बात ये नहीं है कि लालू यादव (Lalu Prasad) के घर में झगड़ा है, ताज्जुब इसलिए हो रहा है कि सारा बवाल उनकी आंखों के सामने हो रहा है. तेज प्रताप यादव बागी रुख तब अख्तियार किये हुए हैं जब लालू यादव जमानत पर जेल से बाहर परिवार के साथ हैं - और परिवार को भी आशंका खाये जा रही है कि जाने कब जमानत खारिज हो जाएगी और अदालत से जेल में हाजिरी लगाने का फरमान आ जाएगा.
आरजेडी में जो झगड़ा चल रहा है उसमें आमने सामने दो चेहरे दिखायी पड़ रहे हैं - तेज प्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) और बिहार आरजेडी अध्यक्ष जगदानंद सिंह. जगदानंद सिंह आरजेडी का सवर्ण चेहरा हैं और लालू-राबड़ी शासन में गिनती के सवर्ण मंत्रियों में सबसे प्रभावी होने का तमगा भी हासिल किये हुए हैं.
ये झगड़ा तो पुराना है, लेकिन आग नये सिरे से लगी हुई लगती है. दरअसल, जिन आकाश यादव को तेज प्रताप यादव का दाहिना हाथ माना जाता है, वो जगदानंद सिंह को फूटी आंख नहीं सुहाते और अभी से नहीं बल्कि काफी पहले से. तेज प्रताप छात्र आरजेडी के संरक्षक सदस्य हैं - और वो चाहते थे कि आकाश यादव को छात्र आरजेडी का अध्यक्ष बनाया जाये, लेकिन जगदानंद सिंह इसके लिए राजी नहीं थे. सूत्रों के हवाले से आज तक ने खबर दी है, बाद में लालू प्रसाद के दखल देने के बाद जगदानंद सिंह मान गये थे और फिर तेज प्रताप ने आकाश यादव को छात्र आरजेडी का प्रदेश अध्यक्ष घोषित कर दिया.
लेकिन जगदानंद सिंह का दावा है कि छात्र आरजेडी का अध्यक्ष पद खाली पड़ा था. फिर तो तेज प्रताप यादव की तरफ से आकाश यादव की नियुक्ति की घोषणा का कोई मतलब नहीं रह जाता. जगदानंद सिंह ने कहा है, 'छात्र आरजेडी का अध्यक्ष पद काफी दिनों से खाली पड़ा था, जिस पर अब मैंने गगन कुमार को मनोनीत कर दिया है.'
जगदानंद सिंह के बयान को काउंटर करते हुए तेज प्रताप ने ट्विटर पर लिखा, 'जगदानंद सिंह ने जो फैसला लिया है वो पार्टी के संविधान के विपरीत है.'
ज्यादा देर नहीं लगी, तेज प्रताप के छोटे भाई लेकिन बिहार चुनाव में आरजेडी की तरफ से मुख्यमंत्री पद के...
बात ये नहीं है कि लालू यादव (Lalu Prasad) के घर में झगड़ा है, ताज्जुब इसलिए हो रहा है कि सारा बवाल उनकी आंखों के सामने हो रहा है. तेज प्रताप यादव बागी रुख तब अख्तियार किये हुए हैं जब लालू यादव जमानत पर जेल से बाहर परिवार के साथ हैं - और परिवार को भी आशंका खाये जा रही है कि जाने कब जमानत खारिज हो जाएगी और अदालत से जेल में हाजिरी लगाने का फरमान आ जाएगा.
आरजेडी में जो झगड़ा चल रहा है उसमें आमने सामने दो चेहरे दिखायी पड़ रहे हैं - तेज प्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) और बिहार आरजेडी अध्यक्ष जगदानंद सिंह. जगदानंद सिंह आरजेडी का सवर्ण चेहरा हैं और लालू-राबड़ी शासन में गिनती के सवर्ण मंत्रियों में सबसे प्रभावी होने का तमगा भी हासिल किये हुए हैं.
ये झगड़ा तो पुराना है, लेकिन आग नये सिरे से लगी हुई लगती है. दरअसल, जिन आकाश यादव को तेज प्रताप यादव का दाहिना हाथ माना जाता है, वो जगदानंद सिंह को फूटी आंख नहीं सुहाते और अभी से नहीं बल्कि काफी पहले से. तेज प्रताप छात्र आरजेडी के संरक्षक सदस्य हैं - और वो चाहते थे कि आकाश यादव को छात्र आरजेडी का अध्यक्ष बनाया जाये, लेकिन जगदानंद सिंह इसके लिए राजी नहीं थे. सूत्रों के हवाले से आज तक ने खबर दी है, बाद में लालू प्रसाद के दखल देने के बाद जगदानंद सिंह मान गये थे और फिर तेज प्रताप ने आकाश यादव को छात्र आरजेडी का प्रदेश अध्यक्ष घोषित कर दिया.
लेकिन जगदानंद सिंह का दावा है कि छात्र आरजेडी का अध्यक्ष पद खाली पड़ा था. फिर तो तेज प्रताप यादव की तरफ से आकाश यादव की नियुक्ति की घोषणा का कोई मतलब नहीं रह जाता. जगदानंद सिंह ने कहा है, 'छात्र आरजेडी का अध्यक्ष पद काफी दिनों से खाली पड़ा था, जिस पर अब मैंने गगन कुमार को मनोनीत कर दिया है.'
जगदानंद सिंह के बयान को काउंटर करते हुए तेज प्रताप ने ट्विटर पर लिखा, 'जगदानंद सिंह ने जो फैसला लिया है वो पार्टी के संविधान के विपरीत है.'
ज्यादा देर नहीं लगी, तेज प्रताप के छोटे भाई लेकिन बिहार चुनाव में आरजेडी की तरफ से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार रहे तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) का भी बयान आ गया जो तेज प्रताप के दावे को न्यूट्रलाइज करने की कोशिश ही लगती है, 'जगदा बाबू स्वतंत्र हैं... प्रदेश संगठन के फेरबदल में. इसमें मेरा कोई हस्तक्षेप नहीं है - और जगदा बाबू से अनुभवी कौन सा नेता है?'
तेज प्रताप की मुश्किल ये है कि तेजस्वी यादव के खिलाफ कुछ बोल तो सकते नहीं, लिहाजा जगदानंद सिंह के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिये हैं. कह रहे हैं, अगर जगदानंद सिंह को छात्र राजद के अध्यक्ष को हटाना ही था तो वह एक बार मुझसे बात भी कर सकते थे. अब तो यहां तक कह रहे हैं रि अगर ये फैसला वापस नहीं लिया गया तो वो इस मामले को कोर्ट तक लेकर जाएंगे, चाहे बगावत ही क्यों ना करनी पड़े. तेवर तो वैसे हैं ही, 'क्या जगदानंद सिंह ये नहीं जानते कि मैं भी लालू प्रसाद यादव का बेटा हूं?'
सच तो ये है कि जगदानंद सिंह नहीं भूले हैं, बल्कि तेज प्रताप यादव को शायद याद नहीं है कि जो कुछ भी हो रहा है वो लालू यादव की मंजूरी के बगैर तो होने से रहा - वो भी तब जब लालू यादव सिर्फ आरजेडी को ही दुरूस्त नहीं कर रहे, विपक्षी खेमे को भी अपने पक्ष और बीजेपी के विपक्ष में लामबंद करने में जुटे हुए हैं.
ये झगड़ा तो हाथी दांत जैसा है
अभी जो कुछ आरजेडी में चल रहा है, उसके जख्म काफी पुराने हैं. तेजस्वी यादव को आरजेडी में तरजीह दिया जाना. बाकी नेताओं को तो कोई फर्क नहीं पड़ता की कमान किसे मिलती है, लेकिन परिवार में, बल्कि कहें कि भाई-बहनों के मन में एक टीस तो है ही. परिवार से बाहर कभी पप्पू यादव कांटे की तरह चुभने जरूर लगे थे, लेकिन लालू यादव ने ये कहते हुए निकाल बाहर किया कि 'वारिस तो बेटा ही होगा, नहीं होगा तो क्या भैंस चराएगा?'
मौजूदा तकरार के मुख्य तौर पर दो कारण नजर आते हैं - एक, तेज प्रताप की बातों से जगदानंद सिंह की नाराजगी और छात्र आरजेडी के कार्यक्रम में लगे पोस्टर से तेजस्वी यादव की तस्वीर का गायब होना.
तेज प्रताप ने जगदानंद सिंह को लेकर बहुत कुछ बोल दिया था. जानते और समझते तो वो भी होंगे कि असल वजह कोई और है, लेकिन दस दिन तक आरजेडी दफ्तर से दूरी बनाकर जगदानंद सिंह ने अपनी नाराजगी जाहिर कर दी. बताते हैं लालू यादव के कहने पर ही माने और 18 अगस्त को आते ही एक्शन दिखा दिया - आकाश यादव को हटाकर गगन कुमार की छात्र आरजेडी अध्यक्ष पद पर नियुक्ति करके. ध्यान देने वाली बात ये है कि ऐसा करने से पहले जगदानंद सिंह आते ही तेजस्वी यादव से मुलाकात किये थे.
तेज प्रताप से नाराज चल रहे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह जो पिछले 10 दिनों से पार्टी दफ्तर तक नहीं गए, आनन-फानन में बुधवार शाम को तेजस्वी यादव से मुलाकात की और फिर तेज प्रताप के बेहद करीबी आकाश यादव को छात्र आरजेडी के अध्यक्ष पद से हटा दिया. माना जा रहा है कि लालू प्रसाद यादव के हस्तक्षेप के बाद जगदानंद सिंह 18 अगस्त को पार्टी आए और गगन कुमार को छात्र राजद का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया.
छात्र आरजेडी अध्यक्ष की नियुक्ति भले ही तेजस्वी यादव की सहमति और लालू यादव की मंजूरी से हुई हो, लेकिन जगदानंद सिंह की कलम से जारी आदेश पर नाराजगी जाहिर करने में तेज प्रताप ने जरा भी देर नहीं लगायी, 'प्रवासी सलाहकार से सलाह में अध्यक्ष जी ये भूल गए कि पार्टी संविधान से चलता है... जो कुछ हुआ वो राजद के संविधान के खिलाफ हुआ.'
ऊपर से तो जगदानंद सिंह विनम्रता के साथ सब कुछ ढकने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनका एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें सीधे सीधे पूछ रहे हैं - 'कौन हैं तेज प्रताप?'
वायरल वीडियो में, मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जगदानंद सिंह को कहते सुना गया है, 'मैं उन्हें... जवाबदेह नहीं हूं... मैं सिर्फ लालू प्रसाद यादव को जवाबदेह हूं... वो अध्यक्ष हैं...'
दस दिन से जगदानंद सिंह के मन में जो कुछ भरा हुआ था, वीडियो के जरिये सब बाहर निकल आया है - 'तेज प्रताप आप लोगों को कुछ खिलाता-पिलाता होगा... आप सवाल मुझसे पूछ रहे हो - कौन है वो? हमारे पचहत्तर माननीय सदस्यों में से वो भी एक सदस्य हैं.'
तेज प्रताप भी अपनी तरफ से कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं और जगदानंद सिंह को सजा दिलाने तक पार्टी के कार्यक्रमों से दूरी बना लेने की भी धमकी दे चुके हैं. जगदानंद सिंह को लेकर तेज प्रताप का कहना है, 'कुर्सी किसी की पुश्तैनी नहीं है.'
वैसे ठीक ही तो कह रहे हैं तेज प्रताप वो ये तो जानते ही हैं कि पुश्तैनी का मामला सिर्फ परिवार तक ही सीमित है और जगदानंद सिंह तो परिवार से बाहर के हैं.
लेकिन जगदानंद सिंह के बहाने तेज प्रताप यादव जो बात कह रहे हैं वो अपनेआप दूर-तलक जाती है, 'वो मनमानी कर सोच रहे हैं कि पार्टी का अध्यक्ष बन जाएंगे!'
असल लड़ाई तो अंदर की बात है
जगदानंद सिंह के नाम पर तेज प्रताप यादव ने पार्टी अध्यक्ष बनने की जो बात बोली है, उसके निशाने पर तो तेजस्वी यादव लगते हैं, जगदानंद सिंह का तो कंधा भर इस्तेमाल हुआ है निशाना साधने के लिए.
अभी पिछले ही महीने आरजेडी की रजत जयंती मनायी गयी जिसमें लालू यादव ने भी पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया था - और अब पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होना है. चुनाव में अभी वक्त तो काफी है, लेकिन माहौल तो पहले से ही बनाना जरूरी होता है. तेज प्रताप ने जगदानंद सिंह के बहाने आरजेडी अध्यक्ष पद की तरफ ही इशारा किया है.
ये तो पहले ही घोषित किया जा चुका है कि लालू यादव के राजनीतिक उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव हैं. रही सही कसर बिहार चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाकर पूरी कर दी गयी, लेकिन आरजेडी अध्यक्ष के पद पर तो अभी तक लालू यादव ही बने हुए हैं.
नवंबर, 2022 में राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर लालू यादव का कार्यकाल पूरा हो रहा है. नये अध्यक्ष के लिए चुनाव होना तो रस्मअदायगी भर होती है, लेकिन अगली बार ये खास मौका हो सकता है, बशर्ते लालू यादव आगे भी अध्यक्ष बने रहने को लेकर पुनर्विचार कर रहे हों.
एक धारणा ये भी बन रही है कि लालू यादव की सेहत सही नहीं चल रही है और पार्टी के रजत जयंती समारोह में ये महसूस भी किया गया था. हालांकि, विपक्षी नेताओं से मुलाकात की जो तस्वीरें आ रही हैं, उनमें लालू यादव बेहतर लग रहे हैं - ऐसे में मुमकिन है लालू यादव अध्यक्ष की कुर्सी भी मुमकिन है तेजस्वी यादव को सौंप दें.
अब जगदानंद सिंह जैसे नेता भले ये मान लें कि कुर्सी पुश्तैनी नहीं है, लेकिन तेज प्रताप यादव कैसे हजम कर लें - और तेज प्रताप ही क्यों ये सब तो मन में मीसा भारती के भी चल ही रहा होगा. लालू यादव की एक और बेटी रोहिणी आचार्य को भी चुनावों के दौरान सोशल मीडिया पर खासा एक्टिव देखा गया. ऐसा कैसे हो सकता है कि उनकी जरा भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा न हो.
लालू यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती फिलहाल राज्य सभा की सांसद हैं - और जाहिर है राजनीति में तेजस्वी से पहले से सक्रिय रही हैं. संगठन में भी उनकी अच्छी पैठ मानी जाती है. कार्यकर्ताओं में उनके प्रति अलग से आदर भाव देखा जाता है, जो सिर्फ लालू यादव की बेटी होने की वजह से ही नहीं बल्कि उनके निजी बात व्यवहार के चलते देखने को मिलता है.
2015 में हुए बिहार चुनाव के दौरान एक चर्चा रही कि तेज प्रताप को मंत्री बनवाने में बड़ी भूमिका मीसा भारती की ही रही - और आगे चल कर मीसा भारती को राज्य सभा पहुंचाने में तेज प्रताप यादव ने जोर लगा रखी थी.
कहने को तो तेज प्रताप खुद को कृष्ण और तेजस्वी यादव को अर्जुन बताते हैं, लेकिन ये तो ऐसा लगता है जैसे भाई-बहन मिलकर ही तेजस्वी यादव की राह में रोड़े अटकाने की कोशिश कर रहे हों - और लालू यादव के सामने ये झगड़ा खत्म करना सबसे बड़ा चैलेंज साबित हो सकता है.
जहां तक बिहार के यादव परिवार के झगड़े की बात है, वो यूपी के मुलायम परिवार जैसा बिलकुल नहीं है क्योंकि लालू यादव ने पहले ही साफ साफ बंटवारा कर दिया था, लेकिन नवंबर में होने वाले संगठन के चुनाव ने नये सिरे से मौका दे दिया है - कौन बनेगा अध्यक्ष?
हां, मुलायम परिवार और लालू परिवार के झगड़े में एक ही कॉमन बात हो सकती है - कोई बाहरी दुश्मन तो नहीं? बाहरी दुश्मन तो वही होगा जिसे आरजेडी में तोड़ फोड़ से सीधा फायदा हो. जैसे हाल ही में पासवान परिवार की लोक जनशक्ति पार्टी में हुआ. एक ही झटके में चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस पार्टी के दो अलग अलग हिस्से लेकर बंट गये.
ये तो सबने देखा ही कि किस तरह बीजेपी नेताओं ने आगे बढ़ कर लोक जनशक्ति पार्टी में दो फाड़ होने के बावजूद टूट के औपचारिक शक्ल लेने से रोक दिया - तोड़ने की तोहमत तो नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के नेताओं पर लगी, लेकिन मंत्री बन कर पशुपति पारस बीजेपी के ज्यादा करीबी हो गये.
जाहिर है एलजेपी को तोड़ने वालों की ही नजर आरजेडी पर भी टिकी ही होगी. मौके की तलाश में तो विधानसभा चुनावों के वक्त से ही होंगे, लेकिन दाल गल नहीं पायी - कोई दो राय नहीं कि जेडीयू और बीजेपी दोनों ही में आरजेडी के घर के झगड़े का फायदा उठाने की भी होड़ मची ही होगी.
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