पश्चिम बंगाल में चुनाव (West Bengal Election 2021) होने में वक्त तो छह महीने के करीब ही बचा है, लेकिन लड़ाई अचानक तेज हो चली है. एक बड़ी वजह बिहार चुनाव का खत्म हो जाना भी है. पश्चिम बंगाल की 294 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव अप्रैल-मई, 2021 में होने की संभावना है. विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय को भी पश्चिम बंगाल के मोर्चे पर तैनात कर दिया गया है.
ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की चुनावी मुहिम तो प्रशांत किशोर पहले से ही संचालित कर रहे हैं, अब तो रंगमंच और फिल्म जगत के सुपरिचित चेहरे ब्रात्य बसु भी मोर्चे पर आ डटे हैं. बंगाली समाज में ब्रात्य बसु को काफी आदर और सम्मान हासिल है. ब्रात्य बसु, वैसे भी ममता बनर्जी के सबसे पुराने भरोसेमंद नेताओं में से एक रहे हैं जो सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलन के साथ साथ ममता बनर्जी के 'परिवर्तन' के नारे को भी लोगों के बीच पहुंचाने में मददगार रहे हैं.
ब्रात्य बसु को ताजा टास्क 'बंगाली गौरव' (Bangali Pride) को लोगों के बीच प्रमोट करने को मिला है, जिसे बीजेपी के राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की राजनीति से मुकाबले के लिए फील्ड में उतारा गया है.
ममता बनर्जी के साथ साथ टीएमसी नेता तो बीजेपी नेताओं को बाहरी गुंडे कह ही रहे थे, ब्रात्य बसु के जरिये टीएमसी नेता लड़ाई को बंगाली गौरव पर बाहरी गुंडों के हमले के रूप में स्थापित और प्रचारित करने की कोशिश कर रही हैं - बंगाली गौरव नामक ये ब्रह्मास्त्र बीजेपी पर कितना भारी पड़ेगा अभी ये तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन ये मुश्किल चैलेंज साबित जरूर हो सकता है, ऐसा लगता है.
'बंगाली गौरव' बनाम 'बाहरी गुंडे'
2019 के आम चुनाव में ममता के हिस्से की संसदीय सीटें झटक कर ममता बनर्जी के लिए बीते बरसों के मुकाबले बड़ा चैलेंज पेश कर दिया है. ममता बनर्जी परिवर्तन के नारे के साथ सत्ता में आयी थीं - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेता अमित शाह बंगाली समाज को हर मौके पर समझा रहे हैं कि ममता बनर्जी का परिवर्तन का नारा...
पश्चिम बंगाल में चुनाव (West Bengal Election 2021) होने में वक्त तो छह महीने के करीब ही बचा है, लेकिन लड़ाई अचानक तेज हो चली है. एक बड़ी वजह बिहार चुनाव का खत्म हो जाना भी है. पश्चिम बंगाल की 294 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव अप्रैल-मई, 2021 में होने की संभावना है. विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय को भी पश्चिम बंगाल के मोर्चे पर तैनात कर दिया गया है.
ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की चुनावी मुहिम तो प्रशांत किशोर पहले से ही संचालित कर रहे हैं, अब तो रंगमंच और फिल्म जगत के सुपरिचित चेहरे ब्रात्य बसु भी मोर्चे पर आ डटे हैं. बंगाली समाज में ब्रात्य बसु को काफी आदर और सम्मान हासिल है. ब्रात्य बसु, वैसे भी ममता बनर्जी के सबसे पुराने भरोसेमंद नेताओं में से एक रहे हैं जो सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलन के साथ साथ ममता बनर्जी के 'परिवर्तन' के नारे को भी लोगों के बीच पहुंचाने में मददगार रहे हैं.
ब्रात्य बसु को ताजा टास्क 'बंगाली गौरव' (Bangali Pride) को लोगों के बीच प्रमोट करने को मिला है, जिसे बीजेपी के राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की राजनीति से मुकाबले के लिए फील्ड में उतारा गया है.
ममता बनर्जी के साथ साथ टीएमसी नेता तो बीजेपी नेताओं को बाहरी गुंडे कह ही रहे थे, ब्रात्य बसु के जरिये टीएमसी नेता लड़ाई को बंगाली गौरव पर बाहरी गुंडों के हमले के रूप में स्थापित और प्रचारित करने की कोशिश कर रही हैं - बंगाली गौरव नामक ये ब्रह्मास्त्र बीजेपी पर कितना भारी पड़ेगा अभी ये तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन ये मुश्किल चैलेंज साबित जरूर हो सकता है, ऐसा लगता है.
'बंगाली गौरव' बनाम 'बाहरी गुंडे'
2019 के आम चुनाव में ममता के हिस्से की संसदीय सीटें झटक कर ममता बनर्जी के लिए बीते बरसों के मुकाबले बड़ा चैलेंज पेश कर दिया है. ममता बनर्जी परिवर्तन के नारे के साथ सत्ता में आयी थीं - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेता अमित शाह बंगाली समाज को हर मौके पर समझा रहे हैं कि ममता बनर्जी का परिवर्तन का नारा अधूरा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो कहते हैं कि ममता बनर्जी के परिवर्तन के नारे को तो भूल ही जाइये, पश्चिम बंगाल में तो राजा राममोहन रॉय के सामाजिक परिवर्तन का सपना तक अधूरा है और उसी को पूरा करने के लिए बंगाल में बीजेपी सत्ता की बागडोर चाहती है - ताकि वो डबल इंजन की सरकारों जैसे फायदे पहुंचा सके.
लगता तो यही है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ही ममता बनर्जी को बंगाली गौरव के लिए उकसावे भरी प्रेरणा दी है. बीते बंगाल दौरे में अमित शाह ने ऐसी ही बातें की थी. अमित शाह ने कहा था, कम्युनिस्ट शासन से त्रस्त होकर लोगों ने बड़ी उम्मीद के साथ ममता बनर्जी के हाथों में बंगाल की कमान दी थी... लेकिन आज मां, माटी और मानुष का नारा तुष्टिकरण, तानाशाही और टोलबाजी में परिवर्तित हो गया है...'
ब्रात्य बसु मैदान में टीएमसी की मजबूत मौजूदगी दर्ज कराने की कोशिश करते हैं, पूछते हैं, 'बीजेपी ने बंगाल के अपने किसी सांसद को कैबिनेट बर्थ क्यों नहीं दी है?'
जरा दलील पर भी गौर कीजिये, 'क्या वे यूपी या गुजरात में एक भी ऐसा मंत्री बता सकते हैं जिसका सरनेम - चटर्जी, बनर्जी, सेन या गांगुली हो?' ये भी समझाते हैं कि बीजेपी ऐसा क्यों करती है, 'क्योंकि वे वहां रहने वाले बंगालियों को अपना नहीं मानते! वहां बंगाली बाहरी समझे जाते हैं.'
अमित शाह ने कहा था, 'पश्चिम बंगाल में तुष्टिकरण की राजनीति से वहां की महान परंपरा आहत हुई है... बंगाल पूरे देश के आध्यात्मिक और धार्मिक चेतना का केंद्र रहा है... ये गौरव फिर से बंगाल प्राप्त करे इसके लिए मैं सभी से आह्वान करता हूं कि आप सब एकजुट और जागरूक होकर अपने-अपने दायित्वों का निर्वहन करें.'
अमित शाह आरोप लगाते हैं, 'तृणमूल सरकार जनता की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर सकी है' - और कहते हैं, "हमें एक मौका दीजिए हम 'सोनार बांग्ला' देंगे... हम बंगाल को सुरक्षित बनाएंगे."
लेकिन ब्रात्य बसु बंगाली समुदाय को पहले से ही आगाह करने की कोशिश कर रहे हैं - और ये समझाने की कोशिश करते हैं कि बीजेपी का असल मकसद क्या है, 'एकमात्र उद्देश्य बंगालियों को नियंत्रित करना है, ताकि हम उनके अधीन रहें!'
फिर सवाल करते हैं, 'क्या हालात इतने खराब हैं कि बंगाल और बंगाली उनके आगे झुक जाएंगे? क्या बंगालियों को दूसरे राज्यों के नेताओं को स्वीकार करना चाहिये जिन्हें हम पर थोपा जाये?'
ममता बनर्जी की बीजेपी नेताओं को बाहरी साबित करने की कोशिश अपनी जगह है, लेकिन बीजेपी के पास अपना पुराना बंगाली कनेक्ट है - श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम पर बीजेपी सीधे जम्मू-कश्मीर और पश्चिम बंगाल को जोड़ देती है.
अमित शाह के असर को काटने में जुटे ब्रात्य बसु को पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष आगे आये हैं, कहते हैं, 'भाजपा ने खुद को दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में स्थापित किया है - और एक बंगाली डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इस पार्टी की स्थापना की थी... वे बंगाली गौरव की बात करते हैं, लेकिन उन्होंने बंगालियों के लिए किया क्या है? टीएमसी ने बंगालियों को प्रवासी मजदूरों में बदल दिया है.'
पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 'बंगाली गौरव' के नाम पर अपना ब्रह्मास्त्र चल दिया है. पहले से ही ममता बनर्जी बीजेपी नेताओं को बाहरी गुंडे कह कर बुलाती रही हैं - और किसी बाहरी के बंगाली समाज पर हमले की चर्चा चलाकर विक्टिम कार्ड खेल चुकी हैं.
देखा जाये तो 2011 और 2016 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के लिए कहीं ज्यादा मुश्किल चुनौतियां थीं - 2011 में ममता बनर्जी को लेफ्ट शासन के मुकाबले लोगों को समझाना था कि परिवर्तन के बाद तृणमूल कांग्रेस की सरकार कांग्रेस के साथ मिल कर कैसा शासन देने वाली है - और 2016 में ममता बनर्जी को सत्ता विरोधी लहर को काउंटर करने के साथ साथ अपने ही लोगों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से बचते हुए लड़ाई जीतनी थी. ममता बनर्जी दोनों बार अपने दम पर टीएमसी की सरकार बनवाने में कामयाब रही हैं, लेकिन 2021 आते आते बीजेपी ने जमा जमाया सारा खेल पहले ही खराब कर दिया है.
ये तो आजमाया हुआ नुस्खा है
ममता बनर्जी बीजेपी के खिलाफ वो नुस्खा ही अपना रही हैं जो राजनीतिक तौर पर मुश्किल घड़ी में तकरीबन सबके काम आती रही है. बिहार से लेकर गुजरात और महाराष्ट्र तक.
बिहार चुनाव से थोड़ा पहले आपने गौर किया होगा कैसे कंगना रनौत के सपोर्ट में बीजेपी खड़ी हुई थी. कंगना रनौत को बीजेपी की केंद्र सरकार की तरफ से सुरक्षा दी गयी और वो शिवसेना और उद्धव ठाकरे को टारगेट कर धड़ाधड़ हमले करने लगी थीं.
शिवसेना प्रवक्ता संजय निरुपम से वाद विवाद में कंगना रनौत ने मुंबई को PoK बता डाला और ये ऐसा मामला था जिस पर बीजेपी नेताओं को पीछे भी हटना पड़ा और सफाई भी देनी पड़ी. जो बीजेपी नेता बढ़ चढ़ कर कंगना रनौत की बातों पर सवाल पूछ रहे थे, मराठी अस्मिता की बात आयी तो देवेंद्र फडणवीस जैसे नेता भी पीछे हट गये और बोले कि वो कंगना रनौत की ऐसी बातों का समर्थन नहीं करते.
तब कंगना रनौत के सुशांत सिंह की मौत पर शक जताने के बाद सीबीआई जांच भी शुरू हुई. माना जा रहा था कि सुशांत सिंह राजपूत केस बिहार में चुनावी मुद्दा बनेगा, लेकिन ऐसा न हो सका, लेकिन रिया चक्रवर्ती का मामला पश्चिम बंगाल चुनाव में उठ सकता है क्योंकि सबसे पहले कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने रिया चक्रवर्ती को बंगाली ब्राह्मण लड़की बताते हुए बीजेपी पर टारगेट करने का इल्जाम लगाया - और फिर तृणमूल नेताओं ने भी परोक्ष रूप से ही सपोर्ट करते हुए संकेत दिया कि चुनावों में ये मामला बहस का विषय हो सकता है. अभी तो यही कहा जा सकता है कि रिया चक्रवर्ती केस के चुनावी मुद्दा बनने का पूरा स्कोप है.
बिहार चुनाव की बात करें तो 2015 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार के डीएनए में खोट की बात कही तो देखते ही देखते ये बिहारी मान-सम्मान पर हमले का मुद्दा बन गया. लोगों में डीएनए टेस्ट के लिए प्रधानमंत्री आवास, दिल्ली के पते पर सैंपल भेजने की होड़ मच गयी.
गुजराती अस्मिता का मामला तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी पहले से उठाते रहे हैं. कई मौकों पर बीजेपी के बचाव और राजनीतिक विरोधियों को काउंटर करने के लिए भी इसे आजमा चुके हैं और सफल भी रहे हैं.
2017 के गुजरात चुनाव को ही याद कीजिये. कांग्रेस पहले से ही चुनाव अभियान शुरू कर चुकी थी और उसका एक स्लोगन काफी जोर पकड़ रहा था - 'विकास गांडो थायो छे' जिसका मतलब है - विकास पागल हो गया है. ये बीजेपी के विकास के गुजरात मॉडल को खत्म करन की कांग्रेस की जोरदार कोशिश रही और काफी असरदार भी साबित हो रही थी. बीजेपी कांग्रेस के इस कैंपेन से परेशान सी हो उठी थी.
आखिर में बीजेपी ने ब्रह्मास्त्र से ही शिकार भी किया. गुजरात गौरव यात्रा के समापन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अहमदाबाद पहुंचे और मंच से बोले - 'हुं छू विकास, हुं छू गुजरात' यानी 'मैं विकास हूं, मैं गुजरात हूं.'
ऐसा कारगर हथियार साबित हुआ कि कांग्रेस को अपना सफल अभियान बीच में ही रोक देना पड़ा. भला गुजराती अस्मिता को पागल बताने की हिम्मत कोई कर भी सकता है क्या?
'मां, माटी और मानुष' एक बुनियादी सवाल है, लेकिन 'बंगाली गौरव' के साथ लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं - और राजनीतिक हिसाब से देखा जाये तो ये बहुत बड़ा भावनात्मक हथियार है - और राजनीति के मौजूदा दौर में भावनात्मक हथियार ही तो सब पर भारी पड़ रहे हैं.
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