भवानीपुर उपचुनाव (Bhabanipur Bypoll) में ममता बनर्जी ने करीब करीब सारे प्रयोग कर डाले हैं. सहानुभूति बटोरने की कोशिश से लेकर अपने वोटर को डराने और हौसलाअफजाई तक, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि वो भवानीपुर के मैदान में 2024 का भी रिहर्सल कर डाली हैं - और ममता बनर्जी के मिशन में भतीजे अभिषेक बनर्जी भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं.
पश्चिम बंगाल में बरसों से ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के कट्टर विरोधी बने रहे कांग्रेस (Congress) नेता अधीर रंजन चौधरी ने राहुल गांधी और सोनिया गांधी को अपनी तरफ से अलर्ट किया है - और वो आकलन भी बहुत हद तक सही कर रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व के लिए टीएमसी नेता को नजरअंदाज करना काफी महंगा पड़ सकता है. अधीर रंजन चौधरी फिलहाल लोक सभा में विपक्ष के नेता हैं और पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले उनको ही प्रदेश कांग्रेस की भी कमान सौंप दी गयी थी.
अधीर रंजन चौधरी ने मिसाल भी दी है कि जैसे ममता बनर्जी ने बंगाल में कांग्रेस को बर्बाद कर दिया, बिलकुल वैसे ही तृणमूल कांग्रेस की राष्ट्रीय स्तर पर भी कोशिश चल रही है. कांग्रेस नेता का कहना है कि ममता बनर्जी भरोसे के लायक नहीं हैं और 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चैलेंज करने के लिए विपक्षी कोशिशों से तृणमूल कांग्रेस नेता को दूर रखा जाना चाहिये.
अधीर रंजन चौधरी का ममता बनर्जी पर बड़ा इल्जाम है कि वो हमेशा ही उस हाथ को दांत से काटने की कोशिश करती हैं जिसने भी उनको खाना खिलाया है.
कांग्रेस नेता की ज्यादातर बातों में तो दम है, लेकिन एक चीज उनकी दलील को कमजोर कर रही है. अधीर रंजन चौधरी की समझाइश है कि ममता बनर्जी बीजेपी को फायदा पहुंचाने की कोशिश कर रही हैं, इसलिए भगवा पार्टी के खिलाफ लड़ाई में ममता बनर्जी पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता.
बीजेपी के फायदे के लिए कांग्रेस को डैमेज करने के पीछे ममता बनर्जी के मकसद को अधीर रंजन चौधरी केंद्रीय जांच एजेंसियों से जोड़ कर समझाने की कोशिश कर रहे हैं. अधीर रंजन चौधरी का दावा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी को ममता बनर्जी खुश करने की कोशिश कर रही हैं, ताकि उनके परिवार और पार्टी के नेताओं को CBI और ED की गिरफ्त में जाने से बचाया जा सके - और बदले में ममता बनर्जी बीजेपी की कांग्रेस मुक्त भारत की मुहिम को मदद पहुंचा रही हैं.
अधीर रंजन चौधरी का दावा है कि ममता बनर्जी बीजेपी की पॉलिटिकल एजेंट की तरह काम कर रही हैं, लेकिन ये ऑब्जर्वेशन सही नहीं लगता, तब भी जबकि कब किसका और किसके साथ गठबंधन हो जाये कोई निश्चित नहीं है.
भवानीपुर बना ममता बनर्जी का राजनीतिक लॉन्चपैड
भवानीपुर में कांग्रेस ने अपना कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया है और सीपीएम ने भी कमजोर प्रत्याशी उतार कर जैसे हाजिरी ही लगायी है. ममता बनर्जी के मुकाबले बीजेपी ने प्रियंका टिबरेवाल को टिकट दिया है - और दिलचस्प बात ये है कि अब तक वो जो भी चुनाव लड़ी हैं हार का ही मुंह देखना पड़ा है.
भवानीपुर उपचुनाव को लेकर ममता बनर्जी ने पहले ही बहुत कुछ बोल दिया था, जैसे पूरा एक्शन प्लान शेयर कर रही हों, 'ये चुनाव आपको पूरे देश में लड़ने की ताकत देने वाला है. हम लोग दूसरे राज्यों में भी चुनाव लड़ेंगे. हम लोग त्रिपुरा में लड़ेंगे. त्रिपुरा में खेला होबे. असम में खेला होबे. गोवा में खेला होबे. यूपी में खेला होबे. बीजेपी को मालूम होने चाहिये कि उसे शिकस्त देने वाला खिलाड़ी मैदान में उतर चुका है.
अधीर रंजन चौधरी काफी हद तक सही ही पकड़े हैं - ममता बनर्जी अपने कांग्रेस मुक्त अभियान में जुट चुकी हैं.
ममता बनर्जी भवानीपुर उपचुनाव में सारे तिकड़म भी आजमा चुकी हैं और सिर्फ उपचुनाव ही नहीं बल्कि उसी मैदान से दिल्ली जीतने का भी इरादा जाहिर कर चुकी हैं. विधानसभा चुनाव के दौरान ममता बनर्जी ने कहा था कि एक पैर से बंगाल जीते और दो पैरों से दिल्ली जीतेंगे. देखा जाये तो ममता बनर्जी के तृणमूल कांग्रेस के विस्तार की योजनी भी उसी दिशा में आगे बढ़ रही है.
पहले तो ममता बनर्जी ने भवानीपुर के लोगों को डराया कि अगर वो चुनाव नहीं जीत पायीं तो कोई और पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री बन जाएगा, लेकिन फिर जल्दी ही वो राष्ट्रीय राजनीति में बंगाल की भागीदारी के सपने दिखाने लगीं - और अपनी बातों पर भरोसा दिलाने के लिए बंगाल से बाहर उनका एक्शन भी बोलने लगा. कई मोर्चे पर तो ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ही ज्यादा एक्टिव नजर आये हैं.
भवानीपुर के वोटर को अभिषेक बनर्जी ने भी अपनी तरफ से समझाने की कोशिश की, 'ये चुनाव केवल ममता बनर्जी को वोट देने के लिए नहीं है... ये सिर्फ भवानीपुर के लिए नहीं है - आप दिल्ली के लिए अपना फैसला दे रहे हैं... दिल्ली में बदलाव लाने के लिए लोग तृणमूल कांग्रेस को वोट देंगे.'
ममता बनर्जी ने जुलाई में कोलकाता की शहीदी रैली के बाद दिल्ली का दौरा किया था और कहा था कि वैसे ही वो हर दो महीने पर आती-जाती रहेंगी. हालांकि, दिल्ली दौरे में ममता बनर्जी का अनुभव अच्छा नहीं रहा. ममता बनर्जी के दिल्ली पहुंचते ही राहुल गांधी खासे एक्टिव हो गये थे और विपक्षी दलों के नेताओं के साथ ताबड़तोड़ कई मीटिंग कर डाले थे - और उनके लौटने की घड़ी आने तक राजनीतिक समीकरण ऐसे बदले कि दिल्ली से मायूसी के साथ कोलकाता का रुख करना पड़ा था.
लेकिन तब से लेकर कोलकाता में रहते हुए ही ममता बनर्जी ने वो सब कर डाला है जो मुमकिन हो सका है. त्रिपुरा में तो प्रशांत किशोर की टीम के साथ तृणमूल कांग्रेस के महासचिव अभिषेक बनर्जी पहले से ही जूझते रहे हैं - अब तो असम के साथ साथ गोवा में भी पार्टी के पांव जमाने का इंतजाम हो चुका है.
बंगाल की ही तरह त्रिपुरा भी लंबे अरसे तक लेफ्ट का गढ़ रहा है, लेकिन 2018 में संघ की रखी नींव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तूफानी दौरे से इमारत खड़ी की और फिर भगवा लहरा दिया. अब तृणमूल कांग्रेस के एक्टिव हो जाने से राजनीतिक हालात पांच साल पहले जैसे नहीं लगते क्योंकि सीपीएम में हरकत में आ गयी है - और सीधे सड़क पर बीजेपी को चुनौकी मिलने लगी है.
बंगाल के नतीजे आने के बाद तो ममता बनर्जी केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी को विपक्ष की ताकत दिखा चुकी हैं, देखना है भवानीपुर के नतीजे क्या असर दिखाते हैं?
ममता का एक्शन प्लान भी तो देखिये
राहुल गांधी को लगता है केरल में कम्फर्ट जोन मिल गया है और वो तो जैसे वहीं चिपके हुए हैं. भूपेश बघेल के छत्तीसगढ़ मॉडल पेश करने के बाद राहुल गांधी को बस्तर का दौरा करना था, लेकिन वो शिमला हो कर दिल्ली लौटने के बाद केरल कूच कर गये.
पंजाब कांग्रेस के हिस्से का पुराना जख्म है जिसे भरने की कोशिश भी लगातार होती रही है, लेकिन जबसे भाई-बहन राहुल और प्रियंका गांधी वाड्रा का दबदबा बढ़ा है वो तो जैसे नासूर बनने की तरफ बढ़ चला है. ऐसे में कांग्रेस के भीतर से ही सवाल उठने लगे हैं कि जब कोई चुनाव हुआ अध्यक्ष नहीं है तो फैसले कौन ले रहा है, लिहाजा कार्यकारिणी की अर्जेंट मीटिंग बुलायी जाये.
राहुल गांधी हैं कि कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी को लेकर फूले नहीं समा रहे हैं - और ममता बनर्जी की टीम है कि कांग्रेस नेताओं पर ही हाथ साफ किये जा रही है. अधीर रंजन चौधरी को भी उसी बात का डर सता रहा है. हालांकि, ऐसा भी नहीं कि ममता बनर्जी सिर्फ कांग्रेस में शिकार पर उतारू हैं, बीजेपी के नेताओं को भी तृणमूल कांग्रेस ने कम नहीं झटका है.
देखा जाये तो ममता बनर्जी जहां भी मौका मिल रहा है फटाफट हाथ साफ कर रही हैं. अब ममता बनर्जी भी कांग्रेस के लिए बीजेपी ही साबित हो रही है तो ये राहुल गांधी और सोनिया गांधी के लिए सोचने वाली बात है. कपिल सिब्बल भी तो यही सवाल उठा रहे हैं.
ममता बनर्जी ने सुष्मिता देव के बाद लुइजिन्हो फलेरियो को तृणमूल कांग्रेस में लाकर कांग्रेस को भी झटके पर झटका दिया है. असम में सुष्मिता देव तो गोवा में लुईजिन्हो फलेरियो. जैसे सुष्मिता देव असम में तृणमूल कांग्रेस को मजबूत करने में लगी हैं, वही काम अब लुईजिन्हो फलेरियो गोवा में करने जा रहे हैं. असम में तो कांग्रेस का जैसे कलेजा ही कटता जा रहा है हिमंता बिस्व सरमा ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया और अब सुष्मिता देव बची खुची कांग्रेस को खत्म करने में जुटी हैं.
मालूम नहीं राहुल गांधी सुष्मिता देव और लुईजिन्हो फलेरियो को निडर मानते हैं या डरपोक - क्योंकि ये दोनों तो संघ-बीजेपी नहीं बल्कि तृणमूल कांग्रेस में गये हैं.
त्रिपुरा, गोवा और असम - ये तीनों ही बीजेपी शासित राज्य हैं और ममता बनर्जी के एक्टिव होने से बीजेपी को तो बाद में कोई नुकसान होगा, पहले तो कांग्रेस का ही पत्ता साफ होगा - सत्ता तो बाद में भी हासिल की जा सकेगी, पहले विपक्ष के तौर पर पांव जमाना कम है क्या? ममता बनर्जी यही तो कर रही हैं.
जो सलूक बीजेपी ने विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस के साथ किया था, करीब करीब वैसे ही ममता बनर्जी अब बीजेपी के समानांतर कांग्रेस के साथ भी पेश आ रही हैं. कांग्रेस के ये याद दिलाने पर अभिषेक बनर्जी की तरफ से स्टैंड साफ करने की कोशिश होती है. अभिषेक बनर्जी कहते हैं, 'हमारी लड़ाई कांग्रेस या किसी और राजनीतिक दल के साथ नहीं है... हमें भारत को बचाने की जरूरत है और उसके लिए बीजेपी को हराना जरूरी है.'
बीजेपी से जगह जगह हार जाने को लेकर अभिषेक बनर्जी कांग्रेस पर ताना भी मारते हैं. याद दिलाते हैं, कांग्रेस पिछले सात साल से राष्ट्रीय विपक्षी दल है, जबकि बीजेपी को लगातार तृणमूल कांग्रेस ही हराती रही है.
गोवा के मुख्यमंत्री रहे लुईजिन्हो फलेरियो तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने के बाद भी कहते हैं कि वो तो कांग्रेसी ही हैं. जैसे ममता बनर्जी या शरद पवार, शायद. लुईजिन्हो फलेरियो कहते हैं, 'मैं कांग्रेस का आदमी हूं... मेरी एक ही विचारधारा और सिद्धांत हैं... जब मैं तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो रहा हूं, तो मेरा सपना इस कांग्रेस परिवार को एक साथ लाने का है... मेरा मुख्य उद्देश्य बीजेपी को हराना है.'
ये तो धीरे धीरे साफ होता जा रहा है कि राष्ट्रीय राजनीति में अपनी जगह बनाने के लिए ममता बनर्जी भी बीजेपी की ही तरह कांग्रेस मुक्त अभियान में लगी हैं - लेकिन ये भी ध्यान रहे कि वो बीजेपी लिए भी वैसी ही मुसीबत बनती जा रही हैं.
ऐसा तो नहीं कि ममता बनर्जी भी बंगाल से बाहर वो इलाका खोज रही हैं जहां से वो अगली बार लोक सभा चुनाव लड़ें तो राष्ट्रीय मंच पर दिखायी दें - जैसे नरेंद्र मोदी ने सात साल पहले गुजरात से निकल कर बनारस को चुना. ममता के लिए ऐसी कोई सही जगह तो दिल्ली या लखनऊ हो सकती है, लेकिन दोनों जगह ममता बनर्जी के लिए कोई स्कोप नहीं है क्योंकि एक जगह अरविंद केजरीवाल तो एक जगह योगी आदित्यनाथ काबिज हैं. हो सकता है राजनीति किसी ऐसे मोड़ पर पहुंचे जब अरविंद केजरीवाल ही ममता बनर्जी को 2024 में दिल्ली की किसी संसदीय सीट से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दें.
बाकी बातें अपनी जगह हैं, लेकिन अधीर रंजन चौधरी ने एक बात जरूर ठीक कही है, 'ममता देश का अगला प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रही हैं - और इसमें कांग्रेस उनको सबसे बड़ी बाधा लग रही है.' अगर यही बात अधीर रंजन चौधरी ट्विटर पर लिखें तो आगे 'सत्यमेव जयते' जोड़ सकते हैं किसी को शक नहीं होगा.
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