पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री फिरहाद हकीम के कोलकाता के गार्डन रीच इलाके को 'मिनी पाकिस्तान' कहे जाने पर बवाल मचा है. हकीम चुनाव प्रचार कर रहे थे और उसका कवरेज पाकिस्तान के 'द डॉन' अखबार की रिपोर्टर मलीहा हामिद सिद्दिकी भी कर रही थीं. इसी दौरान बातचीत के दौरान हकीम ने मलीहा से कहा, 'मेरे साथ आईए. मै आपको कोलकाता के मिनी पाकिस्तान में ले चलता हूं'. मलीहा की वह रिपोर्ट पाक अखबार के वेबसाइट पर मौजूद है.
डॉन के ऑनलाइन एडिशन में छपा आर्टिकल |
हमारे चुनावों में भी पाकिस्तान कितने आराम से 'घुसपैठ' कर जाता है. इसका ये एक और नायाब नमूना है. पिछले साल बिहार चुनाव के दौरान भी पाकिस्तान की चर्चा आ गई थी. तब अमित शाह ने कहा था कि बीजेपी के हारने पर पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे. खूब बवाल हुआ और नतीजे भी बीजेपी के खिलाफ गए.
खैर, मौजूदा मुद्दे पर आते हैं. सवाल है कि इस बयान पर इतना बवाल क्यों? शहर के एक हिस्से को पाकिस्तान कहने पर इस बार किनकी भावनाओं को ठेस पहुंचा है? उन्हें जो हर बार पाकिस्तान का नाम आते ही उबल पड़ते हैं या देश के उन तमाम मुसलमानों को जिन्हें इससे पहले भी कई बार 'मिनी पाकिस्तान' का तमगा दिया जा चुका है. ये कोई पहली बार तो नहीं है. आखिर 'मिनी पाकिस्तान' टर्म का इजाद हमने ही तो किया है. क्या हम लोग ही आपस में बात करते हुए अक्सर मुस्लिम बहुल इलाकों को ये संज्ञा नहीं देते रहे हैं? ये हमारे ही शब्द हैं. और इस लिहाज से देखें तो देश के हर शहर में क्या एक 'मिनी पाकिस्तान' नहीं बसता है?
चुनाव का समय है तो हंगामा तो होगा ही. ध्रुवीकरण की कोशिश भी होगी. लेकिन उससे पहले गुजरात के अहमदाबाद का उदाहरण लीजिए या फिर...
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री फिरहाद हकीम के कोलकाता के गार्डन रीच इलाके को 'मिनी पाकिस्तान' कहे जाने पर बवाल मचा है. हकीम चुनाव प्रचार कर रहे थे और उसका कवरेज पाकिस्तान के 'द डॉन' अखबार की रिपोर्टर मलीहा हामिद सिद्दिकी भी कर रही थीं. इसी दौरान बातचीत के दौरान हकीम ने मलीहा से कहा, 'मेरे साथ आईए. मै आपको कोलकाता के मिनी पाकिस्तान में ले चलता हूं'. मलीहा की वह रिपोर्ट पाक अखबार के वेबसाइट पर मौजूद है.
डॉन के ऑनलाइन एडिशन में छपा आर्टिकल |
हमारे चुनावों में भी पाकिस्तान कितने आराम से 'घुसपैठ' कर जाता है. इसका ये एक और नायाब नमूना है. पिछले साल बिहार चुनाव के दौरान भी पाकिस्तान की चर्चा आ गई थी. तब अमित शाह ने कहा था कि बीजेपी के हारने पर पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे. खूब बवाल हुआ और नतीजे भी बीजेपी के खिलाफ गए.
खैर, मौजूदा मुद्दे पर आते हैं. सवाल है कि इस बयान पर इतना बवाल क्यों? शहर के एक हिस्से को पाकिस्तान कहने पर इस बार किनकी भावनाओं को ठेस पहुंचा है? उन्हें जो हर बार पाकिस्तान का नाम आते ही उबल पड़ते हैं या देश के उन तमाम मुसलमानों को जिन्हें इससे पहले भी कई बार 'मिनी पाकिस्तान' का तमगा दिया जा चुका है. ये कोई पहली बार तो नहीं है. आखिर 'मिनी पाकिस्तान' टर्म का इजाद हमने ही तो किया है. क्या हम लोग ही आपस में बात करते हुए अक्सर मुस्लिम बहुल इलाकों को ये संज्ञा नहीं देते रहे हैं? ये हमारे ही शब्द हैं. और इस लिहाज से देखें तो देश के हर शहर में क्या एक 'मिनी पाकिस्तान' नहीं बसता है?
चुनाव का समय है तो हंगामा तो होगा ही. ध्रुवीकरण की कोशिश भी होगी. लेकिन उससे पहले गुजरात के अहमदाबाद का उदाहरण लीजिए या फिर बंगलुरु या कोई और भी शहर. हमारे-आपके शब्दों वाला ये 'मिनी पाकिस्तान' हर जगह है. बंटवारे के वक्त जो कुछ हुआ या उसके बाद समय-समय पर जो कुछ होता रहा है, दोष जिसे भी दीजिए. हिंदू और मुस्लिम बस्तियों का फर्क मालूम होने लगा था. खासकर छोटे कस्बों और शहरों में ये अंतर व्यापक तौर पर नजर आता है. देश में कई इलाके ऐसे हैं जहां मुस्लिम समाज की बहुलता है और वे एक साथ इकट्ठा वहां रहते हैं और फिर इसी से 'मिनी पाकिस्तान' टर्म की शुरुआत हुई.
वैसे, फिरहाद हकीम से यह जरूर पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने एक पाकिस्तानी पत्रकार से ऐसा क्यों कहा. वे पाकिस्तान के उस पत्रकार को खुश करने के लिए मेहमाननवाजी में ऐसा बोल गए या फिर बातों-बातों में ऐसे ही उनके मुंह से निकल गया. याद दिला दें, ये वही फिरहाद हकीम हैं जो कुछ दिन पहले एक स्टिंग ऑपरेशन में रिश्वत लेते नजर आए थे.
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