भारत में राजनीति को 'पतित पावनी' का दर्जा मिला हुआ है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो राजनीति में प्रवेश के साथ ही विचार, विचारधारा, नीति, समर्थन या विरोध जैसी चीजें सियासी दल के लक्ष्य के हिसाब से बदल जाती हैं. जेएनयू (JN) छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के नेता कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) बीते महीने राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए कांग्रेस में शामिल हुए थे. कांग्रेस (Congress) का दामन थामने के समय कॉमरेड कन्हैया कुमार ने आधिकारिक रूप से देश के सबसे पुराने और सबसे लोकतांत्रिक दल को बचाने का निर्णय लिया था. कन्हैया का ये फैसला ठीक उसी तरह था, जब जेएनयू में आतंकवादी अफजल गुरू की बरसी पर उन्होंने साम्राज्यवाद, सामंतवाद, संघवाद, ब्राह्मणवाद, मनुवाद, पूंजीवाद से आजादी के नारे लगाये थे. हालांकि, मामले में बवाल बढ़ने और 'जेल यात्रा' से लौटने के बाद उन्होंने स्पष्ट किया था कि वो 'देश से आजादी' नहीं, बल्कि 'देश में आजादी' की मांग कर रहे थे.
दरअसल, कांग्रेस में शामिल होने के बाद कॉमरेड कन्हैया कुमार ने ब्राह्मणवाद (Brahminism) और मनुवाद (Manuvad) से आजादी वाले नारों से किनारा कर लिया है. वैसे, इस बात का पता भी वामपंथी (Leftist) विचारों की ओर झुकाव रखने वाले सोशल मीडिया यूजर से ही चला, जिन्होंने कन्हैया कुमार की पूजा करते हुए वीडियो वायरल कर दी. कन्हैया कुमार की इस फोटो को वायरल करने की मंशा को वामपंथ के इन समर्थकों की खीझ भी कही जा सकती है. ऐसा कहने का आधार ये भी है कि कांग्रेस में शामिल होने के साथ ही कन्हैया कुमार का कद लगातार बढ़ता जा रहा है. देशभर में विचारधारा के तौर पर सिमटते जा रहे वामपंथ का सबसे बड़ा हीरा कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने साजिश कर हड़प लिया है, तो कैसे भी गुस्सा तो उतारना ही है. किसी समय वामपंथियों की आंखों के तारा कहे जाने वाले कन्हैया ने लेफ्ट से पूरी तरह से किनारा करने में जितना कम वक्त लगाया है. उनकी इस...
भारत में राजनीति को 'पतित पावनी' का दर्जा मिला हुआ है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो राजनीति में प्रवेश के साथ ही विचार, विचारधारा, नीति, समर्थन या विरोध जैसी चीजें सियासी दल के लक्ष्य के हिसाब से बदल जाती हैं. जेएनयू (JN) छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के नेता कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) बीते महीने राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए कांग्रेस में शामिल हुए थे. कांग्रेस (Congress) का दामन थामने के समय कॉमरेड कन्हैया कुमार ने आधिकारिक रूप से देश के सबसे पुराने और सबसे लोकतांत्रिक दल को बचाने का निर्णय लिया था. कन्हैया का ये फैसला ठीक उसी तरह था, जब जेएनयू में आतंकवादी अफजल गुरू की बरसी पर उन्होंने साम्राज्यवाद, सामंतवाद, संघवाद, ब्राह्मणवाद, मनुवाद, पूंजीवाद से आजादी के नारे लगाये थे. हालांकि, मामले में बवाल बढ़ने और 'जेल यात्रा' से लौटने के बाद उन्होंने स्पष्ट किया था कि वो 'देश से आजादी' नहीं, बल्कि 'देश में आजादी' की मांग कर रहे थे.
दरअसल, कांग्रेस में शामिल होने के बाद कॉमरेड कन्हैया कुमार ने ब्राह्मणवाद (Brahminism) और मनुवाद (Manuvad) से आजादी वाले नारों से किनारा कर लिया है. वैसे, इस बात का पता भी वामपंथी (Leftist) विचारों की ओर झुकाव रखने वाले सोशल मीडिया यूजर से ही चला, जिन्होंने कन्हैया कुमार की पूजा करते हुए वीडियो वायरल कर दी. कन्हैया कुमार की इस फोटो को वायरल करने की मंशा को वामपंथ के इन समर्थकों की खीझ भी कही जा सकती है. ऐसा कहने का आधार ये भी है कि कांग्रेस में शामिल होने के साथ ही कन्हैया कुमार का कद लगातार बढ़ता जा रहा है. देशभर में विचारधारा के तौर पर सिमटते जा रहे वामपंथ का सबसे बड़ा हीरा कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने साजिश कर हड़प लिया है, तो कैसे भी गुस्सा तो उतारना ही है. किसी समय वामपंथियों की आंखों के तारा कहे जाने वाले कन्हैया ने लेफ्ट से पूरी तरह से किनारा करने में जितना कम वक्त लगाया है. उनकी इस स्पीड को देखते हुए इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि वो जल्द ही सभी वादों से मुक्ति पा लेंगे.
कहना गलत नहीं होगा कि कन्हैया कुमार को ब्राह्मणवाद और मनुवाद से आजादी कांग्रेस में शामिल होते ही मिल गई थी. क्योंकि, उत्तर प्रदेश में किसी जमाने में 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाने वाली कांग्रेस में रहते हुए ब्राह्मणवाद का विरोध करना टेढ़ी खीर है. इन सबसे इतर सबसे बड़ी समस्या ये है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी कई बार खुद को कश्मीरी पंडित से लेकर जनेऊधारी ब्राह्मण साबित कर चुके हैं. ऐसे में अगर कन्हैया कुमार की ओर से ब्राह्मणवाद और मनुवाद से आजादी का नारा बुलंद किया जाता, तो यह कांग्रेस के साथ ही भावी पार्टी अध्यक्ष के लिए भी समस्या खड़ी कर सकता था. आसान शब्दों में कहा जाए, तो कन्हैया कुमार जो आज कर रहे हैं, उसका सारा दोष केवल और केवल भाजपा की उग्र हिंदुत्व की राजनीति को जाता है. ना भाजपा हिंदुत्व की विचारधारा को अपने एजेंडे के तौर पर लेकर आगे बढ़ती. और, ना ही कन्हैया कुमार को बहुसंख्यक वोटों के लिए राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की तरह माथे पर त्रिपुंड लगाने की जरूरत पड़ती है.
छात्रसंघ अध्यक्ष के बाद 'टुकड़े-टुकड़े' करने वाले नारों की वजह से देशद्रोह के मामले में फंसे कन्हैया कुमार ने जिस तरह से अपने ओजस्वी और धारदार भाषणों से अपने नारों को डिफेंड किया था. भाजपा के हिंदुत्व को कन्हैया कुमार अपने हिंदुत्व से टक्कर देते नजर आ ही जाएंगे. इस बात की पूरी संभावना है कि वो ब्राह्मणवाद और मनुवाद से आजादी की मांग को किनारे करने के लिए भी कोई न कोई तरीका खोज ही लेंगे. आखिर राहुल गांधी उन्हें इन्हीं तरीकों की वजह से तो कांग्रेस में लाए हैं. वहीं, बिहार में महागठबंधन में पड़ी दरार को लेकर इतना ही कहा जा सकता है कि अभी तो ये अंगड़ाई है, आगे बहुत लड़ाई है.
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