पश्चिम बंगाल में दूसरे चरण के मतदान से ठीक एक दिन पहले ममता बनर्जी ने गैर भाजपा नेताओं को पत्र लिखकर सियासी हलचल मचा दी है. तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ने इस पत्र के जरिये विपक्षी राजनीतिक दलों से भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने की अपील की है. 'दीदी' के इस लेटर के सामने आते ही भाजपा ने इसे ममता बनर्जी की हार का संकेत बता दिया है. भाजपा को 'बाहरी' बताने वाली ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'बाहरी' पार्टियों से समर्थन मांगने वाला बता दिया है. इस पत्र में विधानसभा चुनाव के बाद 'लोकतंत्र' और 'संविधान' को बचाने के लिए भाजपा के खिलाफ साझा प्रयास की बात कही गई है. ये प्रयास पहले भी हो चुका है और उसका नतीजा पिछले लोकसभा चुनाव में सबके सामने पहले ही आ चुका है. सवाल उठना लाजिमी है कि ममता बनर्जी को चुनाव के बीच में इस लेटर को लिखने की जरूरत क्यों पड़ गई?
सहानुभूति का 'खेला होबे'
पश्चिम बंगाल में दूसरे चरण का मतदान खत्म हो चुका है. छुटपुट घटनाओं को छोड़ दें, तो चुनाव काफी शांतिपूर्ण तरीके से हो रहा है. ममता बनर्जी पर हुए कथित हमले में लगी 'चोट' भी अब धीरे-धीरे सही हो रही है. इस चोट से उन्हें जितना फायदा मिलने की उम्मीद की जा रही थी, तृणमूल कांग्रेस को वो मिलता नहीं दिखा. भाजपा के खिलाफ 'खेला होबे' का नारा देने वाली ममता बनर्जी ने इस पत्र के सहारे एक बार फिर से लोगों के बीच 'सहानुभूति' जुटाने की कोशिश की है. ममता बनर्जी ने अपने पत्र में भाजपा द्वारा राज्यपालों के जरिये शासन में बाधा डालने, चुनावी राज्यों में सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग की बात कही. भतीजे अभिषेक बनर्जी की पत्नी से पूछताछ के समय भी उन्होंने ऐसी ही बात कही थी. ममता बनर्जी ने अपने पत्र में केंद्र सरकार द्वारा लाए गए जीएनसीटीडी बिल और इसके सहारे दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार से शक्ति छीनने की बात सबसे ज्यादा की है. टीएमसी मुखिया मतदाताओं को बताना चाहती हैं कि वह भाजपा नीत केंद्र सरकार के उत्पीड़न के बावजूद सशक्त रूप से राज्य की भलाई के लिए काम करती रही हैं.
पश्चिम बंगाल में दूसरे चरण के मतदान से ठीक एक दिन पहले ममता बनर्जी ने गैर भाजपा नेताओं को पत्र लिखकर सियासी हलचल मचा दी है. तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ने इस पत्र के जरिये विपक्षी राजनीतिक दलों से भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने की अपील की है. 'दीदी' के इस लेटर के सामने आते ही भाजपा ने इसे ममता बनर्जी की हार का संकेत बता दिया है. भाजपा को 'बाहरी' बताने वाली ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'बाहरी' पार्टियों से समर्थन मांगने वाला बता दिया है. इस पत्र में विधानसभा चुनाव के बाद 'लोकतंत्र' और 'संविधान' को बचाने के लिए भाजपा के खिलाफ साझा प्रयास की बात कही गई है. ये प्रयास पहले भी हो चुका है और उसका नतीजा पिछले लोकसभा चुनाव में सबके सामने पहले ही आ चुका है. सवाल उठना लाजिमी है कि ममता बनर्जी को चुनाव के बीच में इस लेटर को लिखने की जरूरत क्यों पड़ गई?
सहानुभूति का 'खेला होबे'
पश्चिम बंगाल में दूसरे चरण का मतदान खत्म हो चुका है. छुटपुट घटनाओं को छोड़ दें, तो चुनाव काफी शांतिपूर्ण तरीके से हो रहा है. ममता बनर्जी पर हुए कथित हमले में लगी 'चोट' भी अब धीरे-धीरे सही हो रही है. इस चोट से उन्हें जितना फायदा मिलने की उम्मीद की जा रही थी, तृणमूल कांग्रेस को वो मिलता नहीं दिखा. भाजपा के खिलाफ 'खेला होबे' का नारा देने वाली ममता बनर्जी ने इस पत्र के सहारे एक बार फिर से लोगों के बीच 'सहानुभूति' जुटाने की कोशिश की है. ममता बनर्जी ने अपने पत्र में भाजपा द्वारा राज्यपालों के जरिये शासन में बाधा डालने, चुनावी राज्यों में सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग की बात कही. भतीजे अभिषेक बनर्जी की पत्नी से पूछताछ के समय भी उन्होंने ऐसी ही बात कही थी. ममता बनर्जी ने अपने पत्र में केंद्र सरकार द्वारा लाए गए जीएनसीटीडी बिल और इसके सहारे दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार से शक्ति छीनने की बात सबसे ज्यादा की है. टीएमसी मुखिया मतदाताओं को बताना चाहती हैं कि वह भाजपा नीत केंद्र सरकार के उत्पीड़न के बावजूद सशक्त रूप से राज्य की भलाई के लिए काम करती रही हैं.
भाजपा की फौज के आगे अकेली पड़ीं
ममता बनर्जी के सामने भाजपा के स्टार प्रचारकों की फौज खड़ी है. कहा जा सकता है कि वह इस फौज के आगे अकेली पड़ गई हैं. अपने पत्र के सहारे उन्होंने यह दिखाने की कोशिश भी की है. दूसरे चरण के मतदान के दिन टीएमसी मुखिया नंदीग्राम मे थीं और नरेंद्र मोदी पश्चिम बंगाल के दौरे पर चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने मतदान के दिन मोदी की रैली को लेकर भी सवाल उठाए. 'वन फेस' पार्टी तृणमूल कांग्रेस के पास स्टार प्रचारकों की कमी नहीं है, लेकिन चुनाव के दौरान ममता बनर्जी ताबड़तोड़ रैलियों के मामले में भाजपा से पिछड़ती नजर आ रही हैं. वहीं, चुनाव के बीच में भी तृणमूल कांग्रेस के नेताओं का भाजपा में शामिल होना जारी है. ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस दोनों के लिए यह स्थिति चिंताजनक है.
समर्थन देना और वोट मिलना दोनों ही अलग-अलग बात हैं
ममता बनर्जी को देशभर के कई विपक्षी दलों ने अपना समर्थन देने की घोषणा की है. इन नेताओं ने तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में रैलियां भी की हैं, लेकिन समर्थन देना और वोट मिलना दो अलग-अलग बात हैं. शिवसेना ने 'दीदी' को बंगाल की शेरनी बताते हुए समर्थन जताया था, लेकिन शिवसेना का बंगाल में कितना वोट है, इस पर भी ध्यान देना होगा. हेमंत सोरेन, तेजस्वी यादव आदि ने ममता बनर्जी के पक्ष में प्रचार किया है. सीमांत लोकसभा सीटों पर भाजपा का दबदबा है. इस स्थिति में ये नेता टीएमसी को कितने वोट दिला पाएंगे, ये देखने वाली बात होगी.
मुस्लिम के साथ हिंदू वोटों के भी छिटकने का डर
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस-वाम दलों और आईएसएफ का गठबंधन तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ रहा है. बावजूद इसके उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी है. ममता बनर्जी अच्छी तरह से जानती हैं कि भाजपाविरोधी वोटों का बंटवारा उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है. इसी वजह से 'दीदी' ने अपनी चिट्ठी के सहारे मतदाताओं में संदेश भेजने की कोशिश की है कि भाजपा के खिलाफ वे भी एकजुट रहें. भाजपा ने आक्रामक प्रचार अभियान से ममता बनर्जी और टीएमसी पर मुस्लिम तुष्टिकरण का टैग लगा दिया है. इसे हटाने की कोशिश में टीएमसी मुखिया रैलियों में चंडी पाठ और अपना गोत्र तक बता चुकी हैं. उन्हें अब्बास सिद्दीकी की आईएसएफ से मुस्लिम और भाजपा के ध्रुवीकरण से हिंदू वोट बैंक खिसकता हुआ नजर आ रहा है.
सत्ता विरोधी लहर
किसी भी चुनाव में सत्ताविरोधी लहर सबसे बड़ा फैक्टर होता है. पश्चिम बंगाल में भाजपा 'खेला शेष' और 'परिवर्तन' के नारे के साथ आगे बढ़ रही है. भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ जमीनी स्तर पर सत्ताविरोधी लहर बनाई है. कटमनी और तोलाबाजी तृणमूल कांग्रेस के राज्य में बहुत आम सी बात थी. कटमनी को लेकर ममता बनर्जी ने खुद अपने कार्यकर्ताओं पर निशाना साधा था. इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि टीएमसी कार्यकर्ताओं का गुस्सा लोग ममता बनर्जी पर उतार दें.
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और भाजपा के बीच सीधी टक्कर देखने को मिल रही है. आगे के 6 चरणों में जिन सीटों पर मतदान होना है, वहां कांग्रेस-वाम दलों और आईएसएफ का गठबंधन उनके लिए चुनौती खड़ी कर सकता है. इस स्थिति में भाजपाविरोधी वोटों का बंटवारा रोकना उनकी सबसे अहम जरूरत है. भाजपा के दावे को किनारे रखते हुए देखा जाए, तो ममता बनर्जी ने इस चिट्ठी के सहारे एक बार फिर से सहानुभूति जुटाने की कोशिश की है. वह अपने प्रयास में कितना कामयाब होती हैं, ये तो चुनावी नतीजे ही बताएंगे. कहना गलत नहीं होगा कि 'दीदी' ने पश्चिम बंगाल के चुनावी नतीजों को लेकर अपना डर जाहिर कर दिया है.
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