रामलीला मैदान के दौरान टीम अन्ना को बीजेपी की बी-टीम का ठप्पा लगा. तब की टीम अन्ना के अरविंद केजरीवाल के जब आम आदमी पार्टी बनायी तो उसे वामपंथी विचारधारा के काफी करीब देखा जाने लगा. सब झूठ. बिलकुल सफेद झूठ, ये दोनों ही बातें बिलकुल गलत थीं.
अब तो साफ है आम आदमी पार्टी का न तो कभी वामपंथ से कोई वास्ता रहा और न ही दक्षिणपंथ से, बल्कि ये तो घोर जातिवादी पार्टी है, बिलकुल वैसे ही जैसी मायावती की बीएसपी, मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी या लालू प्रसाद की आरजेडी.
'बैंडविथ' बोले तो जातीय समीकरण?
जब अरविंद केजरीवाल पंजाब विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे थे तभी एक सवाल पूछा गया - आम आदमी पार्टी उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेगी? ये सवाल 2017 के विधान सभा चुनाव के सिलसिले में था.
केजरीवाल का जवाब था, 'हम एक-एक कदम आगे बढ़ेंगे. उत्तर प्रदेश में हमारे पास बैंडविथ नहीं है.'
तब से लेकर बैंडविथ का जो भी मतलब समझा गया हो, अब तो स्पष्ट है इसका मतलब सिर्फ और सिर्फ जातिवाद ही हो सकता है. हाल ही में आप नेता केजरीवाल ने भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद रावण से मुलाकात की कोशिश की थी, लेकिन यूपी सरकार की ओर से इजाजत नहीं मिली. दिल्ली मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से सहारनपुर जिला प्रशासन को पत्र भेजा गया था कि अरविंद केजरीवाल 13 अगस्त को सहारनपुर होंगे और जेल में बंद रावण से मुलाकात करना चाहते हैं. जेल प्रशासन की सलाह पर सहारनपुर के जिलाधिकारी ने केजरीवाल की रिक्वेस्ट ठुकरा दी, इस दलील के साथ कि राजनीतिक मुलाकात का जेल मैनुअल में कोई प्रावधान नहीं है.
हाल की ही ये भी बात है कि केजरीवाल ने 2019 का चुनाव अकेले दम पर लड़ने का ऐलान किया था. अकेले मतलब उनकी पार्टी...
रामलीला मैदान के दौरान टीम अन्ना को बीजेपी की बी-टीम का ठप्पा लगा. तब की टीम अन्ना के अरविंद केजरीवाल के जब आम आदमी पार्टी बनायी तो उसे वामपंथी विचारधारा के काफी करीब देखा जाने लगा. सब झूठ. बिलकुल सफेद झूठ, ये दोनों ही बातें बिलकुल गलत थीं.
अब तो साफ है आम आदमी पार्टी का न तो कभी वामपंथ से कोई वास्ता रहा और न ही दक्षिणपंथ से, बल्कि ये तो घोर जातिवादी पार्टी है, बिलकुल वैसे ही जैसी मायावती की बीएसपी, मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी या लालू प्रसाद की आरजेडी.
'बैंडविथ' बोले तो जातीय समीकरण?
जब अरविंद केजरीवाल पंजाब विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे थे तभी एक सवाल पूछा गया - आम आदमी पार्टी उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेगी? ये सवाल 2017 के विधान सभा चुनाव के सिलसिले में था.
केजरीवाल का जवाब था, 'हम एक-एक कदम आगे बढ़ेंगे. उत्तर प्रदेश में हमारे पास बैंडविथ नहीं है.'
तब से लेकर बैंडविथ का जो भी मतलब समझा गया हो, अब तो स्पष्ट है इसका मतलब सिर्फ और सिर्फ जातिवाद ही हो सकता है. हाल ही में आप नेता केजरीवाल ने भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद रावण से मुलाकात की कोशिश की थी, लेकिन यूपी सरकार की ओर से इजाजत नहीं मिली. दिल्ली मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से सहारनपुर जिला प्रशासन को पत्र भेजा गया था कि अरविंद केजरीवाल 13 अगस्त को सहारनपुर होंगे और जेल में बंद रावण से मुलाकात करना चाहते हैं. जेल प्रशासन की सलाह पर सहारनपुर के जिलाधिकारी ने केजरीवाल की रिक्वेस्ट ठुकरा दी, इस दलील के साथ कि राजनीतिक मुलाकात का जेल मैनुअल में कोई प्रावधान नहीं है.
हाल की ही ये भी बात है कि केजरीवाल ने 2019 का चुनाव अकेले दम पर लड़ने का ऐलान किया था. अकेले मतलब उनकी पार्टी किसी भी अलाएंस का हिस्सा नहीं होने जा रही - न तो गैर-कांग्रेस गठबंधन का और न ही किसी संभावित गैर-बीजेपी गठबंधन का.
तो भीम आर्मी के नेता से मुलाकात का क्या मायने हो सकते थे? ऑप्शन तो दो ही लगते हैं - चंद्रशेखर या तो समर्थकों के साथ आम ज्वाइन कर लें या पार्टी बना कर केजरीवाल के साथ गठबंधन कर लें. वैसे भी चंद्रशेखर ने जेल से ही कैराना में विपक्ष के उम्मीदवार का सपोर्ट किया ही था.
बेशक आप को यूपी में बैंडविथ मिलने लगा हो, लेकिन आशुतोष के ट्वीट से ये बताने की तो जरूरत ही नहीं कि आप का ये टूल चार साल पहले ही फेल हो चुका है.
आशुतोष से आतिशी मर्लेना तक
निजी वजहें बता कर आप छोड़ चुके आशुतोष ने पार्टी के बारे में ट्विटर पर एक बड़ा खुलासा कर दिया. हालांकि, आशुतोष ने पहले ही सफाई दे डाली है कि ट्वीट वो निजी हैसियत से कर रहे हैं. न तो आम आदमी पार्टी से अब उनका कोई लेना देना है और न ही वो एंटी-आप ब्रिगेड का हिस्सा हैं.
2014 में आशुतोष दिल्ली की चांदनी चौक लोक सभा सीट से चुनाव लड़े थे. तब कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल को हरा कर बीजेपी के डॉ. हर्षवर्धन ने जीत हासिल की और फिलहाल मोदी सरकार में मंत्री हैं.
आशुतोष भले ही दावा करें कि वो आप के एंटी-ब्रिगेड का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन उनके निशाने पर तो अरविंद केजरीवाल ही लगते हैं. ये भी सही है कि आशुतोष में आप में रहते कभी पार्टी नेतृत्व या उसके किसी भी फैसले पर उंगली नहीं उठायी.
आतिशी के मुताबिक मर्लेना उनका सरनेम नहीं बल्कि सिंह है. ये नाम तो वामपंथ से प्रभावित उनके माता पिता ने दिया था - कार्ल मार्क्स और व्लादिमीर लेनिन के नाम से लेकर. वैसे इन्हीं दोनों नामों को लेकर एक वामपंथी पार्टी का भी नाम है - सीपीआई(माले). ये पार्टी हक हासिल करने के लिए राजनीति के साथ हिंसक आंदोलन से परहेज नहीं करती, ऐसा माना जाता है.
'बनिया हूं मैं...'
देखा जाये तो केजरीवाल ने भी जातिवाद के खिलाफ कभी परहेज नहीं दिखाया. जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजराती होने के नाते बिजनेस अपने खून में बताते हैं, केजरीवाल भी डंके की चोट पर खुद को बनिया बता चुके हैं.
दिल्ली में कारोबारियों की एक रैली में खुद केजरीवाल ने ही तो कहा था - 'मैं बनिया हूं और धंधा समझता हूं. हम चाहते हैं कि आप पूरी ईमानदारी से धंधा करें...'
उसी रैली में आप नेता ने एक और दावा किया था - 'हमने 49 दिन में ये किया. हमारे शासनकाल में कारोबारियों को कभी परेशान नहीं किया गया...'
आशुतोष भले ही खुद को एंटी-आप ब्रिगेड से अलग बतायें, लेकिन उनका ट्वीट मौका और दस्तूर देख कर ही किया गया लगता है. आशुतोष ने पहले कभी भी जातिवाद से जुड़े इस प्रसंग का जिक्र तक नहीं किया और अब ट्वीट तब किया है जब आप नेता आतिशी मर्लेना अपना सरनेम ट्विटर के वेरीफाइड अकाउंट से भी डिलीट कर चुकी हैं.
नाम मात्र के लिए ही सही, आतिशी का वामपंथ का रास्ता छोड़ कर घोर जातिवाद की राह अख्तियार करना क्या गुल खिलाता है देखना बाकी है. एक सवाल और क्या आशुतोष के आप छोड़ने की वजह जातिवाद भी हो सकता है? देखते हैं, अंदर की और खबर आने तक.
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