कश्मीर के ताजा हालात पर घाटी और बाकी देश में चर्चा का दौर जारी है. उधर अंतराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर रहा है, हालांकि उसे मुंह की ही खानी पड़ी है. देश का आम नागरिक भी कश्मीर के सवाल पर कई तरह से सोच रहा है. उसकी सोच का दायरा मौजूदा वाकयात के साथ अतीत तक चला जाता है. ऐसे में यह जानना बड़े काम का होगा कि कबायली हमले को कुचलने गई भारतीय फौजों को आशीर्वाद देने के बावजूद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कश्मीर के मुद्दे पर किस तरह सोचते थे.
गांधीजी के अंतिम वर्षों में लगातार उनके साथ रहे उनके निजी सचिव प्यारेलाल ने बापू के जीवन पर चार खंडों में लिखी पुस्तक ‘महातमा गांधी: पूर्णाहुति’ में इस प्रसंग का लंबा वर्णन किया है. इस प्रसंग से यह भी पता चलता है कि बापू के जीवनकाल और उनकी हत्या के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू असल में गांधीजी के सिद्धांतों पर चलने की कोशिश करते रहे.
पुस्तक के चौथे खंड में कश्मीर को लेकर गांधीजी के विचार कुछ इस तरह से हैं. यहां से उद्धरण शुरू होता है- गांधीजी ने काश्मीर के सवाल को घास के ढेर में दियासलाई’’ के समान बताया. ‘‘आप कभी नहीं कह सकते कि वह कब भडक़ उठेगा और सब कुछ स्वाहा कर देगा.’’
महात्मा गांधी |
उनका आग्रह था कि भारतीय संघ को अपना घर ठीक करना चाहिए और आकाश टूट पड़े तो भी विशुद्ध न्याय ही करना चाहिए. बंबई के एक पारसी मित्र और भारतीय वायु सेना के एक अधिकारी के साथ हुई बातचीत में उन्होंने अपना हृदय खोला और लगभग पौन घंटे तक गहरी उत्तेजना में बिड़ला भवन के अपने कमरे में टहलते हुए, मन का गुबार निकाला.
उन्होंने कहा: काश्मीर...
कश्मीर के ताजा हालात पर घाटी और बाकी देश में चर्चा का दौर जारी है. उधर अंतराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर रहा है, हालांकि उसे मुंह की ही खानी पड़ी है. देश का आम नागरिक भी कश्मीर के सवाल पर कई तरह से सोच रहा है. उसकी सोच का दायरा मौजूदा वाकयात के साथ अतीत तक चला जाता है. ऐसे में यह जानना बड़े काम का होगा कि कबायली हमले को कुचलने गई भारतीय फौजों को आशीर्वाद देने के बावजूद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कश्मीर के मुद्दे पर किस तरह सोचते थे.
गांधीजी के अंतिम वर्षों में लगातार उनके साथ रहे उनके निजी सचिव प्यारेलाल ने बापू के जीवन पर चार खंडों में लिखी पुस्तक ‘महातमा गांधी: पूर्णाहुति’ में इस प्रसंग का लंबा वर्णन किया है. इस प्रसंग से यह भी पता चलता है कि बापू के जीवनकाल और उनकी हत्या के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू असल में गांधीजी के सिद्धांतों पर चलने की कोशिश करते रहे.
पुस्तक के चौथे खंड में कश्मीर को लेकर गांधीजी के विचार कुछ इस तरह से हैं. यहां से उद्धरण शुरू होता है- गांधीजी ने काश्मीर के सवाल को घास के ढेर में दियासलाई’’ के समान बताया. ‘‘आप कभी नहीं कह सकते कि वह कब भडक़ उठेगा और सब कुछ स्वाहा कर देगा.’’
महात्मा गांधी |
उनका आग्रह था कि भारतीय संघ को अपना घर ठीक करना चाहिए और आकाश टूट पड़े तो भी विशुद्ध न्याय ही करना चाहिए. बंबई के एक पारसी मित्र और भारतीय वायु सेना के एक अधिकारी के साथ हुई बातचीत में उन्होंने अपना हृदय खोला और लगभग पौन घंटे तक गहरी उत्तेजना में बिड़ला भवन के अपने कमरे में टहलते हुए, मन का गुबार निकाला.
उन्होंने कहा: काश्मीर की क्या बात है, मैं तो सारे देसी राज्यों के संघ से निकल जाने की भी परवाह नहीं करूंगा यदि उसे अपने पास रखने के लिए उन सिद्धांतों का बलिदान करना पड़े, जिनका भारतीय संघ समर्थक रहा है. वे सिद्धांत हैं: अल्पसंखयकों के साथ पूर्ण न्याय तथा समान व्यवहार और भय अथवा पक्षपात के बिना अपराधियों को दंड.
भारत का आकार भले कम हो जाय, परंतु यदि उसकी आत्मा शुद्ध रहे तो वह वीरों की अहिंसा का पोषक हो सकता है, संसार का नैतिक नेतृत्व ग्रहण कर सकता है और पीडि़त तथा शोषित जातियों को आशा और मुक्ति का संदेश दे सकता है. इसके विपरीत, भारी-भरकम किंतु आत्मा रहित भारत पश्चिम के सैनिक पद्धति वाले राज्यों का घटिया अनुकरण ही होगा. यदि भारत काश्मीर के महाराजा के अधिकार कम नहीं करेगा, तो भारत की क्चयाति पर सारे मुस्लिम जगत में बट्टा लग जायगा.
गांधीजी ने अपनी चेतावनी जारी रखते हुए कहा- जिसका सार उन्होंने कुछ समय बाद अपने एक प्रार्थना प्रवचन में दोहराया: आपको यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि मुस्लिम समुदाय संख्या में विशाल है और सारी दुनिया में फैला हुआ है. भारत सारे संसार के साथ मित्रता के प्रति लापरवाह कैसे रह सकता है? मैं कोई भविष्यवक्ता नहीं हूं, परंतु यह जानने के लिए पूर्वबोध की विशिष्ट प्रतिभा का होना जरूरी नहीं कि यदि किसी भीकारण से भारत के हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे के मित्र नहीं बन पाए, तो सारा मुस्लिम संसार भारत का शत्रु बन जाएगा और भारत तथा पाकिस्तान दोनों अपने लड़ाई-झगड़े के फलस्वरूप फिर से विदेशी हुकूमत के शिकार हो जाएंगे.
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