देश की 17 वीं लोकसभा के चुनाव का परिणाम हमारे सामने हैं. जनता ने भाजपा को बहुमत दिया है. जबकि बात अगर कांग्रेस की हो तो 2014 के आम चुनावों के मुकाबले 19 के इस चुनाव में पार्टी की स्थिति कुछ ठीक हुई है. इन तमाम बातों के बावजूद कांग्रेस की दुश्वारियां खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. पार्टी लोकसभा में विपक्ष की भूमिका तक नहीं पहुंच पाई है. ध्यान रहे कि कांग्रेस को मात्र 52 सीटें मिली हैं, जबकि कांग्रेस के गठबंधन वाले यूपीए को कुल 91 सीटें मिली हैं.
बात नेता प्रतिपक्ष की चल रही है तो हमारे लिए संसद के नियमों को भी समझ लेना बहुत जरूरी है. नियमों के अनुसार लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा प्राप्त करने के लिए किसी भी राजनीतिक दल को अकेले कम से कम 10 फीसद सीटें जीतनी होती हैं. 545 सीटों वाली लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा प्राप्त करने के लिए किसी भी राजनीतिक दल को कम से कम 55 सीटें जीतनी जरूरी हैं.
2019 के इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के चुनाव हार जाने के बाद कांग्रेस को संसदीय दल के नेता का चुनाव करना है. ऐसे में हमारे लिए उन नामों पर गौर कर लेना बहुत जरूरी है जो कांग्रेस की डूबती नैया का कप्तान बन सकते हैं. आइये एक नजर डालें कौन कौन हैं वो नाम:
शशि थरूर
नेता प्रतिपक्ष के रूप में वो नाम जो सबकी जुबान पर चर्चा का विषय बना है वो पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर का है. थरूर ने तिरुवनंतपुरम सीट से चुनाव लड़ा था. थरूर के खिलाफ भाजपा ने कुम्मनम राजशेखरन और सीपीआई ने सीदिवाकरन को टिकट दिया था. चुनाव में राजशेखरन को 316142 जबकि दिवाकरन को 258556 वोट...
देश की 17 वीं लोकसभा के चुनाव का परिणाम हमारे सामने हैं. जनता ने भाजपा को बहुमत दिया है. जबकि बात अगर कांग्रेस की हो तो 2014 के आम चुनावों के मुकाबले 19 के इस चुनाव में पार्टी की स्थिति कुछ ठीक हुई है. इन तमाम बातों के बावजूद कांग्रेस की दुश्वारियां खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. पार्टी लोकसभा में विपक्ष की भूमिका तक नहीं पहुंच पाई है. ध्यान रहे कि कांग्रेस को मात्र 52 सीटें मिली हैं, जबकि कांग्रेस के गठबंधन वाले यूपीए को कुल 91 सीटें मिली हैं.
बात नेता प्रतिपक्ष की चल रही है तो हमारे लिए संसद के नियमों को भी समझ लेना बहुत जरूरी है. नियमों के अनुसार लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा प्राप्त करने के लिए किसी भी राजनीतिक दल को अकेले कम से कम 10 फीसद सीटें जीतनी होती हैं. 545 सीटों वाली लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा प्राप्त करने के लिए किसी भी राजनीतिक दल को कम से कम 55 सीटें जीतनी जरूरी हैं.
2019 के इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के चुनाव हार जाने के बाद कांग्रेस को संसदीय दल के नेता का चुनाव करना है. ऐसे में हमारे लिए उन नामों पर गौर कर लेना बहुत जरूरी है जो कांग्रेस की डूबती नैया का कप्तान बन सकते हैं. आइये एक नजर डालें कौन कौन हैं वो नाम:
शशि थरूर
नेता प्रतिपक्ष के रूप में वो नाम जो सबकी जुबान पर चर्चा का विषय बना है वो पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर का है. थरूर ने तिरुवनंतपुरम सीट से चुनाव लड़ा था. थरूर के खिलाफ भाजपा ने कुम्मनम राजशेखरन और सीपीआई ने सीदिवाकरन को टिकट दिया था. चुनाव में राजशेखरन को 316142 जबकि दिवाकरन को 258556 वोट मिले थे. तिरुवनंतपुरम सीट कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण सीट मानी जा रही थी और इसे पार्टी की प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जा रहा था. थरूर पार्टी की इज्जत बचाने में कामयाब हुए और उन्होंने 416131 वोट हासिल कर 99,989 वोटों से चुनाव जीता.
जीत के बाद जब थरूर से लोकसभा में पार्टी के नेता पद की जिम्मेदारी उठाने को लेकर सवाल हुआ? तो जवाब में हामी भरते हुए उन्होंने कहा कि वो लोकसभा में पार्टी के नेता पद की जिम्मेदारी उठाने को तैयार हैं. चूंकि थरूर इस अहम पद के लिए सामने आ चुके हैं हमारे लिए उनकी ताकत और कमजोरियों पर बात करना भी बहुत जरूरी है.
ताकत: बात अगर इस चुनाव में थरूर की जीत की हो तो जो स्टैंड उन्होंने सबरीमला पर लिया उसे इस जीत की एक अहम वजह माना जा रहा है. इसके अलावा थरूर का शुमार पार्टी के उन चुनिन्दा लोगों में है जो अच्छा बोलते हैं साथ ही जो अपनी आलोचना में भी तर्कों का इस्तेमाल करना जानते हैं. माना जा रहा है कि हाजिरजवाबी और तर्क थरूर के दो बड़े हथियार है जिनके दम पर ये नेता सत्तापक्ष को लोहे के चने चबवा सकते हैं.
कमजोरी: यूं तो थरूर एक अच्छे एवं पढ़े लिखे नेता हैं. मगर जब बात कमजोरी की आती है तो थरूर का भी शुमार उन तमाम नेताओं में है जो अपने जीवन में अलग अलग मोर्चों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं. सुनंदा पुष्कर की मौत पर थरूर हत्यारोपित हैं. ऐसे में अगर उस केस पर कुछ हो गया तो किसी भी क्षण उनकी मुश्किल बढ़ सकती हैं जो न सिर्फ उनके लिए बल्कि पूरी कांग्रेस के लिए मुश्किल का बड़ा कारण साबित होगी.
मनीष तिवारी
थरूर के बाद मनीष तिवारी वो दूसरा बड़ा नाम हैं जो कांग्रेस की तरफ से नेता प्रतिपक्ष बनाए जा सकते हैं. बात अगर मनीष तिवारी की हो तो मनीष ने पंजाब की आनंदपुर साहिब सीट से चुनाव लड़ा था और इन्होंने शिरोमणि अकाली दल के प्रोफ़ेसर प्रेम सिंह चंदूमाजरा को तकरीबन 46,884 वोटों से हराया था.
ताकत: क्योंकि मनीष तिवारी पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता रह चुके हैं. इसलिए माना यही जा रहा है कि, अलग अलग मुद्दों पर बात करते हुए मनीष पार्टी की तरफ से जो भी पक्ष रखेंगे वो सत्तापक्ष को कमजोर करने का सामर्थ्य रखेंगे. ये बात किसी से भी छुपी नहीं है कि आज मनीष का शुमार पार्टी के उन नेताओं में होता है जो अलग-अलग मोर्चो पर अपने को पार्टी के वफादार साबित कर चुके हैं. ऐसे में माना यही जा रहा है कि यदि नेता प्रतिपक्ष बनकर मनीष सदन में आते हैं तो वो कई अहम मौकों पर कांग्रेस सको राहत देंगे.
कमजोरी: जो मुखरता मनीष की ताकत है. उसी मुखरता को मनीष की कमजोरी भी माना जाता है. हम ऐसे तमाम मौके देख चुके हैं जब मनीष ने पार्टी और पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की गुड बुक्स में नाम दर्ज कराने के लिए अलग अलग बयान तो दिए मगर जब आलोचना हुई तो वो माफ़ी मांगने से भी पीछे नहीं हटे. ऐसे में एक बड़ा वर्ग है जो ये मानता है कि बात जब अहम मोर्चों पर मजबूती से खड़े होने की आएगी तो वो पीछे हट सकते हैं.
राहुल गांधी- 2019 के इस चुनाव को अगर अहम माना जा रहा था तो इसकी एक बड़ी वजह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी थे. राहुल ने दो सीटों अमेठी और वायनाड से चुनाव लड़ा था जिसमें ये केरल की सीट जीतने में तो कामयाब रहे मगर इन्होंने स्मृति ईरानी से चुनाव हारते हुए अमेठी की सीट गंवा दी. 2019 के चुनाव में भी पार्टी कोई बड़ा करिश्मा करने में नाकाम रही है. पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने इस्तीफे की पेशकश की है जिसे सोनिया गांधी समेत पार्टी के तमाम बड़े नेताओं ने ठुकरा दिया है.
माना ये जा रहा है कि यदि पार्टी को कोई राह नहीं सूझती तो राहुल गांधी का भी शुमार उन लोगों में है जो नेता प्रतिपक्ष बनकर सामने आ सकते हैं. अगर राहुल नेता प्रतिपक्ष बनते हैं तो हमारे लिए भी ये बेहद जरूरी है कि हम उनकी ताकत के साथ साथ उनकी कमियों का भी अवलोकन करे.
ताकत : 2014 लोकसभा चुनाव से 2019 तक के राहुल गांधी के सफर को यदि हम देखें तो मिलता है कुछ मामलों में राहुल मजबूत हुए हैं. अपनी चुनावी रैलियों और ट्विटर पर जिस मुखरता से राहुल गांधी ने रोजगार, नोटबंदी, जीएसटी जैसी चीजों को मुद्दा बनाया. एक बड़ा वर्ग है जो मनाता है कि, यदि नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल सदन में आते हैं तो इससे कांग्रेस भाजपा को बड़ी चुनौती देकर खासी मुश्किलों में डाल सकती है. कहा जा सकता है कि जैसा जोश राहुल गांधी में दिख रहा है यदि वो नेता प्रतिपक्ष बनकर मैदान में आते हैं तो इससे आने वाले वक़्त में न सिर्फ राहुल गांधी का कद बढ़ेगा बल्कि इससे लगातार गर्त में जाती कांग्रेस को भी बल मिलेगा.
कमजोरी : उपरोक्त बातों के मद्देनजर भले ही राहुल गांधी को एक मजबूत नेता कहा जाए मगर जिस बात को राहुल की सबसे बड़ी कमजोरी माना जाता है वो ये है कि जहां एक तरफ वो मूडी आदमी हैं तो वहीं कई चीजों को लेकर उनका स्टैंड साफ नहीं है जिससे न सिर्फ राहुल गांधी बल्कि खुद कांग्रेस तक कई मोर्चों पर मुसीबत में आ जाती है.
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