अब से दो साल पहले गोरखपुर के अस्पताल में बच्चों की मौतों से जो मातम पूरे देश में फैला था, वही दुख दो साल बाद फिर लौटा है लेकिन इस बार मरने वाले बच्चे कोटा के हैं(Kota infant death). मौत की जगह भले ही अस्पताल हों और कारण बीमारी, लेकिन इन मौतों का कुसूरवार अब भी प्रशासन ही नजर आता है. जाहिर है कोटा के अस्पताल में मरने वाले मासूमों की मौत पर होने वाली राजनीति भी आज भी उतनी ही घिनौनी है.
गोरखपुर में बच्चों की मौत को तब भी सामान्य मान लिया गया था और आज भी बच्चों की मौत की कीमत बताई जा रही है. पिछले एक महीने में कोटा के सबसे बड़े बच्चों के अस्पताल में अब तक 104 बच्चे अपनी जान गंवा चुके हैं.
बच्चों की मौतों पर शर्मनाक बयान जारी हैं
अस्पताल प्रशासन, राज्य प्रसासन इन मौतों पर जो तर्क दे रहा है वो भी कम शर्मनाक नहीं हैं. राजस्थान के मुख्य मंत्री अशोक गहलोत से जब कोटा में मरनेवाले बच्चों की मौत पर जवाब मांगा गया तो उन्होंने ठीक वैसा ही जुमला बोल दिया जो गोरखपुर मामले में कहा गया था कि अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं. अशोक गहलोत ने कहा 'पूरे देश के हर अस्पताल में 4-5 मौतें प्रतिदिन होती हैं.' बता रहे हैं कि बीजेपी की सरकार थी तो 1000 बच्चे मरते थे और हमारे समय में 900 बच्चे मर रहे हैं. एक मुख्यमंत्री के मुंह से निकला हुआ ये एक बेहद शर्मनाक बयान था.
104 बच्चों की मौतों पर जब आलाकमान के ऐसे हाल हों तो फिर अस्पताल प्रशासन क्यों न इसे नॉर्मल कहें. सुनिए कोटा के जेके लोन अस्पताल में बच्चों के इंचार्ज अमृत लाल बेरवा ने क्या कहा-
बच्चों की मौत के मामले में गहलोत सरकार की संवेदनहीनता का सिलसिला जारी है. तीन सप्ताह...
अब से दो साल पहले गोरखपुर के अस्पताल में बच्चों की मौतों से जो मातम पूरे देश में फैला था, वही दुख दो साल बाद फिर लौटा है लेकिन इस बार मरने वाले बच्चे कोटा के हैं(Kota infant death). मौत की जगह भले ही अस्पताल हों और कारण बीमारी, लेकिन इन मौतों का कुसूरवार अब भी प्रशासन ही नजर आता है. जाहिर है कोटा के अस्पताल में मरने वाले मासूमों की मौत पर होने वाली राजनीति भी आज भी उतनी ही घिनौनी है.
गोरखपुर में बच्चों की मौत को तब भी सामान्य मान लिया गया था और आज भी बच्चों की मौत की कीमत बताई जा रही है. पिछले एक महीने में कोटा के सबसे बड़े बच्चों के अस्पताल में अब तक 104 बच्चे अपनी जान गंवा चुके हैं.
बच्चों की मौतों पर शर्मनाक बयान जारी हैं
अस्पताल प्रशासन, राज्य प्रसासन इन मौतों पर जो तर्क दे रहा है वो भी कम शर्मनाक नहीं हैं. राजस्थान के मुख्य मंत्री अशोक गहलोत से जब कोटा में मरनेवाले बच्चों की मौत पर जवाब मांगा गया तो उन्होंने ठीक वैसा ही जुमला बोल दिया जो गोरखपुर मामले में कहा गया था कि अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं. अशोक गहलोत ने कहा 'पूरे देश के हर अस्पताल में 4-5 मौतें प्रतिदिन होती हैं.' बता रहे हैं कि बीजेपी की सरकार थी तो 1000 बच्चे मरते थे और हमारे समय में 900 बच्चे मर रहे हैं. एक मुख्यमंत्री के मुंह से निकला हुआ ये एक बेहद शर्मनाक बयान था.
104 बच्चों की मौतों पर जब आलाकमान के ऐसे हाल हों तो फिर अस्पताल प्रशासन क्यों न इसे नॉर्मल कहें. सुनिए कोटा के जेके लोन अस्पताल में बच्चों के इंचार्ज अमृत लाल बेरवा ने क्या कहा-
बच्चों की मौत के मामले में गहलोत सरकार की संवेदनहीनता का सिलसिला जारी है. तीन सप्ताह बाद स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा जेके लोन हॉस्पिटल पहुंचे तो उनके स्वागत के लिए अस्पताल के ठेकेदार ने कालीन बिछा दिया. हालांकि, बाद में कालीन को हटा दिया गया था.
बच्चों का लाशों पर हो रही है राजनीति
अब सरकार की असंवेदनशीलता हर कदम पर दिखे तो फिर विपक्ष कैसे चुप रहे. सभी विपक्षी पार्टियां राजस्थान की गहलोत सरकार को हर मौके पर घेरते हुए इस मामले पर अपनी संवेदनशीलता दिखा रही हैं. राजस्थान के भाजपा अध्यक्ष ने मांग की है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को नैतिक आधार पर कोटा में बच्चों की मौत को लेकर इस्तीफा दे देना चाहिए. तो वहीं मायावती इस मामले पर कांग्रेस की प्रियंका गांधी पर निशाना साध रही हैं.
और करें भी क्यों न, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कह रहे हैं कि बच्चे तो अस्पताल में मरते ही हैं, जबकि ये वही अशोक गेहलोत हैं जिन्होंने गोरखपुर के अस्पताल में बच्चों की मौत पर सिस्टम के फेल्योर की बात कही थी. आज जब सिस्टम में ये खुद हैं तो बच्चों की मौत की कीमत नहीं रह गई, बच्चे तो मरते ही हैं.
गोरखपुर में बच्चों की मौत पर जो कांग्रेस नेता बढ़-चढ़कर बयान दे रहे थे, अब वे कोटा का मामला दांय-बायं कर रहे हैं. कोटा के उस अस्पताल के हालात कैसे हैं और वहां पर किस तरह की राजनीति की जा रही है वो आप यहां देख सकते हैं.
घाटे में सिर्फ पीड़ित रहते हैं
एक ही अस्पताल में एक ही महीने में सौ से ज्यादा बच्चों की मौत होना बहुत बड़ी बात है. किसी एक बच्चे की मौत का असर उसकी मां पर क्या होता है, इसकी संवेदना सरकारों में कब जागेगी? आखिर इतनी बड़ी तादाद में बच्चों के बीमार पड़ने और मारे जाने को सहज कैसे कहा जा सकता है. अस्पतालों में सुविधाएं नहीं हैं, साफ सफाई की व्यवस्था नहीं है गरीब अपने बच्चों को सरकारी असपताल न ले जाएं तो कहां लेकर जाएं. ये अस्पताल खौफ का दूसरा नाम बनते जा रहे हैं जहां माता-पिता न चाहते हुए भी अपने कलेजे के टुकड़ों को लेकर जाते हैं, और जेहन में सिर्फ यही सवाल तौरता रहता है कि बच्चा जिंदा लौटेगा या नहीं. ये संवेदनहीन सरकारें उन बच्चों के साथ-साथ इनके माता-पिता की भी दोषी हैं.
गोरखपुर का मामला जब 2017 में सुर्खी बना था, उसके बाद प्रशासन के इंतजामों से बच्चों की मौत में बेतहाशा कमी आई. यानी कुछ ऐसा था जिसे प्रशासन की लापरवाही या अनदेखी कहा जा सकता है. गहलोत का ये कहना कि बीजेपी की सरकार के दौरान 1000 बच्चे मरते थे और कांग्रेस सरकार में 900 बच्चे मर रहे हैं, ये इनके लिए भले ही कंपटीशन हो लेकिन मौत सिर्फ मौत होती है. जब तक राजस्थान सरकार अपनी भूल नहीं मानेगी, बच्चों की मौत का मामला एक सामान्य आंकड़ा बना रहेगा.
ये भी पढ़ें-
एक महीने में एक ही अस्पताल से 91 नवजात बच्चों की लाशें बाहर आना महज 'आंकड़ा' नहीं!
बच्चों की मौत महीना देखकर नहीं आती मंत्री जी
काश किसी को मुजफ्फरपुर के पिताओं का दर्द भी नजर आये
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.