ये कहना ग़लत है कि, 'नाम में क्या रखा है'? नाम में बहुत कुछ रखा है. नाम में कुछ नहीं रखा होता तो सनातनी संस्कृति को मिटाने के लिए मुगलिया आक्रांताओं को भारत के शहरों और तमाम ख़ास ठिकानों के नाम बदलने की जरूरत नहीं पड़ती. और अगर नाम में कुछ नहीं रखा होता तो हिंदुत्व और विकास की पहचान बनने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ देश को पुराने भारतीय स्वरूप के नामों को यूपी में पुनर्जीवित नहीं करते. यूपी में विकास और रोजगार लाने के लिए सवा पांच साल से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ निरंतर सफल प्रयास कर रहे हैं. जिसके तमाम सुखद परिणामों में लखनऊ में शुरू हुआ लुलु मॉल भी है. किंतु इसका नाम खटकने वाला है. काश लुलु माल का नाम 'लखन मॉल' होता!
कहते हैं कि लखनऊ शहर लखन के नाम पर बसा था. लक्ष्मण जी द्वारा यहां लक्ष्मणपुरी की स्थापना की गई थी. लेकिन दुर्भाग्यवश इस सांस्कृतिक शहर में लखन नाम से कुछ भी नहीं है. लखनऊ अल्फ़ाज़, अदब, संस्कृति, तहज़ीब,अदायगी और खूबसूरती का शहर है. लखनऊ प्रदेश की राजधानी है. यहां की ज़मीन सोना है.
अस्पतालों, शिक्षण संस्थानों और बेहद अहम जरुरतों के लिए सरकार को जमीन एक्वायर करने में पसीने छूट जाते हैं. यहां जमीन हासिल करना बेहद जटिल काम है. यूनाइटेड अरब अमीरात ( इस्लामिक देश) बेस कंपनी को लुलु मॉल के लिए सरकार ने तमाम सुविधाएं के साथ सबसे अहम बहुत बड़ी जमीन दी
जिसका मुख्य उद्देश्य सूबे का विकास करना और यहां रोजगार सृजित करना है. लखनऊ में देश का सबसे बड़ा लुलु अंतरराष्ट्रीय मॉल 2000 करोड़ की लागत से बना है. 22 लाख वर्गफीट क्षेत्र में बने इस मॉल मे़ एक साथ 50,000 लोग शॉपिंग कर सकते हैं. 16000 लोग बैठकर फूड कोर्ट में एक साथ...
ये कहना ग़लत है कि, 'नाम में क्या रखा है'? नाम में बहुत कुछ रखा है. नाम में कुछ नहीं रखा होता तो सनातनी संस्कृति को मिटाने के लिए मुगलिया आक्रांताओं को भारत के शहरों और तमाम ख़ास ठिकानों के नाम बदलने की जरूरत नहीं पड़ती. और अगर नाम में कुछ नहीं रखा होता तो हिंदुत्व और विकास की पहचान बनने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ देश को पुराने भारतीय स्वरूप के नामों को यूपी में पुनर्जीवित नहीं करते. यूपी में विकास और रोजगार लाने के लिए सवा पांच साल से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ निरंतर सफल प्रयास कर रहे हैं. जिसके तमाम सुखद परिणामों में लखनऊ में शुरू हुआ लुलु मॉल भी है. किंतु इसका नाम खटकने वाला है. काश लुलु माल का नाम 'लखन मॉल' होता!
कहते हैं कि लखनऊ शहर लखन के नाम पर बसा था. लक्ष्मण जी द्वारा यहां लक्ष्मणपुरी की स्थापना की गई थी. लेकिन दुर्भाग्यवश इस सांस्कृतिक शहर में लखन नाम से कुछ भी नहीं है. लखनऊ अल्फ़ाज़, अदब, संस्कृति, तहज़ीब,अदायगी और खूबसूरती का शहर है. लखनऊ प्रदेश की राजधानी है. यहां की ज़मीन सोना है.
अस्पतालों, शिक्षण संस्थानों और बेहद अहम जरुरतों के लिए सरकार को जमीन एक्वायर करने में पसीने छूट जाते हैं. यहां जमीन हासिल करना बेहद जटिल काम है. यूनाइटेड अरब अमीरात ( इस्लामिक देश) बेस कंपनी को लुलु मॉल के लिए सरकार ने तमाम सुविधाएं के साथ सबसे अहम बहुत बड़ी जमीन दी
जिसका मुख्य उद्देश्य सूबे का विकास करना और यहां रोजगार सृजित करना है. लखनऊ में देश का सबसे बड़ा लुलु अंतरराष्ट्रीय मॉल 2000 करोड़ की लागत से बना है. 22 लाख वर्गफीट क्षेत्र में बने इस मॉल मे़ एक साथ 50,000 लोग शॉपिंग कर सकते हैं. 16000 लोग बैठकर फूड कोर्ट में एक साथ खाना भी खा सकते हैं.
यूनाइटेड अरब अमीरात स्थित लुलु ग्रुप के मालिक यूसुफ अली हैं जो यूएई में रहने सबसे अमीर भारतीय एनआरआई हैं. उनका ग्रुप सुपरमार्केट सीरीज पर काम करता है. लखनऊ भारत का चौथा ऐसा शहर है, जहां इस ग्रुप ने अपना सुपर मार्केट खोला है. इससे पहले कोच्चि, बैंगलोर और तिरुवनंतपुरम में लुलु ग्रुप के सुपरमार्केट खोले गए हैं.
इस ग्रुप के मालिक युसूफ अली केरल के त्रिशूर जिले के रहने वाले हैं. उन्होंने साल 2000 में लुलु हाइपरमार्केट की स्थापना की थी. उनका ग्रुप वर्तमान में पश्चिमी एशिया, अमेरिका और यूरोप के 22 देशों में कारोबार का संचालन कर रहा है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा लखनऊ में लुलु मॉल के उद्घाटन के बाद यहां जबरदस्त भीड़ उमड़ने लगी और इस कामर्शियल हब की सफलता के संकेत नजर आने लगे. इसके एक-दो दिन के बाद ही मॉल परिसर में चंद लोगों द्वारा नमाज अदा करने की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होने लगीं.
विकास को गति देने और व्यवसायिक सफलता के रंग में नमाज की तस्वीरों ने धर्म की भांग डाल दी. और एक बखेड़ा शुरू हो गया. हिंदू महासभा कहने लगा कि जब सार्वाजनिक स्थल पर नमाज अदा हो सकती है तो हिन्दू भी धार्मिक अनुष्ठान क्यों नहीं करे.
इस विवाद के साथ कुछ नई चर्चाओं में यूपी के पूर्व मंत्री, सांसद और भाजपा के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय लाल जी टंडन की किताब अनकहा लखनऊ का भी जिक्र छिड़ गया है. जिसमें उन्होंने लिखा था, लखनऊ में वैदिक संस्कृति का दौर था. फिर एक दौर रामायणकालीन रहा, जब लक्ष्मण जी द्वारा यहां लक्ष्मणपुरी की स्थापना की गई, फिर कुषाणकाल, गुप्तकाल के दौर से होते हुए एक दौर उनका भी आया जिनका यहां की संस्कृति, इतिहास, परंपरा से कोई लेना-देना नहीं था.
उन्हें तो बस यहां की समृद्धि, यहां की संस्कृति को लूटना और नष्ट करना था. ऐसे तुगलक, खिलजी जैसे सुलतानों से होते हुए शेख, पठान, मुगलकाल और अंत में नवाबी काल, फिर ब्रिटिश काल और आधुनिक लखनऊ तक के विविध पड़ाव गवाह हैं हमारे सांस्कृतिक प्रवाह के और समृद्ध विरासत के. भारी उतार-चढ़ाव के बावजूद यह सांस्कृतिक प्रवाह कभी रुका नहीं.
लखनऊ एक शहर और बाजार नहीं
ये गुम्बद-ए-मीनार नहीं
इसकी गलियों में मोहब्बत के फूल खिलते हैं
इसके कूचों में फरिश्तों के पते मिलते हैं.
टंडन जी ने आगे लिखा था कि तीन टीलों, अस्सी गांवों के कुल सत्ताईस किलोमीटर के रकबे का यह छोटा सा भूखंड(शहर) हमारी हजारों साल की संस्कृति को संजोता रहा. लाल जी टंडन की किताब अनकहा लखनऊ के कंटेंट को याद करते हुए लुलु माल परस वाल उठ रहे हैं कि साहित्य, संस्कृति और खूबसूरत अल्फाज का खजाना कहे जाने वाले शहर-ए-लखनऊ के शानदार मॉल और बिजनेस हब का लुलु जैसा बेतुका नाम क्यों? काश लुलु के बजाय इसका नाम 'लखन मॉल' रखा जाए.
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