पंजाब की संगरूर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के सिमरजीत सिंह मान ने आम आदमी पार्टी को मात दे दी है. आम आदमी पार्टी को मिली इस हार के बाद लोकसभा में पार्टी के प्रतिनिधित्व खत्म होने की चर्चा का दौर शुरू हो गया है. क्योंकि, पंजाब के सीएम भगवंत मान संगरूर लोकसभा सीट से आम आदमी पार्टी के एकमात्र सांसद थे. वैसे, संगरूर लोकसभा सीट से जीत हासिल करने वाले सिमरनजीत सिंह मान की भी चर्चाएं कम नहीं हो रही हैं. क्योंकि, सिमरनजीत ने जीतने के बाद मीडिया से बातचीत में अपनी जीत को आतंकी जरनैल सिंह भिंडरावाले के विचारों की जीत बताया है.
इतना ही नहीं सिमरनजीत सिंह मान ने भारत सरकार पर कई गंभीर आरोप भी जड़ दिए हैं. सिमरनजीत ने कहा है कि 'दीप सिंह सिद्धू और सिद्धू मूसेवाला की शहादत (मौत) से सिख समुदाय को दुनियाभर में फायदा मिला है. इसी के चलते भारत सरकार अब सिखों को खिलाफ मुसलमानों की तरह बर्ताव नहीं कर सकती हैं. जैसे उनके (मुसलमानों) घरों को ढहाया जाता है. कश्मीर में उनके ऊपर जुल्म किये जाते हैं. छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड में आदिवासियों को माओवादी और नक्सली बताकर मार दिया जाता है.' बता दें कि सिमरनजीत सिंह मान भारत को तोड़ने वाली खालिस्तानी विचारधारा के धुर-समर्थक हैं.
वैसे, सिमरनजीत सिंह मान की जीत के साथ ही चिंता जताई जाने लगी है कि सीमावर्ती राज्य पंजाब में खालिस्तानी विचारधारा को बढ़ावा मिल सकता है. और, जीत के बाद मान के बयान ने भी काफी हद तक इसी ओर इशारा कर दिया है कि वह संसद...
पंजाब की संगरूर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के सिमरजीत सिंह मान ने आम आदमी पार्टी को मात दे दी है. आम आदमी पार्टी को मिली इस हार के बाद लोकसभा में पार्टी के प्रतिनिधित्व खत्म होने की चर्चा का दौर शुरू हो गया है. क्योंकि, पंजाब के सीएम भगवंत मान संगरूर लोकसभा सीट से आम आदमी पार्टी के एकमात्र सांसद थे. वैसे, संगरूर लोकसभा सीट से जीत हासिल करने वाले सिमरनजीत सिंह मान की भी चर्चाएं कम नहीं हो रही हैं. क्योंकि, सिमरनजीत ने जीतने के बाद मीडिया से बातचीत में अपनी जीत को आतंकी जरनैल सिंह भिंडरावाले के विचारों की जीत बताया है.
इतना ही नहीं सिमरनजीत सिंह मान ने भारत सरकार पर कई गंभीर आरोप भी जड़ दिए हैं. सिमरनजीत ने कहा है कि 'दीप सिंह सिद्धू और सिद्धू मूसेवाला की शहादत (मौत) से सिख समुदाय को दुनियाभर में फायदा मिला है. इसी के चलते भारत सरकार अब सिखों को खिलाफ मुसलमानों की तरह बर्ताव नहीं कर सकती हैं. जैसे उनके (मुसलमानों) घरों को ढहाया जाता है. कश्मीर में उनके ऊपर जुल्म किये जाते हैं. छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड में आदिवासियों को माओवादी और नक्सली बताकर मार दिया जाता है.' बता दें कि सिमरनजीत सिंह मान भारत को तोड़ने वाली खालिस्तानी विचारधारा के धुर-समर्थक हैं.
वैसे, सिमरनजीत सिंह मान की जीत के साथ ही चिंता जताई जाने लगी है कि सीमावर्ती राज्य पंजाब में खालिस्तानी विचारधारा को बढ़ावा मिल सकता है. और, जीत के बाद मान के बयान ने भी काफी हद तक इसी ओर इशारा कर दिया है कि वह संसद में भी खालिस्तानी विचारधारा के साथ ही प्रवेश करेंगे. क्योंकि, राजनीति में आने से पहले आईपीएस रहे सिमरनजीत सिंह मान ने 1984 में जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके आतंकी साथियों का खात्मे के बाद नौकरी से इस्तीफा दे दिया था. और, लंबे समय से पंजाब में खालिस्तानी विचारधारा के पोषक रहे हैं. लेकिन, इस चर्चा से इतर इसका दूसरा पहलू कहीं ज्यादा सुखद है.
लोकतंत्र का सबसे खूबसूरत पहलू
दरअसल, ये भारतीय लोकतंत्र की उस दिलचस्प और खूबसूरती का एक पहलू भी है. जो किसी भी विचार या विचारधारा को जनता के बीच चुनकर आने के साथ ही अपनी आवाज में शामिल करने को तैयार रहता है. भले ही सिमरनजीत सिंह मान खालिस्तानी विचारधारा या सिखों के लिए अलग देश बनाने की मांग करने वाले जनरैल सिंह भिंडरावाले के समर्थक हों. लेकिन, जनता के वोटों के जरिये लोकतांत्रिक तरीके से चुनकर आए सिमरनजीत सिंह मान अब देश के लोकतंत्र का मंदिर कही जाने वाली संसद में अन्य नेताओं की तरह ही अपनी बात निसंकोच रख सकेंगे.
यह भारत के लोकतंत्र की खूबसूरती ही है कि देश के किसी भी हिस्से से कोई भी ऐसी आवाज चुनकर आती है. तो, भी उसे संसद में वही सम्मान मिलता है. जो अन्य नेताओं को मिलता है. जबकि, दुनिया के किसी भी अन्य देश में खुलेआम उसी देश को तोड़ने की बात करने वाले को शायद ही इतनी उदारता के साथ स्वीकार किया जाता हो. एक ऐसी आवाज जो खुले तौर पर धर्म, जाति, पंथ, संप्रदाय के नाम पर लोगों के बीच भेद करते हुए उनकी भावनाओं को भड़काने का काम कर रही हो. भारतीय लोकतंत्र उसे भी आत्मसात करने को तैयार दिखता है.
रत्नाकर के वाल्मीकि बनने की आस क्यों नहीं की जा सकती?
बताना जरूरी है कि सिमरनजीत की ट्विटर प्रोफाइल खालिस्तान बनाने की मांग वाले संदेशों से पटी पड़ी है. खैर, सिमरनजीत सिंह मान पहले भी दो बार सांसद रह चुके हैं. और, 1990 में उन्होंने संसद में कृपाण के तौर पर तलवार न ले जाने देने की वजह से विरोध के नाम पर लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. संभव है कि सिमरनजीत फिर से अपनी उसी मांग को दोहराएंगे. लेकिन, उससे भी ज्यादा संभावना इस बात की है कि कानून द्वारा दी गई इजाजत को मानते हुए सिमरनजीत सिंह मान इस बार ये जिद न दोहराएं.
भारतीय लोकतंत्र की व्यापकता और सर्वस्वीकार्यता को देखते हुए क्या इस संभावना से इनकार किया जा सकता है कि सिमरनजीत सिंह मान की खालिस्तानी विचारधारा में बदलाव आ जाए. क्योंकि, डाकू रत्नाकर के रामायण रचयिता वाल्मीकि और डाकू अंगुलिमाल के बौद्ध भिक्षु बनने की किवंदितियां इसी भारत में प्रचलित हैं. और, ऐसा किसी भी अन्य देश में नहीं है. वैसे, सिमरनजीत सिंह मान को संसद पहुंचकर देश के लोकतंत्र की असली ताकत को समझने का मौका मिलेगा. देखना दिलचस्प होगा कि सिमरनजीत सिंह मान सांसद बनने के बाद इस मौके का किस तरह से फायदा उठाते हैं?
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