NRC और नागरिकता संशोधन कानून (CAA-NRC) के खिलाफ जारी विरोध प्रदर्शनों के बीच ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने बड़ी ही अजीबोगरीब डिमांड (Referendum nder N Supervision) रख दी है. ममता बनर्जी जैसी अनुभवी नेता के मुंह से ऐसी मांग सुन कर बहुत ताज्जुब हो रहा है. विरोध प्रदर्शन का दायरा धीरे धीरे देश भर में फैलता जा रहा है. दिल्ली का हा तो बुरा है ही, लखनऊ में तो हद से ज्यादा हिंसा का तांडव देखने को मिला है. प्रदर्शन तो पटना से लेकर बेंगलुरू तक हुए हैं और कई नेता और बुद्धिजीवी भी हिरासत में लिये गये हैं.
ममता बनर्जी ने NRC और नागरिकता संशोधन कानून को लेकर जनमत संग्रह की मांग कर डाली है. जनमत संग्रह की बात भी उतनी बुरी नहीं है, लेकिन ऐसा संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में कराये जाने की मांग तो हैरान करने वाली है. ममता बनर्जी का पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री होते हुए देश के अंदरूनी मामले में किसी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी की दखल की मांग करना किसी भी तरीके से जायज नहीं ठहराया जा सकता.
एक CM की अजीब डिमांड
छात्रों के जबरदस्त विरोध के बाद अब राजनीतिक दल भी खुल कर प्रदर्शनों में हिस्सा लेने लगे हैं - और पश्चिम बंगाल में तो ममता बनर्जी ही विरोध मार्च की अगुवाई कर रही हैं. NRC नहीं लागू करने की बात तो ममता बनर्जी की ही तरह केरल और पंजाब के मुख्यमंत्रियों ने भी कही है, लेकिन ममता बवर्जी की तरह न तो पी. विजयन और न ही कैप्टन अमरिंदर सिंह कोई भी विरोध मार्च नहीं निकाल रहा है. दिल्ली में भी विरोध प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया है, लेकिन अरविंद केजरीवाल भी ममता बनर्जी की तरह सड़क पर नहीं उतरे हैं.
जिस तरह के संकेत मिले हैं, ऐसा लगता है नीतीश कुमार भी बिहार में NRC नहीं लागू करने का मन बना चुके हैं - और उद्धव ठाकरे की तरफ से भी यही इशारा है. हाल ही में ममता बनर्जी की चुनावी मुहिम देख रहे जेडीयू नेता प्रशांत किशोर ने गैर-बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को सलाह दी थी कि वे दोनों चीजों का कड़ा विरोध करें और केंद्र की बीजेपी सरकार...
NRC और नागरिकता संशोधन कानून (CAA-NRC) के खिलाफ जारी विरोध प्रदर्शनों के बीच ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने बड़ी ही अजीबोगरीब डिमांड (Referendum nder N Supervision) रख दी है. ममता बनर्जी जैसी अनुभवी नेता के मुंह से ऐसी मांग सुन कर बहुत ताज्जुब हो रहा है. विरोध प्रदर्शन का दायरा धीरे धीरे देश भर में फैलता जा रहा है. दिल्ली का हा तो बुरा है ही, लखनऊ में तो हद से ज्यादा हिंसा का तांडव देखने को मिला है. प्रदर्शन तो पटना से लेकर बेंगलुरू तक हुए हैं और कई नेता और बुद्धिजीवी भी हिरासत में लिये गये हैं.
ममता बनर्जी ने NRC और नागरिकता संशोधन कानून को लेकर जनमत संग्रह की मांग कर डाली है. जनमत संग्रह की बात भी उतनी बुरी नहीं है, लेकिन ऐसा संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में कराये जाने की मांग तो हैरान करने वाली है. ममता बनर्जी का पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री होते हुए देश के अंदरूनी मामले में किसी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी की दखल की मांग करना किसी भी तरीके से जायज नहीं ठहराया जा सकता.
एक CM की अजीब डिमांड
छात्रों के जबरदस्त विरोध के बाद अब राजनीतिक दल भी खुल कर प्रदर्शनों में हिस्सा लेने लगे हैं - और पश्चिम बंगाल में तो ममता बनर्जी ही विरोध मार्च की अगुवाई कर रही हैं. NRC नहीं लागू करने की बात तो ममता बनर्जी की ही तरह केरल और पंजाब के मुख्यमंत्रियों ने भी कही है, लेकिन ममता बवर्जी की तरह न तो पी. विजयन और न ही कैप्टन अमरिंदर सिंह कोई भी विरोध मार्च नहीं निकाल रहा है. दिल्ली में भी विरोध प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया है, लेकिन अरविंद केजरीवाल भी ममता बनर्जी की तरह सड़क पर नहीं उतरे हैं.
जिस तरह के संकेत मिले हैं, ऐसा लगता है नीतीश कुमार भी बिहार में NRC नहीं लागू करने का मन बना चुके हैं - और उद्धव ठाकरे की तरफ से भी यही इशारा है. हाल ही में ममता बनर्जी की चुनावी मुहिम देख रहे जेडीयू नेता प्रशांत किशोर ने गैर-बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को सलाह दी थी कि वे दोनों चीजों का कड़ा विरोध करें और केंद्र की बीजेपी सरकार के खिलाफ डट कर खड़े हों.
ममता बनर्जी का ये सवाल वाजिब माना जा सकता है कि आजादी के इतने साल बाद नागरिकता साबित करने की जरूरत क्यों पड़ रही है? NRC को लेकर बहस जारी है और ऐसे बहुत सारे सवाल हैं जिनके जवाब नहीं मिल रहे हैं?
उद्धव ठाकरे और प्रफुल्ल पटेल का भी सवाल है कि जो लोग NRC के तहत मानदंडों के हिसाब से नागरिकता साबित नहीं कर पाये उन्हें कहां रखा जाएगा? अगर डिटेंशन सेंटर बनाये जाएंगे तो उनमें भी लोगों को रखे जाने की कोई समय सीमा भी होगी क्या?
ममता बनर्जी की ये मांग भी कोई गलत नहीं है कि NRC और CAA यानी नागरिकता संशोधन कानून पर जनमत संग्रह करवायी जाये - लोगों से देश से जुड़े किसी भी महत्वपूर्ण मसले पर राय ली जा सकती है. लोग जो राय देते हैं उसके आधार पर आगे की दिशा भी तय की जा सकती है. किसी भी मुद्दे पर नये सिरे से विचार किया जा सकता है.
लेकिन ममता बनर्जी का ये कहना कि ये जनमत संग्रह संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में कराया जाये - बिलकुल वाहियात है.
ये देश के संविधान के खिलाफ है.
ये देशहित के खिलाफ है.
राजनीतिक विरोध के चलते किसी पार्टी पर सांप्रदायिकता फैलाने का इल्जाम लगाना अलग है. राजनीतिक विरोध के चलते किसी पार्टी पर राष्ट्रवाद या धर्म के नाम पर भावनाएं भड़काने का आरोप और उनका विरोध भी चलेगा - लेकिन देश के अंदरूनी मामले में किसी तीसरे पक्ष के दखल की मांग तो देश के खिलाफ ही जाती देखी जाएगी.
भारत के खिलाफ ज्यादातर वक्त पाकिस्तान के साथ खड़ा रहने वाले चीन ने भी नागरिकता कानून को भारत का निजी मामला करार दिया है, फिर ममता बनर्जी के संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप की मांग का क्या तुक है?
ऐसा तो 5 अगस्त, 2019 से पहले कश्मीरी नेताओं के मुंह से सुनने को मिलता रहा कि कश्मीर पर बातचीत में पाकिस्तान को भी शामिल किया जाये. महबूबा मुफ्ती तो लगता था जैसे इमरान खान की नवजोत सिंह सिद्धू से भी करीबी दोस्त हों, जो बातचीत की सलाह का कोई भी मौका नहीं चूकती थीं. क्या ममता बनर्जी को शिमला समझौता भी नहीं याद रहा - बरसों तक ये समझौता ऐसा मजबूत हथियार रहा कि जिसके आगे पाकिस्तान को खामोश होना पड़ता था और संयुक्त राष्ट्र तक को परहेज के लिए मजबूर होना पड़ता था.
ममता बनर्जी की तुनकमिजाजी राजनीतिक गलियारों में मशहूर रही है. हड़बड़ी में लिये गये फैसलों के चलते ही ममता बनर्जी ने एनडीए का भी साथ छोड़ा था और यूपीए सरकार का भी - लेकिन जनता के बीच लोकप्रियता के चलते वो दोबारा सत्ता हासिल करने में कामयाब रहीं. ये भी जरूरी तो नहीं कि वैसा बार बार ही हो.
ममता बनर्जी ने तो पहले ही बोल दिया था कि वो पश्चिम बंगाल में NRC लागू नहीं होने देंगी - बल्कि, बाद में तो यहां तक कह डाला कि इसके लिए उनकी लाश पर से गुजरना होगा. ममता बनर्जी ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को भी चैलेंज किया था कि वे चाहें तो पश्चिम बंगाल की टीएमसी सरकार को बर्खास्त कर सकते हैं.
ममता बनर्जी की ओर से केंद्र की मोदी सरकार को ये नया चैलेंज है - जनमत संग्रह करा कर दिखायें!
मई में जो हुआ वो क्या था
25 नवंबर को पश्चिम बंगाल में विधानसभा की तीन सीटों के लिए उपचुनाव हुए थे - और तीनों ही जगह ममता बनर्जी के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की. जाहिर है ममता बनर्जी का हौसला बढ़ा होगा - लेकिन आम चुनाव के नतीजे भला कैसे भुलाये जा सकते हैं?
मई में हुए आम चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी ने लोक सभा की 22 सीटें जरूर जीतीं, लेकिन ध्यान रहे पांच साल पहले ये संख्या 34 रही. ममता बनर्जी के पक्ष में ये दलील दी जा सकती है कि पूरे देश में चली मोदी लहर में भी ममता बनर्जी ने जबरदस्त तरीके से जूझते हुए सूबे की 22 सीटों पर कब्जा जमाये रखने में कामयाब रहीं. कहा तो ये भी जा सकता है कि तमाम बड़े बड़े दावों के बावजूद ममता बनर्जी ने 12 सीटें मोदी लहर में गंवा दी. चुनावों से पहले ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री मोदी को एक्सपायरी डेट पीएम कहना शुरू कर दिया था. ममता बनर्जी भी चुनावों में विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में से एक थीं, लेकिन आम चुनाव में अपने ही सूबे में सीटों का नंबर बढ़ाना तो दूर पहले वाला नंबर बरकरार भी नहीं रख सकीं.
आखिर ममता बनर्जी किस बिनाह पर जनमत संग्रह को लेकर प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती दे रही हैं?
ममता बनर्जी का कहना है कि जनमत संग्रह के बाद देखते हैं कि कौन जीतता है?
चैलेंज देने के साथ ही ममता बनर्जी का सवाल होता है - 'अगर तुम हारते हो तो तुम्हें इस्तीफा देकर जाना होगा?
लेकिन भला क्यों?
क्या ममता बनर्जी ने लोक सभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के लिए तृणमूल कांग्रेस में ऐसी कोई पेशकश की थी क्या? ममता की ही तरह प्रधानमंत्री पद के दावेदार रहे राहुल गांधी ने तो ऐसा करके सिर्फ दिखाया ही नहीं, अब तक डटे हुए हैं.
ममता बनर्जी ने भी देश के लोगों से अपील की है - सड़कों पर उतरें. घरों में न बैठें और राजनीतिक विचारधारा भूल कर आगे आयें. सोनिया गांधी ने भी ऐसी ही अपील की है और ममता बनर्जी से भी वही सवाल है - सोनिया की तरह ममता बनर्जी भी जेपी हैं या अन्ना हजारे? देश भर में हो रहे हिंसक प्रदर्शनों के हिमायदी न तो जेपी रहे और न अन्ना हजारे हैं.
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