बिहार में RJD नेताओं और समर्थकों को लालू यादव (Lalu Prasad) के पटना पहुंचने का बेसब्री से इंतजार है. रांची जेल से जमानत पर छूटने के बाद से लालू यादव दिल्ली में ही रह रहे हैं. लालू यादव की राह देखने की खास वजह 5 जुलाई, 2021 को होने जा रहा आरजेडी का स्थापना वर्ष समारोह है - और लालू यादव इस मौके पर आरजेडी नेताओं और कार्यकर्ताओं को संबोधित करने वाले हैं. साक्षात नहीं संभव हुआ तो वर्चुअल तकनीक की मदद लेने की भी बात कही जा रही है.
बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) तो विधानसभा चुनावों के दौरान ही तारीख बताकर लोगों के दिमाग में लालू यादव को बनाये हुए थे. ये बता कर कि चुनाव नतीजे आएंगे और फिर लालू यादव भी जेल से छूट कर बिहार के लोगों के बीच आ जाएंगे, लेकिन तेजस्वी यादव के हिसाब से कुछ भी नहीं हो पाया. न आरजेडी को बहुमत मिली, न तेजस्वी मुख्यमंत्री बन सके और न लालू यादव को तब जमानत मिल पायी. जेल से बाहर आने के लिए लालू यादव को आगे भी काफी इंतजार करना पड़ा था.
जेल से रिहा होने के बाद लालू यादव कुछ ज्यादा तो नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन जैसे तैसे इतना इंतजाम तो कर ही देते हैं कि खबरों का टोटा न पड़े - और राजनीतिक कयास लगाने का काम शुरू हो जाये.
कभी तेज प्रताप यादव के अचानक जीतनराम मांझी से मुलाकात को लेकर नये राजनीतिक समीकरणों की चर्चा शुरू हो जाती है तो कभी आरजेडी के स्थापना दिवस के साथ ही रामविलास पासवान की जयंती मनाने की योजना को लेकर. ऐसा होते ही कभी मांझी को तेजस्वी यादव के करीब पहुंचने के कयास लगाये जाते हैं तो कभी चिराग पासवान के आरजेडी नेता के साथ आने के - असलियत में कुछ भी हो या न हो, चर्चाओं में बने रहना और अपनों को बनाये रखना भी कम तो नहीं होता.
और कुछ हो न हो, लालू यादव को बिहार में प्रासंगिक बनाये रखने में सबसे आगे तो बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) ही नजर आते हैं - वैक्सीनेशन पर लालू यादव को सलाह देकर सुशील मोदी ट्रोल भले हुए हों, लेकिन लालू की प्रासंगिकता पर बहस...
बिहार में RJD नेताओं और समर्थकों को लालू यादव (Lalu Prasad) के पटना पहुंचने का बेसब्री से इंतजार है. रांची जेल से जमानत पर छूटने के बाद से लालू यादव दिल्ली में ही रह रहे हैं. लालू यादव की राह देखने की खास वजह 5 जुलाई, 2021 को होने जा रहा आरजेडी का स्थापना वर्ष समारोह है - और लालू यादव इस मौके पर आरजेडी नेताओं और कार्यकर्ताओं को संबोधित करने वाले हैं. साक्षात नहीं संभव हुआ तो वर्चुअल तकनीक की मदद लेने की भी बात कही जा रही है.
बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) तो विधानसभा चुनावों के दौरान ही तारीख बताकर लोगों के दिमाग में लालू यादव को बनाये हुए थे. ये बता कर कि चुनाव नतीजे आएंगे और फिर लालू यादव भी जेल से छूट कर बिहार के लोगों के बीच आ जाएंगे, लेकिन तेजस्वी यादव के हिसाब से कुछ भी नहीं हो पाया. न आरजेडी को बहुमत मिली, न तेजस्वी मुख्यमंत्री बन सके और न लालू यादव को तब जमानत मिल पायी. जेल से बाहर आने के लिए लालू यादव को आगे भी काफी इंतजार करना पड़ा था.
जेल से रिहा होने के बाद लालू यादव कुछ ज्यादा तो नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन जैसे तैसे इतना इंतजाम तो कर ही देते हैं कि खबरों का टोटा न पड़े - और राजनीतिक कयास लगाने का काम शुरू हो जाये.
कभी तेज प्रताप यादव के अचानक जीतनराम मांझी से मुलाकात को लेकर नये राजनीतिक समीकरणों की चर्चा शुरू हो जाती है तो कभी आरजेडी के स्थापना दिवस के साथ ही रामविलास पासवान की जयंती मनाने की योजना को लेकर. ऐसा होते ही कभी मांझी को तेजस्वी यादव के करीब पहुंचने के कयास लगाये जाते हैं तो कभी चिराग पासवान के आरजेडी नेता के साथ आने के - असलियत में कुछ भी हो या न हो, चर्चाओं में बने रहना और अपनों को बनाये रखना भी कम तो नहीं होता.
और कुछ हो न हो, लालू यादव को बिहार में प्रासंगिक बनाये रखने में सबसे आगे तो बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) ही नजर आते हैं - वैक्सीनेशन पर लालू यादव को सलाह देकर सुशील मोदी ट्रोल भले हुए हों, लेकिन लालू की प्रासंगिकता पर बहस आगे भी तो वही बढ़ा रहे हैं - ये बिकाऊ तो है, लेकिन टिकाऊ भी रहने वाला है क्या?
...जब तक समोसे में आलू है!
लंबे अरसे तक बिहार के डिप्टी सीएम रहे सुशील कुमार मोदी लालूवाद के स्वयंभू जनक भी हैं. सुशील मोदी को बीजेपी ने नीतीश कुमार से दूर करने की कोशिश में राज्य सभा सांसद बना दिया है, लेकिन लालू विमर्श को आगे बढ़ाये बगैर उनकी राजनीति भी अधूरी लगती है.
लालूवाद का प्रतिपादन तो सुशील मोदी ने आरजेडी नेता को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश में किया था, लेकिन तब भी दांव उलटा ही पड़ा था - और अब वैक्सीनेशन पर लालू यादव को सुशील मोदी की सलाह बैकफायर कर रही है.
दरअसल, सुशील मोदी ने लालू यादव को जमानत पर छूटे होने के दौरान वैक्सीन लेने की सलाह दी. साथ में, राबड़ी देवी को भी टीका लगवाने की बात कही, लेकिन एक ऐसी चीज जोड़ दी जो बीजेपी नेता की फजीहत का कारण बन गया.
सुशील मोदी ने लालू यादव से कहा कि उनके वैक्सीन लगवा लेने से लोगों में जागरुकता आएगी, 'गरीबों ग्रामीणों के बीच वैक्सीन को लेकर संशय दूर होगा - और टीकाकरण की गति बढे़गी.'
फिर क्या था, लोग सुशील मोदी के ट्वीट पर टूट पड़े. बताने लगे कि चलो वो ये तो मानते हैं कि लालू यादव का अभी इतना असर है कि वो लोगों की सोच को प्रभावित कर सकते हैं - लगे हाथ लोग ताना भी देने लगे कि सारे संसाधन होने के बावजूद आप लोग कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं.
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बताया था कि वो खुद भी और उनकी मां भी वैक्सीन की दोनों डोज ले चुकी हैं - और लोगों को भी चाहिये कि कोविड 19 से मुकाबले के लिए आगे बढ़ कर वैसा ही करें. मालूम नहीं सुशील मोदी पर भी प्रधानमंत्री मोदी की बातों का असर रहा और वो उसी मूड में लालू यादव को सलाह दे बैठे या फिर ये भी उनके लालूवाद जैसा ही कोई नया प्रयोग रहा.
एक जमाने में लालू यादव के सपोर्ट में स्लोगन प्रचलित रहा, 'जब तक समोसे में रहेगा आलू, बिहार में लालू...' - सुशील मोदी जाने अंजाने जैसे भी हो, लग तो ऐसा ही रहा है कि वो भी लालू यादव के पक्ष में नारेबाजी में शामिल हो जा रहे हैं.
2020 में बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान लालू यादव के जेल में होते हुए भी कोई कम चर्चा नहीं हुई थी - और नीचे से ऊपर तक कोई भी ऐसा नहीं रहा जिसने चाहे जिस बहाने सही लालू यादव का जंगलराज के जिक्र के साथ नाम न लिया हो - प्रधानमंत्री मोदी ने भी तेजस्वी यादव को जब 'जंगलराज के युवराज' बताया तो चर्चा तो लालू यादव की ही हो रही थी.
लालू यादव की राजनीतिक गतिविधियों को देखते हुए, सुशील मोदी ने सीबीआई को भी सलाह दी है कि वो आरजेडी नेता की हरकतों पर नजर रखे. असल में लालू यादव को मेडिकल ग्राउंड पर ही जमानत मिली है - और उनका इलाज भी चल रहा है.
सुशील मोदी उसी को आधार बनाते हुए कह रहे हैं कि लालू यादव अगर राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होते हैं तो सीबीआई को संज्ञान लेना चाहिये!
लालू बाहर हैं, लेकिन असरदार कितने हैं
बिहार से लंबे समय तक बाहर रहने और काफी वक्त जेल में गुजारने की वजह से लालू यादव की सियासी सेहत पर तो कोई असर नहीं हुआ है, लेकिन उनका स्वास्थ्य जरूर साथ नहीं दे रहा है. आरजेडी के स्थापना समारोह के लिए लालू यादव के पटना पहुंचने को लेकर तेजस्वी यादव का भी कहना है कि अगर डॉक्टरों ने अनुमति दी तभी ये संभव हो भी पाएगा.
लालू यादव के जेल से रिहा होते ही बिहार की राजनीति में उथलपुथल की संभावना जतायी जाने लगी थी, लेकिन सुशील मोदी की ही तरह जेडीयू अध्यक्ष आरसीपी सिंह तेजस्वी को समझाने लगे हैं, बिना सीजन के ही तेजस्वी यादव आम खाना चाहते हैं... ये मंसूबा पूरा नहीं होगा क्योंकि आम तो सीजन में ही पकेगा. पाला बदल लेने की बात हो तो संशय के घेरे में नीतीश कुमार भी आसानी से आ जाते हैं, लेकिन फिलहाल पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और नीतीश कुमार सरकार में मंत्री मुकेश साहनी को ही ऐसी निगाहों से देखा जा रहा है. ऐसा इनकी बयानबाजी और दूसरी सक्रियताओं को देखते हुए समझा जाने लगा है. ऊपर से तेज प्रताप यादव के अचानक जाकर जीतनराम मांझी से मिल लेने से ये सब कुछ ज्यादा ही जोर पकड़ लेता है.
जीतनराम मांझी और मुकेश साहनी, दोनों ही लालू यादव के साथ फोन पर संपर्क की बात तो स्वीकार करते हैं, लेकिन उन आशंकाओं को सिरे से खारिज करते हैं जिनमें एनडीए में टूट-फूट की आशंका जतायी जाती है. असल में ये लोग जब भी बोलते हैं निशाने पर बीजेपी होती है, लेकिन नीतीश कुमार को भरसक बचा कर ही कुछ कहते हैं. हालांकि, पप्पू यादव की गिरफ्तारी का तो दोनों ही नेताओं ने कड़ा विरोध किया था.
चाहे लालू की प्रासंगिकता को हवा देने के मकसद से या फिर विपक्ष की आवाज तेज करने की बात सोच कर नीतीश कुमार और बीजेपी के विरोधी सरकार को लेकर गुणा भाग शुरू कर देते हैं - और ऐसे समीकरण समझाते हैं लालू प्रसाद चाहें तो बिहार की एनडीए सरकार कभी भी गिरा सकते हैं.
जो दलील पेश की जाती है उसमें महागठबंधन को चुनाव में मिली 110 सीटों और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के 5 विधायकों के साथ मांझी और मुकेश साहनी की 8 सीटों को जोड़ कर बहुमत साबित कर दिया जाता है - 123. यानी बहुमत के आंकड़े 122 से भी एक सीट ज्यादा.
ये आंकड़े भले ही कभी हकीकत में न बदल पायें, लेकिन परसेप्शन मैनेजमेंट के लिए तो बड़े ही सटीक लगते हैं. ओवैसी को लेकर समझा दिया जाता है कि उनके विधायक तो बीजेपी के साथ जाने से रहे. ये बात अलग है कि बारी बारी तकरीबन ओवैसी के सभी विधायक नीतीश कुमार से मुलाकात ये संपर्क कर चुके हैं. मांझी और मुकेश साहनी का ढुलमुल रवैया और जब तब ऐसी वैसी बातें भी समझने समझाने में सपोर्ट सिस्टम ही बन जाती है.
महागठबंधन की मुश्किल ये है कि एक तो सेहत लालू प्रसाद का साथ नहीं दे रही है - दूसरे, जमानत पर होने की वजह से उनकी राजनीतिक गतिविधियों पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं - और इस काम में सुशील मोदी अकेले नहीं हैं, बल्कि जेडीयू के प्रवक्ताओं की पूरी फौज सक्रिय हो जाती है.
व्यावहारिक राजनीति की बात करें तो लालू यादव के जेल में होने या बाहर आ जाने में फर्क पारिवारिक तौर पर ही लगता है. पूरे परिवार के लिए साथ रहने का बड़ा मौका मिला है. आखिर जेल से भी तो नेताओं के पास लालू यादव के फोन आने की बातें होती रही हैं. ये बात अलग है कि हर कोई बीजेपी विधायक ललन पासवान की तरह खुल कर सामने नहीं आता या ऐसे आरोप नहीं लगाता. आपको याद होगा कैसे बिहार विधानसभा स्पीकर के चुनाव से ठीक पहले ललन पासवान ने बताया था, 'लालू यादव ने रांची से फोन कर स्पीकर चुनाव में सदन से गैरहाजिर रहने को कहा'. हालांकि, इस वाकये के पीछे भी सुशील कुमार मोदी का ही नाम उछला. ललन पासवान का कहना था कि लालू प्रसाद से बातचीत खत्म होने के फौरन बाद वो सुशील मोदी को भी कॉल किये और बात किये थे.
बिहार में आरजेडी नेता के बीमार होने के बावजूद लालू विमर्श फिर से चालू है - नीतीश कुमार सरकार की सेहत पर भी कुछ फर्क पड़ेगा क्या?
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