मानते हैं कि ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) मुश्किलों से घिरी हुई हैं, लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है कि हर मुश्किल की वजह मोदी-शाह ही हों? चुनावों की बात और थी या विपक्ष को एकजुट करने के लिए मुद्दों पर केंद्र सरकार की आलोचना भी ठीक है, लेकिन छोटी छोटी चीजों के लिए भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कैबिनेट सहयोगी बीजेपी नेता अमित शाह को जिम्मेदार बताता कहां तक तर्कसंगत माना जा सकता है.
दरअसल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की कुर्सी तृणमूल कांग्रेस के पास तो पांच साल के लिए हो चुकी है, लेकिन ममता बनर्जी के लिए छह महीने पूरे होते ही संकट दिखायी पड़ रहा है. ले देकर कलकत्ता हाई कोर्ट से जो उम्मीद रही वो भी खत्म हो चुकी है.
ममता बनर्जी ने नंदीग्राम विधानसभा सीट पर अपनी हार को हाई कोर्ट में चैलेंज किया था. याचिका मंजूर भी हुई और सुनवाई भी, लेकिन अगली तारीख 15 नवंबर की मिल गयी. बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में अपील का हवाल दिया तो हाई कोर्ट ने सुनवाई लंबे समय के लिए टाल दी. शुभेंदु अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर अपने खिलाफ ममता बनर्जी के केस को किसी अन्य राज्य में ट्रांसफर करने की गुजारिश की है और उसी के आधार पर अदालत ने नयी तारीख मुकर्रर कर दी.
हाई कोर्ट ने जो तारीख दी है, उससे दस दिन पहले ही ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री बनने के छह महीने पूरे हो जा रहे हैं. ममता बनर्जी ने 4 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और अगर 5 नवंबर से पहले पश्चिम बंगाल में उपचुनाव नहीं कराये जाते तो ममता बनर्जी का कार्यकाल अपनेआप खत्म हो जाएगा. हाल फिलहाल ऐसे दो मामले हो चुके हैं. महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे का और उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत का. उद्धव ठाकरे तो उपचुनाव हो जाने से कुर्सी पर बने रहे, लेकिन तीरथ सिंह रावत को कुर्सी छोड़नी...
मानते हैं कि ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) मुश्किलों से घिरी हुई हैं, लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है कि हर मुश्किल की वजह मोदी-शाह ही हों? चुनावों की बात और थी या विपक्ष को एकजुट करने के लिए मुद्दों पर केंद्र सरकार की आलोचना भी ठीक है, लेकिन छोटी छोटी चीजों के लिए भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कैबिनेट सहयोगी बीजेपी नेता अमित शाह को जिम्मेदार बताता कहां तक तर्कसंगत माना जा सकता है.
दरअसल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की कुर्सी तृणमूल कांग्रेस के पास तो पांच साल के लिए हो चुकी है, लेकिन ममता बनर्जी के लिए छह महीने पूरे होते ही संकट दिखायी पड़ रहा है. ले देकर कलकत्ता हाई कोर्ट से जो उम्मीद रही वो भी खत्म हो चुकी है.
ममता बनर्जी ने नंदीग्राम विधानसभा सीट पर अपनी हार को हाई कोर्ट में चैलेंज किया था. याचिका मंजूर भी हुई और सुनवाई भी, लेकिन अगली तारीख 15 नवंबर की मिल गयी. बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में अपील का हवाल दिया तो हाई कोर्ट ने सुनवाई लंबे समय के लिए टाल दी. शुभेंदु अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर अपने खिलाफ ममता बनर्जी के केस को किसी अन्य राज्य में ट्रांसफर करने की गुजारिश की है और उसी के आधार पर अदालत ने नयी तारीख मुकर्रर कर दी.
हाई कोर्ट ने जो तारीख दी है, उससे दस दिन पहले ही ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री बनने के छह महीने पूरे हो जा रहे हैं. ममता बनर्जी ने 4 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और अगर 5 नवंबर से पहले पश्चिम बंगाल में उपचुनाव नहीं कराये जाते तो ममता बनर्जी का कार्यकाल अपनेआप खत्म हो जाएगा. हाल फिलहाल ऐसे दो मामले हो चुके हैं. महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे का और उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत का. उद्धव ठाकरे तो उपचुनाव हो जाने से कुर्सी पर बने रहे, लेकिन तीरथ सिंह रावत को कुर्सी छोड़नी पड़ी थी.
ममता बनर्जी की तरफ से चुनाव आयोग को बताया गया है कि राज्य सरकार सात सीटों पर चुनाव के लिए तैयार है क्योंकि कोविड 19 से पैदा हालात पूरी तरह काबू में हैं.
कोरोना वायरस की दूसरी लहर के लिए कलकत्ता हाई कोर्ट तो नजर रख ही रहा था, मद्रास हाई कोर्ट ने तो चुनाव आयोग को जिम्मेदार बताते हुए हत्या का मुकदमा तक चलाने की बात कह डाली थी, लिहाजा आयोग ने चुनावों को अनिश्चित काल के लिए टाल दिया था, लेकिन चुनाव आयोग का ताजा रुख ममता बनर्जी के फेवर में लग रहा है.
पश्चिम बंगाल में उप चुनाव कराने को लेकर चुनाव आयोग ने राज्य के सभी राजनीतिक दलों को पत्र लिख कर राय मांगी है - राजनीतिक दलों को अपनी राय चुनाव आयोग के पास 30 अगस्त तक भेजनी है.
लेकिन जरूरी तो नहीं कि तृणमूल कांग्रेस की तरह सभी राजनीतिक दल उप चुनावों को लेकर उतने ही तत्पर हों. भला बीजेपी को ऐसी क्यों जल्दी या जरूरत होगी. अगर ये उपचुनाव 2022 के विधानसभा चुनावों के साथ भी हों तो भला क्या फर्क पड़ेगा, ममता बनर्जी के निजी फायदे की बात को छोड़ कर.
जैसा टकराव का माहौल है, संभव है बीजेपी कोविड 19 से लेकर राज्य में कानून व्यवस्था के नाम पर आपत्ति जताये क्योंकि दोनों पक्षों में तो जैसे तैसे एक दूसरे को दोषी ठहराने की होड़ भी तो मची हुई है.
केंद्र की मोदी सरकार पर दबाव बनाने के लिए ममता बनर्जी विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन नौबत ऐसा आ पड़ी लगती है कि तृणमूल कांग्रेस नेता को ही हाशिये पर भेजने की तैयारी चल रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस को राहुल गांधी के अलावा विपक्षी खेमे से कोई और नेता मंजूर नहीं है जो प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी नेता अमित शाह को आगे बढ़ कर चैलेंज करे. तस्वीर काफी हद तक साफ हो चली है कि शरद पवार और लालू यादव की रणनीतियों की मदद से सोनिया गांधी, ममता बनर्जी को फ्रंट से हटाने में जुटी हैं. वैसे सोनिया गांधी ने 20 अगस्त को विपक्षी दलों की जो मीटिंग बुलायी है, उसमें ममता बनर्जी को भी न्योता भेजा गया है.
ममता बनर्जी की एक बड़ी मुश्किल ये भी है कि अपने खिलाफ लाख साजिशों के बावजूद वो कांग्रेस नेतृत्व या विपक्षी नेताओं को तो कुछ कह नहीं सकतीं, लिहाजा सारी तोहमत तृणमूल कांग्रेस नेता को मोदी-शाह (Modi and Shah) पर ही जड़नी होती है - भले ही वो PSC यानी संघ लोक सेवा आयोग के पेपर सेट (PSC Question Paper) करने का ही मुद्दा क्यों न हो?
आयोग के पेपर मोदी-शाह नहीं सेट करते
कृषि कानून, पेगासस का मुद्दा और ऐसे कई मुद्दे हैं जो सत्ता पक्ष और विपक्ष के टकराव की वजह बने हुए हैं. ऐसे भी मामले हैं जिसमें टकराव सिर्फ ममता बनर्जी और मोदी-शाह के बीच ही रह जाता है, जैसे त्रिपुरा का मुद्दा क्योंकि वहां बीजेपी की सरकार है.
हाल ही में अभिषेक बनर्जी के काफिले पर हुए हमले के मामले में ममता बनर्जी ने सीधे अमित शाह को जिम्मेदार बताया था. कहने लगीं, ये हमला गृह मंत्री अमित शाह के इशारे पर हुआ. त्रिपुरा में घायल टीएमसी कार्यकर्ताओं से मुलाकात के दौरान ममता बनर्जी बोली, 'त्रिपुरा, असम और यूपी... जहां भी बीजेपी को सत्ता मिली है, वहां अराजकता का शासन है.'
लेकिन पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले जब बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हमला हुआ तो ममता बनर्जी का स्टैंड अलग रहा, जबकि तब भी वो राज्य की मुख्यमंत्री रहीं - लोक सेवा आयोग के प्रश्न पत्र को लेकर तो ममता बनर्जी की दलील ही बेदम लगती है.
ममता बनर्जी ने आरोप लगाया है कि सिविल और सशस्त्र सेवाओं के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित परीक्षा में लोक सेवा आयोग बीजेपी के दिये सवाल पूछ रहा है. ममता बनर्जी कह रही हैं कि ऐसे सवाल पूछे जाने से एक निष्पक्ष संस्था की नींव कमजोर हो रही है. कांग्रेस नेतृत्व की ही तरह ममता बनर्जी भी केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी पर संस्थाओं को नष्ट करने के आरोप लगा रही हैं.
असल में, केंद्रीय सशस्त्र बल की भर्ती परीक्षा में एक सवाल था - पश्चिम बंगाल में हुई चुनावी हिंसा पर 200 शब्दों में एक पीस लिखने का. पश्चिम बंगाल हिंसा को लेकर बीजेपी नेतृत्व तो शुरू से ही हमलावर रहा है, मुख्यमंत्री पद के शपथग्रहण के ठीक बाद राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने भी ममता बनर्जी को मौके पर ही नसीहत दे डाली थी.
ममता बनर्जी चुनाव नतीजे आने के बाद हुई हिंसा को खारिज करती रही हैं. हालांकि, हाई कोर्ट में भी सरकार के स्टैंड को गलत माना गया था. कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेश पर गठित राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक समिति की टिप्पणी रही, 'राज्य की स्थिति कानून के शासन के बजाय शासक के कानून की अभिव्यक्ति जैसी थी.'
ममता बनर्जी का कहना रहा कि चुनाव के बाद की हिंसा की कहानी बीजेपी की ओर से गढ़ी गई थी - और कमेटी की टिप्पणी पर भी ममता बनर्जी का उनकी स्टाइल में भी रिएक्शन आया - NHRC का एक सदस्य भी बीजेपी का आदमी निकला है.'
त्रिपुरा में अभिषेक बनर्जी के काफिले पर हमले को लेकर वो मुख्यमंत्रि बिप्लब देब पर ठीकरा फोड़तीं तो भी चल जाता, लेकिन ठीक वैसे ही वो पुलिस सेवा के लिए पूछे गये सवाल पर सवाल उठाकर खुद ही अपने आरोपों की गंभीरता हल्की कर दे रही हैं.
क्या ममता बनर्जी ये बताने की कोशिश कर रही हैं कि मोदी-शाह के इशारे पर लोक सेवा आयोग के पेपर सेट किये जा रहे हैं?
भला सशस्त्र पुलिस सेवा के लिए ऐसे सवाल नहीं पूछे जाएंगे तो क्या पश्चिम बंगाल की जीत पर पर निबंध लिखने को कहा जाएगा - पुलिस में जाने की ख्वाहिश रखने वाले किसी उम्मीदवार से ये जानने की कोशिश क्यों नहीं होनी चाहिये कि चुनावी हिंसा को लेकर वो क्या सोचता है. हिंसा की स्थिति पर उसका रुख ही तो बताएगा कि वो शख्स ऐसे हालात को काबू करने लायक है या नहीं.
कानून और व्यवस्था के साथ साथ ये तो करंट अफेयर्स से जुड़ा भी सवाल है. ऐसे सवालों के जबाव से ये भी तो पता लगाया जा सकता है कि सेवा में आने की ख्वाहिश रखने वाले नौजवान ने सिर्फ किताबी बातों तक ही खुद को सीमित रखा है या ताजातरीन घटनाओं पर भी बारीकी से गौर करता है.
ममता और कांग्रेस एक ही लाइन पर
तभी तो राज्य सभा की हाथापाई की घटना को लेकर केंद्र सरकार के आठ मंत्री आगे आकर प्रेस कांफ्रेंस करते हैं और सफाई देने की कोशिश करते हैं, लेकिन ट्विटर को लेकर कांग्रेस के आरोपों को झुठलाने के लिए बीजेपी को मुख्तार अब्बास नकवी ही काफी लगते हैं.
मुख्तार अब्बास नकवी का कहना है कि जब ट्विटर बीजेपी नेताओं के ट्विटर अकाउंट पर एक्शन ले रहा था तो कांग्रेस के ही नेता प्रवक्ता बने हुए थे और अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई दे रहे थे, लेकिन जब उन पर बन आयी है तो सारा दोष सरकार के मत्थे मढ़ने की कोशिश कर रहे हैं.
ममता बनर्जी अगर वाकई लोकतंत्र के हित में सत्ता पक्ष के मुकाबले विपक्ष को मजबूत करने का प्रयास कर रही हैं, तो उनके मुद्दे भी ऐसे ही चुनने होंगे कि लोगों को लगे कि कोई नेता उनकी बात कर रहा है. खाली ये दावा करने से लोग नहीं मान लेंगे कि वो जनता के मुद्दे उठा रही हैं. क्या लोक सेवा आयोग ने हिंसा की किसी और घटना को लेकर सवाल पूछा होता तब भी क्या ममता बनर्जी की ऐसी ही राय होती?
ममता बनर्जी चाहें तो लोक सेवा आयोग में होने वाली नियुक्तियों पर सवाल उठा सकती हैं. अगर चेयरमैन से लेकर सदस्यों की नियुक्तियों तक में ममता बनर्जी को कोई बात राजनीति से प्रेरित लगती है तो विरोध के लिए कोई भी सही तरीका अपना सकती हैं. किसी मंच से वो बात कह सकती हैं. अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है, लेकिन किसी इम्तिहान में पूछे गये प्रश्न को लेकर यूं ही सवाल उठा देने से काम नहीं चलने वाला - ये पब्लिक है, जानती है कि कौन किससे और क्यों सवाल पूछ रहा है?
इन्हें भी पढ़ें :
ममता बनर्जी 2024 में बीजेपी और मोदी के खिलाफ रेस में कहां हैं
पवार से मुलाकात हुए बगैर ममता बनर्जी का दिल्ली दौरा सफल कैसे समझा जाये?
2024 में कांग्रेस और राहुल गांधी से क्यों बेहतर है ममता का प्रमुख चैलेंजर बनना
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.