महाराष्ट्र में सरकार बनाने (Maharashtra government formation) को लेकर कई दिनों से खींचतान चल रही है. भाजपा ने तो राज्यपाल से साफ कह दिया है कि वह सरकार नहीं बनाएगी. अब राज्यपाल ने सरकार बनाने के लिए शिवसेना (Shiv Sena) को न्योता दिया है. शिवसेना भी एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन (Congress-NCP Alliance) के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए सबके साथ बैठकें कर रही है. उम्मीद जताई जा रही है कि ये तीनों पार्टियां मिलकर सरकार बनाएंगी, लेकिन साथ ही ये सवाल भी खड़े हो रहे हैं कि ऐसा होने की स्थिति में किसे क्या मिलेगा? हर पार्टी के विधायक चाहेंगे कि उन्हें कुछ न कुछ अच्छा मिल जाए. दो पार्टियां भी होती हैं तो पदों के बंटवारे में आसानी होती है, लेकिन जब पार्टियां तीन हों, तो पदों के बंटवारे को लेकर झगड़ा और भी बड़ा हो जाता है. अब एक बात तो सब जानते हैं कि मुख्यमंत्री (Maharashtra CM Candidate) शिवसेना का होगा, लेकिन बाकी का क्या? एनसीपी और कांग्रेस को क्या मिलेगा? चलिए जानते हैं शिवसेना और कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की सरकार का स्ट्रक्चर कैसा होगा.
मुख्यमंत्री तो शिवसेना का ही होगा
एक बात तो तय ही है कि मुख्यमंत्री शिवसेना का होगा. यही तो वो मांग है, जो पूरी ना होने की वजह से भाजपा और शिवसेना का गठबंधन टूटा है. हां ये देखना दिलचस्प होगा कि शिवसेना का मुख्यमंत्री पूरे 5 साल रहेगा या फिर यहां 50-50 फॉर्मूले पर विचार किया जाएगा. 50-50 इसलिए कि कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री किसी को बनाने की कोई मांग आने की उम्मीद नहीं है, हां एनसीपी भले ही ऐसी मांग शिवसेना के सामने रख दे.
शिवसेना की ओर मुख्यमंत्री पद के लिए भी पहले तो आदित्य ठाकरे (Aditya Thackeray) का...
महाराष्ट्र में सरकार बनाने (Maharashtra government formation) को लेकर कई दिनों से खींचतान चल रही है. भाजपा ने तो राज्यपाल से साफ कह दिया है कि वह सरकार नहीं बनाएगी. अब राज्यपाल ने सरकार बनाने के लिए शिवसेना (Shiv Sena) को न्योता दिया है. शिवसेना भी एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन (Congress-NCP Alliance) के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए सबके साथ बैठकें कर रही है. उम्मीद जताई जा रही है कि ये तीनों पार्टियां मिलकर सरकार बनाएंगी, लेकिन साथ ही ये सवाल भी खड़े हो रहे हैं कि ऐसा होने की स्थिति में किसे क्या मिलेगा? हर पार्टी के विधायक चाहेंगे कि उन्हें कुछ न कुछ अच्छा मिल जाए. दो पार्टियां भी होती हैं तो पदों के बंटवारे में आसानी होती है, लेकिन जब पार्टियां तीन हों, तो पदों के बंटवारे को लेकर झगड़ा और भी बड़ा हो जाता है. अब एक बात तो सब जानते हैं कि मुख्यमंत्री (Maharashtra CM Candidate) शिवसेना का होगा, लेकिन बाकी का क्या? एनसीपी और कांग्रेस को क्या मिलेगा? चलिए जानते हैं शिवसेना और कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की सरकार का स्ट्रक्चर कैसा होगा.
मुख्यमंत्री तो शिवसेना का ही होगा
एक बात तो तय ही है कि मुख्यमंत्री शिवसेना का होगा. यही तो वो मांग है, जो पूरी ना होने की वजह से भाजपा और शिवसेना का गठबंधन टूटा है. हां ये देखना दिलचस्प होगा कि शिवसेना का मुख्यमंत्री पूरे 5 साल रहेगा या फिर यहां 50-50 फॉर्मूले पर विचार किया जाएगा. 50-50 इसलिए कि कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री किसी को बनाने की कोई मांग आने की उम्मीद नहीं है, हां एनसीपी भले ही ऐसी मांग शिवसेना के सामने रख दे.
शिवसेना की ओर मुख्यमंत्री पद के लिए भी पहले तो आदित्य ठाकरे (Aditya Thackeray) का नाम सामने रखा जा रहा था, लेकिन अब उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) खुद मैदान में कूद पड़े हैं. ये बात वह भी समझ चुके हैं कि मुख्यमंत्री बनने के लिए आदित्य ठाकरे अभी छोटे हैं और पुत्रमोह में पड़कर पार्टी को खतरे में डालना कोई समझदारी नहीं है. वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस और एनसीपी भी आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री के तौर पर शायद ही स्वीकार करतीं, क्योंकि बिना अनुभव वाले 29 साल के आदित्य ठाकरे सरकार नहीं चला पाते और उनकी नाकामी का ठीकरा शिवसेना के साथ-साथ कांग्रेस-एनसीपी के गठबंधन पर भी फूटता.
वहीं उद्धव ठाकरे के सामने आने से एनसीपी और कांग्रेस इसलिए भी सहज महसूस कर रही होंगी कि उन्हें एक शख्स मिल गया है, जिससे वह गठबंधन को लेकर तो बात कर ही सकते हैं, सरकार बनाने और चलाने से जुड़े मुद्दों पर भी बात कर सकते हैं.
एनसीपी को मिल सकते हैं अहम पद
कांग्रेस-एनसीपी के साथ शिवसेना की सरकार बनने में एनसीपी (NCP) की तरफ से अहम पदों की मांग की जा सकती है. अगर फॉर्मूला 50-50 नहीं हुआ और पूरे 5 साल मुख्यमंत्री शिवसेना का यानी उद्धव ठाकरे ही रहे तब तो एनसीपी वित्त और गृह मंत्रालय लिए बिना शायद ही माने. हां, ये तय है कि एनसीपी इस गठबंधन की सरकार में अहम पद चाहेगी, ताकि उसकी उपस्थिति को नजरअंदाज ना किया जा सके. वैसे भी, शिवसेना और एनसीपी में चंद सीटों का ही फर्क है.
कांग्रेस दे सकती है बाहर से समर्थन
महाराष्ट्र चुनाव में जनता ने कांग्रेस (Congress) को चौथे नंबर की पार्टी के तौर पर चुना है. यानी एक बात तो तय है कि अधिकतर जनता को कांग्रेस पसंद नहीं है. ऐसे में अगर कांग्रेस सरकार में भागीदार बनती है तो आने वाली चुनावों में उसे शर्मिंदगी झेलनी पड़ सकती है. जबकि अगर कांग्रेस बाहर से समर्थन करती है तो ये कह सकती है कि उसने तो सिर्फ सरकार बनाने के एक विकल्प का साथ दिया, क्योंकि महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट आ गया था. खैर, कयास इस बात के भी लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस स्पीकर का पद मांग सकती है.
वहीं दूसरी ओर, अगर किसी वजह से कुछ गड़बड़ हुई और शिवसेना के साथ गठबंधन टूटने के चलते सरकार गिरी और फिर से चुनाव हुए, तो कांग्रेस सेफ साइड में रहेगी. कोई ये नहीं कहेगा कि कांग्रेस ने तो सत्ता के लालच में आकर शिवसेना का साथ दिया था. यानी बाहर से समर्थन देने पर कांग्रेस को सिर्फ फायदा ही फायदा है. एक तो भाजपा का विजय रथ रुक ही रहा है, ऊपर से कुछ गड़बड़ होने की स्थिति में सारी जिम्मेदारी शिवसेना और एनसीपी की रहेगी.
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