दिल्ली में अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) और तेजस्वी यादव ने मुलाकात कर ट्विटर पर जो पोस्टर रिलीज किया है, उसकी पूरी फिल्म फिलहाल बिहार में शूट हो रही है - 25 फरवरी को. फिल्म को दो लोकेशन मालूम हुए हैं. एक, वाल्मीकि नगर और दूसरा, पूर्णिया.
बिहार में इस बार केंद्रीय मंत्री अमित शाह के स्वागत की महागठबंधन की अलग ही तैयारी है! 25 फरवरी को अमित शाह वाल्मीकि नगर लोक सभा क्षेत्र में एक सार्वजनिक सभा को संबोधित करने वाले हैं - और उसी दिन पूर्णिया में महागठबंधन की तरफ से भी एक रैली का कार्यक्रम तय किया गया है.
बताते हैं कि सिंगापुर में किडनी ट्रांसप्लांट के बाद हाल ही में दिल्ली लौटे लालू यादव (Lalu Yadav) भी महागठबंधन की रैली को संबोधित करने वाले हैं - और रैली से ठीक पहले तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) का अरविंद केजरीवाल के घर जाकर मिलना इसीलिए ज्यादा खास हो जाता है.
ऐसा तो नहीं कहेंगे कि तेजस्वी यादव के प्रति भी अरविंद केजरीवाल वैसा ही रुख रखते हैं जैसा लालू यादव के प्रति, लेकिन दोनों नेताओं की ताजा मुलाकात में अगर लालू यादव की कोई भूमिका है तो समझ लेना चाहिये अंदर ही अंदर कुछ तो चल ही रहा है.
अगस्त, 2018 में मुजफ्फरपुर के बालिका गृह यौन शोषण कांड के खिलाफ तेजस्वी यादव ने जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया था - और उनके बुलावे पर राहुल गांधी ने तो सपोर्ट किया ही, अरविंद केजरीवाल ने तो अपील भी जारी की थी, 'दिल्ली के लोगों से अपील है कि हमारी बहन बेटियों की सुरक्षा के लिए आज जंतर मंतर पर शाम 5 बजे ज़रूर आयें.'
ये सपोर्ट उस वाकये के करीब तीन साल बाद का है, जब लोगों ने देखा कि 2015 में नीतीश कुमार के शपथग्रहण के मौके पर अरविंद केजरीवाल और लालू यादव गले मिल रहे हैं - बाद में मौका निकाल कर अरविंद केजरीवाल ने सफाई दी थी कि दोनों गले नहीं मिले थे, बल्कि लालू यादव स्टेज पर उनके गले पड़ गये थे. अरविंद केजरीवाल का दावा रहा कि लालू यादव ने उनका हाथ खींच कर जबरन गले मिल लिया था.
असल में अरविंद केजरीवाल देश और देश की राजनीति से भ्रष्टाचार खत्म करने के आंदोलन से ही राजनीति में आये और दिल्ली के मुख्यमंत्री बने, जबकि लालू यादव चारा घोटाले में भ्रष्टाचार के मामले में ही अदालत से सजायाफ्ता हैं - लेकिन अब तो लग रहा है अरविंद केजरीवाल ऐसे मुद्दों से वैसे ही तौबा करने का फैसला कर लिया है, जैसे देश में जन लोकपाल की मांग से. लोकपाल के मौजूदा स्वरूप को वो 'जोकपाल' बता चुके हैं.
तेजस्वी यादव और अरविंद केजरीवाल की मुलाकात ऐसे दौर में हुई है जब विपक्ष एकजुट होकर 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी को चैलेंज करने की तैयारी कर रहा है. कोशिश तो विपक्ष को एकजुट करने की ही हो रही है, लेकिन एकजुटता की ये कोशिश अलग अलग गुटों में हो रही है - और दोनों नेताओं के मुलाकात की ताजा तस्वीर भी विपक्ष के बिखराव की ही कहानी कह रही है.
कोई शक नहीं कि मुलाकात की तस्वीर में मोदी विरोध की मंशा ही है, लेकिन निशाने पर और भी नेता हैं जो विपक्षी खेमे में कोशिशें कर रहे हैं. ममता बनर्जी को थोड़ी देर के लिए अलग रख कर देखें तो सामने से नीतीश कुमार और राहुल गांधी तो नजर आ ही रहे हैं - ऐसे में सवाल ये है कि अगर तेजस्वी यादव और अरविंद केजरीवाल की मुलाकात के पीछे लालू यादव ही हैं, तो निशाने पर कौन है?
केजरीवाल से तेजस्वी का मिलना!
जैसे तेजस्वी यादव ने अरविंद केजरीवाल के साथ मुलाकात की तस्वीर शेयर की है, वैसी ही तस्वीर एक बार राहुल गांधी के साथ लंच करने के बाद की थी - दोनों मिले होंगे तो हाल चाल से आगे बढ़ कर बातें भी हुई ही होंगी, लेकिन बाद में कभी ऐसा नहीं लगा कि मुलाकात का कोई अच्छा नतीजा निकल सका था.
बहरहाल, बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव दिल्ली पहुंच कर अरविंद केजरीवाल से मिलते हैं. फिर ट्विटर पर मुलाकात की तस्वीरें भी शेयर करते हैं. ये भी नहीं कहते कि मुलाकात शिष्टाचार वश हुई या मुलाकात में कोई राजनीति की बात नहीं हुई. ऐसा कम ही होता है, लेकिन इस मुलाकात में ऐसी बातों की गुंजाइश भी कम है - और यही कारण है कि ये मुलाकात कई राजनीतिक इशारे करती है.
लालू यादव से गले मिलने की बात से इनकार कर चुके अरविंद केजरीवाल क्या तेजस्वी की पहल पर हाथ मिलाने का मन बना रहे हैं?
मुलाकात की तस्वीर ट्विटर पर शेयर करते हुए तेजस्वी यादव ने लिखा है, 'दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल जी से मुलाकात के दौरान वर्तमान सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर विस्तृत चर्चा हुई. बीजेपी सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों, संसाधनों, राष्ट्रीय संपत्ति और देश को पूंजीपतियों के हाथों गिरवी रख दिया है...हम सबों को मिलकर देश बचाना है.'
तेजस्वी यादव के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए अरविंद केजरीवाल लिखते हैं, 'घर पर तेजस्वी यादव जी का स्वागत करके अच्छा लगा... मीटिंग काफी अच्छी रही... देश को प्रभावित करने वाले बहुत सारे मसलों पर विचार विमर्श हुआ.'
विपक्ष की राजनीति में मुलाकात के मायने
अरविंद केजरीवाल से तेजस्वी यादव ऐसे वक्त मिले हैं जब महागठबंधन की तरह से पूर्णिया रैली की तैयारियां की जा रही हैं - और आम आदमी पार्टी के नेता कुछ दिन पहले ही केसीआर यानी तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की रैली से लौटे हैं.
हैदराबाद की खम्मम में हुई केसीआर की रैली से लेकर महागठबंधन की पूर्णिया रैली के बीच अरविंद केजरीवाल का कॉमन फैक्टर के तौर पर जुड़ा होना, यूं ही तो नहीं हो सकता. विपक्षी खेमे में हाल फिलहाल एक बंटवारा साफ साफ देखा गया है - एक तरफ केजरीवाल और केसीआर और एक तरफ कांग्रेस.
लेकिन सड़क की यही दूरी संसद पहुंच कर कुछ देर के लिए ही सही खत्म भी होती लगती है. अदानी के कारोबार पर जेपीसी जांच की मांग के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन जरूर कांग्रेस के साथ जोड़ा जा सकता है, लेकिन ये बीजेपी और मोदी विरोध के लिए ही ज्यादा माना जाना चाहिये.
ये जेपीसी की मांग की वो मुद्दा है जिस पर अड़े होने के कारण संसद में कांग्रेस अकेली पड़ती नजर आयी है. अगर कांग्रेस ने जेपीसी की जिद नहीं पकड़ी होती तो लेफ्ट के साथ साथ ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस भी साथ खड़ी नजर आती - जबकि ममता बनर्जी की राजनीति काफी दिनों से विपक्ष से दूर और बीजेपी के करीब नजर आ रही है.
क्या महागठबंधन की प्रस्तावित रैली और केसीआर की खम्मम रैली में कोई कनेक्शन हो सकता है?
ध्यान रहे, केसीआर की रैली में तेजस्वी यादव शामिल नहीं हुए थे, जबकि अरविंद केजरीवाल अपने साथ पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को भी लेकर गये थे - तेजस्वी यादव को बुलाया नहीं गया था ऐसा तो नहीं लगता, क्योंकि बुलावा ऐसा भेजा गया था जिसमें चार नेताओं को छोड़ कर सारे ही बाहर रह गये थे. केसीआर ने केजरीवाल सहित तीन मुख्यमंत्रियों और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव को ही बुलाया था.
विपक्षी एकता की कवायद के नजरिये से देखें तो तेजस्वी यादव का अरविंद केजरीवाल से मिलना भी करीब करीब वैसा ही है, जैसा अखिलेश यादव का केजरीवाल और केसीआर के साथ मंच शेयर करना - मतलब साफ है नीतीश कुमार सीन से बाहर हैं.
नीतीश कुमार से दूरी बनाये जाने का संकेत इसलिए भी मिल रहा है क्योंकि वो काफी पहले ही अखिलेश यादव को यूपी में महागठबंधन का नेता घोषित कर चुके हैं. नीतीश कुमार ने ये बात कांग्रेस नेतृत्व की मंजूरी लिये बगैर ही कह डाली थी - और अब तक तो यही देखने को मिला है कि लालू यादव के साथ सोनिया गांधी से हुई मुलाकात के बाद से अभी तक उसके आगे कुछ भी देखने सुनने को नहीं मिला है.
और ये तो ऐसा लग रहा है जैसे विपक्षी एकता की कोई ऐसी कोशिश चल रही है, जिसमें सीधे सीधे कांग्रेस नहीं जुड़ी है - लेकिन अगर लालू यादव इस कवायद से जुड़े हैं तो ये भी मान कर चलना चाहिये कि वो कांग्रेस से अलग होकर विपक्ष की राजनीति नहीं करने वाले हैं, भले ही उसके लिए नीतीश की कुर्बानी देनी पड़े.
थोड़ा गंभीरता से विचार करें तो अरविंद केजरीवाल को साथ लेकर केसीआर और लालू यादव के मिशन में अगर कोई अलग थलग नजर आ रहा है तो वो नीतीश कुमार ही हैं - राहुल गांधी तो बिलकुल नहीं.
लेकिन ये सब उतना भी सीधा नहीं हैं. कम से कम बीजेपी के सामने तो ऐसी कोई तस्वीर नहीं ही नजर आ रही है. जब कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के समापन समारोह में केसीआर और केजरीवाल को न बुलाया जाता हो, लेकिन संसद में मल्लिकार्जुन खड़गे की मीटिंग में सारे ही मौजूद नजर आते हों तो क्या ही कहा जाये - बीजेपी के लिए तो बड़ा ही कन्फ्यूजन है.
नीतीश कुमार बार बार इनकार करते रहे हैं कि वो भी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार है, जबकि अरविंद केजरीवाल खुलेआम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ललकारते रहे हैं. नीतीश कुमार को न कांग्रेस पूछ रही है, न केसीआर - और ये सारी कवायद लालू प्रसाद यादव लौट आने के बाद हो रहा है - ये तो साफ है कि पूरी रणनीति के पीछे लालू यादव ही हैं, लेकिन कुछ बातें ऐसी जरूर हैं जो सीधे सीधे समझ में नहीं आ रही हैं.
मसलन, नीतीश कुमार न सही, विपक्षी एकता की कोशिश में राहुल गांधी कहां हैं? क्या अरविंद केजरीवाल भी लालू यादव का संदेश पाकर राहुल गांधी को 2024 में नेता मानने के लिए मन ही मन तैयार हो रहे हैं? क्योंकि लगता नहीं कि लालू यादव कांग्रेस के हितों के खिलाफ कोई राजनीतिक कदम उठाएंगे.
अगर आपके भी मन में ये सवाल है कि तेजस्वी यादव आखिर अरविंद केजरीवाल से मिलने क्यों गये थे? सवाल का जवाब भी सवालिया लहजे में भी मिलता लगता है. शायद इसलिए भी क्योंकि अरविंद केजरीवाल से मिलने से ठीक पहले तेजस्वी यादव रांची में थे और वहां भी तेजस्वी यादव और हेमंत सोरेन की मुलाकात हुई थी.
ऐसा में ये सवाल तो हो ही सकता है कि क्या तेजस्वी यादव महागठबंधन की पूर्णिया रैली के लिए अरविंद केजरीवाल को न्योता देने गये थे?
ये तो खबर आ ही चुकी है कि लालू यादव भी महागठबंधन की रैली को संबोधित करने वाले हैं - और ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या अरविंद केजरीवाल अब लालू यादव के साथ भी मंच शेयर करने का मन बना चुके हैं?
लेकिन पूर्णिया की रैली में नीतीश कुमार तो होंगे ना?
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