ऐसे ही तहज़ीब का शहर (CAA protest Lucknow Violent) नहीं जल रहा है. लगता है बेतहज़ीब नफरत और दंगे (Riots) की गंदी सियासत के मास्टर प्लान ने अपना असर दिखाया है. साजिश या लापरवाही कुछ तो था ही. दो किस्म के प्रदर्शन होने थे. एक समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party CAA Protest) का और बुद्धिजीवियों, संस्थाओं, संस्कृति कर्मियों ने 19 दिसंबर को ही विरोध प्रदर्शन करना तय किया था. इनका प्रोटेस्ट गैर सियासी था और सपा से अलग ठिकाने परिवर्तन चौक पर इन्हें होना था. बात शुरु करते हैं कानून व्यवस्था (Law And Order situation in Lucknow) के रखवालों की. यूपी सरकार के इंतेज़ामिया (P police) जो बड़े से बड़े संवेदनशील मामलों में क़ानून व्यवस्था संभालने में कामयाब हुए. 19 दिसंबर को विरोध प्रदर्शन को प्रतिबंधित करने के बेहतरीन इंतेजाम थे. उत्तर प्रदेश के डीजीपी ने एक दिन पहले शांति कायम रखने और किसी भी प्रदर्शन में नहीं निकलने का वीडियो संदेश जारी किया था. लखनऊ के हजरतगंज और कैसरबाग के दरमियान परिवर्तन चौक चौराहे पर एनआरसी और कैब कानून के विरोध में प्रदर्शन की कॉल की गई थी. जिसके मद्देनजर ऐसे किसी प्रदर्शन की इजाजत ना देकर प्रशासन ने धारा 144 लगा दी थी. लखनऊ का परिवर्तन चौक छावनी में तब्दील हो गया था.
दोपहर दो बजे के बाद लगने लगा कि यहां सिर्फ सिर्फ कुछ संस्थाओं के बुद्धिजीवियों की मामूली तादाद ही नहीं बल्कि आम पब्लिक की बड़ी तादाद पंहुचेगी. शासन प्रशासन की पहली बड़ी चूक यही रही कि उसके खुफिया तंत्र को यही नहीं पता था कि यहां प्रदर्ननकारी के रूप में लगातार हजारों की तादाद में लोग आना शुरु हो जायेंगे. ये ही नहीं दूसरी चूक जिसे चूक के बजाय कोई दूसरा शब्द भी दिया जा सकता...
ऐसे ही तहज़ीब का शहर (CAA protest Lucknow Violent) नहीं जल रहा है. लगता है बेतहज़ीब नफरत और दंगे (Riots) की गंदी सियासत के मास्टर प्लान ने अपना असर दिखाया है. साजिश या लापरवाही कुछ तो था ही. दो किस्म के प्रदर्शन होने थे. एक समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party CAA Protest) का और बुद्धिजीवियों, संस्थाओं, संस्कृति कर्मियों ने 19 दिसंबर को ही विरोध प्रदर्शन करना तय किया था. इनका प्रोटेस्ट गैर सियासी था और सपा से अलग ठिकाने परिवर्तन चौक पर इन्हें होना था. बात शुरु करते हैं कानून व्यवस्था (Law And Order situation in Lucknow) के रखवालों की. यूपी सरकार के इंतेज़ामिया (P police) जो बड़े से बड़े संवेदनशील मामलों में क़ानून व्यवस्था संभालने में कामयाब हुए. 19 दिसंबर को विरोध प्रदर्शन को प्रतिबंधित करने के बेहतरीन इंतेजाम थे. उत्तर प्रदेश के डीजीपी ने एक दिन पहले शांति कायम रखने और किसी भी प्रदर्शन में नहीं निकलने का वीडियो संदेश जारी किया था. लखनऊ के हजरतगंज और कैसरबाग के दरमियान परिवर्तन चौक चौराहे पर एनआरसी और कैब कानून के विरोध में प्रदर्शन की कॉल की गई थी. जिसके मद्देनजर ऐसे किसी प्रदर्शन की इजाजत ना देकर प्रशासन ने धारा 144 लगा दी थी. लखनऊ का परिवर्तन चौक छावनी में तब्दील हो गया था.
दोपहर दो बजे के बाद लगने लगा कि यहां सिर्फ सिर्फ कुछ संस्थाओं के बुद्धिजीवियों की मामूली तादाद ही नहीं बल्कि आम पब्लिक की बड़ी तादाद पंहुचेगी. शासन प्रशासन की पहली बड़ी चूक यही रही कि उसके खुफिया तंत्र को यही नहीं पता था कि यहां प्रदर्ननकारी के रूप में लगातार हजारों की तादाद में लोग आना शुरु हो जायेंगे. ये ही नहीं दूसरी चूक जिसे चूक के बजाय कोई दूसरा शब्द भी दिया जा सकता है.
पुलिस प्रशासन सुनियोजित तरीके से यहां भीड़ ना इकट्ठा होने और शांति व्यवस्था कायम रखने के लिए मुश्तैद थी. परिवर्तन चौक पंहुचने के 6 मुख्य रास्ते हैं. जब यहां प्रदर्शनकारियों/उपद्रवियों की भीड़ आ रही थी तो यहां के करीब चार रास्ते पुलिस ने बंद कर दिये थे. लेकिन दो-तीन रास्तों को पुलिस ने बिल्कुल फ्री छोड़ा था. ये वो रास्ते थे जो पुराने लखनऊ से जुड़े थे. नारी शिक्षा केंद्र के पास वाली बारह दरी के दर से बटलर पार्क के रास्ते से परिवर्तन चौक का रास्ता.
कलेक्ट्रेट की तरफ से और हाइकोर्ट वाले चौराहे से सभी रास्ते पुलिस ने फ्री कर दिए थे. और यहीं से डेढ़ घंटे तक पुराने लखनऊ के मुस्लिम बाहुल इलाकों से लगातार भीड़ आती रही. इस भीड़ में ही शामिल उपद्रवियों ने करीब एक घंटे तक आतंक का नंगा नाच किया. दर्जनों वाहन जला दिये. जिसमें आजतक न्यूज चैनल की ओबीवैन को राख कर दिया गया. इसके अतिरिक्त अन्य न्यूज चैनलों की ओबीवैन भी जलायी गयी. बहुत सारे दो पहिया वाहन भी आग के हवाले किये गये. पत्थर और शीशे की घातक बोतलों से पुलिस पर हमले हुए.
आश्चर्य की बात ये है कि जब परिवर्तन चौक के सारे रास्ते ब्लॉक कर पुलिस हर जगह तैनात थी तो उन चंद रास्तों को क्यों फ्री छोड़कर वहां से पुलिस क्यों नदारद रही. इस दौरान एक अनहोनी होते होते रह गयी जब लखनऊ के वकीलों और कलेक्ट्रेट के सैकड़ों कर्मचारियों से भरे रास्ते से हजारों की तादाद में एक समुदाय के लोगों को गुजरते देख अधिवक्ताओं ने उन्हें कलेक्ट्रेट की तरफ से पतले रास्ते से जाने से रोका. इन सब बेहद संवेनशील स्थितियों के बीच यहां एक सिपाही भी मौजूद नहीं था. यदि प्रदर्शनकारियों और अधिवक्ताओं के बीच टकराव हो जाता तो शायद स्थिति संभाले नहीं संभलती. इस बीच और भी भयावह स्थिति पैदा हो सकती थी.
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