लालू यादव (Lalu Prasad) के घर में झगड़ा अब सारी हदें पार कर चुका है, ये तो ऐसा लगता है कि झगड़े में तेज प्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) पूरी तरह अकेले भी पड़ चुके हैं - क्योंकि तेज प्रताप यादव ने छोटे भाई तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) को निशाना बनाने के चक्कर में बड़ी बहन मीसा भारती का भी ख्याल नहीं रखा है.
सब कुछ भले ही सामने दिखायी पड़ रहा हो. सामने से नजर आ रहा हो कि दोनों भाई एक दूसरे को टारगेट कर रहे हैं, लेकिन खास बात ये भी है कि दोनों में से कोई भी किसी का सीधे सीधे नाम नहीं ले रहा है.
मीडिया के सवाल पर दोनों ही मुद्दे पर अपना अपना पक्ष भी रख रहे हैं, लेकिन नाम कोई नहीं ले रहा है. हां, एक फर्क जरूर है और वो ये कि बड़े भाई तेज प्रताप चाहे कितने भी आक्रामक क्यों न हो चुके हों, लेकिन लालू यादव के व्यक्तित्व के बहाने छोटे होकर भी तेजस्वी यादव बड़े आराम से अपनी बात कह रहे हैं. चेहरे पर तनाव भी न दिखे ऐसी भी कोशिश होती है, लेकिन पूरी तरह सफल नहीं हो पाते.
तेज प्रताप के आरोप बिलकुल सीधे सीधे हैं. कह रहे हैं दिल्ली में उनके पिता को बंधक बना लिया गया है - और करीब साल भर से उनको पटना नहीं जाने दिया जा रहा है. तेज प्रताप ये भी बताते हैं कि उनके पिता बीमार है, इसलिए वो उनको किसी तरह का तनाव नहीं देना चाहते - लेकिन ये आरोप जरूर लगाते हैं कि कुछ लोग इसका नाजायज फायदा उठा रहे हैं - और लगे हाथ दोहराते भी हैं - 'मैं ऐसा होने नहीं दूंगा.'
ऐसा भी नहीं कि ये झगड़ा कोई हाल फिलहाल शुरू हुआ है, लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि ये सब तब हो रहा है जब लालू यादव जमानत पर जेल से बाहर और पूरे परिवार के साथ हैं - और ये यूपी के मुलायम सिंह यादव के परिवार और पार्टी जैसा तो कतई नहीं है.
'कृष्ण' और 'अर्जुन' के बीच 'महाभारत'
तेज प्रताप...
लालू यादव (Lalu Prasad) के घर में झगड़ा अब सारी हदें पार कर चुका है, ये तो ऐसा लगता है कि झगड़े में तेज प्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) पूरी तरह अकेले भी पड़ चुके हैं - क्योंकि तेज प्रताप यादव ने छोटे भाई तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) को निशाना बनाने के चक्कर में बड़ी बहन मीसा भारती का भी ख्याल नहीं रखा है.
सब कुछ भले ही सामने दिखायी पड़ रहा हो. सामने से नजर आ रहा हो कि दोनों भाई एक दूसरे को टारगेट कर रहे हैं, लेकिन खास बात ये भी है कि दोनों में से कोई भी किसी का सीधे सीधे नाम नहीं ले रहा है.
मीडिया के सवाल पर दोनों ही मुद्दे पर अपना अपना पक्ष भी रख रहे हैं, लेकिन नाम कोई नहीं ले रहा है. हां, एक फर्क जरूर है और वो ये कि बड़े भाई तेज प्रताप चाहे कितने भी आक्रामक क्यों न हो चुके हों, लेकिन लालू यादव के व्यक्तित्व के बहाने छोटे होकर भी तेजस्वी यादव बड़े आराम से अपनी बात कह रहे हैं. चेहरे पर तनाव भी न दिखे ऐसी भी कोशिश होती है, लेकिन पूरी तरह सफल नहीं हो पाते.
तेज प्रताप के आरोप बिलकुल सीधे सीधे हैं. कह रहे हैं दिल्ली में उनके पिता को बंधक बना लिया गया है - और करीब साल भर से उनको पटना नहीं जाने दिया जा रहा है. तेज प्रताप ये भी बताते हैं कि उनके पिता बीमार है, इसलिए वो उनको किसी तरह का तनाव नहीं देना चाहते - लेकिन ये आरोप जरूर लगाते हैं कि कुछ लोग इसका नाजायज फायदा उठा रहे हैं - और लगे हाथ दोहराते भी हैं - 'मैं ऐसा होने नहीं दूंगा.'
ऐसा भी नहीं कि ये झगड़ा कोई हाल फिलहाल शुरू हुआ है, लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि ये सब तब हो रहा है जब लालू यादव जमानत पर जेल से बाहर और पूरे परिवार के साथ हैं - और ये यूपी के मुलायम सिंह यादव के परिवार और पार्टी जैसा तो कतई नहीं है.
'कृष्ण' और 'अर्जुन' के बीच 'महाभारत'
तेज प्रताप खुद को कृष्ण और छोटे भाई तेजस्वी यादव को अर्जुन तो पहले से ही बताते रहे हैं, लेकिन आपस में भी महाभारत भी शुरू हो जाएगा ऐसा नहीं लग रहा था क्योंकि लालू प्रसाद यादव ने तो किसी भी तरह के राजनीतिक विवाद की संभावना को पहले ही खत्म कर दिया था - जो कसर बाकी रही वो भी बीते विधानसभा चुनावों में पूरी हो गयी थी.
तेज प्रताप यादव का कहना है कि वो अपने पिता लालू यादव से बात किये थे और पटना चलने को कहा था, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. तेज प्रताप ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि जो मौजूदा हालात हैं उसकी वजह से आरजेडी से लोग दूर होने लगे हैं, 'पहले हमारे घर का दरवाजा खुला रहता था... आप आउटहाउस में बैठे रहते थे और जनता से मिलना-जुलना होता था, लेकिन अब क्या हो रहा है - रस्सा लगा दिया गया है... जनता हमसे दूर हो गई है.'
तेज प्रताप के ऐसे आकलन का जो भी आधार हो, लेकिन एक सीट से ही सही लेकिन राष्ट्रीय जनता दल 2020 के विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आयी है. आरजेडी के बाद बीजेपी का नंबर आता है और तीसरे नंबर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू का.
तेज प्रताप यादव ने अपने ही परिवार पर अपने पिता को बंधक बना लेने का बहुत बड़ा आरोप लगाया है. तेज प्रताप यादव का सीधा सीधा इल्जाम है, 'मेरे पिता की तबीयत ठीक नहीं है. चार-पांच लोग हैं पार्टी में और वो राष्ट्रीय जनता दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का सपना देखना चाहते हैं. उनका नाम लेने या बताने की जरूरत नहीं है, हर कोई उनको जानता है. करीब साल भर पहले वो जेल से रिहा हुए थे लेकिन दिल्ली में बंधक बने हुए हैं.'
बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव जैसे ही दिल्ली से पटना पहुंचते हैं मीडिया उनका पक्ष जानना चाहता है. मीडिया की तरफ से तेज प्रताप के आरोपों को दोहराया जाता है. तेजस्वी यादव बड़े आराम से सुनते हैं और फिर अपनी बात कहते हैं.
तेजस्वी यादव न तो आरोपों का जिक्र कर खारिज करने की कोशिश करते हैं, न अपनी तरफ से कोई और बात जोड़ते हैं, बल्कि नपे तुले शब्दों में अपनी बात कहते हैं - और ये पूरी तरह राजनीतिक बयान होता है.
तेजस्वी यादव मीडिया से कहते हैं, देखिये अब... हम इतना जरूर कह सकते हैं... लालू जी जो हैं लंबे समय तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे... रेल मंत्री रहे... दो-दो प्रधानमंत्री इन्होंने बनाया... आडवाणी जी को भी गिरफ्तार किया... तो उनका जो व्यक्तित्व है इससे मैच नहीं करता.'
सवाल ये है कि क्या तेज प्रताप की प्राथमिकता बदल गयी है. कहीं ऐसा तो नहीं कि तेजस्वी को अर्जुन बताते बताते तेज प्रताप ये भूल गये हैं कि वो खुद को कृष्ण मानते रहे हैं, लेकिन जो अभी अभी अपने जिस राजनीतिक फोरम का तेज प्रताप ने रजिस्ट्रेशन कराया है - चुनाव निशान तो उसके लिए बांसुरी ही चुना है!
तेज प्रताप के पीछे कौन है?
तेज प्रताप के निशाने पर अब भी आरजेडी के बिहार अध्यक्ष जगदानंद सिंह ही रहते हैं - और अध्यक्ष बनने का सपना देखने को लेकर तेज प्रताप अगर कभी नाम लेते हैं तो जगदानंद सिंह से ही काम चलाते हैं. भले ही उनके निशाने पर तेजस्वी यादव हुआ करते हों.
तेज प्रताप की ताजा मुश्किल ये है कि अब मीसा भारती ने भी उनका सपोर्ट करना छोड़ दिया है - और ऐसा इसलिए नहीं क्योंकि तेज प्रताप के पिता लालू यादव को बंधक बनाने के दायरे में मीसा भारती भी स्वाभाविक तौर पर शुमार हो जा रही हैं. बल्कि, इसलिए क्योंकि तेज प्रताप के साथ जाना मीसा भारती के लिए घाटे का सौदा हो सकता है.
देखने में तो यही आया है कि शुरू से ही तेज प्रताप और मीसा भारती दोनों भाई-बहन एक दूसरे पर जान छिड़कते आये हैं, लेकिन बीच में जब राजनीति आड़े आने लगती है तो रिश्ते पीछे यूं ही छूट जाते हैं. बीती बातों को याद करें तो 2015 में जब लालू यादव और नीतीश कुमार के महागठबंधन की जीत हुई तो तेजस्वी को तो डिप्टी सीएम बनना ही था, लेकिन शुरू में तेज प्रताप का मंत्री बनना नहीं तय था. तभी सुनने में आया था कि मीसा भारती ने लड़ कर तेज प्रताप को भी मंत्री बनवाया था - और जब मीसा भारती के राज्य सभा जाने की बारी आयी तो ठीक वैसे ही तेज प्रताप भी खंभे की तरफ पीछे खड़े हो गये. क्योंकि तब ये भी सुनने में आया था कि लालू यादव, बेटी मीसा की जगह पत्नी राबड़ी देवी को राज्य सभा भेजना चाहते थे.
चारा घोटाले में रांची जेल में सजा काट रहे लालू यादव जमानत मिलने के बाद से दिल्ली में राज्य सभा सांसद बेटी मीसा भारती के आवास पर ही रह रहे हैं. लालू यादव के पटना जाने का भी कार्यक्रम बना था जब राष्ट्रीय जनता दल का स्थापना समारोह होना था, लेकिन तबीयत ठीक नहीं होने की वजह से ऐसा नहीं हो सका. आधिकारिक तौर पर बताया तो यही गया था.
सवाल ये है कि मीसा भारती ने आखिर तेज प्रताप का साथ क्यों छोड़ दिया?
पहली बात तो यही कि तेज प्रताप के हिस्से में पारिवारिक संपत्ति तो हो सकती है, लेकिन कोई बड़ी राजनीतिक विरासत तो है नहीं वो तो पहले से ही तेजस्वी यादव के नाम लिखी जा चुकी है. ऐसे में मीसा भारती अगर तेज प्रताप के साथ खड़ी होती हैं तो भाई तेजस्वी के साथ साथ पिता लालू यादव की भी नाराजगी झेलनी पड़ेगी - और वैसी सूरत में मीसा भारती की राजनीति का क्या होगा.
राष्ट्रीय जनता दल की पूरी विरासत तेजस्वी यादव के नाम हो चुकी है और परिवार से होने के नाते पार्टी में जो कुछ मिल रहा है वो नेता की कृपा पर ही तो संभव है. ऐसे में जितना हिस्सा तेज प्रताप का है, उतना ही मीसा भारती का भी होगा.
मीसा भारती का राज्य सभा का कार्यकाल 2023 में खत्म हो रहा है - और अगर तेजस्वी के साथ खड़ी नहीं रहीं तो आगे की राजनीति कैसे होगी. नवंबर, 2023 में ही राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष के रूप में लालू यादव का कार्यकाल खत्म हो रहा है - और माना जा रहा है कि लालू यादव भी सोनिया गांधी की तरह रिटायर होना चाह रहे हैं. सोनिया गांधी को राहुल गांधी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे देने के कारण नये सिरे से अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर काम करना पड़ रहा है, लेकिन तेजस्वी की सक्रियता से तो ऐसा नहीं लगता कि उनकी ताजपोशी में कोई समस्या खड़ी हो सकती है.
बिहार में जब नीतीश कुमार ने जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया तो वो भी उछलने लगे थे. कुछ ही दिन बाद नीतीश कुमार को नेता मानने से भी इनकार कर दिये थे. मालूम हुआ ये सब वो अपनी बिरादरी के कुछ नौकरशाहों की सलाह पर कर रहे थे - और अब सवाल ये है कि तेज प्रताप यादव का सलाहकार कौन है? तेज प्रताप यादव को भड़काने वाला कौन है? तेज प्रताप के पीछे कौन है?
करीब दस दिन तक नाराज रहने के बाद जगदानंद सिंह जब लालू यादव के मनाने के बाद आरजेडी दफ्तर लौटे तो आते ही छात्र आरजेडी का अध्यक्ष बदल दिया था. जगदानंद सिंह का कहना था कि वो खाली पद पर नियुक्ति किये हैं, लेकिन तेज प्रताप का कहना था कि जिसकी नियुक्ति वो किये थे उसे हटाकर जगदानंद सिंह ने नये आदमी को बिठा दिया. तब भी तेज प्रताप ने काफी शोर मचाया था.
अब तेज प्रताप यादव ने नया संगठन खड़ा कर दिया है - छात्र जनशक्ति परिषद. बतौर राजनीतिक दल अपने संगठन का तेज प्रताप ने रजिस्ट्रेशन भी करा लिया है - और अब तो ऐसा लगता है जैसे सीधे राष्ट्रीय जनता दल से ही दो-दो हाथ मुकाबला करने की तैयारी में हों.
आरजेडी के सहयोगी विंग की तरह काम कर रहे अपने हिस्से के दो संगठनों डीएसएस यानी धर्मनिरपेक्ष स्वयंसेवक संगठन और यदुवंशी सेना का भी नये फोरम छात्र जनशक्ति परिषद में विलय कराया जा चुका है. डीएसएस का गठन तेज प्रताप यादव ने आरएसएस की तर्ज पर किया था और तब ये दावा भी किया था कि वो संघ को मटियामेट कर देंगे. जैसे 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव कहा करते थे कि बीजेपी के दोनों बड़े नेताओं को भालू से फुंकवा कर भगा देंगे.
तेज प्रताप यादव अपने संगठन का काम भी आरजेडी के ही समानांतर करने लगे थे, तेजस्वी यादव की देखा देखी, लेकिन मामला तब फंस गया जब आरजेडी की तरफ से तेज प्रताप के छात्र जनशक्ति परिषद के चुनाव निशान पर आपत्ति दर्ज करा दी गयी. असल में तेज प्रताप ने अपने संगठन के लिए हाथ में लालटेन का सिंबल लिया था और ये राष्ट्रीय जनता दल के लालटेन से मिलता जुलता रहा.
जब बवाल बढ़ा तो तेज प्रताप ने हाथ में लालटेन छोड़ कर अपना फेवरेट चुनाव निशान ले लिया - बांसुरी. तेज प्रताप अक्सर बांसुरी बजाते हैं और सिर पगड़ी के साथ मोर पंख लगाकर कृष्ण का वेश भी धारण किये नजर आते हैं. कई बार तो लंबा वक्त वृंदावन में ही गुजार देते हैं, फिर भी खुद को अर्जुन क्यों समझने लगे हैं ये समझना अभी मुश्किल हो रहा है.
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