आखिर कई हफ्तों से चल रही कयासबाजी को खत्म करते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने नया आर्मी चीफ चुन ही लिया. शरीफ ने लेफ्टिनेंट जनरल कमर जावेद बाजवा को इस पद के लिए चुना है. बाजवा 29 नवंबर को रिटायर होने वाले मौजूदा सेना प्रमुख रहिल शरीफ की जगह लेंगे और वो पाक सेना के 16वें मुखिया होंगे. हालांकि, इस रेस में पहले 4 नाम थे, लेकिन बाजवा ने उन सभी को पीछे छोड़ते हुए पाक ऑर्मी चीफ की कुर्सी अपने नाम कर ली. बाजवा अगस्त 2017 में रिटायर होंगे. सूत्रों के अनुसार नए सेना प्रमुख का चयन करने में विदेश नीति के साथ ही भारत के साथ संबंध जैसे विषय पर भी प्रमुखता से ध्यान दिया गया है.
लेफ्टिनेंट जनरल कमर जावेद बाजवा |
पाकिस्तान का डार्क हॉर्स...
लेफ्टिनेंट जनरल कमर जावेद बाजवा को पाकिस्तान की सेना और राजनीति में डार्क हॉर्स माना जाता है. बाजवा को ये उपाधी इसलिए मिली है क्योंकि उनका संबंध क्वेटा के इंफेन्ट्री स्कूल और बलोच रेजीमेंट से है. इसी रेजीमेंट से पूर्व सेना प्रमुख जनरल याह्या खान, जनरल असलम बेग और जनरल कियानी भी आगे बढ़े थे.
बाजवा इस समय पाकिस्तानी सेना मुख्यालय जीएचक्यू में जिस पद पर हैं, उसी पद पर पहले राहील शरीफ भी थे. यहां रहते हुए पाकिस्तानी सेना की सबसे बड़ी विंग 10 कॉर्प्स को कंट्रोल किया जाता है, जिसके जिम्मे एलओसी की सुरक्षा है.
पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, कश्मीर और आतंकवाद से जुड़े मसलों पर उनका अनुभव काफी ज्यादा है. वह संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के तहत अफ्रीकी देश कॉन्गो में काम कर चुके हैं. इस दौरान उनके साथ पूर्व भारतीय सेना प्रमुख जनरल बिक्रम सिंह भी...
आखिर कई हफ्तों से चल रही कयासबाजी को खत्म करते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने नया आर्मी चीफ चुन ही लिया. शरीफ ने लेफ्टिनेंट जनरल कमर जावेद बाजवा को इस पद के लिए चुना है. बाजवा 29 नवंबर को रिटायर होने वाले मौजूदा सेना प्रमुख रहिल शरीफ की जगह लेंगे और वो पाक सेना के 16वें मुखिया होंगे. हालांकि, इस रेस में पहले 4 नाम थे, लेकिन बाजवा ने उन सभी को पीछे छोड़ते हुए पाक ऑर्मी चीफ की कुर्सी अपने नाम कर ली. बाजवा अगस्त 2017 में रिटायर होंगे. सूत्रों के अनुसार नए सेना प्रमुख का चयन करने में विदेश नीति के साथ ही भारत के साथ संबंध जैसे विषय पर भी प्रमुखता से ध्यान दिया गया है.
लेफ्टिनेंट जनरल कमर जावेद बाजवा |
पाकिस्तान का डार्क हॉर्स...
लेफ्टिनेंट जनरल कमर जावेद बाजवा को पाकिस्तान की सेना और राजनीति में डार्क हॉर्स माना जाता है. बाजवा को ये उपाधी इसलिए मिली है क्योंकि उनका संबंध क्वेटा के इंफेन्ट्री स्कूल और बलोच रेजीमेंट से है. इसी रेजीमेंट से पूर्व सेना प्रमुख जनरल याह्या खान, जनरल असलम बेग और जनरल कियानी भी आगे बढ़े थे.
बाजवा इस समय पाकिस्तानी सेना मुख्यालय जीएचक्यू में जिस पद पर हैं, उसी पद पर पहले राहील शरीफ भी थे. यहां रहते हुए पाकिस्तानी सेना की सबसे बड़ी विंग 10 कॉर्प्स को कंट्रोल किया जाता है, जिसके जिम्मे एलओसी की सुरक्षा है.
पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, कश्मीर और आतंकवाद से जुड़े मसलों पर उनका अनुभव काफी ज्यादा है. वह संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के तहत अफ्रीकी देश कॉन्गो में काम कर चुके हैं. इस दौरान उनके साथ पूर्व भारतीय सेना प्रमुख जनरल बिक्रम सिंह भी थे.
ये भी थे रेस में...
जनरल राहिल शरीफ की जगह लेने के लिए चार जनरल के नाम पर विचार हो रहा था. इनमें सबसे वरिष्ठ चीफ ऑफ जनरल स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल जुबैर हयात. मुल्तान कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल इशफाक नदीम अहमद, बहावलपुर कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जावेद इकबाल रामडे और प्रशिक्षण तथा आकलन के महानिरीक्षक लेफ्टिनेंट जनरल कमर जावेद बाजवा शामिल थे. चारों 1980 बैच के हैं और बलूच रेजीमेंट से ताल्लुक़ रखते थे.
लेफ्टिनेंट जनरल कमर जावेद बाजवा |
कैसे होती है नियुक्ति?
पाकिस्तान में सेना प्रमुख चुनने के लिए प्रधानमंत्री के पास जनरल हेडक्वार्टर से शीर्ष सैन्य अधिकारियों के डोजियर भेजे जाते हैं. वहां के रक्षा मंत्री इस डोजियर को हेडक्वाटर से मंगाकर पीएम को भेजते हैं. नए सेना प्रमुख के नाम का अनुमोदन रक्षा मंत्री भी कर सकते हैं. इसके बाद प्रधानमंत्री सेवानिवृत्त हो रहे सेना प्रमुख से विचार-विमर्श कर अंतिम फैसला लेते हैं.
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भारत के लिए अच्छा?
बाजवा की नियुक्ति को भारत के लिए सकारात्मक तौर पर देखा जा सकता है क्योंकि आतंकवाद को लेकर उनका रुख काफी सख्त रहा है. कई मौकों पर वह कह चुके हैं कि चरमपंथ का खतरा भारत के मुकाबले पाकिस्तान के लिए ज्यादा है. बाजवा क्वेटा के इन्फैंट्री स्कूल में भी काम कर चुके हैं. उनके साथ काम करने वाले लोगों का कहना है कि उन्हें सुर्खियों में बने रहने की आदत नहीं है और वह सैनिकों के साथ पूरी तरह जुड़े रहते हैं.
बाजवा के सामने चुनौतियाँ...
भारत और पाकिस्तान के लगातार खराब होते रिश्ते और पाकिस्तान की तरफ से बराबर संघर्ष विराम उल्लंघन पाकिस्तान के लिए नई मुश्किलें खड़ी कर रहा है. ऐसे समय में जब दोनों देशों के बीच रिश्ते तल्ख हैं तो बाजवा का आना कई मायनों मे चुनौती भरा होगा.
बाजवा के समक्ष चुनौती होगी कि वह पाकिस्तानी सेना की भारत विरोधी गतिविधियों पर काबू पाएं. अब देखना होगा कि आतंकी संगठनों पर कार्रवाई को लेकर सरकार और सेना के बीच समन्वय में बाजवा कैसी भूमिका निभा सकते हैं?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.