कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद, इसके विरोध में लोगों की जो चिंताएं बाहर आ रही हैं उससे लोगों की सोच और समझ पर हैरानी होती है. चलिए मान लेते हैं कि ये लोग हमारे अपने देश के हैं और इन्हें सरकार के कुछ फैसलों पर आपत्ति हो सकती है. लेकिन आश्चर्य होता है जब मलाला यूसुफजई (Malala yousafzai) जैसे पाकिस्तानी मूल के लोग लंदन में बैठकर कश्मीर मामले पर बोलते हैं.
पाकिस्तानी मूल की मानवाधिकार कार्यकर्ता और नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई ने भी कश्मीर मुद्दे पर ताजा ताजा बयान दिया है. उनका कहना है कि-
‘मैं बच्ची थी, जब मेरे माता-पिता बच्चे थे और जब मेरे दादा-दादी भी युवा थे तब से कश्मीरी लोग संघर्ष कर रहे हैं. पिछले 7 दशकों से कश्मीरी बच्चे गंभीर हिंसा के बीच बढ़े हुए हैं.
मैं कश्मीर की फिक्र करती हूं क्योंकि दक्षिणी एशिया मेरा भी घर है. वो घर जहां 1.8 बिलियन आबादी के साथ मैं रहती हूं और इनमें कश्मीरी भी हैं. हम अलग-अलग संस्कृति, धर्म, भाषा, खानपान, धर्म और परंपराओं को मानते हैं. मैं मानती हूं कि हम सब शांति से रह सकते हैं. मैं जानती हूं कि हम एक-दूसरे से मिले तोहफों की कद्र कर सकते हैं, एक-दूसरे से बहुत अलग होते हुए भी इस विश्व के लिए कुछ कर सकते हैं.
हमें कष्ट भोगते रहने और एक दूसरे को चोट पहुंचाने की कोई जरूरत नहीं है. आज मैं कश्मीरी बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा को लोकर बहुत चिंतित हूं. इन्हीं लोगों को हिंसा के सबसे ज्यादा परिणाम झेलने पड़ते हैं.
मैं उम्मीद करती हूं कि दक्षिणी एशिया, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और संबंधित पक्ष उनकी परेशानियों के लिए काम करेंगे. हमारे बीच जो भी मतभेद हों, लेकिन मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए हमें साथ आना चाहिए. महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को अहमियत देनी चाहिए और 7 दशकों से चली आ रही कश्मीर समस्या के समाधान पर ध्यान देना चाहिए.'
मलाला के कश्मीर पर बोलने पर पाकिस्तानियों तक ने उनकी आलोचना की है
मलाला दुनिया भर में जाकर महिला सशक्तिकरण की बात करती हैं, मानवाधिकार की बात करती हैं. वो कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के 3 दिन बाद कश्मीर में हो रही हिंसा और कश्मीरियों के मनवाधिकार पर बात करती हैं. लेकिन कश्मीर पर बात करने से पहले उन्हें पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यक हिंदू और ईसाइयों के संघर्षों पर बात करनी चाहिए थी. दक्षिण एशिया को अपना घर कहने वाली मलाला को भारत में बसा कश्मीर दिखाई दे रहा है लेकिन अपने पड़ोस के बलोचिस्तान, पश्तो और नॉर्थ वजीरिस्तान जैसे 'कश्मीर' दिखाई नहीं दे रहे.
बलूचिस्तान का अधिकांश इलाका पाकिस्तान के कब्जे में है, जो पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का लगभग 44 प्रतिशत हिस्सा है. 1948 से लेकर आज तक बलूच का विद्रोह जारी है. बलूच पहले की तरह स्वतंत्र राष्ट्र की मांग करते हैं. आज बलूचिस्तान में हजारों बलूच लड़ाके बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी के रूप में पाकिस्तानी सेना के खिलाफ लड़ रहे हैं. और आजादी की मांग कर रहे हैं. इस आर्मी ने सरकार और सेना के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष छेड़ रखा है.
पाकिस्तान के दूसरे सबसे बड़े जातीय समूह पश्तून लगातार अपनी सुरक्षा, नागरिक स्वतंत्रता और समान अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इसके लिए 2014 में पश्तून तहाफुज़ मूवमेंट (PTM) की भी शुरुआत की गई. ये नागरिकों के ज़रिए शुरू किया गया एक अभियान था जो पाकिस्तान के खैबर-पख़्तूनख्वा और बलूचिस्तान प्रान्तों में चल रहा है. इनका उद्देश्य पख्तूनों के मानवाधिकारों की रक्षा करना है. बताया जा रहा है कि करीब 8 हज़ार पश्तून लोग अब तक लापता हो चुके हैं.
पाकिस्तान में कबायली जिले उत्तरी वजीरिस्तान में भी सुरक्षा बलों और चरमपंथियों के बीच संघर्ष बना रहता है. इन इलाकों के अलावा पाकिस्तान में 3 समुदायों का कत्लेआम कैसे भुलाया जा सकता है- हिंदू, अहमदी और हजारा. पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदू और सिख 1.60% हैं, ईसाई 1.59%, अहमदी .22% और शिया हजारा 10-15% हैं.
पाकिस्तान में लगातार अल्पसंख्यकों पर अत्याचार जारी है
पाकिस्तान के क्वेटा में बसा शिया हजारा समुदाय लंबे समय से आतंकी हमलों से परेशान हैं. यहां लगातार आतंकी हमले होते रहते हैं. अधिकारियों के मुताबिक यहां पिछले पांच सालों में 500 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं जबकि 627 लोग आतंकी हमलों में घायल हो चुके हैं. शिया हजारा एक अल्पसंख्यक समुदाय है जो मध्य अफगानिस्तान में पाया जाता है. यहां ये अल्पसंख्यक हैं. अफगानिस्तान में तालिबान के शासन के दौरान हजारा लोगों पर कई जुल्म ढाए गए थे, जिसके बाद ये लोग काफी संख्या में पाकिस्तान में आकर बस गए थे.
उधर अहमदिया लोगों को पाकिस्तान के संविधान के अनुसार मुसलमान नहीं माना जाता. मुसलमानों का विश्वास है कि पैगंबर मोहम्मद ख़ुदा के भेजे हुए आख़िरी पैगंबर हैं और उनकी मौत के साथ ही ये सिलसिला खत्म हो गया. जबकि पाकिस्तान में मुसलमानों के मुताबिक अहमदी समुदाय के लोग इस बात को नहीं मानते कि पैगंबर मोहम्मद ख़ुदा के भेजे हुए आख़िरी पैगंबर थे. आम सुन्नी मुसलमानों का मत हैं कि इस्लाम के अंतर्गत 'अहमदिया' वो भटके हुए लोग हैं जिनका इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है और ये अपनी हरकतों से लगातार इस्लाम का नाम खराब कर रहे हैं. और इसी वजह से उन्हें चुन चुन के मारा जा रहा है.
उसी तरह भारत पाकिस्तान बंटवारे के वक्त पाकिस्तान में बसे हिंदुओ पर हिंसा के मामले बढ़ते जा रहे हैं. 1947 में पाकिस्तान में हिन्दुओं और सिखों की आबादी एक करोड़ के आसपास थी. लेकिन, अब पाकिस्तान में मात्र 12 लाख हिन्दू और 10 हजार सिख रह गए हैं. इतने हिंदुओं कहां गए इसका जवाब किसी के पास नहीं है. उसपर नाबालिग हिन्दू लड़कियों का जबर्दस्ती धर्म परिवर्तन परिवर्तन और बलात्कार आम बात है.
लेकिन मलाला का कश्मीर पर चिंता करना क्या ये बताता है कि कश्मीर के हालात पाकिस्तान से भी ज्यादा खराब हैं. बेहतर होता कि पहले मलाला भारत और पाकिस्तान के बार में थोड़ा ज्ञान अर्जित कर लेतीं और फिर कश्मीर पर चर्चा करतीं. बेहतर होता कि मलाला महिला सशक्तिकरण पर बात करतीं, बच्चों की पढ़ाई पर बात करतीं. और अगर मानवाधिकार की बात ही करनी है तो पाकिस्तान की करतीं जहां की वो खुद हैं. लेकिन अफसोस मलाला पाकिस्तान के खिलाफ कुछ नहीं कहतीं. मलाला 22 साल की हैं और अभी नहीं लगता कि वो इतनी परिपक्व हैं कि उन्हें कश्मीर जैसे मसलों पर राय देने की जरूरत है. पाकिस्तान पर न बोलकर और कश्मीर पर बोलना साफ दिखा रहा है कि मलाला अभी से अपने आने वाले पॉलिटिकल करियर के लिए तैयारी कर रही हैं. नोबल पुरस्कार विजेता के मुंह से ऐसी डिपेलोमैटिक बातें शोभा नहीं देतीं.
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