पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) पर हाल ही में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) ने हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाया था. लंबे अरसे से बीजेपी तृणमूल कांग्रेस नेता पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगाती रही है.
पहले तो नहीं, लेकिन 2019 के आम चुनाव में भारी नुकसान के बाद ममता बनर्जी अब बीजेपी के आरोपों को लेकर ज्यादा ही सतर्क हो चुकी हैं. राहुल गांधी की तरह ममता बनर्जी के सॉफ्ट हिंदुत्व के प्रयोग तो पहले भी देखने को मिलते रहे हैं अब तो उनका ब्राह्मण प्रेम भी सामने आ चुका है.
ममता बनर्जी का ये ब्राह्मण प्रेम क्या कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी के रिया चक्रवर्ती (Rhea Chakraborty) के सपोर्ट की वजह से देखने को मिल रहा है - सवाल ये है कि आखिर ममता बनर्जी के ब्राह्मण प्रेम में रिया चक्रवर्ती की कितनी भूमिका है?
ये ब्राह्मण पॉलिटिक्स भी कैसे लोगों के नाम पर हो रही है
पश्चिम बंगाल की कमान मिलते ही सबसे पहले कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने रिया चक्रवर्ती को बंगाली ब्राह्मण बताते हुए उनके इंसाफ के हक के बहाने सपोर्ट किया था - और उससे संकेत मिला था कि कांग्रेस पश्चिम बंगाल चुनाव में रिया चक्रवर्ती को वैसे ही चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश में है जैसे बिहार चुनाव में तकरीबन सभी राजनीतिक दल सुशांत सिंह राजपूत केस को चुनावी मुद्दा बनाने पर आम सहमति दिखा रहे हैं.
2011 में सत्ता में आने के बाद ममता बनर्जी ने इमामों के लिए मासिक भत्ते का ऐलान किया था. तभी से ये पश्चिम बंगाल के वक्फ स्टेट बोर्ड की तरफ से इमाम और मुअज्जिनों को मिलता आया है. वक्फ स्टेट बोर्ड को इसके लिए ममता बनर्जी सरकार की तरफ से फंड मिलता है.
इमामों को मासिक भत्ता दिये जाने को लेकर तब भी ममता बनर्जी को आलोचना का शिकार होना पड़ा था - और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उसी बात को आगे बढ़ाते हुए ममता बनर्जी पर हमला बोला था. ऐसा लगता है ममता बनर्जी भी कांग्रेस नेतृत्व की तरह बीजेपी के इस पैंतरे से परेशान हैं. सोनिया गांधी ने एक...
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) पर हाल ही में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) ने हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाया था. लंबे अरसे से बीजेपी तृणमूल कांग्रेस नेता पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगाती रही है.
पहले तो नहीं, लेकिन 2019 के आम चुनाव में भारी नुकसान के बाद ममता बनर्जी अब बीजेपी के आरोपों को लेकर ज्यादा ही सतर्क हो चुकी हैं. राहुल गांधी की तरह ममता बनर्जी के सॉफ्ट हिंदुत्व के प्रयोग तो पहले भी देखने को मिलते रहे हैं अब तो उनका ब्राह्मण प्रेम भी सामने आ चुका है.
ममता बनर्जी का ये ब्राह्मण प्रेम क्या कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी के रिया चक्रवर्ती (Rhea Chakraborty) के सपोर्ट की वजह से देखने को मिल रहा है - सवाल ये है कि आखिर ममता बनर्जी के ब्राह्मण प्रेम में रिया चक्रवर्ती की कितनी भूमिका है?
ये ब्राह्मण पॉलिटिक्स भी कैसे लोगों के नाम पर हो रही है
पश्चिम बंगाल की कमान मिलते ही सबसे पहले कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने रिया चक्रवर्ती को बंगाली ब्राह्मण बताते हुए उनके इंसाफ के हक के बहाने सपोर्ट किया था - और उससे संकेत मिला था कि कांग्रेस पश्चिम बंगाल चुनाव में रिया चक्रवर्ती को वैसे ही चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश में है जैसे बिहार चुनाव में तकरीबन सभी राजनीतिक दल सुशांत सिंह राजपूत केस को चुनावी मुद्दा बनाने पर आम सहमति दिखा रहे हैं.
2011 में सत्ता में आने के बाद ममता बनर्जी ने इमामों के लिए मासिक भत्ते का ऐलान किया था. तभी से ये पश्चिम बंगाल के वक्फ स्टेट बोर्ड की तरफ से इमाम और मुअज्जिनों को मिलता आया है. वक्फ स्टेट बोर्ड को इसके लिए ममता बनर्जी सरकार की तरफ से फंड मिलता है.
इमामों को मासिक भत्ता दिये जाने को लेकर तब भी ममता बनर्जी को आलोचना का शिकार होना पड़ा था - और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उसी बात को आगे बढ़ाते हुए ममता बनर्जी पर हमला बोला था. ऐसा लगता है ममता बनर्जी भी कांग्रेस नेतृत्व की तरह बीजेपी के इस पैंतरे से परेशान हैं. सोनिया गांधी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि बीजेपी ने कांग्रेस को मुस्लिम पार्टी के तौर पर प्रचारित कर दिया और लोग मानने लगे. चुनावों के दौरान राहुल गांधी को धार्मिक वस्त्रों में श्रद्धा भाव से मंदिरों और मठों में जाते देखे जाने की यही वजह होती है. कांग्रेस के इस राजनीतिक भाव को सॉफ्ट हिंदुत्व के तौर पर देखा जाता रहा है.
अधीर रंजन चौधरी को सोनिया गांधी के पश्चिम बंगाल कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाये जाने के बाद ये तो साफ हो चुका है कि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस में कोई चुनावी तालमेल नहीं होने जा रहा है, लेकिन ये भी लगता है कि ममता बनर्जी कांग्रेस और बीजेपी की चुनावी रणनीतियों से मुकाबले के लिए ऐसे ही चुनावी दांव आजमाती रहेंगी.
ममता बनर्जी की सरकार ने कोलाघाट में सनातन हिंदू धर्म का तीर्थस्थान बनवाने के लिए ब्राह्मणों में मुफ्त में जमीन देने का फैसला किया है - और ₹ 1000 उनको हर महीने बतौर भत्ता दिये जाने की घोषणा की है.
ममता बनर्जी को मालूम है कि उनके फैसले पर वैसे ही सवाल उठेंगे जैसे इमामों को लेकर उठे थे, इसीलिए पहले ही बोल देती हैं - 'आप इसे अन्यथा मत लीजिए... करीब 8 हजार गरीब ब्राह्मणों ने मुझसे निवेदन किया था... हमने उनको एक हजार रुपये का मासिक भत्ता और बांग्ला आवास योजना के तहत घर बनवाने का फैसला किया है.'
आठ हजार ब्राह्मणों को ये भत्ता दुर्गा पूजा के मौके पर अक्टूबर-नवंबर से मिलना शुरू हो जाएगा. ममता बनर्जी ने बताया है कि उनकी सरकार ईसाई पादरियों के लिए भी ऐसी ही मदद स्कीम लाने पर विचार कर रही है.
सचिवालय के बाद मीडिया से बातचीत में भी ममता बनर्जी ब्राह्मणों के भत्ते पर सफाई ही पेश करती नजर आयीं, 'मैं आप सभी से गुजारिश करती हूं कि इस घोषणा का कोई दूसरा मतलब न निकालें... ये ब्राह्मण पुजारियों की मदद करने के लिए किया जा रहा है... अगले महीने से भत्ता मिलना शुरू हो जाएगा - क्योंकि ये दुर्गा पूजा का समय है.'
ब्राह्मण पॉलिटिक्स की पैमाइश तो अब लगता है 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले ही हो जाएगी - 2021 के पश्चिम बंगाल चुनाव में. यूपी में विकास दुबे के बहाने अखिलेश यादव और मायावती ब्राह्मणों पर दरियादिली दिखाने लगे हैं, तो पश्चिम बंगाल में भी ऐसी ही सियासी कवायद शुरू हो चुकी है - और हैरानी की बात ये है कि ये सब रिया चक्रवर्ती के बहाने हो रही है. एक खास बात और भी है - कांग्रेस ने यूपी के अपने ब्राह्मण चेहरे जितिन प्रसाद को पश्चिम बंगाल का प्रभारी बनाया है.
कितने ताज्जुब की बात है कि एक राज्य में ब्राह्मण राजनीति की वजह एक ऐसा व्यक्ति है जिसके खिलाफ 60 से भी ज्यादा मामले दर्ज थे और वो पुलिस एनकाउंटर में मारा गया - और दूसरे राज्य में एक एक्टर है जिसे ड्रग्स केस में जेल भेजा गया है और वो चर्चित सुशांत सिंह राजपूत केस में मुख्य आरोपी है.
हिंदुत्व के साथ हिंदी भी
मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोपों से परेशान ममता बनर्जी ब्राह्मणों के साथ साथ पश्चिम बंगाल के हिंदी भाषी और आदिवासी मतदाताओं से भी कनेक्ट होने की कोशिश कर रही हैं. असल में 2019 के आम चुनाव में बीजेपी को झाड़ग्राम, बांकुरा, पुरुलिया और पश्चिम मेदिनीपुर जैसे जिले जो जंगलमहल क्षेत्र में बीजेपी को भरपूर समर्थन देखने को मिला था.
हिंदी दिवस के मौके पर ममता बनर्जी ने दिनेश त्रिवेदी को तृणमूल कांग्रेस के हिंदी प्रकोष्ठ का चेयरमैन नियुक्त किया है. दिनेश त्रिवेदी रेल मंत्री रह चुके हैं, लेकिन उसी दौरान नाराज होकर ममता बनर्जी ने रातों रात उनसे इस्तीफा दिला कर यूपीए सरकार में मुकुल रॉय को रेल मंत्री बनवा दिया था. बीजेपी नेता मुकुल रॉय तब तृणमूल कांग्रेस में थे और ममता बनर्जी के सबसे भरोसेमंद साथी माने जाते रहे.
अपने राजनीतिक विरोधियों के चुनावी हथकंडे जैसे हमलों से बेपरवाह ममता बनर्जी ने एक हिंदी अकादमी और एक दलित साहित्य अकादमी की स्थापना का भी फैसला किया है. ममता बनर्जी का कहना है कि दलितों की भाषा का बंगाली भाषा पर प्रभाव दिखता है.
2019 के आम चुनाव से पहले भी ममता बनर्जी के हिंदी प्रेम की खूब चर्चा रही. मालूम हुआ कि ममता बनर्जी बड़ी शिद्दत से हिंदी सीख रही थीं और उस दौरान उनके कई ट्वीट हिंदी में देखने को भी मिले थे. कहते हैं उन दिनों ममता बनर्जी अपने पास हमेशा हिंदी का एक शब्दकोश रखने लगी थीं - क्योंकि उनका मानना है कि बगैर अच्छी हिंदी जाने कोई देश का प्रधानमंत्री नहीं बन सकता!
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