कोलकाता की एक अदालत ने रेप के मामले में काफी तेजी से कार्रवाई करते हुए सिर्फ 5 दिन के अंदर ही दोषी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. ये कार्रवाई किसी मिसाल से कम नहीं है. इस अदालत ने पोक्सो (POCSO) एक्ट के तहत 32 साल के एक युवक को ये सजा दी है. जो भी इस मामले के बारे में सुन रहा है वह लड़की के लिए सहानुभूति तो दिखा ही रहा है, लेकिन ये सोचकर हैरान भी हो रहा है कि इतनी जल्दी सजा कैसे सुना दी गई? वैसे, लोगों का हैरान होना लाजमी भी है, क्योंकि अधिकतर मामलों में तो लोग सिर्फ कोर्ट के चक्कर ही काटते रह जाते हैं. तारीखें तो मिलती हैं, लेकिन इंसाफ नहीं मिलता.
पिछले कई दिनों से मीडिया में एक ही खबर छाई हुई है, उन्नाव रेप केस. ये मामला आज का नहीं है, काफी पुराना है. आरोपी विधायक कुलदीप सेंगर रसूखदार है तो काफी कुछ उसके हिसाब से तोड़ा-मरोड़ा गया है. इंसाफ के चक्कर में इधर-उधर भाग रही पीड़िता के पिता की पहले ही पुलिस हिरासत में संदिग्ध मौत हो चुकी है, जिस पर सवाल उठ रहे हैं और अब चाची और चाची की बहन की भी मौत हो गई है. खुद पीड़िता भी जिंदगी-मौत के बीच झूल रही है. अब तो मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है, लेकिन अभी तक इंसाफ नहीं मिल सका है. तो फिर कोलकाता के मामले में ऐसा क्या खास है, जो एफआईआर दर्ज होने के महज 5 दिन के अंदर ही कोर्ट ने इंसाफ कर दिया?
पहले जानिए कोलकाता का मामला क्या है
इस मामले में पीड़िता नाबालिग है, जो एक 32 वर्षीय युवक के साथ प्यार में पड़ गई थी. युवक ने पीड़िता से शादी का झूठा वादा किया और उसे बहला-फुसला कर उसके साथ की बार शारीरिक संबंध बनाए. हाल ही में पीड़िता को यह पता चला कि वह गर्भवती हो चुकी है तो...
कोलकाता की एक अदालत ने रेप के मामले में काफी तेजी से कार्रवाई करते हुए सिर्फ 5 दिन के अंदर ही दोषी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. ये कार्रवाई किसी मिसाल से कम नहीं है. इस अदालत ने पोक्सो (POCSO) एक्ट के तहत 32 साल के एक युवक को ये सजा दी है. जो भी इस मामले के बारे में सुन रहा है वह लड़की के लिए सहानुभूति तो दिखा ही रहा है, लेकिन ये सोचकर हैरान भी हो रहा है कि इतनी जल्दी सजा कैसे सुना दी गई? वैसे, लोगों का हैरान होना लाजमी भी है, क्योंकि अधिकतर मामलों में तो लोग सिर्फ कोर्ट के चक्कर ही काटते रह जाते हैं. तारीखें तो मिलती हैं, लेकिन इंसाफ नहीं मिलता.
पिछले कई दिनों से मीडिया में एक ही खबर छाई हुई है, उन्नाव रेप केस. ये मामला आज का नहीं है, काफी पुराना है. आरोपी विधायक कुलदीप सेंगर रसूखदार है तो काफी कुछ उसके हिसाब से तोड़ा-मरोड़ा गया है. इंसाफ के चक्कर में इधर-उधर भाग रही पीड़िता के पिता की पहले ही पुलिस हिरासत में संदिग्ध मौत हो चुकी है, जिस पर सवाल उठ रहे हैं और अब चाची और चाची की बहन की भी मौत हो गई है. खुद पीड़िता भी जिंदगी-मौत के बीच झूल रही है. अब तो मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है, लेकिन अभी तक इंसाफ नहीं मिल सका है. तो फिर कोलकाता के मामले में ऐसा क्या खास है, जो एफआईआर दर्ज होने के महज 5 दिन के अंदर ही कोर्ट ने इंसाफ कर दिया?
पहले जानिए कोलकाता का मामला क्या है
इस मामले में पीड़िता नाबालिग है, जो एक 32 वर्षीय युवक के साथ प्यार में पड़ गई थी. युवक ने पीड़िता से शादी का झूठा वादा किया और उसे बहला-फुसला कर उसके साथ की बार शारीरिक संबंध बनाए. हाल ही में पीड़िता को यह पता चला कि वह गर्भवती हो चुकी है तो उसने उस युवक के साथ संबंध बनाने की बात कुबूल कर ली. जब युवक की तलाश की गई तो वह फरार हो गया, जिसके बाद मामला थाने में जा पहुंचा. पुलिस ने आरोपी युवक को ढूंढ़ निकाला और कोर्ट के सामने पेश किया. पोक्सो एक्ट के तहत नाबालिग से शादी का झांसा देकर दुष्कर्म करने के लिए उसे सजा दी गई है. कोर्ट ने साफ कर दिया कि नाबालिग से संबंध बनाने वाले को बख्शा नहीं जाएगा. रहम की अपील को भी खारिज किया गया और सश्रम आजीवन कारावास दे दिया. इस मामले में 24 जुलाई को एफआईआर दर्ज हुई थी और उसके बाद 26 जुलाई को चार्जशीट दायर की गई थी और महज 5 दिन में ही आरोपी को सजा सुना दी गई.
कोर्ट ने सिर्फ पीड़िता को इंसाफ ही नहीं दिया, बल्कि मुआवजा भी दिया है. सजा के तौर पर आरोपी को 2 लाख रुपए का जुर्माना देना है, जिसका 90 फीसदी हिस्सा पीड़िता को दिया जाएगा. अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह लड़की को मुआवजे के तौर पर 5 लाख रुपये दे ताकि उसका पुनर्वास किया जा सके.
हर मामले में कोलकाता जैसा क्यों नहीं होता?
कोलकाता के इस मामले में जितनी तेजी से कार्रवाई करते हुए आरोपी को सजा सुनाई गई है, वैसा ही हर मामले में क्यों नहीं होता? ये मामला एक बात तो साफ करता है कि अगर सबूत हों तो कार्रवाई तुरंत की जा सकती है, बशर्ते ऐसे मामलों से जुड़े अधिकारियों और पुलिस वालों की मंशा और नीयत साफ हो. उन्नाव रेप केस में भी नाबालिग से रेप का मामला है, लेकिन आरोपी रसूखदार होने के चलते उस पर न तो अधिकारी हाथ डाल रहे थे ना ही पुलिस. यहां तक कि भाजपा ने भी उसे 1 जुलाई को पार्टी से निकाला है, जबकि वह 2018 से ही जेल में है और केस चल रहा है.
उज्जैन से भी आया था ऐसा मामला
पिछले साल अगस्त महीने में मध्य प्रदेश के उज्जैन से भी एक ऐसा ही मामला सामने आया था. इस मामले में 15 अगस्त को आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था और 16 अगस्त को उसे गिरफ्तार कर लिया गया. 20 अगस्त को पुलिस ने चार्जशीट दायर की और उसी दिन 6 घंटे में ही आरोपी को सजा सुना दी गई. इस मामले में आरोपी 14 साल का नाबालिग बच्चा था, जिसे जुवेनाइल कोर्ट ने 2 साल की सजा सुनाई थी.
देश में आए दिन रेप की जो घटनाएं सामने आती हैं, उनमें अक्सर ही आरोपी भी पकड़ा जाता है. यहां तक कि मासूम बच्चियों से रेप करने वाले कई आरोपियों के खिलाफ तो सीसीटीवी से लेकर मेडिकल टेस्ट तक के सबूत मिल जाते हैं, लेकिन जब बात आती है इंसाफ देने की तो शुरू होता है तारीखों का खेल. सवाल यही है कि जब सारे सबूत सामने होते हैं तो फिर आरोपी को सजा सुनाने में देरी क्यों होती है? फास्ट ट्रैक अदालतों को बातें तो कई सालों से हो रही हैं, लेकिन रेप जैसे मामलों में भी इंसाफ में देरी होती है. और यही वजह है कि अपराधियों के हौंसले बुलंद होते जाते हैं.
ये भी पढ़ें-
उन्नाव रेप केस: भारत में स्त्रियां देवी तो हो सकती हैं मगर इंसान नहीं
रिश्तों की हकीकत बता रहा है बेवफाई पर किया गया ये शोध
भारत में एक अविवाहित महिला के अबॉर्शन के मायने
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.