भारत सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में कोरोना महामारी के प्रकोप से अब तक 5.22 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. लेकिन, हाल ही में अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO कोरोना से हुई मौतों के 'सही आंकड़े' दुनिया के सामने लाना चाहता है. लेकिन, भारत इस रिपोर्ट पर अड़ंगा लगा रहा है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी न्यूयॉर्क टाइम्स की इस रिपोर्ट को शेयर करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है. राहुल गांधी ने ट्वीट किया है कि 'मोदी जी ना सच बोलते हैं, ना बोलने देते हैं. वो तो अब भी झूठ बोलते हैं कि ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा. मैंने पहले भी कहा था - कोविड में सरकार की लापरवाहियों से 5 लाख नहीं, 40 लाख भारतीयों की मौत हुई. फर्ज निभाईये, मोदी जी - हर पीड़ित परिवार को ₹4 लाख का मुआवजा दीजिए.'
बताना जरूरी है कि WHO की ये रिपोर्ट अभी तक जारी नहीं हुई है. और, इस रिपोर्ट में 2021 के अंत तक कोविड-19 से हुई मौतों के आंकड़े शामिल किए गए हैं. न्यूयॉर्क टाइम्स का दावा है कि यूएन हेल्थ एजेंसी की इस रिपोर्ट के मुताबिक, पूरी दुनिया में कोरोना से 15 मिलियन यानी 1.5 करोड़ मौते हुई हैं. जो दुनिया के अलग-अलग देशों की ओर से अब तक जारी किए गए आंकड़ों से दो गुने से ज्यादा है. वहीं, इस रिपोर्ट में भारत में कोविड-19 से हुई मौतों का आंकड़ा 40 लाख के करीब बताया जा रहा है. जो भारत सरकार की ओर से जारी आधिकारिक आंकड़ों से 8 गुना ज्यादा है. दावा किया जा रहा है कि इस साल की शुरुआत में ही रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना था. लेकिन, भारत सरकार की ओर से रिपोर्ट जारी करने की कोशिशों में बाधा डाली जा रही है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर भारत क्यों सवाल खड़े कर रहा है?
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट को शेयर करते हुए राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है.
कोविड-19 से हुई मौतों पर क्या है WHO का फॉर्मूला?
यूएन हेल्थ एजेंसी WHO ने इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए सरकारी आंकड़ों के साथ नई जानकारियों को जोड़ा है. जो स्थानीय लोगों और घरों के बीच सर्वे में की गई बातचीत से निकाली गई हैं. इन सर्वे में जानने की कोशिश की गई है कि कोरोना महामारी की वजह से हुई कोई भी न छूटे. इस रिपोर्ट में आंकड़ों का बढ़ना स्वाभाविक है. क्योंकि, इसमें कोविड-19 से हुई अप्रत्यक्ष मौतों को भी जोड़ा गया है. उदाहरण के तौर पर, इस रिपोर्ट में उन लोगों की मौतों के आंकड़े को भी जोड़ा है, जो कोरोना महामारी के दौरान स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी का शिकार बने थे. आसान शब्दों में कहा जाए, तो ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों के आंकड़े भी इस रिपोर्ट में शामिल किए गए हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस रिपोर्ट को बनाने के लिए कई तरह के विशेषज्ञों की टीम बनाई थी. जिनमें डाटा साइंटिस्ट, आंकड़ों के विशेषज्ञ, पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट जैसे कई लोग शामिल थे.
भारत क्यों कर लगा रहा है रिपोर्ट पर प्रश्नचिन्ह?
भारत सरकार ने इस मामले में फरवरी में ही बयान जारी कर कहा था कि इस रिपोर्ट को तैयार करने में इस्तेमाल किया गया फॉर्मूला भारत जैसी बड़ी जनसंख्या वाले देश के लिए सही नहीं है. हालांकि, भारत सरकार की ओर से कहा गया था कि छोटे देशों के लिए ये फॉर्मूला सही हो सकता है. लेकिन, भारत के हिसाब से यह फॉर्मूला कारगर नहीं है. भारत की ओर से कहा गया था कि इतने बड़े जनसंख्या वाले देश में 'कुछ लोगों' से बातचीत कर मौतों का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है. वैसे, भारत की जनसंख्या 130 करोड़ से ज्यादा है. और, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना महामारी से हुई मौतों का अनुमान लगाने के लिए कितनों लोगों से बातचीत की होगी, इसका अंदाजा लगाया जाना बहुत मुश्किल नहीं है. वहीं, भारत की ओर से ये भी स्पष्ट कर दिया गया है कि उसकी आपत्ति नतीजों पर नही है. बल्कि, इन नतीजों पर पहुंचने के लिए अपनाए गए फॉर्मूला पर है.
क्यों सवालों के घेरे में हैं ऑक्सीजन से हुई मौतों के आंकड़े?
भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने भयानक तबाही मचाई थी. इस दौरान केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर कोविड-19 से हुई मौतों के साथ ही ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों के आंकड़े छिपाने के आरोप विपक्षी दलों की ओर से लगाए गए थे. लेकिन, तमाम भाजपा शासित राज्यों की तरह ही जिन राज्यों में विपक्षी दलों की सरकार है. उन राज्य सरकारों ने भी केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को उपलब्ध कराए गए आंकड़ों में ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों का जिक्र नहीं किया था. आसान शब्दों में कहा जाए, तो कोरोना से हुई मौतों को लेकर आधिकारिक तौर से जारी किए गए आंकड़ों में ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों का जिक्र नही है. हालांकि, कोरोना की दूसरी लहर के दौरान अलग-अलग राज्यों से ऑक्सीजन की कमी के कई मामले सामने आए थे. लेकिन, राज्य सरकारों ने इसे अपने आंकड़ों में नहीं जोड़ा. और, केंद्र सरकार को दी गई रिपोर्ट में इसका जिक्र नहीं किया.
इसी साल फरवरी में केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार ने राज्यसभा में इस बारे में जानकारी देते हुए कहा था कि भारत सरकार को राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा रिपोर्ट किए गए कुल मामलों और मौतों का डाटा मिला है. लेकिन, किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश ने ऑक्सीजन की कमी से किसी भी मरीज की मौत होने की पुष्टि नहीं की है. वैसे, नरेंद्र मोदी सरकार पर कोरोना महामारी को लेकर लगने वाले आरोपों को काफी हद तक राजनीतिक ही माना जा सकता है. क्योंकि, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, शिवसेना जैसे सियासी दलों की सरकारों ने ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों के आंकड़े मोदी सरकार को उपलब्ध नहीं कराए. वैसे, न्यूयॉर्क टाइम्स की ओर से भारत पर WHO की रिपोर्ट को रोकने के दावे भी आरोप जैसे ही हैं. क्योंकि, बीते दिनों 'भारत बंद' को लेकर न्यूयॉर्क टाइम्स की बहकी-बहकी रिपोर्टिंग लोगों ने पहले से ही देख रखी है.
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