पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने फैसला किया है कि राज्य सरकार के सभी विश्वविद्यालयों के चांसलर (कुलाधिपति) अब गवर्नर नहीं बल्कि मुख्यमंत्री होंगी. पश्चिम बंगाल की कैबिनेट में इस बाबत फैसले को मंजूरी मिल गई है. और, जल्द ही इसे विधानसभा में संशोधन लाकर लागू भी कर दिया जाएगा. आसान शब्दों में कहा जाए, तो तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्यपाल जगदीप धनखड़ के बीच की अदावत अब एक और दर्जा आगे जाने वाली है. क्योंकि, आमतौर पर राज्य के विश्वविद्यालयों का चांसलर गवर्नर होते हैं. जो कुलपतियों की नियुक्ति से लेकर विश्वविद्यालय से जुड़े कई अहम फैसले करते हैं. लेकिन, इस फैसले के साथ राज्यपाल की शक्तियां कम हो जाएंगी. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि लोकतंत्र पर दुनियाभर का ज्ञान देने वाली ममता बनर्जी अपनी 'तानाशाही' पर क्या बोलेंगी?
मोदी सरकार 'हिटलर' से बदतर, तो 'तुगलकी' कौन?
टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने हाल ही में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए उसे हिटलर के शासन से भी खराब बताया था. ममता बनर्जी ने संघीय ढांचे को तोड़ने का आरोप लगाते हुए भाजपा सरकार की तुलना एडॉल्फ हिटलर, जोसेफ स्टालिन, बेनिटो मुसोलिनी तक से कर दी थी. लेकिन, ममता बनर्जी अपने हालिया फैसले को क्या लोकतंत्र के सम्मत पाती हैं? ममता बनर्जी और केंद्र सरकार के बीच चल रही लड़ाई में अपने 'तुगलकी' फरमान से राज्यपाल जगदीप धनखड़ को निशाना बनाना कहीं से भी जायज नजर नहीं आता है. खासतौर से ऐसे माहौल में जब बीरभूम नरसंहार के बाद पश्चिम बंगाल की विधानसभा में बहस पर भाजपा विधायकों के साथ बिना किसी डर के मारपीट की घटना को अंजाम दे दिया जाता है. बताया जाना जरूरी है कि विधानसभा में हुई इस मारपीट में सात भाजपा विधायकों को चोट आई थी. वैसे भी पश्चिम बंगाल में होने वाली राजनीतिक हिंसा और हत्याओं की एक लंबी फेहरिस्त पहले ही ममता बनर्जी के नाम से जुड़ी हुई...
पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने फैसला किया है कि राज्य सरकार के सभी विश्वविद्यालयों के चांसलर (कुलाधिपति) अब गवर्नर नहीं बल्कि मुख्यमंत्री होंगी. पश्चिम बंगाल की कैबिनेट में इस बाबत फैसले को मंजूरी मिल गई है. और, जल्द ही इसे विधानसभा में संशोधन लाकर लागू भी कर दिया जाएगा. आसान शब्दों में कहा जाए, तो तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्यपाल जगदीप धनखड़ के बीच की अदावत अब एक और दर्जा आगे जाने वाली है. क्योंकि, आमतौर पर राज्य के विश्वविद्यालयों का चांसलर गवर्नर होते हैं. जो कुलपतियों की नियुक्ति से लेकर विश्वविद्यालय से जुड़े कई अहम फैसले करते हैं. लेकिन, इस फैसले के साथ राज्यपाल की शक्तियां कम हो जाएंगी. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि लोकतंत्र पर दुनियाभर का ज्ञान देने वाली ममता बनर्जी अपनी 'तानाशाही' पर क्या बोलेंगी?
मोदी सरकार 'हिटलर' से बदतर, तो 'तुगलकी' कौन?
टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने हाल ही में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए उसे हिटलर के शासन से भी खराब बताया था. ममता बनर्जी ने संघीय ढांचे को तोड़ने का आरोप लगाते हुए भाजपा सरकार की तुलना एडॉल्फ हिटलर, जोसेफ स्टालिन, बेनिटो मुसोलिनी तक से कर दी थी. लेकिन, ममता बनर्जी अपने हालिया फैसले को क्या लोकतंत्र के सम्मत पाती हैं? ममता बनर्जी और केंद्र सरकार के बीच चल रही लड़ाई में अपने 'तुगलकी' फरमान से राज्यपाल जगदीप धनखड़ को निशाना बनाना कहीं से भी जायज नजर नहीं आता है. खासतौर से ऐसे माहौल में जब बीरभूम नरसंहार के बाद पश्चिम बंगाल की विधानसभा में बहस पर भाजपा विधायकों के साथ बिना किसी डर के मारपीट की घटना को अंजाम दे दिया जाता है. बताया जाना जरूरी है कि विधानसभा में हुई इस मारपीट में सात भाजपा विधायकों को चोट आई थी. वैसे भी पश्चिम बंगाल में होने वाली राजनीतिक हिंसा और हत्याओं की एक लंबी फेहरिस्त पहले ही ममता बनर्जी के नाम से जुड़ी हुई है.
'मुख्यधारा' की राजनीति में वापसी की छटपटाहट
तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी लगातार तीसरी बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनी हैं. और, 'दीदी' ने वामदलों के मजबूत सियासी किले की चूलें उसी हिंसा को आत्मसात कर हिलाई हैं. जिसके खिलाफ वामपंथी सरकार को तृणमूल कांग्रेस खुद ही कोसती रही थी. खैर, ममता बनर्जी के तीसरी बार सीएम पद पर आने के साथ ही पश्चिम बंगाल से कांग्रेस और वामदलों की मौजूदगी पूरी तरह से खत्म होती दिख रही है. और, ममता बनर्जी को राजनीति का माहिर खिलाड़ी मानने के लिए यही उपलब्धि काफी है. लेकिन, पश्चिम बंगाल में वामदलों का तीन दशकों से ज्यादा का शासन नेस्तनाबूद करने वाली 'दीदी' की राजनीतिक सोच को ममता बनर्जी सरकार के हालिया फैसले से भी तोलना चाहिए.
मान लीजिए कि पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से विधानसभा में राज्यपाल की शक्तियों को कम करने वाला ये प्रस्ताव कानून का संशोधन कर लागू कर दिया जाता है. लेकिन, इसे मंजूरी देने के लिए राज्यपाल के पास ही भेजा जाएगा. क्योंकि, बिना राज्यपाल (जगदीप धनखड़) की मंजूरी के ये कानून नहीं बन सकेगा. और जगदीप धनखड़ के खिलाफ ममता बनर्जी जितनी मुखर नजर आती हैं. उसे देखकर आसानी से कहा जा सकता है कि धनखड़ इसे शायद ही मंजूरी देंगे. वैसे भी इस मामले में शक्ति अभी भी राज्यपाल के हाथ में ही है. तो, इसे अपने पास लंबित रखने या संशोधन के लिए वापस भेजने का अधिकार राज्यपाल के पास सुरक्षित है. ममता बनर्जी अपनी कैबिनेट के इस फैसले से एक बार फिर वही लाइमलाइट बटोरने की कोशिश करेंगी, जो हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों से पहले तक उनके आसपास थी.
सीधी सी बात है कि इस फैसले को लेकर राज्यपाल और ममता बनर्जी के बीच खींचतान होगी. और, 'दीदी' राज्यपाल जगदीप धनखड़ के जरिये इस मामले में केंद्र सरकार को भी घसीट ही लाएंगी. क्योंकि, पश्चिम बंगाल में हालिया संपन्न हुए उपचुनाव में भले ही तृणमूल कांग्रेस को जीत मिली हो. और, ममता बनर्जी का बंगाल भाजपा को तोड़ने का काम बदस्तूर चल रहा हो. लेकिन, खुद को विपक्ष का सबसे मजबूत चेहरा साबित करने की रेस में ममता बनर्जी इन दिनों पीछे छूटती नजर आ रही है. तमिलनाडु में एमके स्टालिन, तेलंगाना में केसीआर, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सियासी हुंकार के आगे ममता बनर्जी का कोई दांव काम नहीं आ पा रहा है. खैर, देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले में आगे क्या होगा. लेकिन, इतना तय ही केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और ममता के बीच फिर जंग शुरू होगी.
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