विज्ञान ने लैब में ही मीट बनाने में सफलता हासिल कर ली है. यानी आप मीट खाने का स्वाद भी ले सकते हैं और किसी जीव की हत्या के पाप का भागीदार भी आपको नहीं बनना होगा. खुद केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने भी लैब में बने इस मीट की तरफदारी की है. इसे 'अहिंसा मीट' भी कहा जा रहा है. अहिंसा इसलिए, क्योंकि इसमें किसी जीव की हत्या नहीं होती है. इससे मीथेन गैस के उत्सर्जन पर भी लगाम लगेगी और आए दिन मांस को लेकर होने वाली मोब लिंचिंग से भी छुटकारा मिलने की बात कही जा रही है. लेकिन इस मीट को लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं, जो इसके स्वाद, कीमत और फायदे-नुकसान से जुड़े हैं. सवाल ये भी है कि अभी तक मीट को मांसाहार की श्रेणी में रखा जाता था, तो क्या अब अहिंसा मीट होने की वजह से उसे शाकाहार समझा जाएगा? क्या वो लोग भी इसे खाएंगे जो अभी तक सिर्फ शाकाहार खाते हैं? देखा जाए तो अहिंसा मीट ने 'मांसाहार' और 'शाकाहार' के बीच में एक बहस पैदा कर दी है. आपके इन सवालों के जवाब जानने पहले आइए जानते हैं कि मेनका गांधी ने क्या कहा है.
मेनका गांधी ने 'फ्यूचर ऑफ प्रोटीन-फूड टेक रेवॉल्यूशन' विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए यह बात कही. उन्होंने कहा बिजली और सूचना तकनीक के बाद अब लैब में ही जानवरों की स्टेम सेल से क्लीन मीट तैयार करना अगली बड़ी उपलब्धि है. उन्होंने यह भी कहा कि एक सर्वे के मुताबिक करीब 66 फीसदी लोग लैब में तैयार मीट स्वीकार करने को तैयार हैं. वह बोलीं कि हम सामान्य मीट को लैब में बने हुए क्लीन मीट से बदलने के लिए तैयार हैं. उन्होंने यह भी कहा कि जानवरों की हत्या की वजह से मीथेन गैस का उत्सर्जन बहुत अधिक बढ़ गया है, जो ग्लोबल वार्मिंग बढ़ा रहे हैं. केरल में आई बाढ़ के लिए भी काफी हद तक ग्लोबल...
विज्ञान ने लैब में ही मीट बनाने में सफलता हासिल कर ली है. यानी आप मीट खाने का स्वाद भी ले सकते हैं और किसी जीव की हत्या के पाप का भागीदार भी आपको नहीं बनना होगा. खुद केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने भी लैब में बने इस मीट की तरफदारी की है. इसे 'अहिंसा मीट' भी कहा जा रहा है. अहिंसा इसलिए, क्योंकि इसमें किसी जीव की हत्या नहीं होती है. इससे मीथेन गैस के उत्सर्जन पर भी लगाम लगेगी और आए दिन मांस को लेकर होने वाली मोब लिंचिंग से भी छुटकारा मिलने की बात कही जा रही है. लेकिन इस मीट को लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं, जो इसके स्वाद, कीमत और फायदे-नुकसान से जुड़े हैं. सवाल ये भी है कि अभी तक मीट को मांसाहार की श्रेणी में रखा जाता था, तो क्या अब अहिंसा मीट होने की वजह से उसे शाकाहार समझा जाएगा? क्या वो लोग भी इसे खाएंगे जो अभी तक सिर्फ शाकाहार खाते हैं? देखा जाए तो अहिंसा मीट ने 'मांसाहार' और 'शाकाहार' के बीच में एक बहस पैदा कर दी है. आपके इन सवालों के जवाब जानने पहले आइए जानते हैं कि मेनका गांधी ने क्या कहा है.
मेनका गांधी ने 'फ्यूचर ऑफ प्रोटीन-फूड टेक रेवॉल्यूशन' विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए यह बात कही. उन्होंने कहा बिजली और सूचना तकनीक के बाद अब लैब में ही जानवरों की स्टेम सेल से क्लीन मीट तैयार करना अगली बड़ी उपलब्धि है. उन्होंने यह भी कहा कि एक सर्वे के मुताबिक करीब 66 फीसदी लोग लैब में तैयार मीट स्वीकार करने को तैयार हैं. वह बोलीं कि हम सामान्य मीट को लैब में बने हुए क्लीन मीट से बदलने के लिए तैयार हैं. उन्होंने यह भी कहा कि जानवरों की हत्या की वजह से मीथेन गैस का उत्सर्जन बहुत अधिक बढ़ गया है, जो ग्लोबल वार्मिंग बढ़ा रहे हैं. केरल में आई बाढ़ के लिए भी काफी हद तक ग्लोबल वार्मिंग के जिम्मेदार होने की बात कही. मेनका गांधी ने कहा है कि आने वाले 5 सालों में ये तकनीक बाजार में पहुंच जाएगी.
क्या है ये अहिंसा मीट?
अहिंसा मीट को तैयार करने में किसी जीव की हत्या नहीं होती है. इसे सिर्फ स्टेम सेल की मदद से लैब में ही विकसित किया जा सकता है. इसके लिए जिस जीव का मीट बनाना है, उसका स्टेम सेल लेकर एक पेट्री डिश (एक छोड़ा डिब्बे जैसा) में रखा जाता है. इसमें अमीनो एसिड और कार्बोहाइड्रेड डाला जाता है और आर्टिफीशियल अनुकूल वातारण मुहैया कराया जाता है. एक स्टेम सेल एक लाख करोड़ स्टेम सेल बनाने की क्षमता रखता है. इसी तरह लैब में एक स्टेम सेल से मीट का पूरा टुकड़ा तैयार कर लिया जाता है. नीचे दिया गया वीडियो आपको इसकी प्रक्रिया को अच्छे से समझा देगा.
न जाने कैसा होगा स्वाद?
कहा तो यही जा रहा है कि लैब में बनाया गया मीट बाजार में मिलने वाले सामान्य मीट की तुलना अधिक स्वादिष्ट होगा. लेकिन स्वाद एक ऐसा अहसास है, जिसका पैमाना हर किसी के लिए अलग-अलग हो सकता है. जैसे उदाहरण के लिए मिर्च ही ले लीजिए. किसी को सामान्य मिर्च पसंद होती है तो कोई बेहद तीखा भोजन खाना पसंद करता है. वहीं अलग-अलग जगह के लोगों का स्वाद भी अलग होता है. जैसे अमेरिका में लोग अधिक तीखा और तेल-मसाले वाला खाना नहीं खाते, लेकिन भारतीय खाना बिना तेल-मसाले के बनता ही नहीं. ऐसे में, लैब में बनाया गया मीट लोगों को पसंद आएगा या नहीं, इसका पता तो तभी चलेगा, जब वह बाजार में आ जाएगा और लोग उसका स्वाद चख कर अपनी प्रतिक्रिया देंगे.
कितनी होगी कीमत?
लैब में तैयार किए गए मीट को खाने के लिए अगर लोग तैयार भी हो गए तो एक सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि उसकी कीमत क्या होगी? दरअसल, मीट में अगर चिकन यानी मुर्गे की बात करें तो वह 100-150 रुपए प्रति किलो में भी छोटी दुकानों पर मिल जाता है. वहीं ब्रांडेड चिकन भी 200-300 रुपए प्रति किलो में मिल जाता है. बीफ भी 250-300 रुपए प्रति किलो में मिल जाता है. ऐसे में बहुत से लोगों में यह एक चिंता का विषय हो सकता है कि लैब का मीट महंगा होगा. 2013 में लैब में बने मीट के बर्गर की कीमत करीब 3,25,000 डॉलर थी, जो 2015 तक घट कर महज 11 डॉलर पर आ गई है. यानी अगर बात कीमत की है तो जैसे-जैसे इसका उत्पादन बढ़ेगा, कीमत गिरना तय है. यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि बाजार में मिल रहे मीट जितने दाम या हो सकता है उससे भी कम दाम में आपको लैब में बनाया गया मीट मिल जाए.
लैब में बनाए जाने वाले इस अहिंसा मीट से जीव हत्या नहीं होगी, जिससे उनसे निकलने वाली मीथेन गैस वातावरण को नुकसान नहीं करेगी. लेकिन ये देखना दिलचस्प होगा कि लोगों को लैब का मीट पसंद भी आता है या नहीं. अभी तो सब्जियों को कैमिकल से उगाने की बात सुनकर ही बहुत से लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं, उन लोगों के लिए लैब में बनाए गए मीट को स्वीकार करना एक बड़ी चुनौती हो सकता है.
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