दिल्ली जैसी लड़ाई चंडीगढ़ के बहाने पंजाब में भी शुरू हो गयी है. और हरियाणा पर भी असर होने लगा है, लेकिन महाराष्ट्र (Maharashtra Power Tussle) में तो हदें भी पार होने लगी हैं - सत्ता की जोर आजमाइश में जो कुछ भी हो रहा है कई बार महज राजनीतिक नहीं लगता.
कभी तो लगता है जैसे दबाव बनाने के लिए एक दूसरे के आदमियों को परेशान करने की कोशिश हो रही हो. ऐन उसी वक्त ये भी लगता है जैसे राजनीतिक लड़ाई की आड़ में निजी दुश्मनी साधी जा रही हो - और ये सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है.
जो सीन सुशांत सिंह राजपूत केस में देखने को मिले थे, अब भी चीजें उसके आस पास ही नजर आती हैं. कभी एक पक्ष बीजेपी सपोर्टर एक्टर कंगना रनौत को निशाना बनाता है, तो दूसरे पक्ष के टारगेट पर एनसीपी नेता अनिल देशमुख आ जाते हैं.
जब केंद्रीय मंत्री नारायण राणे को घर से घसीट कर पुलिस उठा ले जाती है तो लगता है जैसे निजी दुश्मनी का नतीजा हो. जब उसी तरीके से प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नवाब मलिक को उठा ले जाते हैं तो लगता है बदले की कार्रवाई हो रही हो.
पहले टीवी एंकर अर्णब गोस्वामी और अब वकील सतीश उके की गिरफ्तारी का पैटर्न भी एक जैसा ही लगता है - ऐसा लगता है जैसे टीवी सीरियल की तरह किरदार बदल जाते हैं, लेकिन कहानी बढ़ती ही जाती है.
नागपुर के वकील सतीश उके की गिरफ्तारी तो एक जमीन की खरीद फरोख्त में गड़बड़ी को लेकर हुई है, लेकिन बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ मुहिम चलाने और उनके खिलाफ अदालत में याचिका दायर करना ही बड़ी वजह मानी जा रही है.
अब तक के गुरिल्ला एक्शन से लगता था कि लड़ाई बीजेपी (BJP) बनाम महाराष्ट्र का सत्ताधारी गठबंधन है, लेकिन संजय राउत के ताजा बयान से लगता है कि...
दिल्ली जैसी लड़ाई चंडीगढ़ के बहाने पंजाब में भी शुरू हो गयी है. और हरियाणा पर भी असर होने लगा है, लेकिन महाराष्ट्र (Maharashtra Power Tussle) में तो हदें भी पार होने लगी हैं - सत्ता की जोर आजमाइश में जो कुछ भी हो रहा है कई बार महज राजनीतिक नहीं लगता.
कभी तो लगता है जैसे दबाव बनाने के लिए एक दूसरे के आदमियों को परेशान करने की कोशिश हो रही हो. ऐन उसी वक्त ये भी लगता है जैसे राजनीतिक लड़ाई की आड़ में निजी दुश्मनी साधी जा रही हो - और ये सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है.
जो सीन सुशांत सिंह राजपूत केस में देखने को मिले थे, अब भी चीजें उसके आस पास ही नजर आती हैं. कभी एक पक्ष बीजेपी सपोर्टर एक्टर कंगना रनौत को निशाना बनाता है, तो दूसरे पक्ष के टारगेट पर एनसीपी नेता अनिल देशमुख आ जाते हैं.
जब केंद्रीय मंत्री नारायण राणे को घर से घसीट कर पुलिस उठा ले जाती है तो लगता है जैसे निजी दुश्मनी का नतीजा हो. जब उसी तरीके से प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नवाब मलिक को उठा ले जाते हैं तो लगता है बदले की कार्रवाई हो रही हो.
पहले टीवी एंकर अर्णब गोस्वामी और अब वकील सतीश उके की गिरफ्तारी का पैटर्न भी एक जैसा ही लगता है - ऐसा लगता है जैसे टीवी सीरियल की तरह किरदार बदल जाते हैं, लेकिन कहानी बढ़ती ही जाती है.
नागपुर के वकील सतीश उके की गिरफ्तारी तो एक जमीन की खरीद फरोख्त में गड़बड़ी को लेकर हुई है, लेकिन बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ मुहिम चलाने और उनके खिलाफ अदालत में याचिका दायर करना ही बड़ी वजह मानी जा रही है.
अब तक के गुरिल्ला एक्शन से लगता था कि लड़ाई बीजेपी (BJP) बनाम महाराष्ट्र का सत्ताधारी गठबंधन है, लेकिन संजय राउत के ताजा बयान से लगता है कि ये लड़ाई धीरे धीरे बीजेपी बनाम शिवसेना (Shiv Sena) की तरफ शिफ्ट होती जा रही है - और ऐसा होने पर बीजेपी के लिए लड़ाई ज्यादा मुश्किल हो सकती है.
'जैसे को तैसा' चाहती है शिवसेना
शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत का ताजा रुख खतरनाक इशारे कर रहा है. शिवसेना चाहती है कि गठबंधन सरकार भी भाजपा नेताओं के खिलाफ 'शठे शाठ्यम् समाचरेत्' वाले ही तौर तरीके अपनाये.
संजय राउत का कहना है कि अगर महाराष्ट्र पुलिस को सरकार की होम मिनिस्ट्री से आदेश मिले तो उनको लगता है कि बेहतर नतीजे देखने को मिलेंगे. शिवसेना चाहती है कि राज्य का गृह मंत्रालय बीजेपी नेताओं के खिलाफ जितने भी मामले दर्ज हुए हैं उन पर कड़ा एक्शन ले.
हालांकि, संजय राउत के इस रुख के बाद शिवसेना और एनसीपी के बीच थोड़ा तनाव भरा माहौल बन गया था. असल में गृह विभाग एनसीपी कोटे में है. शिवसेना को ऐसा लगने लगा था कि एनसीपी के गृह मंत्री बीजेपी के खिलाफ नरम रुख अख्तियार किये हुए हैं. तभी तो शिवसेना नेता कहने लगे थे कि अगर एनसीपी बीजेपी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई में दिलचस्पी नहीं ले रही है तो गृह विभाग उससे हटा दिया जाएगा.
हो सकता है शिवसेना नेताओं का शक सही भी हो. चूंकि एनसीपी के दो सीनियर नेताओं को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया है, ऐसे में लगता होगा कि बीजेपी के खिलाफ एक्शन का रिएक्शन कहीं भारी न पड़ने लगे.
शिवसेना नेताओं की नाराजगी की वजह ये भी है कि संजय राउत ने बीजेपी नेता किरीट सोमैया के खिलाफ भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी का आरोप लगाया है, लेकिन महाराष्ट्र पुलिस की तरफ से अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है - जबकि संजय राउत को ईडी की जांच फेस करनी पड़ी रही है. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के साले के खिलाफ भी ईडी की कार्रवाई हाल ही में हुई है और उनकी करीब सात करोड़ की संपत्ति जब्त कर ली गयी है.
बहरहाल, शिवसेना के दबाव बढ़ाने के बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और गृह मंत्री दिलीप वलसे पाटिल की मीटिंग हुई है. मीटिंग के बाद गृह मंत्री ने डीजीपी रजनीश सेठ से मुलाकात की और उसके बाद मुख्यमंत्री के साथ फिर से बैठक हुई. दिलीप वलसे पाटिल ने बैठकों को रूटीन का हिस्सा बताया है, लेकिन उसके बाद के बयानों से ऐसा नहीं लगता.
गठबंधन सरकार में सब कुछ ठीक ठाक नहीं होने की खबरों के खंडन के लिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की तरफ से बयान भी जारी किया गया. मुख्यमंत्री की तरफ से एक बयान जारी बताया गया कि गृह मंत्री से उनके नाराज होने की खबरें झूठी हैं - और उन्हें मंत्री पर उनको पूरा भरोसा है. वो अच्छा काम कर रहे हैं.
राउत की बातों को लेकर गृह मंत्री दिलीप वलसे पाटिल ने जो कहा वो भी ध्यान देने लायक है, 'राउत की भावना सही है... अगर कोई कमी है, तो हम सुधार करने की कोशिश करेंगे.' एनसीपी नेता की ये बातें तो मुख्यमंत्री के बयान का ही खंडन कर देती हैं.
नवाब मलिक की तरह नागपुर में वकील की गिरफ्तारी
तकरीबन 12 घंटे की पूछताछ के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने सतीश उके को गिरफ्तार कर लिया. पहले ईडी के अफसरों ने सतीश उके के घर पर छापा डाला था और उनके घर के आस पास भारी संख्या में केंद्रीय सुरक्षा बल के जवानों को तैनात किया गया गया था. घर पर जांच पड़ताल के बाद ईडी ने नवाब मलिक की ही तरह सतीश उके को दफ्तर ले जाकर पूछताछ की और फिर गिरफ्तार कर लिया. कोर्ट में पेश किये जाने पर सतीश उके और उनके बड़े भाई प्रदीप उके दोनों को 6 अप्रैल तक ईडी की रिमांड पर भेज दिया गया है.
वकील की गिरफ्तारी और उसके पीछे की राजनीति: बताते हैं कि सतीश उके ने देवेंद्र फडणवीस के साथ साथ बीजेपी के कई नेताओं के खिलाफ हाल के कुछ साल में अदालतों में कई याचिकाएं दायर की है. देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ एक याचिका के जरिये सतीश उके ने आपराधिक कार्यवाही शुरू करने की अदालत से गुजारिश की थी, ये इल्जाम लगाते हुए कि चुनावी हलफनामे में बीजेपी नेता ने अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की जानकारी नहीं दी थी. वकील सतीश उके का दावा है कि पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 1996 औऱ 1998 में अपने खिलाफ दर्ज किये गये धोखाधड़ी और जालसाजी के मामलों को छिपाया और 2014 में झूठा हलफनामा दायर किया था.
सतीश उके कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं के करीबी बताये जाते हैं. वकील की गिरफ्तारी का असर ऐसे समझा जा सकता है कि सतीश उके के जरिये उनके संपर्क वाले कांग्रेस नेताओं पर भी शिकंजा कसा जा सकता है. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के खिलाफ दर्ज एक केस में सतीश उके महाराष्ट्र के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले के भी वकील हैं.
महाराष्ट्र पुलिस ने ऐसे ही आरोप में टीवी एंकर को गिरफ्तार किया था क्योंकि सत्ताधारी दलों को लगा था कि उनके खिलाफ जानबूझ कर टारगेट करते हुए मुहिम चलायी जा रही थी. जैसे उस मामले में खुदकुशी के लिए उकसाने के आरोप में टीवी एंकर को गिरफ्तार किया गया था, वकील को जमीन की खरीद फरोख्त में घपला करने का आरोप है.
125 घंटे का सबूत, सीबीआई जांच की मांग: नवाब मलिक की गिरफ्तारी के बाद एनसीपी नेता एकनाथ खडसे ने गिरीश महाजन को मिलते जुलते आरोपों के कठघरे में खड़ा कर दिया है. बीजेपी से एनसीपी में गये एकनाथ खडसे ने गिरीश महाजन पर माफिया डॉन दाऊद इब्राहिम के रिश्तेदारों के साथ नासिक में डिनर करने का आरोप लगाया है - और अब बीजेपी को सफाई पेश करने के लिए ललकार रहे हैं. खडसे की फडणवीस से पुरानी दुश्मनी रही है और उसी के चलते उनको बीजेपी छोड़नी पड़ी थी.
गिरीश महाजन फिलहाल जलगांव के जामनेर से विधायक हैं और देवेंद्र फडणवीस के करीबी माने जाते हैं. बीजेपी और शिवसेना गठबंधन वाली फडणवीस सरकार में गिरीश महाजन मंत्री भी रह चुके हैं.
गिरीश महाजन को टारगेट करने का मकसद पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर दबाव बनाना है. आरोपों का असर भी हो रहा है. देवेंद्र फडणवीस ने सत्ताधारी गठबंधन पर बीजेपी नेताओं को झूठे मामलों में फंसाने के लिए सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाया है - गौर करने वाली बात ये है कि फडणवीस ने गिरीश महाजन को फंसाने की साजिश को लेकर 125 घंटे का सबूत होने का दावा किया है. पूर्व मुख्यमंत्री ने फुटेज की पेन ड्राइव विधानसभा के उपाध्यक्ष को सौंप कर सीबीआई जांच की मांग की है.
ये सबूत दूसरे मामले से जुड़ा है. दिसंबर, 2020 में जलगांव के निंभोरा थाने में गिरीश महाजन और उनके निजी सहायक के अलावा 27 लोगों के खिलाफ 2018 से जुड़ी एक घटना का हवाला देकर जबरन वसूली का आरोप लगाया गया है. ये केस एक ट्रस्ट के वकील की तरफ से दर्ज कराया गया है जिसके महाराष्ट्र में कई स्कूल और कॉलेज चलते हैं.
फडणवीस के दावे को एनसीपी नेता शरद पवार ने अपनी तरफ से बेबुनियाद करार दिया है. ऊपर से पवार का ये भी आरोप है कि ये सब महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार को अस्थिर करने की कोशिशों का हिस्सा है.
शरद पवार ने वीडियो रिकॉर्डिंग के स्रोत पर भी सवाल उठाया है. थोड़े व्यंग्यात्मक लहजे में शरद पवार कहते हैं कि फडणवीस या उनके सहयोगियों की तारीफ करनी होगी कि वो इतना बड़ा सबूत जुटा सके.
ऐसा करके वो पूछना चाहते हैं कि ये फुटेज फडणवीस के हाथ लगे कैसे? वीडियो फुटेज के लंबे ड्युरेशन की तरफ ध्यान दिलाते हुए शरद पवार को लगता है कि ये जांच एजेंसियों की तरफ से की गयी निगरानी के फुटेज हैं.
मीडिया से बातचीत में शरद पवार कहते हैं कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इसमें उनका भी जिक्र आया है, जबकि वो इस मामले में कहीं नहीं हैं. शरद पवार ने ये भी कहा कि राज्य सरकार वीडियो की सच्चाई जानने के लिए अपनी तरफ से जांच करेगी.
अब अगर केंद्रीय जांच एजेंसियों की तरह महाराष्ट्र पुलिस भी बीजेपी नेताओं के खिलाफ हरकत में आ जाती है तो नारायण राणे केस जैसे और भी वाकये देखने को मिल सकते हैं. महाराष्ट्र पुलिस एक्शन में आयी तो बदले की कार्रवाई भी अपेक्षित ही है - और ऐसा हुआ तो गठबंधन सरकार एकजुट होने से मजबूत होगी, लेकिन बीजेपी-शिवसेना घमासान में पिसेंगे तो महाराष्ट्र के आम लोग ही.
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