हजारे को आगे कर केजरीवाल शोर मचाये, जिस शीला दीक्षित को शिकस्त देकर दिल्ली में आप को पहले ही चुनाव में नंबर दो की पार्टी बनाया - उसी कांग्रेस के साथ पहली सरकार भी बना डाली थी. ये बात अलग है कि डेढ़ महीने में ही भाग खड़े हुए और फिर 49 दिन की सरकार के लिए माफी भी मांगने लगे.
जहां तक माफी की बात है, राहुल गांधी और मुलायम सिंह यादव से भी केजरीवाल माफी मांगे होते अगर वे भी उनके खिलाफ बीजेपी नेता अरुण जेटली की तरह अदालत में मानहानि का आपराधिक केस कर दिये होते - क्या यूपी चुनाव में गठबंधन हो जाने के बाद मुलायम सिंह यादव से भी केजरीवाल माफी मांगने वाले हैं?
2. क्रोनोलॉजी समझाकर सवाल तो पूछे ही जाएंगे
अब तक तो यही देखने को मिला है कि चुनावों से पहले मुलायम सिंह यादव लोगों को एक बार बड़े गर्व से याद जरूर दिलाते रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहने उन्होंने ने ही अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने का हुक्म दिया था. और जब भी मुलायम सिंह यादव ये दोहराते हैं, उनकी एक और चर्चित बात बरबस याद आ जाती है - 'लड़के हैं... गलती हो जाती है... तो क्या फांसी पर चढ़ा दोगे?' मुलायम सिंह यादव ने ये बात एक बार गैंग रेप के कुछ आरोपियों के बचाव में कही थी. खास बात ये है कि 'लड़कों से गलती' और 'कारसेवकों पर गोली...' - ये दोनों ही बातें समाजवादी पार्टी के एक ही वोट बैंक के लिए खास मैसेज लिये होती हैं.
अरविंद केजरीवाल ने सबसे पहले हनुमान चालीसा का पाठ किया. फिर दिवाली मनाते मनाते 'जय श्रीराम' के नारे लगाने लगे - और अब वो राम भक्तों पर गोली चलवाने को लेकर गौरवांवित महसूस करने वाली मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी के साथ उत्तर प्रदेश में चुनावी गठबंधन के लिए प्रयासरत हैं.
अगर आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी का आपस में चुनावी गठबंधन हो जाता है तो जाहिर है अरविंद केजरीवाल भी गठबंधन के उम्मीदवारों के लिए वोट मांगने जाएंगे ही - और फिर चुनाव मैदान में अमित शाह और योगी आदित्यनाथ से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक क्रोनोलॉजी समझाते हुए सवाल भी पूछेंगे ही. वैसे सोशल मीडिया पर तो लोग अभी से ऐसे सवालों की बौछार कर चुके हैं.
3. केजरीवाल से आम आदमी का सवाल
अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी से लोग अभी से सोशल मीडिया के जरिये सवाल पूछने शुरू कर दिये हैं - एक सवाल है, 'राजनीति में जन्म लिये थे तब तो सबके खिलाफ सबूत थे, अब अचानक उन्हीं पर प्यार आने लगा है, क्या हुआ? पैसा देख कर सारी ईमानदारी छू मंतर हो गई क्या?'
कुछ लोग स्क्रीनशॉट के साथ अरविंद केजरीवाल को मुलायम सिंह यादव का वो बयान याद दिला रहे हैं जिसमें वो केजरीवाल के नौकरी छोड़ने को लेकर जांच कराने की मांग किये थे - 'कहीं वो भ्रष्टाचार में तो लिप्त नहीं थे.'
जनवरी, 2014 में अरविंद केजरीवाल ने देश के सबसे भ्रष्ट नेताओं की सूची मीडिया को जारी की थी - और उसमें यूपी से मुलायम सिंह यादव और मायावती का भी नाम था. तब केजरीवाल ने ऐसे नेताओं को 2014 के चुनाव में हराने की अपील की थी.
अरविंद केजरीवाल ने सात साल में स्टैंड कैसे और क्यों बदल लिया, चुनावों में तो समझाना ही पड़ेगा - क्योंकि आम आदमी के मन में ये सवाल तो घूम ही रहा है.
4. ऐसे कैसे खत्म होगा कन्फ्यूजन
समाजवादी पार्टी के के साथ अरविंद केजरीवाल के चुनाव गठबंधन को लेकर कन्फ्यूजन के सवाल पर संजय सिंह का दावा है - 'हमारे वोटर बिल्कुल भी कंफ्यूज नहीं होंगे... प्रभु राम के नाम पर चंदा चोरी करने का प्रमाण मैंने सबके सामने दिया था... बीजेपी द्वारा इस पर क्या कार्रवाई की गई?'
एक टीवी इंटरव्यू में संजय सिंह से यही पूछा गया था - 'जिनसे गठबंधन कर रहे हैं उन पर राम भक्तों पर गोलियां चलाने का आरोप है?'
आप नेता संजय सिंह ने कहा, 'भारतीय जनता पार्टी को आप राम भक्तों की श्रेणी में कैसे देख रहे हैं? ये पार्टी जो अपने आप को राम भक्त बताने का दावा करती है, उस पर प्रमाण सहित आरोप है कि राम मंदिर के निर्माण के दौरान घोटाला किया है.'
5. AAP की सियासी सेहत के लिए हानिकारक
अरविंद केजरीवाल ने मनीष सिसोदिया के साथ अयोध्या से तिरंगा यात्रा शुरू करने के बाद आम आदमी पार्टी ने अपनी मौजूदगी तो मजबूत तरीके से दर्ज कराने की कोशिश की थी. बड़ी संख्या में संभावित उम्मीदवारों की घोषणा भी कर चुकी है लेकिन लगता है फ्री बिजली गारंटी अभियान भी बेअसर साबित हुआ है और 'बैंडविथ' की तलाश में ही संजय सिंह को अरविंद केजरीवाल ने अखिलेश यादव के पास भेजने का फैसला किया.
सुना है सीटों को लेकर भी दोनों पक्षों में बातचीत हुई है. जाहिर है अखिलेश यादव सहयोगी दलों के लिए जितनी सीटें सोच रखे होंगे उसी में से कुछ ऐडजस्ट करेंगे. हाल फिलहाल अखिलेश यादव से मिलने वाले नेताओं की संख्या भी अच्छी खासी देखी गयी है. ये भी साफ है कि ज्यादातर मुलाकातें चुनावी गठबंधन के मकसद से ही हुई हैं.
बाकी राजनीतिक दलों के लिए तो कोई समस्या नहीं है. सबको बस एक ठिकाने की जरूरत है. ऐसा ठिकाना जिसके साथ होने से चुनावों दावेदारी में दम आ सके. अखिलेश यादव की तरफ छोटे छोटे दलों के नेताओं के खिंचे चले आने की मुख्य वजह धीरे धीरे पनप रही वो धारणा है जिसमें समझा जाता है कि समाजवादी पार्टी ही यूपी चुनाव में योगी आदित्यनाथ को चैलेंज करने जा रही है - लेकिन अरविंद केजरीवाल को अगर लंबी रेस की पॉलिटिक्स करनी है तो ये गठबंधन उनकी सियासी सेहत के लिए बहुत हानिकारक हो सकता है.
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