मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) अभी शशि थरूर की मिसाइलें तो परोक्ष रूप से ही झेल रहे हैं, आगे से सीधे फेस करने के लिए तैयार रहना होगा. और अभी तो सिर्फ एक शशि थरूर हैं, आगे न जानें कितने और ऐसे बड़े बड़े चैलेंजर धीरे धीरे सामने आ जायें, अभी कहां मालूम - और ये भी तो नहीं मालूम कि वे किस किस रूप में सामने आएंगे?
मल्लिकार्जुन खड़गे खुद ही पटना में समझा ही चुके हैं कि नीतीश कुमार के विपक्षी एकता वाले प्रस्ताव पर वो कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव नतीजे आने के बाद ही विचार करेंगे - हालांकि, भोपाल पहुंचते पहुंचते वो बहुत आगे तक बोल गये, "बकरा ईद में बचेंगे, तो मोहर्रम पर नाचेंगे."
नीतीश कुमार को लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे के कहने का मतलब तो यही समझा जाना चाहिये कि आगे से ऐसे सारे ही मामले सोनिया गांधी या राहुल गांधी नहीं बल्कि सिर्फ उनके टेबल पर ही लाए जाएंगे, और वही देखेंगे - हालांकि, वो तो ये भी कह चुके हैं कि सभी फैसले वो 'आम सहमति' से ही लेंगे. अब नाम भले ही 'आम' का दिया जाये, लेकिन इशारा तो 'खास' की तरफ समझा जाना चाहिये, आखिर हर किसी की मजबूरियां भी तो होती ही हैं. मतलब, ऐसे भी समझ सकते हैं कि बगैर सोनिया गांधी और राहुल गांधी की सहमति के वो कोई भी फैसला नहीं लेने वाले. वैसे ऐसी बातें वो अपने मुंह से कहें या न कहें, हर कोई मान कर तो यही चल रहा है. वो भी शुरू से ही.
और ये भी मान कर चला जा रहा है कि मल्लिकार्जुन खड़गे के हिस्से में तो सिर्फ तोहमतें ही आने वाली हैं, आखिर उपलब्धियों पर पहला और आखिरी हक तो गांधी परिवार (Gandhi Family) का ही बनता है. है कि नहीं?
बरसों बाद तो गांधी परिवार से इतर कोई कांग्रेस की कमान संभालने जा रहा है, ऊपर से कोई दलित नेता और तीनों ही राज्यों में जिस तरह की दलित आबादी है, अपेक्षा तो होगी ही कि...
मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) अभी शशि थरूर की मिसाइलें तो परोक्ष रूप से ही झेल रहे हैं, आगे से सीधे फेस करने के लिए तैयार रहना होगा. और अभी तो सिर्फ एक शशि थरूर हैं, आगे न जानें कितने और ऐसे बड़े बड़े चैलेंजर धीरे धीरे सामने आ जायें, अभी कहां मालूम - और ये भी तो नहीं मालूम कि वे किस किस रूप में सामने आएंगे?
मल्लिकार्जुन खड़गे खुद ही पटना में समझा ही चुके हैं कि नीतीश कुमार के विपक्षी एकता वाले प्रस्ताव पर वो कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव नतीजे आने के बाद ही विचार करेंगे - हालांकि, भोपाल पहुंचते पहुंचते वो बहुत आगे तक बोल गये, "बकरा ईद में बचेंगे, तो मोहर्रम पर नाचेंगे."
नीतीश कुमार को लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे के कहने का मतलब तो यही समझा जाना चाहिये कि आगे से ऐसे सारे ही मामले सोनिया गांधी या राहुल गांधी नहीं बल्कि सिर्फ उनके टेबल पर ही लाए जाएंगे, और वही देखेंगे - हालांकि, वो तो ये भी कह चुके हैं कि सभी फैसले वो 'आम सहमति' से ही लेंगे. अब नाम भले ही 'आम' का दिया जाये, लेकिन इशारा तो 'खास' की तरफ समझा जाना चाहिये, आखिर हर किसी की मजबूरियां भी तो होती ही हैं. मतलब, ऐसे भी समझ सकते हैं कि बगैर सोनिया गांधी और राहुल गांधी की सहमति के वो कोई भी फैसला नहीं लेने वाले. वैसे ऐसी बातें वो अपने मुंह से कहें या न कहें, हर कोई मान कर तो यही चल रहा है. वो भी शुरू से ही.
और ये भी मान कर चला जा रहा है कि मल्लिकार्जुन खड़गे के हिस्से में तो सिर्फ तोहमतें ही आने वाली हैं, आखिर उपलब्धियों पर पहला और आखिरी हक तो गांधी परिवार (Gandhi Family) का ही बनता है. है कि नहीं?
बरसों बाद तो गांधी परिवार से इतर कोई कांग्रेस की कमान संभालने जा रहा है, ऊपर से कोई दलित नेता और तीनों ही राज्यों में जिस तरह की दलित आबादी है, अपेक्षा तो होगी ही कि मल्लिकार्जुन खड़गे जाति बिरादरी के नाम पर चुनावों में हाथ जोड़ कर वोट कांग्रेस की झोली में डाल दें, लेकिन ये सब इतना आसान है क्या? और अगर मुश्किल है, तो आने वाली मुश्किलों के लिए अभी से तैयार भी रहना चाहिये.
चुनावों के अलावा भी तमाम मुश्किलें (Congress Crises and Elections) मल्लिकार्जुन खड़गे के स्वागत में पहले से ही कतार में हैं - और कतार में सबसे आगे तो राजस्थान का ही मामला है. अशोक गहलोत की तरफ से जारी वीडियो के वायरल होने के बाद ये भी साफ हो गया है कि कैसे वो अभी से मल्लिकार्जुन खड़गे को धर्मसंकट में डालने का पूरा इंतजाम कर चुके हैं.
राजस्थान कांग्रेस विवाद रास्ते का पहला ठोकर है
राजस्थान कांग्रेस विवाद और हिमाचल प्रदेश चुनाव में प्रियंका गांधी वाड्रा कॉमन फैक्टर हैं. हिमाचल प्रदेश में यूपी स्टाइल में चुनाव कैंपेन शुरू कर चुकीं, प्रियंका गांधी को राजस्थान संकट के मामले में संकटमोचक की भूमिका में देखा गया था. 2017 में अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री बन जाने के लिए सचिन पायलट को मनाने से लेकर, बाद में उनके नाराज होकर अपने समर्थक विधायकों के साथ होटल चले जाने तक - और उसके बाद भी कांग्रेस नेतृत्व और सचिन पायलट के बीच संपर्क सूत्र प्रियंका गांधी वाड्रा ही रहीं.
लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष पद के नामांकन से पहले मल्लिकार्जुन खड़गे को राजस्थान का टास्क भी करीब करीब पंजाब की तरह ही थमा दिया गया - और राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ऐसी व्यूह रचना कर डाली थी कि मल्लिकार्जुन खड़गे को राजस्थान कांग्रेस प्रभारी अजय माकन के साथ उलटे पांव बैरंग लौटना पड़ा.
हैरानी की बात ये रही कि सब कुछ आंखों से देखने और सोनिया गांधी को आंखों देखा हाल सुनाने के बावजूद मल्लिकार्जुन खड़गे ने अशोक गहलोत को क्लीन चिट दे दिया, हां - सांकेतिक तौर पर उनके समर्थक विधायकों को नोटिस जरूर दिया गया. अब आगे चल कर अगर अशोक गहलोत अपनी जगह बने रहते हैं, तो उनके विधायकों का भी कुछ नहीं होने वाला है. फिलहाल संभावना तो ऐसी ही लग रही है.
मल्लिकार्जुन खड़गे तो चुनाव प्रचार में लगे हैं और सब कुछ पक्ष में दिखायी पड़ रहा है, फिर भी नतीजे आने तक इंतजार कर रहे हैं. अशोक गहलोत के मामले में तो मान लिया गया था कि वो अध्यक्ष पद की कुर्सी संभाल चुके हैं, लेकिन अगर ऐसा नहीं हो सका तो ये सिर्फ उनका ही फैसला है.
और ये कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव ही है जो राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन का मामला होल्ड पर है, वरना अब तक तो सब साफ हो चुका होता. भले ही वो किसी को दूध का दूध और पानी का पानी न लगे.
अपडेट ये है कि अशोक गहलोत ने नया पैंतरा शुरू कर दिया है और शशि थरूर की शिकायत को तवज्जो मिली तो इस बार उनको भी नोटिस मिल सकता है - क्योंकि अशोक गहलोत ने बाकायदा एक वीडियो जारी कर मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए वोट देने की अपील की है, लेकिन उसे नियमों का उल्लंघन माना जा रहा है.
अशोक गहलोत आगे के अभियान में जुट गये हैं: अशोक गहलोत ने अपील को 'मेरी सोच है' बता कर व्यक्तिगत शक्ल देने की अपील की है, लेकिन सीधे सीधे ट्विटर पर लिख रहे हैं - 'मेरी शुभकामनाएं है खड़गे साहब भारी मतों से कामयाब हों'
लेकिन अशोक गहलोत का कदम कांग्रेस अध्यक्ष पद के उम्मीदवार शशि थरूर को ठीक नहीं लगा है. शशि थरूर ने वीडियो पर ऐतराज जताया है. शशि थरूर कहते हैं, कांग्रेस इलेक्शन अथॉरिटी के चीफ मधुसूदन मिस्त्री को देखना चाहिये कि कहां गलत हो रहा है - वह उसके हिसाब से एक्शन लें.
कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव की गाइडलाइन में क्या है: मधुसूदन मिस्त्री ने 30 सितंबर, 2022 को कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के लिए एक गाइडलाइन जारी की थी, जिसमें पद पर रहते हुए किसी नेता के लिए चुनाव प्रचार की मनाही है. गाइडलाइन में जिन पदों का जिक्र है, वे हैं - कांग्रेस के प्रभारी महासचिव, प्रभारी सचिव, राष्ट्रीय पदाधिकारी, विधायक दल के नेता और कांग्रेस प्रवक्ता.
इस गाइडलाइन के हिसाब से अशोक गहलोत राजस्थान में कांग्रेस विधायक दल के नेता होने के नाते ऐसा नहीं कर सकते, लेकिन अब तो वो ऐसा कर चुके हैं - क्या शशि थरूर की शिकायत पर मधुसूदन मिस्त्री एक्शन लेंगे?
ये ठीक है कि मल्लिकार्जुन खड़गे को चुनाव नतीजों की तपिश से भी झुलसना पड़ सकता है, लेकिन पहली अग्नि परीक्षा तो राजस्थान का कांग्रेस संकट ही है. देखा जाये तो अशोक गहलोत ने वोट देने की अपील कर एहसान तो जता ही दिया है.
जाहिर है बदले में अशोक गहलोत फेवर भी चाहेंगे ही - और देखना होगा कि तब मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने धर्मसंकट जैसी कोई स्थिति पैदा हो सकती है क्या?
कहने को तो मल्लिकार्जुन खड़गे पहले ही कह चुके हैं कि वो जो भी करेंगे गांधी परिवार के गाइडेंस से ही आगे बढ़ेंगे. बाकी बातें जैसी भी हों, लेकिन कम से कम ये बात तो मल्लिकार्जुन खड़गे सच ही बोल रहे हैं. ये कोई राजनीतिक बयान नहीं समझा जाना चाहिये. वस्तुस्थिति यही है.
सचिन पायलट को तो अभी और धैर्य दिखाना होगा: ये भी समझा जा चुका है कि गांधी परिवार सचिन पायलट को राजस्थान में मुख्यमंत्री बनाने का मन बना चुका है. अब तक जो काम अजय माकन कर रहे थे या अजय माकन के साथ मिल कर भी मल्लिकार्जुन खड़गे नहीं कर पाये - कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद तो हर हाल में करना होगा. ये मामला चुनाव नतीजे आने और उनके औपचारिक तौर पर कार्यभार संभाल लेने तक ही होल्ड पर है.
और करीब करीब राजस्थान जैसी ही हालत छत्तीसगढ़ में ही बनी हुई है. वहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव का झगड़ा जैसे तैसे दबा हुआ है, माहौल अनुकूल होते ही कभी भी भड़क सकता है. फिर आगे चल कर छत्तीसगढ़ और राजस्थान के साथ साथ 2023 के आखिर में मध्य प्रदेश चुनाव भी चैलेंज बन कर आएंगे ही - और हां, इस बार तो तेलंगाना चुनावों के लिए भी राहुल गांधी पहले से ही जोर लगाये हुए हैं.
विधानसभा चुनावों की चुनौती भी बड़ी है
हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद तो मल्लिकार्जुन खड़गे मन ही मन तैयारी कर ही रहे होंगे. अगर कांग्रेस की किस्मत ने साथ दिया तब तो राहत की बात होगी. क्रेडिट प्रियंका गांधी वाड्रा को मिलेगा और उससे मल्लिकार्जुन खड़गे को कोई फर्क भी नहीं पड़ेगा - क्योंकि गले में ढोल तो डाल ही चुके हैं, हां - अगर कुछ गड़बड़ हुआ तो वो भी मान कर चलें कि सारा दारोमदार उनके ऊपर ही आने वाला है.
गुजरात की भी दास्तां हिमाचल प्रदेश जैसी ही सुनाई दे सकती है, अगर कोई चमत्कार नहीं होता तो. वैसे भी जो चमत्कार होना था गुजरात में वो 2017 में हो चुका है. अब वहां कम ही स्कोप बचा है. आम आदमी पार्टी के झाड़ू के साथ अरविंद केजरीवाल के गुजरात में धावा बोल देने के बाद तो कांग्रेस की फजीहत पहले ही तय हो चुकी है. विडंबना भी तो यही है कि गुजरात चुनाव को लेकर बीजेपी आम आदमी पार्टी की तरफ से सीबीआई के छापे डलवाने जैसे इल्जाम भी झेल लेती है, जबकि कांग्रेस के नेता दिल्ली में केजरीवाल की पार्टी के दफ्तर पर विरोध प्रदर्शन करके अपने अपने घर लौट जाते हैं - और जो घर से नहीं निकल पाते वो ट्वीट करते हैं.
गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनावों के बाद कर्नाटक का नंबर आ जाएगा - और वो तो घर का ही मामला है. कर्नाटक में अगले साल 2023 में अप्रैल-मई में चुनाव होने वाले हैं. घर की इज्जत दांव पर लगने वाली है.
हिमाचल प्रदेश का दौरा तो मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद ही करेंगे, लेकिन उससे पहले भारत जोड़ो यात्रा में उनका शामिल होना जरूरी था. कर्नाटक के बेल्लारी में यात्रा के बीच ही कांग्रेस की रैली बुलायी गयी है, जिसकी तैयारियों में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार जोर शोर से जुटे हैं, वैसे सिद्धारमैया भी अपनी तरफ से कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं - लेकिन रैली की पूर्व संध्या पर मल्लिकार्जुन खड़गे का भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होना खास तो है ही.
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