आम आदमी पार्टी के किसान सम्मेलन में कुमार विश्वास वैसे ही छा गये जैसे राष्ट्रपति चुनाव पर विपक्षी नेताओं की मीटिंग में किसानों का मुद्दा. जब वो सम्मेलन में पहुंचे तो मौका मिलते ही अभिमन्यु वाली कविता से अपनी बात आगे बढ़ाते हुए खर-दूषण के माध्यम से खरी खोटी सबको सुनाते भी देर न की.
अभिमन्यु से लेकर खर-दूषण तक
दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित किसान सम्मेलन में आम आदमी पार्टी के तमाम नेता जुटे थे. कुछ ऐसे भी थे जिन्हें यकीन नहीं था कि कुमार भी सम्मेलन में शिरकत करेंगे - लेकिन तभी उन्होंने सरप्राइज दे दिया. अचानक पहुंचे और जब माइक मिला तो उसी अंदाज में बोला जिस अंदाज में अभिमन्यु वाली कविता पोस्ट की थी.
बगैर किसी का नाम लिये, कुमार विश्वास ने कहा, 'जब भी कोई यज्ञ होता है कोई न कोई खर-दूषण आता ही है. पिछले चुनाव में हार की वजह क्या है ये कार्यकर्ता भी जानते हैं, सब जानते हैं. मैं पहले भी कह चुका हूं कि ये वो पार्टी नहीं है जिसमें 5 लोग महल और बंगले वाली राजनीति करते हैं. इनको भगवान जवाब दे रहे हैं तो मैं क्या बोलूं. ये पार्टी वही है जो जंतर मंतर से शुरू हुई थी.'
विरोध चालू है
कुमार विश्वास के खिलाफ आप के दफ्तर के बाहर पोस्टर तो लग ही चुके थे, जिन पर लिखा था, ‘भाजपा का यार है, कवि नहीं गद्दार है...' पोस्टर में आप नेता दिलीप पांडे के प्रति आभार भी व्यक्त किया गया था - 'कुमार विश्वास का काला सच...' खुल कर बताने के लिए.
दरअसल, दिलीप पांडे ने ट्विटर पर कुमार से पूछा था, ‘भैया, आप कांग्रेसियों को खूब गाली देते हो, लेकिन कहते हो कि राजस्थान में वसुंधरा के खिलाफ नहीं बोलेंगे? ऐसा क्यों?' आपके दूसरे...
आम आदमी पार्टी के किसान सम्मेलन में कुमार विश्वास वैसे ही छा गये जैसे राष्ट्रपति चुनाव पर विपक्षी नेताओं की मीटिंग में किसानों का मुद्दा. जब वो सम्मेलन में पहुंचे तो मौका मिलते ही अभिमन्यु वाली कविता से अपनी बात आगे बढ़ाते हुए खर-दूषण के माध्यम से खरी खोटी सबको सुनाते भी देर न की.
अभिमन्यु से लेकर खर-दूषण तक
दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित किसान सम्मेलन में आम आदमी पार्टी के तमाम नेता जुटे थे. कुछ ऐसे भी थे जिन्हें यकीन नहीं था कि कुमार भी सम्मेलन में शिरकत करेंगे - लेकिन तभी उन्होंने सरप्राइज दे दिया. अचानक पहुंचे और जब माइक मिला तो उसी अंदाज में बोला जिस अंदाज में अभिमन्यु वाली कविता पोस्ट की थी.
बगैर किसी का नाम लिये, कुमार विश्वास ने कहा, 'जब भी कोई यज्ञ होता है कोई न कोई खर-दूषण आता ही है. पिछले चुनाव में हार की वजह क्या है ये कार्यकर्ता भी जानते हैं, सब जानते हैं. मैं पहले भी कह चुका हूं कि ये वो पार्टी नहीं है जिसमें 5 लोग महल और बंगले वाली राजनीति करते हैं. इनको भगवान जवाब दे रहे हैं तो मैं क्या बोलूं. ये पार्टी वही है जो जंतर मंतर से शुरू हुई थी.'
विरोध चालू है
कुमार विश्वास के खिलाफ आप के दफ्तर के बाहर पोस्टर तो लग ही चुके थे, जिन पर लिखा था, ‘भाजपा का यार है, कवि नहीं गद्दार है...' पोस्टर में आप नेता दिलीप पांडे के प्रति आभार भी व्यक्त किया गया था - 'कुमार विश्वास का काला सच...' खुल कर बताने के लिए.
दरअसल, दिलीप पांडे ने ट्विटर पर कुमार से पूछा था, ‘भैया, आप कांग्रेसियों को खूब गाली देते हो, लेकिन कहते हो कि राजस्थान में वसुंधरा के खिलाफ नहीं बोलेंगे? ऐसा क्यों?' आपके दूसरे नेताओं ने भी कुमार को टारगेट करते हुए ट्वीट किये.
पोस्टर में गद्दार कहे जाने से पहले आप विधायक अमानतुल्ला खान कुमार विश्वास को आरएसएस का एजेंट बता चुके हैं. ऐसा उन्होंने तब कहा जब आप नेतृत्व ने गोवा और पंजाब में पार्टी की हार के लिए ईवीएम को जिम्मेदार ठहराया और उस पर कुमार विश्वास ने आत्मविश्लेषण की सलाह दे डाली. अमानतुल्ला के बयान पर कुमार ने कड़ा ऐतराज किया तो उन्हें सस्पेंड कर दिया गया. लेकिन ये निलंबन बस कहने भर को था. वास्तव में तो अमानतुल्ला को इनाम पर इनाम दिये गये.
हाशिये पर भी कब तक?
अरसे से एक कामयाब कवि के रूप में ख्याति हासिल कर चुके कुमार विश्वास का सियासत में अनुभव बिलकुल अलग रहा है. रामलीला आंदोलन के बहुत बाद तक स्थिति काफी बेहतर रही, लेकिन अकेलेपन का अहसास उन्हें पहली बार अमेठी में हुआ. 2014 में वो अमेठी लोक सभा सीट से चुनाव लड़ रहे थे. आप के कई नेताओं को तो ऐसा लगा जैसे केजरीवाल उनके लिए प्रचार करने भी नहीं जाने वाले. हालांकि, केजरीवाल ने अमेठी पहुंच कर सबको गलत भी साबित कर दिया.
देखा गया कि आप से योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को निकाले जाने के बाद जो नेता खुद को उपेक्षित महसूस करते कुमार विश्वास से जुड़ने लगे. आप में एक तरफ केजरीवाल और उनकी कोटरी तो दूसरी तरफ कुमार विश्वास के प्रशंसकों की भी फौज खड़ी होने लगी.
कपिल मिश्रा द्वारा केजरीवाल पर दो करोड़ कैश लेने का आरोप लगाने के बाद जो साजिश की खबर आई उसमें कुमार विश्वास का भी नाम आया. चर्चा रही कि तख्तापलट की साजिश में कपिल मिश्रा दिल्ली के सीएम बनते और कुमार विश्वास को आप की कमान मिलती. बताते हैं कि कुमार विश्वास का पत्ता तो उसी वक्त साफ हो चुका था जब सरकार के तख्ता पलट की खबर लीक हो गयी. लेकिन पुराने संबंधों के चलते केजरीवाल ने उन्हें राजस्थान का प्रभारी बनाकर मामला उस वक्त टाल दिया.
कविता के नाम पर कुमार विश्वास महफिल चाहे जितनी बड़ी सजा लें, बात राजनीति की आती है तो केजरीवाल के आगे कहीं नहीं टिकते. यही वजह है कि कुमार का समर्थन करने वाले विधायक भी केजरीवाल के पीछे खड़े हो गये हैं, लिहाजा वो पूरी तरह हाशिये पर पहुंच गये हैं. वक्त का पहिया घूमता जरूर है, लेकिन कुमार केजरीवाल की तरह करिश्माई नेता तो हैं नहीं कि हवा का रुख भी बदलने की माद्दा रखते हों. राजनीति में हर कदम दूरगामी सोच के साथ उठाये जाते हैं, लेकिन ऊपर से तो ऐसा ही लग रहा है कि कुमार विश्वास के भी काउंड डाउन शुरू हो चुके हैं.
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