महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) ने जाने अनजाने जैसे भी बीजेपी की दुखती रग पर हाथ रख दिया है - मराठी अस्मिता का मामला ऐसा है कि जैसे ही ये मुद्दा चर्चा में आता है, बीजेपी नेताओं को सिर से पैर तक सिहरन होने लगती है.
बीजेपी के सामने एक बार फिर वैसी ही स्थिति पैदा हो गयी है, जैसी कंगना रनौत ने खड़ी कर दी थी - जब बॉलीवुड एक्टर ने मुंबई की तुलना PoK से कर डाली थी. हालत ये हो गयी थी कि किसी भी बीजेपी नेता को बोलते नहीं बन रहा था. बोलें भी तो क्या बोलें - मराठी अस्मिता का सवाल जो है, लेकिन मुश्किल ये है कि ये तो महामहिम राज्यपाल ने ही मुसीबत खड़ी कर दी है.
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने गुजराती समुदाय से तुलना करते हुए मराठी लोगों का कंट्रीब्यूशन जीरो करार दिया है - और इस बयान के बाद पार्टीलाइन से इतर सारे ही नेता एक सुर में राज्यपाल कोश्यारी के बयान की कड़ी आलोचना कर रहे हैं.
कहने को तो भगत सिंह कोश्यारी ने अपना बयान वापस ले लिया है, सफाई भी दे दी है - लेकिन वो सभी दलों के नेताओं निशाने पर बने हुए हैं. ध्यान देने वाली बात ये है कि बीजेपी गठबंधन की सरकार में भी राज्यपाल कोश्यारी को न तो मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) का सपोर्ट मिल पाया है, न ही बीजेपी कोटे से डिप्टी सीएम बने देवेंद्र फडणवीस का. दोनों ने ही राज्यपाल की टिप्पणी से खुद को अलग करते हुए प्रतिक्रिया दी है कि वे उनकी बात से सहमत नहीं हैं.
उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) तो खैर पहले से ही खार खाये हुए हैं - तभी तो सीधे 'कोल्हापुरी जोड़ा' ही दिखा रहे हैं. बात मराठी मानुष की है तो राज ठाकरे ने भी उसी अंदाज में रिएक्ट किया है. बाकी क्या कांग्रेस और क्या एनसीपी - हर कोई राज्यपाल कोश्यारी पर टूट पड़ा है.
बीजेपी के...
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) ने जाने अनजाने जैसे भी बीजेपी की दुखती रग पर हाथ रख दिया है - मराठी अस्मिता का मामला ऐसा है कि जैसे ही ये मुद्दा चर्चा में आता है, बीजेपी नेताओं को सिर से पैर तक सिहरन होने लगती है.
बीजेपी के सामने एक बार फिर वैसी ही स्थिति पैदा हो गयी है, जैसी कंगना रनौत ने खड़ी कर दी थी - जब बॉलीवुड एक्टर ने मुंबई की तुलना PoK से कर डाली थी. हालत ये हो गयी थी कि किसी भी बीजेपी नेता को बोलते नहीं बन रहा था. बोलें भी तो क्या बोलें - मराठी अस्मिता का सवाल जो है, लेकिन मुश्किल ये है कि ये तो महामहिम राज्यपाल ने ही मुसीबत खड़ी कर दी है.
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने गुजराती समुदाय से तुलना करते हुए मराठी लोगों का कंट्रीब्यूशन जीरो करार दिया है - और इस बयान के बाद पार्टीलाइन से इतर सारे ही नेता एक सुर में राज्यपाल कोश्यारी के बयान की कड़ी आलोचना कर रहे हैं.
कहने को तो भगत सिंह कोश्यारी ने अपना बयान वापस ले लिया है, सफाई भी दे दी है - लेकिन वो सभी दलों के नेताओं निशाने पर बने हुए हैं. ध्यान देने वाली बात ये है कि बीजेपी गठबंधन की सरकार में भी राज्यपाल कोश्यारी को न तो मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) का सपोर्ट मिल पाया है, न ही बीजेपी कोटे से डिप्टी सीएम बने देवेंद्र फडणवीस का. दोनों ने ही राज्यपाल की टिप्पणी से खुद को अलग करते हुए प्रतिक्रिया दी है कि वे उनकी बात से सहमत नहीं हैं.
उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) तो खैर पहले से ही खार खाये हुए हैं - तभी तो सीधे 'कोल्हापुरी जोड़ा' ही दिखा रहे हैं. बात मराठी मानुष की है तो राज ठाकरे ने भी उसी अंदाज में रिएक्ट किया है. बाकी क्या कांग्रेस और क्या एनसीपी - हर कोई राज्यपाल कोश्यारी पर टूट पड़ा है.
बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल ये भी है कि जब वो निगम चुनावों में शिवसेना को पीछे छोड़ कर लीड लेने की कोशिश में जुटी है, तभी भगत सिंह कोश्यारी ने ठाणे और मुंबई का नाम लेकर मराठी लोगों के योगदान को नकार कर पार्टी बचाव की मुद्रा में ला दिया है. मुंबई और ठाणे में नगर निगम के चुनाव जल्दी ही होने वाले हैं - और पेंच कहीं ऐसे फंसा है कि अभी तक महाराष्ट्र में मंत्रिमंडल विस्तार नहीं हो सका है.
राज्यपाल का बयान और सफाई
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी अंधेरी वेस्ट में एक चौक के नामकरण समारोह में पहुंचे थे - और बातों बातों में अपनी ही भारतीय जनता पार्टी को एक झटके में चौराहे पर ला दिया. कार्यक्रम राजस्थानी समाज का था - राजस्थानियों की तारीफ करने के चक्कर में राज्यपाल ने गुजराती समाज को भी खींच लिया और मराठी लोगों के योगदान पर सवाल खड़े कर दिये.
समारोह में बीजेपी विधायक नितेश राणे भी शामिल थे. अपने संबोधन में राज्यपाल कोश्यारी ने कहा, 'कभी-कभी मैं यहां लोगों से कहता हूं कि महाराष्ट्र में, विशेष रूप से मुंबई और ठाणे से गुजरातियों को निकाल दो, और राजस्थानियों को निकाल दो, तो तुम्हारे यहां कोई पैसा बचेगा ही नहीं. ये राजधानी जो कहलाती है आर्थिक राजधानी, ये आर्थिक राजधानी कहलाएगी ही नहीं.'
महाराष्ट्र के निर्माण में मराठी समुदाय के योगदान को नकारने के बाद राज्यपाल कोश्यारी सत्तापक्ष और विपक्ष सभी नेताओं के निशाने पर आ गये. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी साफ कर दिया कि वो राज्यपाल के बयान से इत्तेफाक नहीं रखते - मराठी लोगों को योगदान को नकारा नहीं जा सकता... मुंबई देश की आथिक राजधानी सिर्फ मराठियों की मेहनत की वजह से बनी है.
डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने भी राज्यपाल के बयान से दूरी बनाते हुए असहमति जताई. बोले, महाराष्ट्र के निर्माण में मराठियों का योगदान सभी वर्गों में सबसे ज्यादा है.
बीजेपी नेता आशीष शेलार ने भी ट्वीट कर कहा कि राज्यपाल के बयान से वो बिलकुल समहत नहीं हैं, लेकिन जिस मंच पर राज्यपाल ने ये बातें कही थी, वहां मौजूद बीजेपी विधायक नितेश राणे ने राज्यपाल का समर्थन किया है. और ऐसा करने वाले वो अकेले बीजेपी नेता नजर आये हैं. केंद्रीय मंत्री नारायण राणे के बेटे नितेश का कहना है कि राज्यपाल ने किसी का अपमान नहीं किया है, केवल उस समाज को उसके योगदान का श्रेय दिया है.
बुरी तरह फंस जाने के बाद राज्यपाल को बाकायदा सफाई देनी पड़ी है. राज्यपाल कोश्यारी ये इल्जाम भी लगा रहे हैं कि उनके बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया है. अब वो कह रहे हैं कि महाराष्ट्र के निर्माण में मराठी लोगों की कड़ी मेहनत का सबसे अधिक योगदान है.
राज्यपाल कोश्यारी राजनीतिक दलों पर भी तोहमत मढ़ने की कोशिश की है, 'हाल में राजनीतिक चश्मे के माध्यम से सब कुछ देखने का दृष्टिकोण विकसित हुआ है... एक समुदाय की सराहना करना कभी दूसरे का अपमान नहीं करना है... राजनीतिक दल इसके बारे में बिना कारण तर्क देते हैं.'
अपने भाषण को लेकर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी अब कह रहे हैं, 'राजस्थानी समाज कार्यक्रम में जो बयान दिया था, उसमें मेरा मराठी आदमी को कम आंकने का कोई इरादा नहीं था. मैंने केवल गुजराती और राजस्थानी मंडलों के व्यापार में किये गये योगदान के बारे में बात की थी.'
उद्धव ठाकरे पूछ रहे हैं घर जाएंगे या जेल: ये मराठी अस्मिता का मामला ही है जिसने उद्धव ठाकरे में फिर से जोश भर दिया है. तभी तो सत्ता से हाथ धो बैठने के बाद भी कह रहे हैं, 'सरकार को तय करना चाहिये कि उनको घर वापस भेजा जाये या जेल?'
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ने राज्यपाल पर हिंदुओं को बांटने का आरोप लगाया है और कहा है कि उनकी ये टिप्पणी मराठी मानुष और मराठी गौरव का अपमान है.
उद्धव ठाकरे ने अपने बयान के लिए राज्यपाल से माफी की मांग करते हुए कहा है, 'अब जो नये हिंदू बने हैं... उन सत्ताधारी हिंदुओं से पूछना चाहता हूं... मैं जानबूझ कर ये कह रहा हूं क्योंकि उनके अनुसार मैंने हिंदुत्व छोड़ दिया है.'
दरअसल, बीजेपी की तरफ से महाविकास आघाड़ी की सरकार रहते लगातार उद्धव ठाकरे के हिंदुत्व पर सवाल उठाया जाता रहा. शिवसेना में बगावत का आधार भी यही बना. एकनाथ शिंदे और उनके साथियों का आरोप रहा है कि उद्धव ठाकरे ने बाल ठाकरे के हिंदुत्व की लाइन छोड़ दी है.
जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे तब राज्यपाल कोश्यारी ने मंदिरों को खोले जाने के फैसले को लेकर कटाक्ष भरे पत्र में भी उद्धव ठाकरे के हिंदुत्व पर सवाल उठाया था. तब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी बीजेपी के नेता की तरह नजर आये थे, इसीलिए उद्धव ठाकरे उनके साथ साथ एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस सभी एक साथ लपेटते हुए हमला बोला है.
गुस्से से आग बबूला हो रहे उद्धव ठाकरे ने राज्यपाल को लेकर भी वैसी ही बातें की है, जैसी एक बार यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए कही थी, 'भगत सिंह कोश्यारी ने भले ही महाराष्ट्र की संस्कृति देखी हो, लेकिन उन्हें कोल्हापुरी जोड़ा भी दिखाना होगा.'
शिवसेना सांसद संजय राउत ने ट्विटर पर लिखा है, 'जैसे ही महाराष्ट्र में बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बने हैं तब से मराठी लोगों का अपमान शुरू हो गया है... ये मेहनती मराठी लोगों का अपमान है.'
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नेता राज ठाकरे ने तो ट्विटर पर राज्यपाल के नाम बयान भी जारी किया है. लिखा है, 'मराठियों को बेवकूफ़ ना बनायें.' राज ठाकरे के पार्टी के प्रवक्ता तो दो कदम आगे ही नजर आते हैं, ट्विटर पर लिखते हैं, 'अब बहुत हो गया.. उनको अब घर पर बैठना चाहिये... भगत सिंह केवल नाम में है, बाकी टॉप बॉक्स खाली लगता है.'
ये मामला महाराष्ट्र बीजेपी के वश से बाहर है
बीते ढाई साल के दौरान ऐसे कई मौके देखने को मिले हैं जब महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी को पसोपेश में पड़ी पायी गयी है. कंगना रनौत का मुंबई को लेकर PoK वाला बयान हो या नारायण राणे की गिरफ्तारी का मामला - ये ऐसे मसले हैं जब बीजेपी को काफी सोच समझ कर बोलना पड़ रहा था.
कंगना रनौत को गुस्सा तो बीएमसी के नोटिस पर आया था, लेकिन संजय राउत के साथ तू तू मैं मैं करते वो मुंबई पुलिस के खिलाफ आक्रामक हो गयीं और उसी क्रम में पीओके से तुलना करने लगीं.
केंद्र की बीजेपी सरकार की तरफ से कंगना रनौत को सुरक्षा तो मुहैया करायी गयी, उनके दफ्तर में बीएमसी के एक्शन को गलत बताया गया लेकिन पीओके के मुद्दे पर किसी ने सपोर्ट नहीं किया - देवेंद्र फडणवीस या महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने ही.
बीजेपी की मुश्किल ये थी कि वो कंगना रनौत के साथ खड़ी भी थी, लेकिन मुद्दा ऐसा रहा कि सार्वजनिक तौर पर ऐसा नहीं कर सकती थी - और फिर रास्ता ये निकाला गया कि कंगना रनौत के पास केंद्रीय मंत्री और एनडीए के सहयोगी रामदास आठवले को भेजा गया. ये रामदास आठवले ही हैं जो कंगना को लेकर राज्यपाल से मिलाने भी गये थे.
उद्धव ठाकरे से निबटने में भी बीजेपी को ऐसी ही मुश्किलें आ रही थीं. सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में बीजेपी उद्धव ठाकरे को कठघरे में खड़ा करना चाहती थी, लेकिन कदम कदम पर बचते हुए. मामला बिहार से जुड़ा था इसलिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी और केंद्र ने मंजूर कर लिया. बीजेपी के पक्ष में एक बात और गयी कि सुप्रीम कोर्ट ने भी सीबीआई जांच को हरी झंडी दिखा दी थी.
ये साफ तौर पर समझ में आ रहा था कि उद्धव ठाकरे ही नहीं उनके बेटे आदित्य ठाकरे भी निशाने पर हैं, लेकिन उनके पीछे नितेश राणे को लगा दिया गया. वो 'बेबी पेंग्विन' बोल कर हमला करते रहे - और बीजेपी ये समझा कर निकल ली कि ये दोनों की पुरानी दुश्मनी का नतीजा है.
बीजेपी को बुरी तरह फंसे तब देखा गया जब महाराष्ट्र पुलिस ने केंद्रीय मंत्री नारायण राणे को गिरफ्तार कर लिया था. इतना सब हो जाने के बावजूद देवेंद्र फडणवीस और चंद्रकांत पंडित ऐसे बयान दे रहे थे जैसे रस्मअदायगी कर रहे हों - और तब बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को खुद मोर्चे पर आगे आना पड़ा था.
महाराष्ट्र बीजेपी के नेताओं की मुश्किल ये थी कि वो नारायण राणे के उद्धव ठाकरे को थप्पड़ मारने वाली बात का सपोर्ट कर मराठी लोगों की नाराजगी नहीं मोल लेना चाहते थे. वे बस जैसे तैसे गिरफ्तारी का ही विरोध कर पा रहे थे. वो गिरफ्तारी जिस तरीके से हुई थी. वीडियो में नारायण राणे के हाथ में थाली देखने को मिली थी, जब पुलिस उनको घसीट कर घर से उठा ले गयी.
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने मराठी लोगों के लिए जो बात कही है, वो उनके सफाई देने या बीजेपी नेताओं के असहमति जताने से खत्म नहीं होने वाला है. अगर विपक्ष इस मसले पर शोर मचाता है तो महाराष्ट्र बीजेपी के नेता या तो चुप रहेंगे या स्थानीय नेताओं का ही सपोर्ट करेंगे.
बीजेपी नेतृत्व के लिए अचानक सामने आयी ये बड़ी चुनौती है. अगर उद्धव ठाकरे मांग करते हैं कि राज्यपाल को मराठी लोगों से माफी मांगनी चाहिये तो महाराष्ट्र बीजेपी के किसी भी नेता की हिम्मत नहीं होगी कि वो इस बात का विरोध कर सकें.
ऐसे में बीजेपी की तरफ से ये तो स्पष्ट करना ही होगा कि मराठा अस्मिता उसके लिए वैसे ही महत्वपूर्ण है जैसे उद्धव ठाकरे, शरद पवार या नाना पटोले जैसे नेताओं के लिए - बीजेपी नेतृत्व जो भी फैसला ले, खुल कर तो सामने आना ही पड़ेगा. ऐसा नहीं हुआ तो एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस के बयान के बाद भी लोग यही मानेंगे कि बीजेपी राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की राय से इत्तेपाक रखती है.
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