कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी 'पार्ट टाइम पॉलिटिक्स' से निकलकर 'फुल टाइम पॉलिटिक्स' के लिए अपना पूरा जोर लगा रहे हैं. पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, पुदुचेरी और केरल में होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में नजर आ रही है. लेकिन, राहुल गांधी ने खुद को बड़े स्तर पर केरल में झोंक रखा है. वह केरल की वायनाड लोकसभा सीट से ही सांसद हैं और कांग्रेस का गढ़ रहे अमेठी से चुनाव हार गए थे. शायद इसी को मद्देनजर रखते हुए पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने हाल ही में केरल (दक्षिण) के मतदाताओं की बौद्धिकता को उत्तर के मतदाताओं से उम्दा मानने का बयान भी दिया था. वैसे केरल में चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने न्यूनतन आय योजना (NYAY) पर काफी जोर दिया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के घोषणा पत्र में इस योजना को गरीबी पर आखिरी प्रहार के तौर पर पेश किया गया था. बावजूद इसके परिणाम कांग्रेस के पक्ष में नहीं आए थे. अब एक बार फिर से राहुल गांधी ने न्याय योजना के लिए कमर कस ली है और इसके परीक्षण के लिए केरल को चुना है. सवाल उठना लाजिमी है कि अन्य राज्यों में भी चुनाव हैं, तो आखिर राहुल गांधी ने केरल को ही क्यों चुना? इस योजना में ऐसा क्या है, जो राहुल इस पर इतना जोर दे रहे हैं?
'न्याय' के लिए केरल को ही क्यों चुना?
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वाम दलों का गठबंधन चुनावी मैदान में है. पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के लिए करने को कुछ खास है नहीं. यहां सत्ता की लड़ाई तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच ही नजर आ रही है. अगर यह लड़ाई त्रिकोणीय भी होती है, तो कांग्रेस-वाम दलों के साथ गठबंधन की वजह से सत्ता पर एकछत्र रूप से काबिज नहीं हो सकेगी. कांग्रेस का हाल अन्य राज्यों में कमोबेश पश्चिम बंगाल जैसा ही हाल है. असम में कांग्रेस के लिए NRC और CAA मुद्दा है और यहां भी पार्टी गठबंधन के सहारे ही सत्ता में आने का सपना देख रही है. तमिलनाडु में कांग्रेस का गठबंधन DMK के साथ है और उसने कांग्रेस को केवल 25 सीटें ही दी हैं. जबकि...
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी 'पार्ट टाइम पॉलिटिक्स' से निकलकर 'फुल टाइम पॉलिटिक्स' के लिए अपना पूरा जोर लगा रहे हैं. पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, पुदुचेरी और केरल में होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में नजर आ रही है. लेकिन, राहुल गांधी ने खुद को बड़े स्तर पर केरल में झोंक रखा है. वह केरल की वायनाड लोकसभा सीट से ही सांसद हैं और कांग्रेस का गढ़ रहे अमेठी से चुनाव हार गए थे. शायद इसी को मद्देनजर रखते हुए पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने हाल ही में केरल (दक्षिण) के मतदाताओं की बौद्धिकता को उत्तर के मतदाताओं से उम्दा मानने का बयान भी दिया था. वैसे केरल में चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने न्यूनतन आय योजना (NYAY) पर काफी जोर दिया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के घोषणा पत्र में इस योजना को गरीबी पर आखिरी प्रहार के तौर पर पेश किया गया था. बावजूद इसके परिणाम कांग्रेस के पक्ष में नहीं आए थे. अब एक बार फिर से राहुल गांधी ने न्याय योजना के लिए कमर कस ली है और इसके परीक्षण के लिए केरल को चुना है. सवाल उठना लाजिमी है कि अन्य राज्यों में भी चुनाव हैं, तो आखिर राहुल गांधी ने केरल को ही क्यों चुना? इस योजना में ऐसा क्या है, जो राहुल इस पर इतना जोर दे रहे हैं?
'न्याय' के लिए केरल को ही क्यों चुना?
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वाम दलों का गठबंधन चुनावी मैदान में है. पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के लिए करने को कुछ खास है नहीं. यहां सत्ता की लड़ाई तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच ही नजर आ रही है. अगर यह लड़ाई त्रिकोणीय भी होती है, तो कांग्रेस-वाम दलों के साथ गठबंधन की वजह से सत्ता पर एकछत्र रूप से काबिज नहीं हो सकेगी. कांग्रेस का हाल अन्य राज्यों में कमोबेश पश्चिम बंगाल जैसा ही हाल है. असम में कांग्रेस के लिए NRC और CAA मुद्दा है और यहां भी पार्टी गठबंधन के सहारे ही सत्ता में आने का सपना देख रही है. तमिलनाडु में कांग्रेस का गठबंधन DMK के साथ है और उसने कांग्रेस को केवल 25 सीटें ही दी हैं. जबकि कांग्रेस ने 2016 के विधानसभा चुनाव में 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था. हाल ही में चुनाव से पहले ही केंद्र शासित राज्य पुदुचेरी की कांग्रेस सरकार गिर गई थी. वहां के कांग्रेस विधायक भाजपा के खेमे में खड़े नजर आ रहे हैं. इस स्थिति में केरल ही एक ऐसा राज्य बचता है, जहां कांग्रेस अपने घटक दलों (कांग्रेस की ही अन्य शाखाएं) के सहारे सत्ता में आ सकती है. इसी वजह से न्याय योजना के परीक्षण के लिए केरल सबसे मुफीद राज्य है.
आईडेंटिटी क्राइसिस से जूझ रहे हैं राहुल गांधी
राहुल गांधी ने केरल में एक सभा के दौरान कहा था कि न्याय योजना को परखने के लिए मेरे पास स्वहित की निजी वजह है. दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्र सरकार ने गरीबों के लिए कई योजनाएं चला रखी हैं. ये योजनाएं काफी सफल रही हैं. राहुल गांधी को अभी तक केंद्र में सरकार चलाने का मौका नहीं मिला है, लेकिन अन्य कांग्रेस शासित राज्यों में भी वह कुछ खास बदलाव ला पाते नहीं दिखे हैं. न्याय योजना के सहारे वह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले खुद को एक स्थापित नेता के तौर पर पेश करने के लिए कोशिश में जुटे हैं. राहुल गांधी के सामने अपनी खुद की पहचान बनाने की बहुत बड़ी चुनौती है. बीते एक साल में राहुल गांधी के लिए परिस्थितियां काफी बदल गई हैं. कांग्रेस पार्टी के ही कुछ असंतुष्ट वरिष्ठ नेताओं (G-23) ने राहुल गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. इस स्थिति में न्याय योजना ही वह निजी वजह है, जिसके जरिये भविष्य में कांग्रेस और राहुल गांधी दोनों की ही दशा और दिशा तय होगी.
पांच राज्यों में होने वाले चुनावों के नतीजे राहुल गांधी की ताजपोशी में कोई अड़चन नहीं डाल पाएंगे, उनका अध्यक्ष बनना लगभग तय ही है. लेकिन कांग्रेस केरल में चुनाव जीत जाती है, तो राहुल गांधी के लिए 'सोने पर सुहागा' वाली स्थिति हो जाएगी. वह चुनाव नतीजों से पहले ही केरल में कांग्रेस नीत यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (DF) की जीत को लेकर काफी विश्वस्त नजर आ रहे हैं. उन्होंने एक रैली के दौरान कहा कि हम जानते हैं कि आगे क्या होने जा रहा है. हम केरल में इस नये विचार (न्याय योजना) को परखने जा रहे हैं. 72000 रुपये सालाना लाभार्थियों के बैंक खातों में जाएंगे.
न्याय योजना के सहारे चुनाव जीतना है लक्ष्य
राहुल गांधी ने केरल में कहा था कि यह कोई परमार्थ नहीं है. हम आपको न्याय के माध्यम से पैसा नहीं दे रहे हैं. हम आपकी जेब में पैसा डाल रहे है, ताकि आप पैसे खर्च कर पाएं. उन्होंने न्याय योजना को प्रधानमंत्री मोदी की नोटबंदी, त्रुटिपूर्ण जीएसटी क्रियान्वयन और कोविड-19 महामारी के चलते चरमरा गई भारतीय अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाने का एकमात्र रास्ता भी बताया. राहुल गांधी केरल के चुनाव में न्याय योजना के सहारे चुनाव जीतकर गरीबों के हित वाली योजनाएं ला सकने में सक्षम और मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति वाले नेता की छवि बनाना चाहते हैं. अगर कांग्रेस केरल में चुनाव जीतने के बाद यह योजना लागू करती है, तो सरकार पर कई हजार करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा. हालांकि, ये कहा जा सकता है कि इस योजना से निश्चित तौर पर अर्थ व्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ेगा.
न्यूनतम आय योजना (NYAY) क्या है?
इस योजना के तहत केरल के हर गरीब परिवार को 6000 रुपये महीने के हिसाब से 72,000 रुपए सालाना दिए जाएंगे. इस योजना में गरीब परिवार की आमदनी की सीमा 12,000 रुपये तय की गई थी. न्याय योजना के अनुसार, कोई परिवार हर माह अन्य आय के स्त्रोतों से 8,000 रुपये कमाता है, तो उसे 4,000 रुपये मिलेंगे. इसी हिसाब से कम और ज्यादा आय का संतुलन बनाते हुए रुपये दिए जाएंगे. इस तरह परिवार की कुल आमदनी 12,000 रुपये महीना हो जाएगी. लोकसभा चुनाव 2019 में अगर कांग्रेस सरकार बनती, तो इस योजना के तहत 5 करोड़ गरीब परिवारों को लाने का लक्ष्य रखा गया था. न्याय योजना लागू होने पर सरकार पर करीब 3,60,000 करोड़ रुपए का बोझ पड़ने की संभावना जताई गई थी.
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