उदयपुर में एक नवयुवक दर्जी कन्हैया लाल की बर्बरतापूर्ण ढंग से गर्दन काटने की घटना पर देश का गुस्सा या हैरानी जायज है. आखिर ये भारत को सीरिया या इराक बनाने की एक असफल किन्तु दुस्साहसपूर्ण कोशिश है. इन दोनों देशों के वीडिया हमने देखे हैं जिनमें किसी भी मासूम की गर्दन कैसे बर्बरता पूर्वक कलम की जा रही होती थी. पर यह हमारे ही हिन्दू बहुल मुल्क में ही होगा यह तो किसी ने सोचा भी नहीं था. यह मत भूलिए कि नुपुर शर्मा की सर तन से जुदा की मांग तो लगातार हो ही रही थी. खुल्लम-खुल्ला ऐलान भी हो रहा था कि नुपुर शर्मा के धड़ को गर्दन से अलग कर दिया जाएगा. पर हैरानी की बात यह है कि नुपुर शर्मा के प्रति सहानुभूति रखने वाले किसी निर्दोष शख्स की भी गर्दन को धड़ से अलग कर दिया गया. अब बचा ही क्या है.
निर्दोष की जान लेना शौर्य नहीं एक घृणित अमानवीय कृत्य है. तमाम चीजों से जूझ रहे देश को शांति की ज्यादा जरूरत है वह भी उस स्थिति में जब कई नेता, खासकर कट्टरपॅंथी धार्मिक गुरु और उलेमा गृह युद्ध की आशंका तक जता रहे हैं कई दिनों से. अब कौन सुरक्षित रह गया है इस देश में ? कोई भी तो नहीं. कुछ तालिबानी तत्व भारत में जिस तरह से बढ़ रहे हैं वह बेहद चिंताजनक है. इस्लाम में सुधार तो अब दूर की बात ही दिखती है. पहले इस्लाम से जुड़े विद्वानों को यह चिंता करनी होगी कि ऐसे तालिबानी तत्वों को किस तरह से अलग-अलग थलग करें और इस मजहब को मुल्ला मौलवियों की जकड़न से कैसे मुक्त किया जाए.
अभी देश में अल्ला के इस्लाम की जगह मुल्ला के इस्लाम को चलाने की कोशिश हो रही है! अगर इस्लाम से जुड़े लोग ऐसे तत्वों की मुखालफत में तुरंत सामने नहीं...
उदयपुर में एक नवयुवक दर्जी कन्हैया लाल की बर्बरतापूर्ण ढंग से गर्दन काटने की घटना पर देश का गुस्सा या हैरानी जायज है. आखिर ये भारत को सीरिया या इराक बनाने की एक असफल किन्तु दुस्साहसपूर्ण कोशिश है. इन दोनों देशों के वीडिया हमने देखे हैं जिनमें किसी भी मासूम की गर्दन कैसे बर्बरता पूर्वक कलम की जा रही होती थी. पर यह हमारे ही हिन्दू बहुल मुल्क में ही होगा यह तो किसी ने सोचा भी नहीं था. यह मत भूलिए कि नुपुर शर्मा की सर तन से जुदा की मांग तो लगातार हो ही रही थी. खुल्लम-खुल्ला ऐलान भी हो रहा था कि नुपुर शर्मा के धड़ को गर्दन से अलग कर दिया जाएगा. पर हैरानी की बात यह है कि नुपुर शर्मा के प्रति सहानुभूति रखने वाले किसी निर्दोष शख्स की भी गर्दन को धड़ से अलग कर दिया गया. अब बचा ही क्या है.
निर्दोष की जान लेना शौर्य नहीं एक घृणित अमानवीय कृत्य है. तमाम चीजों से जूझ रहे देश को शांति की ज्यादा जरूरत है वह भी उस स्थिति में जब कई नेता, खासकर कट्टरपॅंथी धार्मिक गुरु और उलेमा गृह युद्ध की आशंका तक जता रहे हैं कई दिनों से. अब कौन सुरक्षित रह गया है इस देश में ? कोई भी तो नहीं. कुछ तालिबानी तत्व भारत में जिस तरह से बढ़ रहे हैं वह बेहद चिंताजनक है. इस्लाम में सुधार तो अब दूर की बात ही दिखती है. पहले इस्लाम से जुड़े विद्वानों को यह चिंता करनी होगी कि ऐसे तालिबानी तत्वों को किस तरह से अलग-अलग थलग करें और इस मजहब को मुल्ला मौलवियों की जकड़न से कैसे मुक्त किया जाए.
अभी देश में अल्ला के इस्लाम की जगह मुल्ला के इस्लाम को चलाने की कोशिश हो रही है! अगर इस्लाम से जुड़े लोग ऐसे तत्वों की मुखालफत में तुरंत सामने नहीं आते, अपने नौजवानों को कट्टरपंथ के जहर से मुक्त करने की कोशिश नहीं करते, तो क्यों न मान लिया जाए कि वे भी इन तत्वों का साथ दे रहे हैं? उदयपुर में जो कुछ हुआ क्या यह पहली घटना है या फिर आपको लगता है यह आख़िरी है. नहीं यह तो एक सिलसिला सा कायम किया जा रहा है.
यह भी समझना होगा है कि हज़ारों की भीड़ जो नारे लगा रही थी सर तन से जुदा वह क्या कन्हैया लाल की मौत से दुखी हुई होगी? क्या वे लोग इस क़त्ल में शुमार नहीं है? ये तमाम लोग अभी दुआ कर रहे होगे और वे दुआ किसके लिए होगी आप समझ सकते हैं. उदयपुर की घटना में जरा राजनीतिक साजिश को भी देखिए. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पूरे मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संबोधन की मांग की है.
हत्या के बाद कांग्रेस की सक्रियता की तारीफ हो रही है. मुआवजा देने, गिरफ्तारी और त्वरित मामले की सुनवाई को लेकर. कांग्रेस के नेताओं, कार्यकर्ताओं समेत सोशल मीडिया पर उसकी टीम अशोक गहलोत सरकार के एक्शन को आदर्श की तरह प्रस्तुत कर रही है. कांग्रेस के साथ नजर आने वाला विपक्ष भी प्रतिक्रिया देने में पीछे नहीं रहा. आनंद पटवर्धन जैसे लोगों ने भी निंदा की है.
ब्रदरहुड का नारा देने वाले और कतर की जीडीपी से भारत की औकात बताने वाले भी निंदा कर रहे. वक्त का तकाजा है कि अशोक गहलोत प्रधानमंत्री मोदी से अपील करन की बजाय अपने राजस्थान को जरा संभालें. अन्य राज्यों में सक्षम सरकारें हैं और वे एहतियात भी बरत रही हैं. क्या गहलोत एक तरह से दबाव की राजनीति नहीं कर रहे हैं? क्या वे राजस्थान की घटना की जिम्मेदारी लेने से बच नहीं रहे हैं?
उदयपुर से आ रही खबरों से साफ है कि राजस्थान सरकार कन्हैया लाल को सुरक्षा देने में नाकाम रही. कन्हैया लाल को पता था कि उसकी जान को खतरा है. उसने पुलिस में शिकायत भी की. वह कई दिनों से अपनी दुकान पर भी नहीं गया था. पर अशोक गहलोत के राज्य की पुलिस ने धमकी देने वालों को पकड़ने की बजाए उस बेचारे कन्हैया लाल को सतर्क रहने की हिदायत दी. ना तो आरोपियों को गिरफ्तार करने में दिलचस्पी दिखाई और ना ही पीड़ित को सुरक्षा देने में.
अशोक गहलोत सरकार को बताना चाहिए कि आतंकियों की धमकी मिलने के बाद भी कन्हैया लाल को सुरक्षा क्यों नहीं दी गई? वह भी तब जब आरोपियों ने धमकी का वीडियो भी जारी कर दिया गया था. आरोपी क्यों नही पकड़े गए? सारा देश जानता है कि राजस्थान बीते कई महीनों से जल रहा था. वहां दंगे भी हुए. नुपुर शर्मा मामले में जिस तरह बखेड़ा हुआ था उसके मद्देनजर तो इस मामले में और ज्यादा एहतियात बरतने की जरूरत थी. पर यह नहीं हुआ.
उदयपुर की कल की घटना के बाद जिस तरह से हत्यारे अपने चाकू लहराकर इसे अपनी जीत बता रहे थे, तो उनकी बेवकूफी पर तरस आया. उन्होंने अपने एक ऐसे धार्मिक विश्वास के चलते इस हत्याकांड को अंजाम दिया जिसका उन्हें इल्म भी नहीं कि वह ठीक है या नहीं. क्या उनकी इस हरकत से उन्हें जन्नत नसीब होगी या नहीं, लेकिन आम मुसलमानों के लिए मुश्किलें ज़रूर बढ़ेंगी. उन दोनों हत्यारों ने एक आदमी का कत्ल किया और ऐसा करके करोड़ों मुसमलानों की ज़िंदगी को मुश्किल बढा दी.
इस बीच, अपने जहरीले बयानों के लिए बदनाम एआईएमआईएम के नेता सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने भी कन्हैयालाल की हत्या की निंदा की है. पर जब उन्हीं की पार्टी के लोकसभा सांसद इम्तियाज जलील महाराष्ट्र में नुपुर शर्मा के बयान पर विरोध जताने के लिए हुआ एक रैली में शामिल हुए थे तब नुपुर शर्मा का सिर काटने के नारे लग रहे थे. इम्तियाज जलील ने उन शातिर लोगों को एक शब्द भी कुछ नहीं कहा था जो नारेबाजी कर रहे थे.
भारत को गर्त में झोंकने की कोशिश करने वालों को कुचलना होगा. केन्द्र तथा राज्य सरकारों को कन्हैया लाल के हत्यारों और उनकी मानसिकता रखने वाले सभी को कुचलना होगा. इस बिन्दु पर अगर मगर का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता. अगर सरकारें ये भी नहीं कर सकती तो फिर तो देश राम भरोसे ही चलेगा.
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