किसान आंदोलन के विभत्स चेहरे लखीमपुर के जख्मों पर मरहम लगाने की कशमकश की सबसे ज्यादा फुटेज लेने वाली कांग्रेस आगामी यूपी चुनावों में दो क़दम आगे बढ़ गई तो भाजपा की सफलता का रास्ता आसान हो जाएगा. ऐसी बातें करने वालों का तर्क है कि यदि कांग्रेस बढ़ी तो भाजपा विरोधी वोट बंट जाएगा जिससे कि सबसे बड़े विपक्षी दल सपा का वोट कटेगा और भाजपा अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी सपा के इस नुकसान से बड़ा फायदा उठा लेगी. उपरोक्त लॉजिक को धता बताने के लिए विरोधी दल मिलीभगत और आपसी सामंजस्य के साथ खामोशी से काम कर रहे हैं. इनकी साइलेंट कार्ययोजना ये है कि बिना गठबंधन किए आपस में सामंजस्य बना कर भाजपा से मुकाबला करें. विरोधियों के वोट कटे और बंटे नहीं. बल्कि सभी विरोधी दल अपने अपने बेस/ पारंपरिक वोटों को तो हासिल करें ही साथ ही सरकार से निराश भाजपा वोटरों को अपनी तरफ खीचें. यानी हर विरोधी दल अपने-अपने आसमान पर रेड कारपोरेट बिछाए रहे ताकि भाजपा के टूटे सितारों (वोटर/कार्यकर्ता/विधायक) के पास विकल्पों की लाइन लगी हो. यानी मनमाफिक विकल्प के आभाव में नाखुश होने के बाद भी भाजपा का दामन पकड़े रहने की मजबूरी न हो.
विरोधियों की ये रणनीति राष्ट्रव्यापी है और इसका आधार यूपी और पंजाब है. इस योजना की गाड़ी की ड्राइवर कांग्रेस है और इस गाड़ी को किसान आंदोलन का इंधन दिया जा रहा है. आपको याद होगा कि किसान आंदोलन की इब्तिदा में पंजाब में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्रक्टर यात्रा निकाली थी और लखीमपुर घटना के दौरान किसान आंदोलन की इंतेहा यूपी में दिखी जिसे कांग्रेस महासचिव प्रियंका ने लीड किया. बिंदुवार एक एक कड़ी को जोड़िए तो कुछ अदृश्य चीजें दिखने सी लगेंगी.
हाल ही में...
किसान आंदोलन के विभत्स चेहरे लखीमपुर के जख्मों पर मरहम लगाने की कशमकश की सबसे ज्यादा फुटेज लेने वाली कांग्रेस आगामी यूपी चुनावों में दो क़दम आगे बढ़ गई तो भाजपा की सफलता का रास्ता आसान हो जाएगा. ऐसी बातें करने वालों का तर्क है कि यदि कांग्रेस बढ़ी तो भाजपा विरोधी वोट बंट जाएगा जिससे कि सबसे बड़े विपक्षी दल सपा का वोट कटेगा और भाजपा अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी सपा के इस नुकसान से बड़ा फायदा उठा लेगी. उपरोक्त लॉजिक को धता बताने के लिए विरोधी दल मिलीभगत और आपसी सामंजस्य के साथ खामोशी से काम कर रहे हैं. इनकी साइलेंट कार्ययोजना ये है कि बिना गठबंधन किए आपस में सामंजस्य बना कर भाजपा से मुकाबला करें. विरोधियों के वोट कटे और बंटे नहीं. बल्कि सभी विरोधी दल अपने अपने बेस/ पारंपरिक वोटों को तो हासिल करें ही साथ ही सरकार से निराश भाजपा वोटरों को अपनी तरफ खीचें. यानी हर विरोधी दल अपने-अपने आसमान पर रेड कारपोरेट बिछाए रहे ताकि भाजपा के टूटे सितारों (वोटर/कार्यकर्ता/विधायक) के पास विकल्पों की लाइन लगी हो. यानी मनमाफिक विकल्प के आभाव में नाखुश होने के बाद भी भाजपा का दामन पकड़े रहने की मजबूरी न हो.
विरोधियों की ये रणनीति राष्ट्रव्यापी है और इसका आधार यूपी और पंजाब है. इस योजना की गाड़ी की ड्राइवर कांग्रेस है और इस गाड़ी को किसान आंदोलन का इंधन दिया जा रहा है. आपको याद होगा कि किसान आंदोलन की इब्तिदा में पंजाब में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्रक्टर यात्रा निकाली थी और लखीमपुर घटना के दौरान किसान आंदोलन की इंतेहा यूपी में दिखी जिसे कांग्रेस महासचिव प्रियंका ने लीड किया. बिंदुवार एक एक कड़ी को जोड़िए तो कुछ अदृश्य चीजें दिखने सी लगेंगी.
हाल ही में किसान आंदोलन के सबसे बड़े नेता राकेश टिकैत ने एक दिन कांग्रेस के अघोषित मुखिया राहुल गांधी की तारीफ की और दो दिन बाद किसान आंदोलन की लगाम कांग्रेस के सिपुर्द कर दी. क्रूशियल टाइम में आंदोलन का मैदान छोड़कर टिकैत पवेलियन में आ गए और मैदान में कांगेस को उतार दिया. पार्टी महासचिव और यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा लखीमपुर की ह्दयविदारक घटना को लेकर तीन दिन तक सूबे के मुख्य विपक्षी दल की तरह छायी रहीं,
और सबसे बड़े विपक्षी दल सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक वक्त के लिए प्रियंका के लिए स्पेस छोड़ दी. यूपी मे बयानबाजी और ओवर एक्सपोजर के साथ सुर्खियां बटोरने वाले आप के संजय सिंह ने भी लखीमपुर के पिच की ओपनर प्रियंका की परफार्मेंस को ओवरलैप नहीं किया. साथ ही बसपा के सतीश चंद्र मिश्र, रालोद के जयंत चौधरी और भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद जैसे विभिन्न विरोधी दलों के नेता ही कोरस गायकों की तरह प्रियंका के भाजपा विरोधी सुर से सुर मिलाने जैसे रोल में रहे.
और अब एक सधी हुई रणनीति के तहत आखिलेश यादव ने प्रदेशव्यापी अपनी रथयात्रा को लखीमपुर की घटना के ईंधन से दौड़ाने का फैसला किया है. यूपीभर में फैले अपने बड़े संगठन के जरिए जिलों-जिलो में वो भाजपा सरकार की नाकामियों के बखान का सिलसिला शुरू करेंगे. सपा की ऐसी कैम्पेन जब पीक पर होगी तब कांग्रेस अपने किसी कार्यक्रम या बयान से सपा को ओवरलैप नहीं करेगी.
भाजपा की घेराबंदी के लिए अलग-अलग मोर्चे पर लड़ने की प्लानिंग करने वाले कई बड़े दल अप्रत्यक्ष गठबंधन बना के फ्रेंडली फाइट... वोट कटवा...वोट ट्रांसफर...और डमी कैंडीडेट्स जैसी आंखों में धूल झोंकने वाली चुनावी छल विधाओं का भी प्रयोग करेंगे. बताया जा रहा है कि भाजपा की विजय यात्रा रोकने के लिए मुख्यरूप से सपा, कांग्रेस और आप की मिलीभगत में पीके जैसे एक्सपर्ट भी रोडमेप तैयार कर रहे हैं.
अगले साल 2022 में यूपी के विधानसभा चुनाव में भाजपा की वापसी हो गई तो केंद्र में 2024 में मोदी की वापसी की प्रबल संभावना होगी. विरोधी दलों को लगने लगा है कि अब भी भाजपा का विजय रथ नहीं रोक सके तो उनका वजूद मिट जाएगा. विरोधी नेताओं को आजम खान और लालू प्रसाद यादव की तरह जेल जाने का भी डर सता रहा है.
संकेत मिल रहे हैं और अंदरखाने से खबरे आ रही हैं कि देशभर के विरोधी दलों ने बहुत ही ख़ामोशी में आपसी मिलीभगत से भाजपा को शिकस्त देने की परिपक्व रणनीति तैयार की है. ख़ासकर यूपी के चुनावी कुरुक्षेत्र में भाजपा को घेरने का चक्रव्यूह अपना काम करता दिख रहा है.साथ ही पंजाब को रणनीति के राजनीतिक अहलहों का बारूदखाना बनाया गया है.
कई क्षेत्रीय दलों के डिब्बों वाली विरोधियों की ट्रेन का इंजन कांग्रेस है और इस इंजन को इंधन देने का काम किसान आंदोलन कर रहा है. हालिया मौहाल में तैयार विरोधी दलों का ऐसा चक्रव्यूह भाजपा कैसे तोड़ेगी वक्त का चक्र ये तस्वीर भी साफ कर देगा.
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