कोरोना वायरस के डर को लेकर लॉकडाउन (Coronavirus Lockdown) बढ़ा. बीमारी भी रोज़ नए आँकड़ों के साथ बढ़ रही है. एक भी दिन ऐसा नहीं जा रहा जब नए मरीज़ ना बन रहे हों. एक तरफ़ जहाँ गरीब रोज़ी रोटी की चिंता में लगा है. अपने घर से दूर है. पुलों के नीची, फुटपाथ पर, रेल की पटरी पर अपना जीवन गुज़ारने पर मजबूर है. वहीं हम जैसे लोग पर्याप्त राशन-पानी के साथ घरों में कैद हैं. लेकिन हम सबसे भी ऊपर एक तबका है जिसे प्रिव्लेज़ मिलने वाला तबका कहा जाता है. ये तबका सबसे ज्यादा बेगैरत और शातिर है. इसे ना तो उन मजदूरों की चिंता है ना ही उन लोगों की जो घरों में कैद हैं. इसे उनकी भी परवाह नहीं जो अपने प्रियजनों के मरने पर भी घर से नहीं निकल पाए उनकी अंत्येष्टि में नहीं जा पाए.
मेरी नानी गुज़र गईं लेकिन लॉकडाउन की वजह से मैं उनकी अंतिम संस्कार या तेरहवीं में शामिल नहीं हो पाईं. घर वालों ने भी क्रिया-करम उस तरह नहीं कर पाया जिस तरह किया जाना चाहिए था. क्योंकि हम मध्यमवर्गीय लोग सरकार के बनाए सारे नियमों को पालने के लिए बाध्य हैं. हमारे लिए ना तो कोई सहूलियत है ना छूट है. उल्टा यदि कोई सड़कों पर दिख भी जाए तो उसे पुलिस के डंडे खाने पड़ते हैं. हमसे कहा गया है कि यह हमारी भलाई के लिए ही है. हमें बीमारी से बचाने के लिए ही है. इसलिए हम घरों में बैठे हैं. लेकिन ये सभी बंधन सरकार चलाने वालों के लिए या नेताओं के लिए नहीं हैं. तभी तो लॉकडाउन के बीच कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री अपने बेटे की शादी 60 लोगों के जमावड़े के साथ करते हैं. एक तरफ जहाँ पाँच लोगों का इकठ्ठा होना भी मना है वहाँ 60 लोग इकट्ठे होते हैं. शादी होती है, शहनाई बजती है. रस्में होती हैं और सरकारी नियमों, प्रोटोकोल, लॉकडाउन की धज्जियाँ उड़ाते हुए वर्तमान मुख्यमंत्री भी शादी में शामिल होते हैं. इतना ही नहीं कर्नाटक के दूसरे इलाके में एक धार्मिक आयोजन होता है. रथ खींचने के लिए 150-200 लोग जमा होते हैं. अब यदि इन सभी लोगों की वजह से कोरोना बढ़ता है तो सबसे पहले सरकार ख़ुद ज़िम्मेदार...
कोरोना वायरस के डर को लेकर लॉकडाउन (Coronavirus Lockdown) बढ़ा. बीमारी भी रोज़ नए आँकड़ों के साथ बढ़ रही है. एक भी दिन ऐसा नहीं जा रहा जब नए मरीज़ ना बन रहे हों. एक तरफ़ जहाँ गरीब रोज़ी रोटी की चिंता में लगा है. अपने घर से दूर है. पुलों के नीची, फुटपाथ पर, रेल की पटरी पर अपना जीवन गुज़ारने पर मजबूर है. वहीं हम जैसे लोग पर्याप्त राशन-पानी के साथ घरों में कैद हैं. लेकिन हम सबसे भी ऊपर एक तबका है जिसे प्रिव्लेज़ मिलने वाला तबका कहा जाता है. ये तबका सबसे ज्यादा बेगैरत और शातिर है. इसे ना तो उन मजदूरों की चिंता है ना ही उन लोगों की जो घरों में कैद हैं. इसे उनकी भी परवाह नहीं जो अपने प्रियजनों के मरने पर भी घर से नहीं निकल पाए उनकी अंत्येष्टि में नहीं जा पाए.
मेरी नानी गुज़र गईं लेकिन लॉकडाउन की वजह से मैं उनकी अंतिम संस्कार या तेरहवीं में शामिल नहीं हो पाईं. घर वालों ने भी क्रिया-करम उस तरह नहीं कर पाया जिस तरह किया जाना चाहिए था. क्योंकि हम मध्यमवर्गीय लोग सरकार के बनाए सारे नियमों को पालने के लिए बाध्य हैं. हमारे लिए ना तो कोई सहूलियत है ना छूट है. उल्टा यदि कोई सड़कों पर दिख भी जाए तो उसे पुलिस के डंडे खाने पड़ते हैं. हमसे कहा गया है कि यह हमारी भलाई के लिए ही है. हमें बीमारी से बचाने के लिए ही है. इसलिए हम घरों में बैठे हैं. लेकिन ये सभी बंधन सरकार चलाने वालों के लिए या नेताओं के लिए नहीं हैं. तभी तो लॉकडाउन के बीच कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री अपने बेटे की शादी 60 लोगों के जमावड़े के साथ करते हैं. एक तरफ जहाँ पाँच लोगों का इकठ्ठा होना भी मना है वहाँ 60 लोग इकट्ठे होते हैं. शादी होती है, शहनाई बजती है. रस्में होती हैं और सरकारी नियमों, प्रोटोकोल, लॉकडाउन की धज्जियाँ उड़ाते हुए वर्तमान मुख्यमंत्री भी शादी में शामिल होते हैं. इतना ही नहीं कर्नाटक के दूसरे इलाके में एक धार्मिक आयोजन होता है. रथ खींचने के लिए 150-200 लोग जमा होते हैं. अब यदि इन सभी लोगों की वजह से कोरोना बढ़ता है तो सबसे पहले सरकार ख़ुद ज़िम्मेदार होगी इसके लिए.
ये देश आधा तो 'चचा विधायक हैं हमारे' टाइप के लोगों की वजह से बर्बाद है. एक तरफ़ जहाँ आम आदमी डिलीवरी के लिए एम्बुलेंस लेने के लिए भी सरकारी रिक्वेस्ट लगाकर सभी प्रोटोकॉल फॉलो कर रहा है. ना जाने कितने लोगों के ब्याह रुके हुए हैं. एक बेहद समझदार कपल ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से अपना निक़ाह पढ़वा लिया. वहीं दूसरी तरफ कर्नाटक के पूर्व सीएम हैं भीड़ इकट्ठी करके लॉकडाउन में बेटे की शादी तो कर ही रहे हैं फोटोज़ भी सबके लिए उपलब्ध करा रहे हैं. एक आम आदमी जो अपनी तरफ से हर नियम का पालन कर रहा है उनके मन में ऐसी तस्वीरें ना सिर्फ नेताओं के प्रति घृणा पैदा करती हैं बल्कि सरकारों के प्रति भी अपना रवैया कड़ा कर लेती हैं. ज़ाहिर सी बात है यदि किसी को सिर्फ ओहदे के दम पर सुविधाएँ मिल जाएं तो वह आम आदमी के लिए लाइन के उस पार ही खड़ा है.
ऐसे समय में तो नेताओं को अच्छे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए ताकि जनमानुष प्रेरित हो, ना कि नाराज़.
कोई कर्नाटक सरकार को उठा दे. रामायण देखते-देखते ख़ुद ही कुम्भकर्ण की नींद सो गई. एक तरफ़ शादी हो रही है दूसरी तरफ रथ खींचने का धार्मिक आयोजन. दोनों आयोजनों में ये जो 250-300 लोग जमा हुए इन सबके साथ हनुमान जी को गदा प्रोग्राम चलाना चाहिए. यूँ तो अकल आ नहीं रही क्या पता भगवान की गदा से ही कुछ अक्ल मिले.
मज़हब और धर्म के नाम पर बर्बाद हो जाना ही इस देश की क़िस्मत है शायद.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.