महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव में वोटिंग हो चुकी है, और नतीजे 24 अक्टूबर को आ ही जाएंगे. चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले से ही नतीजों की चर्चा होती आ रही है. नेताओं के फटाफट पाला बदलने से राजनीतिक दल दावे तो कर ही रहे थे, जानकार भी तकरीबन राय बना ही चुके थे. तभी कुछ ओपिनियन पोल आये और चुनाव मैदान से तस्वीरें और वीडियो वायरल हुए - जिसने नतीजों को लेकर एक बार फिर से गंभीरतापूर्वक विचार करने को मजबूर कर दिया है.
चुनाव प्रचार में बड़े नेताओं की रैलियों के हिसाब से देखें तो बीजेपी बाकियों से मीलों आगे रही, जबकि कांग्रेस फिसड्डी साबित हुई है - हां, बड़े नेताओं में सबसे बुजुर्ग नेता शरद पवार ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वो आखिरी दम तक लड़ने वाले नेता हैं.
नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी
सबसे पहले तो आंकड़े देखते हैं - किसने कितनी रैलियां की? बाकी नेता जितनी भी चुनावी रैलियां कर लें, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारी ही पड़ते हैं. बयानों और लोगों की भीड़ के मामले में ही नहीं - संख्या में भी.
महाराष्ट्र और हरियाणा में बीजेपी की सरकारें हैं - और 2018 में तीन सरकारें गंवा देने के बाद बीजेपी के लिए निश्चिंत बने रहने जैसी कोई बात नहीं रही. भले ही बीजेपी ने 2019 के आम चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन किया लेकिन लोक सभा के तत्काल बाद होने वाले दोनों राज्यों के चुनाव हल्के में लेने वाले तो कतई नहीं थे. वैसे बीजेपी ने दोनों ही चुनावों को काफी गंभीरता से लिया और तैयारियां बहुत पहले ही शुरू कर दी थीं. बल्कि, कहें तो आम चुनाव के वक्त से ही. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह जब आम चुनाव के लिए बीजेपी कार्यकर्ताओं की मीटिंग करते तो महाराष्ट्र और हरियाणा वालों को पहले से ही विधानसभा चुनावों के लिए भी तैयार रहने के लिए ताकीद कर देते रहे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र और हरियाणा में कुल मिलाकर 25 चुनावी जनसभाएं की - और मुकाबले में कांग्रेस के लिए राहुल गांधी ने महज 7. महाराष्ट्र में चार और हरियाणा में कुल जमा तीन.
PM...
महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव में वोटिंग हो चुकी है, और नतीजे 24 अक्टूबर को आ ही जाएंगे. चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले से ही नतीजों की चर्चा होती आ रही है. नेताओं के फटाफट पाला बदलने से राजनीतिक दल दावे तो कर ही रहे थे, जानकार भी तकरीबन राय बना ही चुके थे. तभी कुछ ओपिनियन पोल आये और चुनाव मैदान से तस्वीरें और वीडियो वायरल हुए - जिसने नतीजों को लेकर एक बार फिर से गंभीरतापूर्वक विचार करने को मजबूर कर दिया है.
चुनाव प्रचार में बड़े नेताओं की रैलियों के हिसाब से देखें तो बीजेपी बाकियों से मीलों आगे रही, जबकि कांग्रेस फिसड्डी साबित हुई है - हां, बड़े नेताओं में सबसे बुजुर्ग नेता शरद पवार ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वो आखिरी दम तक लड़ने वाले नेता हैं.
नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी
सबसे पहले तो आंकड़े देखते हैं - किसने कितनी रैलियां की? बाकी नेता जितनी भी चुनावी रैलियां कर लें, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारी ही पड़ते हैं. बयानों और लोगों की भीड़ के मामले में ही नहीं - संख्या में भी.
महाराष्ट्र और हरियाणा में बीजेपी की सरकारें हैं - और 2018 में तीन सरकारें गंवा देने के बाद बीजेपी के लिए निश्चिंत बने रहने जैसी कोई बात नहीं रही. भले ही बीजेपी ने 2019 के आम चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन किया लेकिन लोक सभा के तत्काल बाद होने वाले दोनों राज्यों के चुनाव हल्के में लेने वाले तो कतई नहीं थे. वैसे बीजेपी ने दोनों ही चुनावों को काफी गंभीरता से लिया और तैयारियां बहुत पहले ही शुरू कर दी थीं. बल्कि, कहें तो आम चुनाव के वक्त से ही. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह जब आम चुनाव के लिए बीजेपी कार्यकर्ताओं की मीटिंग करते तो महाराष्ट्र और हरियाणा वालों को पहले से ही विधानसभा चुनावों के लिए भी तैयार रहने के लिए ताकीद कर देते रहे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र और हरियाणा में कुल मिलाकर 25 चुनावी जनसभाएं की - और मुकाबले में कांग्रेस के लिए राहुल गांधी ने महज 7. महाराष्ट्र में चार और हरियाणा में कुल जमा तीन.
PM मोदी के मैदान में उतरने से पहले ही अमित शाह ने जगह जगह दौरा कर नींव मजबूत रख दी थी. मोदी के पहुंचते ही इमारत भी तैयार हो गयी. देेवेंद्र फडणवीस और मनोहरलाल खट्टर के अलावा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी स्टार प्रचारकों में शुमार रहे और राष्ट्रवाद को लेकर चुनावी रैलियों में लगातार अलख जगाते रहे. प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के निशाने पर तो हरदम कांग्रेस ही निशाने पर होती - और बीजेपी नेतृत्व धारा 370 के नाम पर उसे लगातार ललकारता भी रहा - 'अगर कांग्रेस को लगता है कि हमने 370 को हटाकर गलत किया तो वो कहे कि जब वह सत्ता में आएगी तो इसे फिर से लागू कर देगी.'
राहुल गांधी अपनी स्टाइल में मोदी और शाह को निशाना बनाते रहे. बीच बीच में वो बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था की ओर भी ध्यान दिलाते रहे - और कई बार तो सूट-बूट वाले लहजे में प्रधानमंत्री मोदी को कारोबारियों का प्रवक्ता भी बताये.
कांग्रेस की ओर से कम ही ऐसे मौके लगे जब लगा कि वो चुनाव लड़ रही है. शायद यही वजह रही कि कांग्रेस के नेता ज्यादातर वक्त आपसी लड़ाई और एक दूसरे की टांग खींचने में लगे रहे. चुनाव के दौरान ही अशोक तंवर ने हरियाणा में पांच करोड़ में टिकट बेचे जाने का इल्जाम लगाते हुए दिल्ली में प्रदर्शन किया तो मुंबई में संजय निरूपम में टिकट बंटवारे को लेकर कांग्रेस नेतृत्व को ही कठघरे में खड़ा कर दिया. मौका मिलते ही कांग्रेस के बयानबहादुर नेता भी एक्टिव देखे गये - सलमान खुर्शीद ने तो वोटिंग का मौका आने से बहुत पहले ही खुलेआम कह दिया कि कोई फायदा तो है नहीं.
वैसे कांग्रेस ने फजीहत के भी मौके नहीं गंवाये. जैसे ही बीजेपी ने वीर सावरकर को सरकार बनने पर भारत रत्न देने की बात की, मनीष तिवारी ने धावा बोल दिया. जब लगा कि बात बिगड़ गयी तो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को मोर्चे पर भेज कर धारा 370 की तरह कांग्रेस ने यू-टर्न भी ले लिया. मनमोहन सिंह ने पी. चिदंबरम की गैर-मौजूदगी में आर्थिक नीतियों पर मोदी सरकार को भी घेरने की कोशिश की, लेकिन मामला सावरकर पर सफाई तक ही सीमित रहा.
शरद पवार और गांधी परिवार
शुरू में सुना तो ये गया था कि महाराष्ट्र में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और शरद पवार की संयुक्त रैलियां होंगी - लेकिन चुनाव प्रचार का आखिरी दौर आते आते मालूम हुआ कि कांग्रेस नेता की हरियाणा की एकमात्र रैली भी रद्द हो गयी. प्रियंका गांधी वाड्रा हरियाणा चुनाव से तो दूर ही रहीं, महाराष्ट्र में भी नजर नहीं आयीं.
जब चुनाव प्रचार जोरों पर था तो राहुल गांधी विदेश दौरे पर थे - किसी खास मेडिटेशन के लिए. खबर रही कि वो कंबोडिया के दौरे पर थे. बहरहाल, सूत्रों के हवाले से मीडिया में खबरें हैं कि सोनिया गांधी के बुलाने पर वो जल्दी ही लौट भी आये. हालांकि, वो लौटे कोर्ट में अपनी पेशी से ठीक पहले ही थे. उम्र के हिसाब से देखें तो शरद पवार सोनिया गांधी से छह साल बड़े हैं. शरद पवार और सोनिया गांधी दोनों ही अपनी सेहत को लेकर काफी परेशान भी रहे हैं. फिर भी सोनिया गांधी जहां चुनाव प्रचार से पूरी तरह दूर रहीं, शरद पवार महाराष्ट्र चुनाव में पूरी ताकत से डटे रहे. एक तरफ चुनाव की टेंशन तो दूसरी तरफ पारिवारिक विवादों से भी शरद पवार खासे परेशान रहे. अजीत पवार के बागी तेवर और लंबे अरसे से बातचीत बंद हो जाना भी शरद पवार की मुश्किलें बढ़ाने वाला रहा - फिर भी शरद पवार चुनाव प्रचार के तहत एक एक दिन में तीन से चार रैलियां तक करते रहे.
ED के FIR के बाद तो शरद पवार ने अपनी ताकत दिखायी ही, सतारा की रैली में मूसलाधार बारिश में मंच पर चढ़ कर कार्यकर्ताओं को संबोधित करने का उनका वीडियो खूब वायरल हुआ है.
2018 के विधानसभा चुनाव और मुख्यमंत्रियों चयन में खास दिलचस्पी लेने वाली प्रियंका गांधी वाड्रा का हरियाणा और महाराष्ट्र चुनावों से दूरी बना लेना भी खटकने वाली बात रही. कहा तो ये जा रहा है कि प्रियंका गांधी खुद को यूपी और 2022 के विधानसभा चुनावों पर फोकस कर रही हैं, लेकिन लगता ऐसा है कि वो अपने पति रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ जमीन संबंधी मामलों को लेकर भी दूरी बना ली होंगी. वैसे भी चुनावों से पहले जिस तरह कांग्रेस नेता जांच एजेंसियों के निशाने पर रहे, चुनाव प्रचार से दूर रहने का फैसला समझदारी भरा ही लगता है. हो सकता है प्रियंका गांधी के मैदान में उतरने पर कांग्रेस के सीएम चेहरे भूपिंदर सिंह हुड्डा की भी मुसीबतें बढ़ जातीं.
महाराष्ट्र में एक और बात ध्यान खींचती है - चुनाव के दौरान ट्विटर पर NCP नेता शरद पवार को फॉलो करने वालों में 15 हजार का इजाफा हुआ है - ये ज्यादा खास इसलिए भी है क्योंकि ये संख्या आदित्य ठाकरे के बढ़े फॉलोअर से ज्यादा है.
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