पिछले करीब एक दशक में पीएम मोदी (Narendra Modi) वोट बटोरने वाले सबसे बड़े पॉलिटीशियन साबित हुए हैं. इसका अनुभव सबसे पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने 2007 में गुजरात विधानसभा चुनाव (Gujarat Election) के दौरान किया, जब उन्होंने गुजरात में मोदी सरकार पर सवाल उठाए. उन्होंने पीएम मोदी को मौत का सौदागर कहा, जिसके बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद को गुजरात के गर्व की तरह प्रस्तुत किया. 2019 के लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने पीएम मोदी को चोर कहते हुए 'चौकीदार चोर है' का नारा जोर-शोर से लगाया. पीएम मोदी ने इसके बाद काउंटर किया और कहा कि राहुल गांधी चौकीदारों को चोर कह रहे हैं और लगातार दूसरी बार वह लोकसभा चुनाव जीत गए.
2019 के चुनाव में ही दिल्ली (Delhi) के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के एंटी-मोदी रवैये में एक बदलाव देखने को मिला, जिसे वह करीब साढ़े चार साल तक अपनाए हुए थे. केजरीवाल ने पीएम मोदी के खिलाफ 2014 में वाराणसी से चुनाव लड़ा था. 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly election) के दौरान वह पीएम मोदी पर तीखे हमले करते रहे. 2015 में वह लगातार केंद्रीय सरकारी अधिकारियों और मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतें करते रहे, जब तक कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दिल्ली सरकार के एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) पर भी अपना दावा नहीं ठोक दिया. और जब सीबीआई (CBI) ने दिसंबर 2015 में दिल्ली सरकार के कुछ दफ्तरों पर छापा मारा तो अरविंद केजरीवाल ने पीएम मोदी को मनोरोगी और कायर कह दिया. उन्होंने एक के बाद एक कई ट्वीट भी किए थे, जिसमें लिखा था कि जब पीएम मोदी मुझसे राजनीति में नहीं जीत पाए तो उन्होंने ये कायरता दिखाई है. उन्होंने कहा कि वह मोदी की सीबीआई से नहीं डरते हैं.
जो केजरीवाल पहले मोदी को गालियां देते नहीं थकते थे, अब वह मोदी की तारीफें तक कर रहे हैं.
2016 में जब भारतीय सेना (Indian Army) ने उरी हमले (ri Attack) के बाद पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) में सर्जिकल स्ट्राइक (Surgical Strike) की, तो अरविंद केजरीवाल उन नेताओं में से थे, जिन्होंने मोदी सरकार से उसका सबूत मांगा था. केजरीवाल ने पीएम मोदी पर हमले करना 2019 के लोकसभा चुनाव तक जारी रखा. फरवरी 2019 में केजरीवाल ने कहा कि पीएम मोदी अन्य पार्टियों के मुख्यमंत्रियों को ऐसे डरा रहे हैं, जैसे वह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हों. उन्होंने केंद्र सरकार के दिल्ली एसीबी पर कंट्रोल का जिक्र करते हुए ये भी कहा कि दिल्ली को पाकिस्तान की सेना ने कब्जे में लिया हुआ है.
पुलवामा आतंकी हमले (Pulwama Terrorist Attack) का बदला लेते हुए भारत की ओर से की गई बालाकोट स्ट्राइक (Balakot Air Strike) के बाद केजरीवाल ने भारतीय वायु सेना की तारीफ की, लेकिन कुछ ही समय बाद पीएम मोदी और अमित शाह पर अपनी बंदूकें तान दीं. मई 2019 को एक चुनावी रैली के दौरान केजरीवाल ने कहा कि मोदी का राष्ट्रवाद झूठा है. वह देश के लिए खतरनाक हैं. उनका पाकिस्तान के साथ एक सीक्रेट कनेक्शन है, जिसे उजागर करने की जरूरत है. लेकिन लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की बुरी तरह से हार के बाद अरविंद केजरीवाल के सुर अचानक बदल गए. दिल्ली लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी 7 में से 5 सीटों पर तीसरे नंबर की पार्टी बन गई, जो अकेला ऐसा केंद्र शासित प्रदेश है, जहां आम आदमी पार्टी की सरकार है. 2019 में आम आदमी पार्टी ने कुल 40 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से वह सिर्फ 1 ही जीती.
लोकसभा चुनाव के नतीजों की घोषणा के कुछ दिनों बाद केजरीवाल ने पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ एक बैठक की, जिसमें ये तय हुआ कि आम आदमी पार्टी की राजनीति को मोदी के इर्द-गिर्द नहीं घुमाएंगे. ये फैसला लिया गया कि अरविंद केजरीवाल की सरकार ने पिछले 5 सालों में जो काम किए हैं, उन पर फोकस करेंगे. इसका ये भी मतलब है कि केजरीवाल नेशनल पॉलिटिक्स में आम आदमी पार्टी के लाने की अपनी महत्वाकांक्षा को बचाने की कोशिश कर रहे हैं.
ये फैसला लोकसभा चुनाव से पहले गोवा, गुजरात, पंजाब के विधानसभा चुनावों और दिल्ली के नगर पालिका चुनाव में हार को भी ध्यान में रखते हुए लिया गया. हरियाणा और महाराष्ट्र में खराब प्रदर्शन ने ये फैसला लिए जाने को और मजबूती दी.
इससे ये बात स्पष्ट हो जाती है कि क्यों अरविंद केजरीवाल ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 (Article 370) हटाने के फैसले का स्वागत किया और दिल्ली के प्रदूषण (Delhi Pollution) को कम करने में मोदी सरकार को भी एक हद तक क्रेडिट दिया. उन्होंने मोदी सरकार के उस फैसला की भी तारीफ की, जिसमें उन्होंने अनऑथराइज कॉलेनियों को मंजूरी दी. यहां तक कि उन्होंने उपराज्यपाल अनिल बैजल को भी धन्यवाद कहा, जिन्हें उन्होंने दिल्ली में दिवाली इवेंट ऑर्गेनाइज करने के लिए मोदी सरकार का एजेंट तक कह दिया था. ये हैं अरविंज केजरीवाल 2.0. उनकी आंखें दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 पर गड़ गई हैं और नेशनल पॉलिटिक्स में खुद को अहम बनाए रखना चाहते हैं. ये सब इस बात का नतीजा है कि कहीं दिल्ली विधानसभा चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल ना बन जाए.
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