राजनीति दलदल है. आदमी जो गिरा तो फिर अन्दर ही धंसता जाता है. इस स्थिति में निकलना मुश्किल होता है. मगर जो डूब के पार निकल गया वो ही मुकद्दर का सिकंदर है. सिकंदर हर आदमी नहीं बनता. या तो उसकी मदद भाग्य करता है या फिर उसकी काबिलियत. काबिलियत इंसान को देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) बनाती है. वहीं जब भाग्य साथ होता है तो आदमी अजित पवार (Ajit Pawar To Be Deputy CM Of Maharashtra) होता है. नहीं मतलब सच में, क्या भाग्य पाया है अजित पवार ने. चाचा शरद पवार ने मन से माफ़ किया हो या बस फॉर्मेलिटी के कारण अजित की सॉरी पर ओके कह दिया हो. लेकिन भाग्य है तो इतनी बेइज्जती के बावजूद अजित भाऊ एनसीपी के शेर हैं. जैसी हालत है महाराष्ट्र में अजित को शिवसेना ने वो दे दिया है जो भजापा में उन्होंने खोया था.
बात काबिलियत और भाग्य की है. भाग्य भरोसे अजित राज्य के उप मुख्यमंत्री भी बन जाएंगे. मगर सवाल है कि अपनी शक्ल वो शीशे को किस मुंह से दिखाएंगे? दिखाएंगे या फिर शीशे पर कपड़ा डाल कुर्ते का कॉलर चौड़ा कर चले जाएंगे? मशहूर क्रांतिकारी शायर हबीब जालिब गर जो हम लोगों, खासतौर से महाराष्ट्र की जनता के सामने होते तो अपनी वो वाली नज़्म दोहरा देते 'मैं नहीं मानता, मैं नहीं जानता.'
अब जालिब हमारे बीच नहीं है. अजित पवार हमारे सामने हैं और बहुत जयादा खुश हैं. अजित इतने खुश हैं कि अगर ये ख़ुशी उन्हें 1975 में उस वक़्त हुई होती जब यश चोपड़ा ने दीवार बनाई थी तो शायद फिल्म के लीड हीरो अमिताभ और शशि कपूर...
राजनीति दलदल है. आदमी जो गिरा तो फिर अन्दर ही धंसता जाता है. इस स्थिति में निकलना मुश्किल होता है. मगर जो डूब के पार निकल गया वो ही मुकद्दर का सिकंदर है. सिकंदर हर आदमी नहीं बनता. या तो उसकी मदद भाग्य करता है या फिर उसकी काबिलियत. काबिलियत इंसान को देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) बनाती है. वहीं जब भाग्य साथ होता है तो आदमी अजित पवार (Ajit Pawar To Be Deputy CM Of Maharashtra) होता है. नहीं मतलब सच में, क्या भाग्य पाया है अजित पवार ने. चाचा शरद पवार ने मन से माफ़ किया हो या बस फॉर्मेलिटी के कारण अजित की सॉरी पर ओके कह दिया हो. लेकिन भाग्य है तो इतनी बेइज्जती के बावजूद अजित भाऊ एनसीपी के शेर हैं. जैसी हालत है महाराष्ट्र में अजित को शिवसेना ने वो दे दिया है जो भजापा में उन्होंने खोया था.
बात काबिलियत और भाग्य की है. भाग्य भरोसे अजित राज्य के उप मुख्यमंत्री भी बन जाएंगे. मगर सवाल है कि अपनी शक्ल वो शीशे को किस मुंह से दिखाएंगे? दिखाएंगे या फिर शीशे पर कपड़ा डाल कुर्ते का कॉलर चौड़ा कर चले जाएंगे? मशहूर क्रांतिकारी शायर हबीब जालिब गर जो हम लोगों, खासतौर से महाराष्ट्र की जनता के सामने होते तो अपनी वो वाली नज़्म दोहरा देते 'मैं नहीं मानता, मैं नहीं जानता.'
अब जालिब हमारे बीच नहीं है. अजित पवार हमारे सामने हैं और बहुत जयादा खुश हैं. अजित इतने खुश हैं कि अगर ये ख़ुशी उन्हें 1975 में उस वक़्त हुई होती जब यश चोपड़ा ने दीवार बनाई थी तो शायद फिल्म के लीड हीरो अमिताभ और शशि कपूर को भी रश्क हो जाता. वो भी सोचते कि, गाड़ी, बंगला, बैंक बैलेंस और मां के अलावा ये उप मुख्यमंत्री की कुर्सी ही है जो अगर व्यक्ति के पास नहीं है तो वो और कुछ भी हो, मगर कामयाब तो हरगिज़ नहीं कहलाएगा.
बीजेपी से दगा भले ही कर ली हो. लेकिन अब जबकि शिवसेना ने उप मुख्यमंत्री की कुर्सी देकर बरसों पुराना ख्वाब पूरा कर ही दिया है. तो लाख दगाबाज सही, इस बात में कोई शक नहीं है कि अजित पवार कामयाब हैं. अगर अजित कामयाब न भी हों तो कम से कम उन्हें ये गुमान तो है ही कि उन्होंने जो चाहा वो पाया. अजित ने सोच मुख्यमंत्री वाली रखी थी. अपनी सोच की बदौलत उन्होंने उपमुख्यमंत्री का पद पाया. दुनिया यूं भी बक बक करती है. आगे भी करेगी. करती रहे. आदमी को सोच बुलंद रखनी चाहिए. अजीत ने हमको न सिर्फ इतना समझाया बल्कि खुद का उदाहरण रखते हुए प्रैक्टिकल करके भी दिखाया.
खैर लौट के बुद्धू घर को आए हैं. और न सिर्फ घर आए हैं. बल्कि भाग्य की बदौलत ऐसा बहुत कुछ पाए हैं जिसके बाद होती रहे बेइज्जती. करता रहे कोई अपमान. किसी को क्या मतलब. अजीत का अपना एजेंडा है. अजीत अपने एजेंडे पर अजेय हैं.
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