लालू प्रसाद ने नीतीश कुमार के नाम पर अपनी आपत्ति भर हटाई है, मुहर नहीं लगाई. दिल्ली की प्रेस कांफ्रेंस में नीतीश के नाम की घोषणा भी लालू ने नहीं बल्कि मुलायम सिंह ने की थी.
जब बोलने की बारी आई तो लालू ने कहा, "जनता को भरोसा दिलाता हूं कि बिहार की लड़ाई में मैं हर तरह का घूंट पीने को तैयार हूं. हम हर तरह का जहर पीने के लिए तैयार हैं." "मैं इस सांप का फन, सांप्रदायिकता के इस कोबरा को कुचलने के लिए प्रतिबद्ध हूं," कह कर लालू ने अपनी बात पूरी की.
यूं ही तो माने नहीं लालू
गठबंधन और सीटों के बंटवारे को लेकर आरजेडी और जेडीयू की अहम बैठक से एक दिन पहले ही नीतीश कुमार के नाम की घोषणा कर दी गई.
आखिर ऐसा क्या हुआ कि लालू को जहर पीने को मजबूर होना पड़ा?
लालू गठबंधन के लिए तो तैयार थे लेकिन नेता के रूप में नीतीश का नाम उन्हें मंजूर नहीं था. दबाव बनाने के लिए लालू ने मांझी को भी साथ लेने की बात चलाई. इसका असर भी दिखा. नीतीश ने मुलायम से मिलकर एतराज जाहिर किया. इसी क्रम में नीतीश की राहुल गांधी से मुलाकात हुई. हालांकि, इस मुलाकात पर मुलायम को भी एतराज रहा.
बहरहाल, बिहार में अपनी भूमिका तलाश रही कांग्रेस के पास मौका खुद चल कर पहुंच गया. फिर लालू तक मैसेज पहुंचाया गया. अगर नीतीश को प्रोजेक्ट नहीं किया गया तो चुनावों में कांग्रेस लालू का साथ नहीं देगी. लालू, राहुल का वो तेवर देख ही चुके थे जब उन्होंने सजायाफ्ता नेताओं को प्रोटेक्ट करने को लेकर तैयार ऑर्डिनेंस की कॉफी फाड़ डाली थी. जब लगा कि कांग्रेस झटका दे देगी तो लालू जहर का घूंट पीने को तैयार हो गए.
सीटों के बंटवारे पर भी पीछे हटे
पहले लालू लोक सभा चुनाव में वोट शेयर के हिसाब से सीटों का बंटवारा चाहते थे. 2014 चुनाव में आरजेडी उम्मीदवार 142 विधानसभा सीटों पर पहले और दूसरे स्थान पर रहे जबकि 37 जेडीयू उम्मीदवार फर्स्ट-सेकंड रहे. इसी तरह कांग्रेस प्रत्याशी 67 विधानसभा क्षेत्रों में आगे रहे.
माना जा...
लालू प्रसाद ने नीतीश कुमार के नाम पर अपनी आपत्ति भर हटाई है, मुहर नहीं लगाई. दिल्ली की प्रेस कांफ्रेंस में नीतीश के नाम की घोषणा भी लालू ने नहीं बल्कि मुलायम सिंह ने की थी.
जब बोलने की बारी आई तो लालू ने कहा, "जनता को भरोसा दिलाता हूं कि बिहार की लड़ाई में मैं हर तरह का घूंट पीने को तैयार हूं. हम हर तरह का जहर पीने के लिए तैयार हैं." "मैं इस सांप का फन, सांप्रदायिकता के इस कोबरा को कुचलने के लिए प्रतिबद्ध हूं," कह कर लालू ने अपनी बात पूरी की.
यूं ही तो माने नहीं लालू
गठबंधन और सीटों के बंटवारे को लेकर आरजेडी और जेडीयू की अहम बैठक से एक दिन पहले ही नीतीश कुमार के नाम की घोषणा कर दी गई.
आखिर ऐसा क्या हुआ कि लालू को जहर पीने को मजबूर होना पड़ा?
लालू गठबंधन के लिए तो तैयार थे लेकिन नेता के रूप में नीतीश का नाम उन्हें मंजूर नहीं था. दबाव बनाने के लिए लालू ने मांझी को भी साथ लेने की बात चलाई. इसका असर भी दिखा. नीतीश ने मुलायम से मिलकर एतराज जाहिर किया. इसी क्रम में नीतीश की राहुल गांधी से मुलाकात हुई. हालांकि, इस मुलाकात पर मुलायम को भी एतराज रहा.
बहरहाल, बिहार में अपनी भूमिका तलाश रही कांग्रेस के पास मौका खुद चल कर पहुंच गया. फिर लालू तक मैसेज पहुंचाया गया. अगर नीतीश को प्रोजेक्ट नहीं किया गया तो चुनावों में कांग्रेस लालू का साथ नहीं देगी. लालू, राहुल का वो तेवर देख ही चुके थे जब उन्होंने सजायाफ्ता नेताओं को प्रोटेक्ट करने को लेकर तैयार ऑर्डिनेंस की कॉफी फाड़ डाली थी. जब लगा कि कांग्रेस झटका दे देगी तो लालू जहर का घूंट पीने को तैयार हो गए.
सीटों के बंटवारे पर भी पीछे हटे
पहले लालू लोक सभा चुनाव में वोट शेयर के हिसाब से सीटों का बंटवारा चाहते थे. 2014 चुनाव में आरजेडी उम्मीदवार 142 विधानसभा सीटों पर पहले और दूसरे स्थान पर रहे जबकि 37 जेडीयू उम्मीदवार फर्स्ट-सेकंड रहे. इसी तरह कांग्रेस प्रत्याशी 67 विधानसभा क्षेत्रों में आगे रहे.
माना जा रहा है कि नीतीश के नाम पर घोषणा से पहले ही आरजेडी और जेडीयू के बीच 100-100 सीटों पर सहमति तकरीबन बन चुकी थी. बाकी सीटें गठबंधन के दूसरे दलों को मिलनी थी. अभी इस बारे में औपचारिक घोषणा होनी बाकी है.
नतीजों के बाद क्या होगा?
मान लेते हैं कि आरजेडी और जेडीयू 100-100 सीटों पर चुनाव लड़ते हैं. अगर नतीजों में लालू और नीतीश कोटे के सीटों में काफी फासला रहा तो स्वाभाविक है प्रभाव उसी का रहेगा जिसकी सीटें ज्यादा होंगी. अब तक का आकलन यही है कि सीटें तो लालू की ही ज्यादा होंगी.
ऐसी हालत में लालू फिर से मजबूत हो जाएंगे और बात बात पर अपनी मनवाने की कोशिश करेंगे.
1. ऐसे में लालू अपनी पार्टी के ज्यादा से ज्यादा लोगों को मंत्री बनवाना चाहेंगे. हो यहां तक सकता है कि अगर नीतीश अपनी पसंद से किसी को मंत्री बनाना चाहें तो उसमें भी कोई न कोई अड़ंगा डाल दें. आखिर ताकत अपना असर तो दिखाती ही है.
2. आरजेडी की ओर से उप मुख्यमंत्री पद का भी प्रस्ताव रखा जा सकता है. जहर का असर अगर बरकरार रहा तो लालू का डिप्टी सीएम भी नीतीश के लिए रोजाना मुश्किलें खड़ा करता रहेगा.
3. सीटों की संख्या में फासला ज्यादा होने पर लालू अपने आदमियों के जरिए ये भी दबाव बना सकते हैं कि नीतीश खुद ही मुख्यमंत्री पद की दावेदारी से पीछे हट जाएं.
जिंदगी में कई बार जहर पीने पड़ते हैं. लालू ने पहले भी कई बार जहर पिया होगा. पहले वालों का क्या हुआ असर अब भी है या खत्म हो गया. ये ताजा ताजा है. इसकी तासीर भी बाकियों के मुकाबले ज्यादा है. ये जहर लालू ने तब पिया जब तमाम दुश्वारियों के बावजूद सियासी तौर पर काफी ताकतवर हैं.
लालू का कहना है कि कोबरा को रोकने के लिए उन्होंने जहर पिया है. इसका मतलब जो जहर लालू ने पिया है वो कोबरा से ज्यादा असरदार होगा. वैसे भी इतना असरदार जहर शिव ही पचा सकते हैं लालू तो इंसान हैं.
एक फिल्म में अमरीश पुरा का डायलॉग था, "क्रोध को पालना सीख बेटा..." मुमकिन है वो डायलॉग लालू को कुछ इस तरह सुनाई दे रहा हो, "जहर को बस पी लो... पचाओ नहीं."
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.