'मोदी इलेक्शन खत्म कर देगा, मोदी धर्म, जाति, भाषा के आधार पर बांट देगा, दलितों का आदिवासियों का और अल्पसंख्यकों काभावी जीवन खतरे में है, यदि संविधान को बचाना है तो मोदी की हत्या करने के लिए तैयार रहो. हत्या इन द सेंस हराने का काम करो.’
कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री राजा पटेरिया के श्रीमुख से निकले इन वचनों ने सिर्फ मध्य प्रदेश ही नहीं पूरे देश में सियासी सरगर्मियां तेज की हैं. भाजपा वालों ने जहां एक तरफ कड़ी निंदा से लेकर एफआईआर तक से पटेरिया के खिलाफ मोर्चाबंदी कर दी है. तो वहीं कांग्रेस के हाल भी बड़े बुरे हैं. कांग्रेस के तमाम बड़े छोटे नेता इस गफलत में हैं कि बयान के मद्देनजर अगर पटेरिया का बचाव किया जाए तो कैसे किया जाए. चूंकि एक सभा में दिए गए बयान के बाद पटेरिया चौतरफा आलोचना का सामना कर रहे हैं, उन्होंने ये कहते हुए बचने की कोशिश की कि मैंने हत्या करने की बात नहीं कही, बल्कि अगले चुनाव में मोदी को हराने की बात कही है. फ्लो में हो जाता है.
कांग्रेस नेता राजा पटेरिया ने पीएम को लेकर बात ही ऐसी कही थी जिसके बाद विवाद होना ही था
कोई कुछ कहे तमाम बातों से हट कर देखा जाए तो पटेरिया सही कह रहे हैं. फ्लो में हो जाता है और ये तब और होता है जब आदमी उपमा तो देता है मगर लिखाई पढ़ाई में कमजोर होने के कारण शब्द और उसकी महत्ता पर गौर नहीं करता. नही हम पटेरिया को शिक्षा के मद्देनजर किसी तरह की कोई उपमा या संज्ञा नहीं दे रहे. बस जो कुछ भी उन्होंने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कहा है वो न केवल उन्हें बल्कि उनकी पार्टी तक को सवालों के घेरे में डालता है.
ध्यान रहे पूर्व में तमाम मौके ऐसे आए हैं जब कांग्रेस पार्टी के तमाम बड़े नेताओं जैसे राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने कांग्रेस पार्टी को एक परिवार कहा था. सोचने वाली बात ये है कि जिस परिवार में हार के नाम पर प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रची जाए उस परिवार में कितना समर्पण, कितना त्याग होगा इसपर बहुत कुछ कहने बताने की जरूरत नहीं है.
जैसा कि हम ऊपर ही इस बात को जाहिर कर चुके हैं पटेरिया हार को हत्या की उपमा दे रहे हैं और ये सब फ्लो फ्लो में हुआ है तो हम अगर उन्हीं के शब्दों में कांग्रेस पार्टी का अवलोकन कर किसी तरह की कोई राय कायम करें तो मिलता है कि चाहे वो राहुल गांधी हों या फिर सोनिया गांधी कांग्रेस पार्टी के इन दोनों ही बड़े नेताओं या कहें कि स्तम्भों के टुकड़े-टुकड़े कबका हो चुके हैं.
राहुल और सोनिया के लिए टुकड़ों-टुकड़ों वाली बात सुनकर बहुत ज्यादा हैरत में आने की कोई जरूरत नहीं है. इसे समझने के लिए हम 2014 से लेकर अब तक का यानी 2022 तक का समय देख सकते हैं और बिना किसी द्वेष या किसी तरह की कोई राय बनाए बिना हम एक पार्टी के रूप में कांग्रेस का और राहुल-सोनिया का अवलोकन कर सकते हैं.
भले ही देश जोड़ने के नामपर राहुल आज भारत की यात्रा पर हों लेकिन क्या वो इस बात से परिचित नहीं हैं कि इस देश और देश की जनता ने उनका और उनकी पार्टी का क्या हाल किया? आम चुनावों में जो कांग्रेस के साथ हुआ सो हुआ. विधानसभा चुनावों तक में जैसी दुर्गति कांग्रेस की हुई तमाम मौके ऐसे भी आए जब हमने कई बड़े नामों की चुनावों में जमानत तक जब्त होते देखी.
सोचने वाली बात ये है कि वो पार्टी जिसने करीब 70 सालों तक देश की कमान अपने हाथों में रखी उसे लोग वोट ही नहीं दे रहे. या फिर जहां कांग्रेस के लोगों को वोट मिले वहां वोट पर्सेंटेज ऐसा कि कहने और बताने तक में शर्म आए. कह सकते हैं कि चाहे वो चाल, चरित्र और चेहरा रहा हो या फिर नीतियां देश कांग्रेस से त्रस्त हो चुका था फिर चाहे 2014 का आम चुनाव रहा हो या फिर 2019 के लोकसभा चुनाव जैसी शर्मनाक हार कांग्रेस को मिली उसको यदि देखें और पटेरिया के शब्दों में जाहिर करें तो चाहे वो राहुल हों या सोनिया उनके टुकड़े-टुकड़े ही हुए.
बहराहल, उपमानों की हुई है और कांग्रेसी नेता द्वारा उसे प्रयोग किये जाने के सन्दर्भ में हुई है तो हम इतना जरूर कहेंगे कि भले ही आदमी फ्लो-फ्लो में कितना ही बहक जाए मगर उसे अपनी जुबान पर जरूर कंट्रोल रखना चाहिए. यूं भी कबीर दास ने बहुत पहले ही एक दोहे के जरिये इंसान के बड़बोलेपन पर अपना मत प्रकट कर दिया था.
कबीर ने लिखा था कि, 'अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप, अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप/.' बाकी विषय मोदी की हत्या है तो हत्या का दंश कैसा होता है गांधी के बाद इंदिरा और फिर राजीव की हत्या देख चुकी कांग्रेस पार्टी बखूबी जानती और समझती है.
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